क्या रामायण और महाभारत सही हैं?
जी हाँ, बिलकुल सही है।
लेकिन मैं सिर्फ अपना मत को सत्य की तरह प्रस्तुत नहीं करूँगा। रामायण और महाभारत की सत्यता को प्रमाणित करने के लिए मैं सबसे कुछ सवाल पूछना चाहूँगा:
वाल्मीकि और वेद-व्यास जैसे ज्ञानियों को एक झूठी कहानी लिखने की क्या जरूरत पड़ी होगी? क्या उन्होंने ऐसा प्रसिद्धि पाने के लिए किया? लेकिन ऐसा तो हो नहीं सकता क्योंकि वे तो पहले से ही काफ़ी प्रसिद्ध थे। बल्कि, रामायण लिखने से पहले वाल्मीकि जी को ब्रह्मा ने आ कर आशीर्वाद दिया था।मतलब वो पहले से ही देवों के बीच प्रसिद्ध थे। फिर क्या उन्होंने ऐसा पैसों के लिए किया? ये भी संभव नहीं है क्योंकि दोनों ही सन्यासी थे और धन रखने की उनको इजाज़त ही नहीं थी। बल्कि वाल्मीकि जी ने तो सब कुछ छोड़ दिया था हरि-भक्ति में, फिर वो ऐसा विरोधाभासी कार्य क्यों करेंगे? इसका साफ़ मतलब निकलता है कि रामायण और महाभारत एक काल्पनिक पुस्तक नहीं है।
करोड़ो हिन्दू एक मिथ्या को सच क्यों मानेंगे? ध्यान देने योग्य बात है कि वाल्मीकि जी राम के समय में और वेद-व्यास जी कृष्ण के समय में उपस्थित थे। फिर क्यों तब से हर कुटुंब के बड़े-बुजुर्ग रामायण/महाभारत को इतिहास बता कर आने वाली पीढ़ियों को बता रहे थे? क्या सबको एकदम से चस्का लगा था कि चलो बच्चों को झूठा इतिहास बताएं और ये चस्का राम जी के समय से लग गया था? ऐसा संभव नहीं है ना? अतः रामायण/महाभारत सत्य पर टिके हैं।
अगर रामायण/महाभारत झूठी है तो तब के राजाओं ने एक झूठी कहानी का विरोध क्यों नहीं किया? अचानक से सबको क्या पागलपन का दौरा पड़ा की सबने अपने राज्यों और अपनी प्रजा के बीच एक झूठी कहानी को आसानी से फैलने दिया? सोचिये? दरअसल ये हमारा अहंकार है कि जो चीज़ हमें समझ नहीं आती हम उसे झूठी बता कर ठुकरा देते हैं। या यूँ कहें कि हम अभी भी अपने इतिहास को ले कर शर्मिंदा हैं। गुलाम-मानसिकता इतनी जल्दी नहीं जाती ना।
अब चलिए क्योंकि बात अविश्वसनीय घटनाओं पर आ कर रुक गयी है तो थोड़ा उस पर भी चर्चा कर लेते हैं।
हर इंसान के लिए दुनिया उसके अनुभवों की गठरी है। किसी ने ज्यादा अनुभव करे हैं और वो ज्यादा समझदार कहलाता है, किसी ने कम तो इसे बुद्धू या दुनियादारी से बेखबर कहते हैं। इसे और अच्छे से समझने के लिए सोचें कि आपका शरीर एक मशीन है जिसमें आप बैठे हैं। आपकी आँख, कान, नाक, वगैरह आपको बाहरी दुनिया से जानकारी इकठ्ठा कर के देते हैं। आपका दिमाग फिर उसमें से कुछ काम की बातें खोजता है। लेकिन, अगर हम सिर्फ अपने नाक, कान, आँख द्वारा दी गयी जानकारी को ही सत्य मान लें तो ये गलत नहीं होगा? क्या पता संसार में ऐसी चीज़े हों जो हमारी इंद्रियों से हम न महसूस कर पाएं। जैसे, चुम्बकीय शक्ति – हम इसे देख नहीं सकते, महसूस नहीं कर सकते लेकिन कुछ प्रवासी परिंदे इसे देख सकते हैं। फिर अपनी इंद्रियों पर इतना विश्वास कैसे?
रामायण/महाभारत की बातें अविश्वसनीय इसलिए लगती हैं क्योंकि ये किसी बॉलीवुड के नायक की कहानी नहीं है। ये तो भगवान की दिव्य लीलाओं का वर्णन है। फिर वो चाहे वानर सेना हो, समुद्र पर तैरते पत्थर या कृष्ण द्वारा मुख में समस्त ब्रह्माण्ड दिखाना। ये सब संभव इसलिए है क्योंकि राम और कृष्ण दिव्य-पुरुष हैं।
इसे और गहराई से समझने के लिए सोचें कि एक कंप्यूटर प्रोग्रामर है। आप अपने कंप्यूटर में कुछ एक चीज़ें जैसे मूवी देखना, internet चलाना या गेम खेलना करते हैं। लेकिन एक प्रोग्रामर उसी कंप्यूटर में बिना कोई साइट खोले क्रिकेट स्कोर बताने का प्रोग्राम लिख देगा या चेस (शतरंज) में आठ रानी (वज़ीर) कैसे कैसे बैठ सकती हैं, वो बता देगा। हमारे लिए अचरज है लेकिन उसके लिए खेल। इसी तरह, भगवान भी प्रोग्रामर हैं, वो गुरुत्वाकर्षण रोक सकते हैं, वानरों से मन में बात कर सकते हैं, सारा ब्रह्माण्ड दिखा सकते हैं।
सच बोलूँ तो रामायण और महाभारत में कुछ भी अविवशनीय नहीं है। सही जानकारी के साथ सब कुछ समझ आ सकता है। तो क्यों ना अपने देश के ग्रंथों को समझें, भले ही हम अधार्मिक ही क्यों न हों?