Phone

9140565719

Email

mindfulyogawithmeenu@gmail.com

Opening Hours

Mon - Fri: 7AM - 7PM

लग्नस्थ केतु और उसके अन्य ग्रहों से सम्बन्ध।

लग्नस्थ केतु जातक को शंकालु, चिंताग्रस्त व भ्रमित बना देता है। वात व्याधि से भी ऐसे जातक पीड़ित रहते हैं। केतु प्रधान ​जातक जीवन में कोई लक्ष्य या महत्वाकांक्षा नहीं रखते… ‘जैसा चल रहा है, चलने दे’ इस मानसिकता के चलते रेस में सदैव पीछे रहना पसंद करते हैं।ऐसे व्यक्तियों को हँसना-खिलखिलाना पसंद नहीं होता। अति शुभ सूचना भी वे निराश होकर ही देंगे। हाँ सिंह लग्न, मकर या कुंभ में केतु हो तो वैभव, चल-अचलसंपत्ति व पुत्र सुख का कारक बनता है। पर अधिक तर वर्षफल मे आया केतू जोकी लगन का हो अचानक दुर्घटना और बिमारी का योग देता है चोट अकसर कमर व उसके नीचे के हिस्से पर देता है अनियमित कमर दर्द घुटनो का दर्द शरीर मे तपन भी बढाता है मगंल के साथ खराब होने पर पीलिया लीवर पित इनकी समस्या बढा देता तेजी से
🌹यदि केतु सूर्य के साथ हो तो मन सदैव शंकालु बनाता है, आत्मविश्वास का अभाव देता है। ऐसे जातक को बिना बात शक करने की आदत होती है जिससे वो बुराई ढूढता रहता है सबमे अकसर ऐसे चापलूषो पर अधिक भरोषा करके नुकसान झेलते है ऐसे हालात मे इनके अपने रिश्ते तनाव मे रहते है सातंवे घर की ऐ युति खराब ही रहती है पत्नी पति के बीच छोटी बात शक पर आपसी तालमेल खतम कर जाती है
🌹चंद्र-केतु युति पानी से भय व जीवन में संघर्ष दिखाती है। ऐसा जातक मानसिक तौर चितितं रहता है ऐसा जातक एक काम के लिए दस रास्ते प्लान करता है पर होता नी ऊपर से कुछ बोलने करने मे डर आगे आता है ऐसा जातक भगवान के मंदिर जाकर अधिक शिकायत करता रहता है मतलब खुद मे बडबडाता रहता है और रोता रहता है । अपनी भावनाये जाहिर नही कर पाता जिससे उदास रहता है बच्चे ऐसे मे गुमसुम और चिडचिडे रहे है।
🌹मंगल-केतु युति होने पर व्यक्ति जीवन में कोई रस नहीं लेता डर डर के जीता है या फिर औरो को मार कर जीता है उसमे दिमागी ताकत से अधिक शरीर की ताकत होती है पर वो उसका इस्माल सही जगह करे सभंव नही ।
🌹बुध-केतु युति -जातक को बोलने और सुनने की क्षमता खराब रहती है खासतर कान के रोग पैदा हो जाते है सुर्य भी नीच का हो तो न सुन सकेगा न बोल सकेगा पर दिखने मे अच्छा होता है । ऐसे लोगो को मुहं का कैसंर भी हो जाता उनके दातं समय से पहले झडने व कमजोर होने लगते है यदि जन्म से पूव माता के ये योग हो तो बच्चे जीभ छोटी होती है देर से बोलना अटक अटक कर बोलना तुतलाना या फिर बोल नही पाना ऐ पाया जाता है । एक बात और ऐसे लोगो को धोखा हर चीज मे मिलता है और झूठे आरोप झेलते है।

🌹गुरु-केतु युति प्रतियुति आध्यात्म में रुचि देती है व सिद्धि मार्ग का रास्ता दिखाती है। केतु शुभ दृष्टि में हो तो जातक आध्यात्म-उपासना का मार्ग चुनता है व ईश्वर कृपा का भागी बनता है। बुध के साथ होने पर व्यक्ति मितभाषी होता है। पर तब इनमे आपस मे बनती नही एक फल देगा एक नही जिससे आदमी अपनी भावनाओ और आमदनी के लिए कनफ्यूज रहता है ऐसे जातक को धन सचंय करने मे परेशानी रहती है और अशुभता मे हालाद इतने दुख दायी दे बैठता है की उसको घर पालने के लिए एक एक रू का मोहताज बना देता है।

🌹शुक्र और केतू –आज एक बिमारी सबसे अधिक होती मधुमेह यानी शुगर शुक्र के साथ केतू की यति इस रोग से पिडित करती है क्यूकि मगंल यहा कमजोर हो जाता है वही यदि सुर्य शुक्र की युति चौथे घर मे हो तो माता को सातवे मे हो तो स्वयं को या पत्नी को तीसरे हो तो भाई को शुगर जरूर देगा यदि सुर्य शुक्र साथ हो तो और पती दिन मे सेक्सुअल रिलेशन बनाता है यानी जबतक सुर्य उदय हो तो पत्नी बिमार ही रहती है । वही शुक्र केतू की युति शरीर को बिमारी से लडने की ताकत कम कर देता है बिना केतू की खराबी के शुक्र शुगर रोग नही देता चाहे वो साथ हो या नही । पत्नी बिमार रहती है शादी देर से होती है फिर होती है तो सुख नही होता । सबसे बडी बात औलाद सुख देर से या नही देता ।

🌹गुरू केतू एक साथ होने पर कभी कभी अपने फल नही देते तब जातक राहु प्रबल रहने लगता है न नीदं न चैन एक तरफ बिमारी दूसरी तरफ काम एक दम ठप यहाँ एक बात और है की केतू की अधिक खराबी जादू टोना ऊपरी हवा इस तरह के वारदाते होनी लगती है । जहा अच्छा केतू धर्मगुरू बनाता है ज्योतिषी राजनेता बनाता है लोग पीछे पीछे चलते है वही खराब केतू जातक को उल्टा भटकाव देता है तात्रिंक ओजाओ डाॅक्टर के पीछे भागते फिरते है बिमार होता है तो पता नी लगता है क्या आ तीन तीन बिमारी एक रिर्पोट आ जाती है ऐसे जातक अचानक रोने लगता है । केतू जब भी लगन मे आता है और अशुभ हो तो वाहन से और नजर दोष से चोट अधिक देता है लगन मगंल का और सुर्य का होता है यदि मगंल वर्षफल मे छठे आठवे मे आऐ और केतू लगन मे तो पूरे वर्षफल मे इतनी चोट बिमारी सामने आ जाती है की उसका धन डाॅक्टरो मे जाता रहता पर फर्क नी आता काम धीरे धीरे खतम होता जाता है कर्ज पे कर्ज चलेगा पर नतीजा जीरो।
🌹शनी–केतू —इन दोनो की युति जातक कर्म के लिए और अधिकार के लिए लडना सिखाती है ऐसे जातक अपना हक न मरने देते है न मारते है इनकी हर एक बात पर विशेष चीज आती है जिसका अहम हिस्सा होता है ऐ लोग काम तो कैसा भी हो कर जाते पर पढाई नही करते ऐ अकसर झगडे करने और चोटे खाने मशहूर ही रहते है मरने मारने से नही डरते इसलिए ऐ दूसरो की वजह से फसंते जल्दी दिमाग वाले लोग इनकी ताकत का इस्तेमाल अपने फायदे के लिए करते है इसलिए झूठे केसो मे फंस भी जाते है ।
राहु-केतु ओर ज्योतिष शास्त्र
✍🏻राहु के फल को समझने में बड़े-बड़े ज्योतिषी चककर खा जाते है क्यो की राहू घटनाओ को अचानक घटित करने में माहिर है जैसे एक्सीडेंट, हार्ट अटैक, लाटरी सट्टे में लाभ हानि, बिल्डिंग, पुल, मकान का अचानक ध्वस्त हो जाना अचानक बहुत बड़ा नुकसान हो जाना, बड़ा लाभ हो जाना, अचानक घबराहट होना फिर ठीक हो जाना, डर, आकृतिया दिखाई देना (भुत प्रेत)राजनीतिक पद प्राप्ति, राजनीतिक पतन, उतार चढ़ाव, अचानक प्रमोशन, पद प्राप्ति, नोकरी से इस्तीफा, कन्फ्यूजन पैदा होना डॉक्टर को दवाई देने में कन्फ्यूजन हो जाय, दवाई का अचानक रिएक्शन हो जाना, इस तरह की ओर भी बहुत सी घटाए जो अचानक जीवन की दिशा को परिवर्तित कर दे राहु के दायरे में आती है राहु को ज्योतिष में छाया ग्रह माना जाता है राहु जहां जिस भाव मे बैठता है उस भाव का फल करता है जिस ग्रह की राशियो में बैठता है उस राशि स्वामी का फल करता है जो ग्रह इसको देखे उन सभो ग्रहो का फल राहु करता है जिन ग्रहो के साथ राहु बैठा हो उन सभी ग्रहों का फल भी राहु करता है राहु की स्थिती को समझने के लिए दिमाग की बत्तियो को जलाना पड़ता है तब राहु का फल समझ मे आता है….!!
“कुंडली परामर्श के लिए संपर्क करें:-
✍🏻9839760662

कर्ज के योग: —
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार मंगल ग्रह को कर्ज का कारक ग्रह माना जाता है। शास्त्रों के अनुसार मंगलवार को कर्ज लेना निषेध माना गया है। वहीं बुधवार को कर्ज देना अशुभ है क्योंकि बुधवार को दिया गया कर्ज कभी नही मिलता। मंगलवार को कर्ज लेने वाला जीवनभर कर्ज नहीं चुका पाता तथा उस व्यक्ति की संतान भी इस वजह परेशानियां उठाती हैं।जन्म कुंडली के छठे भाव से रोग, ऋण, शत्रु, ननिहाल पक्ष, दुर्घटना का अध्ययन किया जाता है| ऋणग्रस्तता के लिए इस भाव के आलावा दूसरा भाव जो धन का है, दशम-भाव जो कर्म व रोजगार का है, एकादश भाव जो आय का है एवं द्वादश भाव जो व्यय भाव है, का भी अध्ययन किया जाता है| इसके आलावा ऋण के लिए कुंडली में मौजूद कुछ योग जैसे सर्प दोष व वास्तु दोष भी इसके कारण बनते हैं| इस भाव के कारक ग्रह शनि व मंगल हैं|
दूसरे भाव का स्वामी बुध यदि गुरु के साथ अष्टम भाव में हो तो यह योग बनता है| जातक पिता के कमाए धन से आधा जीवन काटता है या फिर ऋण लेकर अपना जीवन यापन करता है| सूर्य लग्न में शनि के साथ हो तो जातक मुकदमों में उलझा रहता है और कर्ज लेकर जीवनयापन व मुकदमेबाजी करता रहता है| 12 वें भाव का सूर्य व्ययों में वृद्धि कर व्यक्ति को ऋणी रखता है| अष्टम भाव का राहू दशम भाव के माध्यम से दूसरे भाव पर विष-वमन कर धन का नाश करता है और इंसान को ऋणी होने के लिए मजबूर कर देता है| इनके आलावा कुछ और योग हैं जो व्यक्ति को ऋणग्रस्त बनाते हैं|

— उपर बताएं पाप ग्रह अगर मंगल को देख रहे हों तो भी कर्जा होता है।
—- कुंडली में खराब फल देने वाले घरों (छठे, आठवें या बारहवें) घर में कर्क राशि के साथ हो तो व्यक्ति का कर्ज लंबे समय तक बना रहता है।
—– षष्ठेश पाप ग्रह हो व 8 वें या 12 वें भाव में स्थित हो तो व्यक्ति ऋणग्रस्त रहता है|
—छठे भाव का स्वामी हीन-बली होकर पापकर्तरी में हो या पाप ग्रहों से देखा जा रहा हो|
—-अगर कुंडली में मंगल कमजोर हो यानि कम अंश का हो तो ऋण लेने की स्थिति बनती है।
—- अगर मंगल कुंडली में शनि, सूर्य या बुध आदि पापग्रहों के साथ हो तो व्यक्ति को जीवन में एक बार ऋण तो लेना ही पड़ता है।
— दूसरा व दशम भाव कमजोर हो, एकादश भाव में पाप ग्रह हो या दशम भाव में सिंह राशि हो, ऐसे लोग कर्म के प्रति अनिच्छुक होते हैं|
— यदि व्यक्ति का 12 वां भाव प्रबल हो व दूसरा तथा दशम कमजोर तो जातक उच्च स्तरीय व्यय वाला होता है और 5. निरंतर ऋण लेकर अपनी जरूरतों की पूर्ति करता है|
— आवास में वास्तु-दोष-पूर्वोत्तर कोण में निर्माण हो या उत्तर दिशा का निर्माण भारी व दक्षिण दिशा का निर्माण हल्का हो तो व्यक्ति के व्यय अधिक होते हैं और ऋण लेना ही पड़ता है|

कर्ज और वार का संबंध —-
-सोमवार- सोमवार की अधिष्ठाता देवी पार्वती हैं। यह चर संज्ञक और शुभ वार है। इस वार को किसी भी प्रकार का कर्ज लेने-देने में हानि नहीं होती है।
-मंगलवार- मंगलवार के देवता कार्तिकेय हैं। यह उग्र एवं क्रूर वार है। इस वार को कर्ज लेना शास्त्रों में निषेध बताया गया है। इस दिन कर्ज लेने के बजाए पुराना कर्ज हो तो चुका देना चाहिए।
-बुधवार- बुधवार के देवता विष्णुहैं। यह मिश्र संज्ञक शुभ वार है, मगर ज्योतिष की भाषा में इसे नपुंसक वार माना गया है। यह गणेशजी का वार है। इस दिन कर्ज देने से बचना चाहिए।
– गुरुवार- गुरुवार के देवता ब्रह्माहैं। यह लघु संज्ञक शुभ वार है। गुरुवार को किसी को भी कर्ज नहीं देना चाहिए, लेकिन इस दिन कर्ज लेने से कर्ज जल्दी उतरता है।
-शुक्रवार- शुक्रवार के देवता इन्द्र हैं। यह मृदु संज्ञक और सौम्य वार है। कर्ज लेने-देने दोनों दृष्टि से अच्छा वार है।
-शनिवार- शनिवार के देवता काल हैं। यह दारुण संज्ञक क्रूर वार है। स्थिर कार्य करने के लिए ठीक है, परंतु कर्ज लेन-देने के लिए ठीक नहीं है। कर्ज विलंब से चुकता है।
– रविवार- रविवार के देवता शिव हैं। यह स्थिर संज्ञक और क्रूर वार है। रविवार को न तो कर्ज दें और न ही कर्ज लें।
कर्ज के पिंड से छुटकारा नहीं हो रहा हो तो प्रत्येक बुधवार को गणेशजी के सम्मुख तीन बार ‘ऋणहर्ता गणेश स्तोत्र’ का पाठ करें और यथाशक्ति पूजन करें।
धनहीनता के ज्योतिष योग—

ज्योतिष में फलित करते समय योगों का विशेष योगदान होता है। योग एक से अधिक ग्रह जब युति, दृष्टि, स्थिति वश संबंध बनाते हैं तो योग बनता है। योग कारक ग्रहों की महादशा, अन्तर्दशा व प्रत्यन्तर दशादि में योगों का फल मिलता है। योग को समझे बिना फलित व्यर्थ है। योग में योगकारक ग्रह का महत्वपूर्ण भूमिका होती है। योगकाकर ग्रह के बलाबल से योग का फल प्रभावित होता है। अब यहां ज्योतिष योगों कि चर्चा करेंगे जो इस प्रकार हैं।धनहानि किसी को भी अच्छी नहीं लगती है। आज उन ज्योतिष योगों की चर्चा करेंगे जो धनहानि या धनहीनता कराते हैं। कुछ योग इस प्रकार हैं-

-धनेश छठे, आठवें एवं बारहवें भाव में हो या भाग्येश बारहवें भाव में हो तो जातक करोड़ों कमाकर भी निर्धन रहता है। ऐसे जातक को धन के लिए अत्यन्त संघर्ष करना पड़ता है। उसके पास धन एकत्रा नहीं होता है अर्थात्‌ दूसरे शब्दों में कह सकते हैं कि धन रुकता नहीं है।
– जातक की कुंडली में धनेश अस्त या नीच राशि में स्थित हो तथा द्वितीय व आठवें भाव में पापग्रह हो तो जातक सदैव कर्जदार रहता है।
– जातक की कुंडली में धन भाव में पापग्रह स्थित हों। लग्नेश द्वादश भाव में स्थित हो एवं लग्नेश नवमेश एवं लाभेश(एकादश का स्वामी) से युत हो या दृष्ट हो तो जातक के ऊपर कोई न कोई कर्ज अवश्य रहता है।
-किसी की कुंडली में लाभेश छठे, आठवें एवं बारहवें भाव में हो तो जातक निर्धन होता है। ऐसा जातक कर्जदार, संकीर्ण मन वाला एवं कंजूस होता है। यदि लग्नेश भी निर्बल हो तो जातक अत्यन्त निर्धन होता है।
-षष्ठेश एवं लाभेश का संबंध दूसरे भाव से हो तो जातक सदैव ऋणी रहता है। उसका पहला ऋण उतरता नहीं कि दूसरा चढ़ जाता है। यह योग वृष, वृश्चिक, मीन लग्न में पूर्णतः सत्य सिद्ध होते देखा गया है।
-धन भाव में पाप ग्रह हों तथा धनेश भी पापग्रह हो तो ऐसा जातक दूसरों से ऋण लेता है। अब चाहे वह किसी करोड़पति के घर ही क्यों न जन्मा हो।
-किसी जातक की कुंडली में चन्द्रमा किसी ग्रह से युत न हो तथा शुभग्रह भी चन्द्र को न देखते हों व चन्द्र से द्वितीय एवं बारहवें भाव में कोई ग्रह न हो तो जातक दरिद्र होता है। यदि चन्द्र निर्बल है तो जातक स्वयं धन का नाश करता है। व्यर्थ में देशाटन करता है और पुत्रा एवं स्त्राी संबंधी पीड़ा जातक को होती है।
– यदि कुंडली में गुरु से चन्द्र छठे, आठवें या बारहवें हो एवं चन्द्र केन्द्र में न हो तो जातक दुर्भाग्यशाली होता है और उसके पास धन का अभाव होता है। ऐसे जातक के अपने ही उसे धोखा देते हैं। संकट के समय उसकी सहायता नहीं करते हैं। अनेक उतार-चढ़ाव जातक के जीवन में आते हैं।
-यदि लाभेश नीच, अस्त य पापग्रह से पीड़ित होकर छठे, आठवें या बारहवें भाव में हो तथा धनेश व लग्नेश निर्बल हो तो ऐसा जातक महा दरिद्र होता है। उसके पास सदैव धन की कमी रहती है। सिंह एवं कुम्भ लग्न में यह योग घटित होते देखा गया है।
-यदि किसी जातक की कुण्डली में दशमेश, तृतीयेश एवं भाग्येश निर्बल, नीच या अस्त हो तो ऐसा जातक भिक्षुक, दूसरों से धन पाने की याचना करने वाला होता है।
– किसी कुण्डली में मेष में चन्द्र, कुम्भ में शनि, मकर में शुक्र एवं धनु में सूर्य हो तो ऐसे जातक के पिता एवं दादा द्वारा अर्जित धन की प्राप्ति नहीं होती है। ऐसा जातक निज भुजबल से ही धन अर्जित करता है और उन्नति करता है।
– यदि कुण्डली का लग्नेश निर्बल हो, धनेश सूर्य से युत होकर द्वादश भाव में हो तथा द्वादश भाव में नीच या पापग्रह से दृष्ट सूर्य हो तो ऐसा जातक राज्य से दण्ड स्वरूप धन का नाश करता है। ऐसा जातक मुकदमें धन हारता है। यदि सरकारी नौकरी में है तो अधिकारियों द्वारा प्रताड़ित या नौकरी से निकाले जाने का भय रहता है। वृश्चिक लग्न में यह योग अत्यन्त सत्य सिद्ध होता देखा गया है।
-यदि धनेश एवं लाभेश छठे, आठवें, बारहवें भाव में हो एवं एकादश में मंगल एवं दूसरे राहु हो तो ऐसा जातक राजदण्ड के कारण धनहानि उठाता है। वह मुकदमे, कोर्ट व कचहरी में मुकदमा हारता है। अधिकारी उससे नाराज रहते हैं। उसे इनकम टैक्स से छापा लगने का भय भी रहता है।

मूलतः धनेश, लाभेश, दशमेश, लग्नेश एवं भाग्येश निर्बल हो तो धनहीनता का योग बनता है।
उक्त धनहीनता के योग योगकारक ग्रहों की दशान्तर्दशा में फल देते हैं। फल कहते समय दशा एवं गोचर का विचार भी कर लेना चाहिए।

ज्योतिष में राजयोग।
राजयोग होने पर व्यक्ति को उच्च पद, मान सम्मान, धन तथा अन्य प्रकार की सुख-संपत्ति प्राप्त होती हैं।
अगर जन्म कुंडली के नौवें या दसवें घर में सही ग्रह मौजूद रहते हैं तो उन परिस्थितियों में राजयोग का निर्माण होता है।
जन्म कुंडली में नौवां स्थान भाग्य का और दसवां कर्म का स्थान होता है।
कोई भी व्यक्ति इन दोनों घरों की वजह से ही सबसे ज्यादा सुख और समृद्धि प्राप्त करता है।
राजयोग का आंकलन करने के लिए जन्म कुंडली में लग्न को आधार बनाया जाता है।

कुंडली के लग्न में सही ग्रह मौजूद होते हैं तो राजयोग का निर्माण होता है।

कुंडली में जब शुभ ग्रहों का योग बनता है उसके आधार पर राजयोग का आंकलन किया जाता है।
कुंडली के किसी भी भाव में चंद्र-मंगल का योग बन रहा है तो जीवन में धन की कमी नहीं होती है, मान-सम्मान मिलता है, सामाजिक प्रतिष्ठा बढ़ती है।
कुंडली में राजयोग का अध्ययन करते वक़्त अन्य शुभ और अशुभ ग्रहों के फलों का भी अध्ययन जरुरी है।
इनके कारण राजयोग का प्रभाव कम या ज्यादा हो सकता है।

राजयोग वे ग्रह स्थितियां हैं जिनसे व्यक्ति विपुल धन संपदा, पद, गौरव, सुख और ऐश्वर्य पाता है।
विपरीत राजयोग में व्यक्ति को प्राप्तियां तो होती हैं लेकिन वह उनका आनंद नहीं ले पाता।
जिस किसी व्यक्ति की कुंडली में ये ज्योतिषीय योग बनता है तो व्यक्ति राज्याधिकारी बनता है।
जब कुंडली में 2, 3, 5, 6, 8, 9 तथा 11, 12 में से किसी स्थान में बृहस्पति की स्थिति हो और शुक्र 8वें स्थान में हो तो ऐसी ग्रह स्थिति में जन्म लेने वाला जातक राज्याधिकारी ही बनता है।
कभी-कभी हम लोग किसी साधारण परिवार में जन्मे बालक के राजसी लक्षण देखते हैं जो इसी योग के कारण बनते हैं।

जब भी मनुष्य कोई कोशिश करता है या किसी चीज़ की इच्छा करता है तो उसके प्रयत्न विभिन्न योगों के अनुसार ही विकसित होते हैं।

निम्नलिखित स्थितियों में राजयोगों का सृजन होता है:

  1. जब किसी व्यक्ति की कुंडली में ग्रह एक-दूसरे की राशि में होते हैं तो शुभ फल प्राप्त होते हैं।
  2. जब किसी व्यक्ति की कुंडली में ग्रह एक-दूसरे से दृष्टि संबंध में हो तो शुभ फल प्राप्त होते हैं।
  3. कुंडली में ग्रहों की परस्पर युति होने पर शुभ फल प्राप्त होते हैं।
  4. कुंडली में एक ग्रह दूसरे ग्रह को संदर्भित करता हो तो शुभ।
  5. नवम और पंचम स्‍थान के अधिपतियों के साथ बलवान केन्‍द्राधिपति का संबंध शुभफलदायक होता है। इसे राजयोग कारक भी बताया गया है।
  6. योगकारक ग्रहों (यानी केन्‍द्र और त्रिकोण के अधिपतियों) की दशा में बहुधा राजयोग की प्राप्ति होती है। योगकारक संबंध रहित ऐसे शुभ ग्रहों की दशा में भी राजयोग का फल मिलता है।

• योगकारक ग्रहों से संबंध करने वाला पापी ग्रह अपनी दशा में तथा योगकारक ग्रहों की अंतरदशा में जिस प्रमाण में उसका स्‍वयं का बल है, तदनुसार वह योगज फल देगा। (यानी पापी ग्रह भी एक कोण से राजयोग में कारकत्‍व की भूमिका निभा सकता है।)

• धर्म और कर्म भाव के अधिपति यानी नवमेश और दशमेश यदि क्रमश: अष्‍टमेश और लाभेश हों तो इनका संबंध योगकारक नहीं बन सकता है। (उदाहरण के तौर पर मिथुन लग्‍न) इस स्थिति को राजयोग भंग भी मान सकते हैं।

• यदि मारक ग्रहों की अंतरदशा में राजयोग आरंभ हो तो वह अंतरदशा मनुष्‍य को उत्‍तरोतर राज्‍याधिकार से केवल प्रसिद्ध कर देती है। पूर्ण सुख नहीं दे पाती है।

• अगर राजयोग करने वाले ग्रहों के संबंधी शुभग्रहों की अंतरदशा में राजयोग का आरंभ हो तो राज्‍य से सुख और प्रतिष्‍ठा बढ़ती है। राजयोग करने वाले से संबंध न करने वाले शुभग्रहों की दशा प्रारंभ हो तो फल सम होते हैं। फलों में अधिकता या न्‍यूनता नहीं दिखाई देगी। जैसा है वैसा ही बना रहेगा।

• राहु-केतु यदि केन्‍द्र (विशेषकर चतुर्थ और दशम स्‍थान में) अथवा त्रिकोण में स्थित होकर किसी भी ग्रह के साथ संबंध नहीं करते हों तो उनकी महादशा में योगकारक ग्रहों की अंतरदशा में उन ग्रहों के अनुसार, शुभयोगकारक फल देते हैं। (यानी शुभारुढ़ राहु-केतु शुभ संबंध की अपेक्षा नहीं रखते। बस वे पाप संबंधी नहीं होने चाहिए तभी कहे हुए अनुसार फलदायक होते हैं।) राजयोग रहित शुभग्रहों की अंतरदशा में शुभफल होगा, ऐसा समझना चाहिए।

• दशम स्‍थान का स्‍वामी लग्‍न में और लग्‍न का स्‍वामी दशम में, ऐसा योग हो तो वह राजयोग समझना चाहिए। इस योग पर विख्‍यात और विजयी ऐसा मनुष्‍य होता है।

• नवम स्‍थान का स्‍वामी दशम में और दशम स्‍थान का स्‍वामी नवम में हो तो ऐसा योग राजयोग होता है। इस योग पर विख्‍यात और विजयी पुरुष होता है।

• जन्मपत्री में जो नीच ग्रह अपने उच्चांश में बली हो तो व्यक्ति राजा के समान ऐश्वर्य भोगता है। जबकि उच्च के ग्रह अपने नीचांशों में होने पर व्यक्ति को गरीबी में जीवन बिताना पड़ता है।

• जिस मनुष्य का पूर्ण बली चन्द्रमा लग्न को छोड़कर शेष केन्द्र या त्रिकोण (4,7,10,5,9) में यदि पूर्ण बली शुक्र या बृहस्पति से युति बनाता हो तो वह मनुष्य साक्षात् राजा के समान ही सुख-संपत्ति और वैभवपूर्ण जीवन जीता है।

• किसी व्यक्ति के जन्म समय में जो भी ग्रह अपनी नीच संज्ञा वाली राशि में स्थित हो या बैठा हो, यदि उस राशि का स्वामी और उसकी उच्च संज्ञा राशि का स्वामी त्रिकोण (5,9) या केंद्र (1,4,7,10) में बैठा हो तो वह मनुष्य या तो राजा होता है या फिर चारों दिशाओं में घूमने वाला यशस्वी, धार्मिक नेता होता है। ऐसा व्यक्ति राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मंत्री, योगी, शंकराचार्य या इसी तरह के पद पर विराजमान होता है।

• जिस मनुष्य का कर्क लग्न बृहस्पति से युक्त हो, शुक्र धर्म स्थान में विराजमान हो तथा शनि व मंगल सातवें घर में बैठे हों तो वह मनुष्य सम्राट होता है।

• किसी व्यक्ति के जन्म के समय जो ग्रह नीच राशि में हो, उस राशि का स्वामी या उसकी उच्चराशि का स्वामी लग्न में हो या चंद्रमा से केंद्र (1,4,7,10) में हो तो वह व्यक्ति स्वभाव से अत्यंत धार्मिक तथा चक्रवर्ती सम्राट होता है।

• जिस व्यक्ति के दूसरे, पांचवें तथा नवें या ग्यारहवें घर में सभी शुभ ग्रह विराजमान हो तो वह मनुष्य धनवान होता है। यदि लग्नेश शुभ ग्रहों से युक्त होकर केंद्र त्रिकोण में उच्च या स्वगृही बैठा हो तो मनुष्य बहुत धनवान राजनीतिज्ञ होता है।

• यदि व्यक्ति की कुंडली में नवमेश अपने नवांशनाथ के साथ केन्द्र में पंचमेश से युति बना रहा हो तो ऐसे व्यक्ति का राजा भी सम्मान करते हैं। प्राय: ऐसे लोग उच्च पदस्थ सरकारी अफसर बनते हैं।

• यदि मेष में गुरु, धन में शनि और चन्द्रमा, दशम में राहु-शुक्र साथ बैठे हों तो व्यक्ति बहुत बड़ा राजनेता बनता है। यदि सभी ग्रह (2,6,7,12) में बैठे हो तो व्यक्ति बहुत ही बड़ा प्रभावशाली राजपुरुष होता है।

हर राशि में राजयोग निर्माण के लिए अलग-अलग दशा होती है:

1 मेष लग्न- मेष लग्न में मंगल और बृहस्पति अगर कुंडली के नौवें या दसवें भाव में विराजमान होते हैं तो यह राजयोग कारक बन जाता है।

2 वृष लग्न- वृष लग्न में शुक्र और शनि अगर नौवें या दसवें स्थान पर विराजमान होते हैं तो यह राजयोग का निर्माण कर देते हैं। इस लग्न में शनि राजयोग के लिए अहम कारक बताया जाता है।

3 मिथुन लग्न- मिथुन लग्न में अगर बुध या शनि कुंडली के नौवें या दसवें घर में एक साथ आ जाते हैं तो ऐसी कुंडली वाले जातक का जीवन राजाओं जैसा बन जाता है।

4 कर्क लग्न- कर्क लग्न में अगर चंद्रमा और ब्रहस्पति भाग्य या कर्म के स्थान पर मौजूद होते हैं तो यह केंद्र त्रिकोण राज योग बना देते हैं। इस लग्न वालों के लिए बृहस्पति और चन्द्रमा बेहद शुभ ग्रह भी बताये जाते हैं।

5 सिंह लग्न- सिंह लग्न के जातकों की कुंडली में अगर सूर्य और मंगल दशम या भाग्य स्थान में बैठ जाते हैं तो जातक के जीवन में राज योग कारक का निर्माण हो जाता है।

6 कन्या लग्न- कन्या लग्न में बुध और शुक्र अगर भाग्य स्थान या दशम भाव में एक साथ आ जाते हैं तो जीवन राजाओं जैसा हो जाता है।

7 तुला लग्न- तुला लग्न वालों का भी शुक्र या बुध अगर कुंडली के नौवें या दसवें स्थान पर एक साथ विराजमान हो जाता है तो इस ग्रहों का शुभ असर जातक को राजयोग के रूप में प्राप्त होने लगता है।
8 वृश्चिक लग्न- वृश्चिक लग्न में सूर्य और मंगल, भाग्य स्थान या कर्म स्थान (नौवें या दसवें) भाव में एक साथ आ जाते हैं तो ऐसी कुंडली वाले का जीवन राजाओं जैसा हो जाता है। यहाँ एक बात और ध्यान देने वाली है कि अगर मंगल और चंद्रमा भी भाग्य या कर्म स्थान पर आ जायें तो यह शुभ रहता है।
9 धनु लग्न- धनु लग्न के जातकों की कुंडली में राजयोग के कारक, बृहस्पति और सूर्य माने जाते हैं। यह दोनों ग्रह अगर नौवें या दसवें घर में एक साथ बैठ जायें तो यह राजयोग कारक बन जाता है।
10 मकर लग्न- मकर लग्न वाली की कुंडली में अगर शनि और बुध की युति, भाग्य या कर्म स्थान पर मौजूद होती है तो राजयोग बन जाता है।
11 कुंभ लग्न- कुंभ लग्न वालों का अगर शुक्र और शनि नौवें या दसवें स्थान पर एक साथ आ जाते हैं तो जीवन राजाओं जैसा हो जाता है।
12 मीन लग्न- मीन लग्न वालों का अगर बृहस्पति और मंगल जन्म कुंडली के नवें या दशम स्थान पर एक साथ विराजमान हो जाते हैं तो यह राज योग बना देते हैं।

विभिन्न प्रकार के राजयोग:

• लक्ष्मी योग- कुंडली के किसी भी भाव में चंद्र-मंगल का योग बन रहा है तो जीवन में धन की कमी नहीं होती है। मान-सम्मान मिलता है। सामाजिक प्रतिष्ठा बढ़ती है।

• रूचक योग- मंगल केंद्र भाव में होकर अपने मूल त्रिकोण (पहला, पांचवा और नवा भाव), स्वग्रही (मेष या वृश्चिक में हो तो) अथवा उच्च राशि (मकर राशि) का हो तो रूचक योग बनता है। रूचक योग होने पर व्यक्ति बलवान, साहसी, तेजस्वी, उच्च स्तरीय वाहन रखने वाला होता है। इस योग में जन्मा व्यक्ति विशेष पद प्राप्त करता है।

• भद्र योग- बुध केंद्र में मूल त्रिकोण स्वगृही (मिथुन या कन्या राशि में हो) अथवा उच्च राशि (कन्या) का हो तो भद्र योग बनता है। इस योग से व्यक्ति उच्च व्यवसायी होता है। व्यक्ति अपने प्रबंधन, कौशल, बुद्धि-विवेक का उपयोग करते हुए धन कमाता है। यह योग सप्तम भाव में होता है तो व्यक्ति देश का जाना माना उद्योगपति बन जाता है।

• शश योग- यदि कुंडली में शनि की खुद की राशि मकर या कुम्भ में हो या उच्च राशि (तुला राशि) का हो या मूल त्रिकोण में हो तो शश योग बनता है। यह योग सप्तम भाव या दशम भाव में हो तो व्यक्ति अपार धन-सम्पति का स्वामी होता है। व्यवसाय और नौकरी के क्षेत्र में ख्याति और उच्च पद को प्राप्त करता है।

• गजकेसरी योग- जिसकी कुंडली में शुभ गजकेसरी योग होता है, वह बुद्धिमान होने के साथ ही प्रतिभाशाली भी होता है। इनका व्यक्तित्व गंभीर व प्रभावशाली भी होता है। समाज में श्रेष्ठ स्थान प्राप्त करते हैं। शुभ योग के लिए आवश्यक है कि गुरु व चंद्र दोनों ही नीच के नहीं होने चाहिए। साथ ही, शनि या राहु जैसे पाप ग्रहों से प्रभावित नहीं होना चाहिए।

• सिंघासन योग- अगर सभी ग्रह दूसरे, तीसरे, छठे, आठवें और बारहवें घर में बैठ जाए तो कुंडली में सिंघासन योग बनता है। इसके प्रभाव से व्यक्ति शासन अधिकारी बनता है और नाम प्राप्त करता है।

• चतुःसार योग- अगर कुंडली में ग्रह मेष, कर्क तुला और मकर राशि में स्थित हो तो ये योग बनता है। इसके प्रभाव से व्यक्ति इच्छित सफलता जीवन में प्राप्त करता है और किसी भी समस्या से आसानी से बाहर आ जाता है।

• श्रीनाथ योग- अगर लग्न का स्वामी, सातवें भाव का स्वामी दसवें घर में मौजूद हो और दसवें घर का स्वामी नवें घर के स्वामी के साथ मौजूद हो तो श्रीनाथ योग का निर्माण होता है। इसके प्रभाव से जातक को धन, नाम, यश, वैभव की प्राप्ति होती है।

• विपरीत राजयोग – त्रिक स्थानों के स्वामी त्रिक स्थानों में हो या युति अथवा दृष्टि संबंध बनते हों तो विपरीत राजयोग बनता है। यह व्यक्ति को अत्यंत धनवान और खुशहाल बनाता है इस योग में व्यक्ति महाराजाओं के समान सुख प्राप्त करता है। ज्योतिष ग्रंथों में यह भी बताया गया है कि अशुभ फल देने वाला ग्रह जब स्वयं अशुभ भाव में होता है तो अशुभ प्रभाव नष्ट हो जाते है।

• हंस योग- बृहस्पति केंद्र भाव में होकर मूल त्रिकोण स्वगृही (धनु या मीन राशि में हो) अथवा उच्च राशि (कर्क राशि) का हो तब हंस योग होता है। यह योग व्यक्ति को सुन्दर, हंसमुख, मिलसार, विनम्र और धन-सम्पति वाला बनाता है। व्यक्ति पुण्य कर्मों में रूचि रखने वाला, दयालु, शास्त्र का ज्ञान रखने वाला होता है।

• मालव्य योग- कुंडली के केंद्र भावों में स्थित शुक्र मूल त्रिकोण अथवा स्वगृही (वृष या तुला राशि में हो) या उच्च (मीन राशि) का हो तो मालव्य योग बनता है। इस योग से व्यक्ति सुन्दर, गुणी, तेजस्वी, धैर्यवान, धनी तथा सुख-सुविधाएं प्राप्त करता है।
[ चमत्कारी फलादेश

1) लग्नेश लग्न या दूसरे भाव मे –बिना परिश्रम के धन |

2) लग्न मे सिंह का बुध या कुम्भ का गुरु-तीन पीढ़ियो हेतु धन |

3) दूसरे भाव मे लग्नेश,द्वितीयेश 11 भाव मे एकादशेश लग्न मे-गढ़ा धन मिल|

4) चन्द्र मकर राशि का अकेला –विफलता व कलंक एक बार अवश्य मिले |

5) चन्द्र (शनि राहू) संग या मंगल राहू संग-मानसिक विक्षिप्त |

6) लग्न मे तुला का शनि –प्रथम आने वाला विध्यार्थी |

7) बुध मेष का दूसरे भाव मे –पत्नी का प्रभाव रहे |

8) मेष लग्न –उतावला जातक |

9) मकर लग्न मे ही केतू-क्षय रोग 7 भाव मे पत्नी को क्षय रोग |

10) चतुर्थ भाव मे चन्द्र शनि की युति-बचपन व किशोरावस्था मे विपत्ति |

11) (बुध-शुक्र) सातवे भाव मे-पत्नी सुख नहीं |

12) कन्या लग्न के अंतिम नवांश का जन्म –नपुंशक |

13) शुक्र कन्या- मिथुन नवांश मे-पत्नी संतुष्ट नहीं |

14) (बुध–शनि)-लैंगिक विकार |

15) (सूर्य-बुध) लग्न या सप्तम भाव मे-दाम्पत्य जीवन कष्ट मे |

16) बुध सप्तमेश होकर चतुर्थ भाव मे –पत्नी आजीवन मायके मे ही रहे किसी भी कारण |

17) बुध अष्टमेश होकर सप्तम भाव मे –दो विवाह,यात्राए एवं मृत्यु |

18) लग्न मे गुरु,दूसरे भाव मे मंगल शनि बुध तथा चन्द्र –विवाह से पहले माँ की मृत्यु |

19) लग्न मे गुरु,दूसरे भाव मे मंगल शनि बुध तथा सूर्य –विवाह से पहले पिता की मृत्यु |

20) मिथुन लग्न मे बुध शनि मंगल लग्न मे-लैंगिक दोष |

21) बुध लग्नेश या सप्तमेश संग –कामासक्त ज़्यादा |

22) बुध सप्तम भाव मे-कर्कशा पत्नी एवं शीघ्रपतन की बीमारी |

23) स्त्री की कुंडली मे चार ग्रह संग –दाम्पत्य सुख नहीं |

24) भाग्य स्थान मे धनु का सूर्य –संतान कम |

25) त्रिकोण के स्वामी त्रिकोण मे-तुरंत लाभ देते हैं |

26) सूर्य चन्द्र संग-शिक्षा मे बाधा |

27) भाग्य स्थान का राहू-पिता सुख मे कमी |

28) भाग्य स्थान मे सूर्य या मंगल हो ओर नवमेश दुखस्थान मे पापकर्तरी मे हो –पिता जल्दी मर जाये |

29) मंगल शनि से सूर्य ओर चन्द्र त्रिकोण मे –बच्चा गोद दिया जाए |

30) नवमेश शनि चर राशि मे शुभ ग्रह से ना देखा जाता हो ओर सूर्य दुखस्थानों मे हो- दत्तक पुत्र बने |

31) मंगल दूसरे घर मे-बड़े भाई का कर्तव्य निभाए तथा ससुराल से लाभ प्राप्त करे |
[: 💐👍सपने देखने तथा उनसे प्राप्त होने वाले संभावित फल आपके सामाने है👌

1- सांप दिखाई देना :– धन लाभ.!
2- नदी देखना :– सौभाग्य में वृद्धि.!
3- नाच-गाना देखना :– अशुभ समाचार मिलने के योग.!
4- नीलगाय देखना :– भौतिक सुखों की प्राप्ति.!
5- नेवला देखना :– शत्रुभय से मुक्ति.!
6- पगड़ी देखना :– मान-सम्मान में वृद्धि.!
7- पूजा होते हुए देखना :– किसी योजना का लाभ मिलना.!
8- फकीर को देखना :– अत्यधिक शुभ फल.!
9- गाय का बछड़ा देखना :– कोई अच्छी घटना होना.!
10- वसंत ऋतु देखना :– सौभाग्य में वृद्धि.!
11- स्वयं की बहन को देखना :– परिजनों में प्रेम बढऩा.!
12- बिल्वपत्र देखना :– धन-धान्य में वृद्धि.!
13- भाई को देखना :– नए मित्र बनना.!
14- भीख मांगना :– धन हानि होना.!
15- शहद देखना :– जीवन में अनुकूलता.!
16- स्वयं की मृत्यु देखना :– भयंकर रोग से मुक्ति.!
17- रुद्राक्ष देखना :– शुभ समाचार मिलना.!
18- पैसा दिखाई :– देना धन लाभ.!
19- स्वर्ग देखना :– भौतिक सुखों में वृद्धि.!
20- पत्नी को देखना :– दांपत्य में प्रेम बढ़ना.!
21- स्वस्तिक दिखाई देना :– धन लाभ होना.!
22- हथकड़ी दिखाई देना :– भविष्य में भारी संकट.!
23- मां सरस्वती के दर्शन :– बुद्धि में वृद्धि.!
24- कबूतर दिखाई देना :– रोग से छुटकारा.!
25- कोयल देखना :– उत्तम स्वास्थ्य की प्राप्ति.!
26- अजगर दिखाई देना:– व्यापार में हानि.!
27- कौआ दिखाई देना :– बुरी सूचना मिलना.!
28- छिपकली दिखाई देना :– घर में चोरी.! होना
29- चिडिय़ा दिखाई देना :– नौकरी में पदोन्नति.!
30- तोता दिखाई देना :– सौभाग्य में वृद्धि.!
31- भोजन की थाली देखना :– धनहानि के योग.!
32- इलाइची देखना :– मान-सम्मान की प्राप्ति.!
33- खाली थाली देखना :– धन प्राप्ति के योग.!
34- गुड़ खाते हुए देखना :– अच्छा समय आने के संकेत.!
35- शेर दिखाई देना :– शत्रुओं पर विजय.!
36- हाथी दिखाई देना :– ऐेश्वर्य की प्राप्ति.!
37- कन्या को घर में आते देखना :– मां लक्ष्मी की कृपा मिलना.!
38- सफेद बिल्ली देखना :– धन की हानि.!
39- दूध देती भैंस देखना :– उत्तम अन्न लाभ के योग.!
40- चोंच वाला पक्षी देखना :– व्यवसाय में लाभ.!
41- स्वयं को दिवालिया घोषित करना :– व्यवसाय चौपट होना.!
42- चिडिय़ा को रोते देखता :– धन-संपत्ति नष्ट होना.!
43- चावल देखना :– किसी से शत्रुता समाप्त होना.!
44- चांदी देखना :– धन लाभ होना.!
45- दलदल देखना :– चिंताएं बढऩा.!
46- कैंची देखना :– घर में कलह होना.!
47- सुपारी देखना :– रोग से मुक्ति.!
48- लाठी देखना :– यश बढऩा.!
49- खाली बैलगाड़ी देखना :– नुकसान होना.!
50- खेत में पके गेहूं देखना :– धन लाभ होना.!
51- किसी रिश्तेदार को देखना :– उत्तम समय की शुरुआत.!
52- तारामंडल देखना :– सौभाग्य की वृद्धि.!
53- ताश देखना :– समस्या में वृद्धि.!
54- तीर दिखाई :– देना लक्ष्य की ओर बढऩा.!
55- सूखी घास देखना :– जीवन में समस्या.!
56- भगवान शिव को देखना :– विपत्तियों का नाश.!
57- त्रिशूल देखना :– शत्रुओं से’ मुक्ति.!
58- दंपत्ति को देखना :– दांपत्य जीवन में अनुकूलता.!
59- शत्रु देखना :– उत्तम धन लाभ.!
60- दूध देखना :– आर्थिक उन्नति.!
61- धनवान व्यक्ति देखना :– धन प्राप्ति के योग.!
62- दियासलाई जलाना :– धन की प्राप्ति.!
63- सूखा जंगल देखना :– परेशानी होना.!
64- मुर्दा देखना :– बीमारी दूर होना.!
65- आभूषण देखना :– कोई कार्य पूर्ण होना.!
66- जामुन खाना :– कोई समस्या दूर होना.!
67- जुआ खेलना :– व्यापार में लाभ.!
68- धन उधार देना :– अत्यधिक धन की प्राप्ति.!
69- चंद्रमा देखना :– सम्मान मिलना.!
70- चील देखना :– शत्रुओं से हानि.!
71- फल-फूल खाना :– धन लाभ होना.!
72- सोना मिलना :– धन हानि होना.!
73- शरीर का कोई अंग कटा हुआ देखना :– किसी परिजन की मृत्यु के योग.!
74- कौआ देखना :– किसी की मृत्यु का समाचार मिलना.!
75- धुआं देखना :– व्यापार में हानि.!
76- चश्मा लगाना :– ज्ञान में बढ़ोत्तरी.!
77- भूकंप देखना :– संतान को कष्ट.!
78- रोटी खाना :– धन लाभ और राजयोग.!
79- पेड़ से गिरता हुआ देखना किसी रोग से मृत्यु होना.!
80- श्मशान में शराब पीना :– शीघ्र मृत्यु होना.!
81- रुई देखना :– निरोग होने के योग.!
82- कुत्ता देखना :– पुराने मित्र से मिलन.!
83- सफेद फूल देखना :– किसी समस्या से छुटकारा.!
84- उल्लू देखना :– धन हानि होना.!
85- सफेद सांप काटना :– धन प्राप्ति.!
86- लाल फूल देखना :– भाग्य चमकना.!
87- नदी का पानी पीना :– सरकार से लाभ.!
88- धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाना :– यश में वृद्धि व पदोन्नति.!
89- कोयला देखना :– व्यर्थ विवाद में फंसना.!
90- जमीन पर बिस्तर लगाना :– दीर्घायु और सुख में वृद्धि.!
91- घर बनाना :– प्रसिद्धि मिलना.!
92- घोड़ा देखना :– संकट दूर होना.!
93- घास का मैदान देखना :– धन लाभ के योग.!
94- दीवार में कील ठोकना :– किसी बुजुर्ग व्यक्ति से लाभ.!
95- दीवार देखना :– सम्मान बढऩा.!
96- बाजार देखना :– दरिद्रता दूर होना.!
97- मृत व्यक्ति को पुकारना :– विपत्ति एवं दुख मिलना.!
98- मृत व्यक्ति से बात करना :– मनचाही इच्छा पूरी होना.!
99- मोती देखना :– पुत्री प्राप्ति.!
100- लोमड़ी देखना :– किसी घनिष्ट व्यक्ति से धोखा मिलना.!
101-ब्राह्मणो को देखना:-यशकीर्ति प्राप्त करना!
102 साधुकेरुप मे ब्राह्मण को देखना:-शांति प्राप्त करना!
103 ब्राह्मणो को जप करते देखना:-धनकी प्राप्त होना!
104 ब्राह्मणो को यज्ञ करते देखना:-शुत्रो पर विजय प्राप्त करना!
105* ब्राह्मणो को घर पर बैठा देखना:-पितरों की शांति होना!
106 ब्राह्मणो को अपमानित करते हुए देखना:-धन की हानि होना।
107 ब्राह्मणो को तिलक करने हुए देखना:-राज्याभिषेक प्राप्त करना।

Recommended Articles

Leave A Comment