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विदेश यात्रा (कारक भाव )
-:अष्ठम भाव -जल यात्रा ,समुद्र यात्रा का कारक
-:द्वादश भाव -विदेश यात्रा ,समुद्र यात्रा ,अनजानी जगह पर यात्रा
-:सप्तम भाव -व्यवसाईक यात्रा ,
-:नवम भाव -लंबी यात्रा ,धार्मिक यात्रा

-:तृतीय भाव -छोटी यात्रा

कारक- ग्रह / दिशा
पूर्व -सूर्य
पश्चिम-शनि
उत्तर -बुध्ध
दक्षिण -मंगल
इशान -गुरु
अग्नि-शुक्र
वायव्य -चन्द्र

नैरुत्य-राहू /केतु

गृह
चंद्र -समुद्र यात्रा का करक (विदेश गमन )
गुरु -हवाई यात्रा (यात्रा )
शनि -हवाई यात्रा (विदेश गमन )
राहू -हवाई यात्रा (विदेश गमन )

योग —
-:मंगल भूमि पुत्र हे अगर जन्म कुंडली में विदेश यात्रा के योग हे और मंगल की दृष्टिचतुर्थ भाव में हो या मंगल चतुर्थ भाव में हो ,या चतुर्थेश के साथ मंगल का सम्बन्ध हो तो जातक विदेश में स्थाई नही रहेता …
-:नवम भाव , तृतीय भाव , द्वादश भाव का सम्बन्ध ..प्रबल विदेश योग बनता हे
-:द्वादश भाव में राहू
-:चतुर्थ भाव मात्रु भूमि का भाव हे जब यह भाव पाप करतारी में हो या इस भाव में पाप ग्रहों का प्रभाव हो तो जातक अपने वतन से दूर रहेता हे
-:भाग्येश ,सप्तमेश के साथ सप्तम भाव में हो तो जातक विदेश में व्यवसाय करता हे
-:सप्तमेश की युति कोई भी शुभ ग्रह के लग्न में हो तो जातक को बार बार विदेश जाने का योग बनता हे (जेसे पायलट ,एर होस्टेस )
-:द्वादशेश ,सप्तमेश का परिवर्तन योग ,या इन दोनों भावो का सम्बन्ध किसी भी प्रकार से हो तो जीवन साथी विदेश से मिलता हे शादी के द्वारा विदेश योग बनता हे ….इसी योग के साथ अगर तृतीयेश का सम्बन्ध हो जाये तो ..एडवर्टाइज मेंट के द्वारा शादी होती हे और विदेश योग बनता हे (जेसे अखबार केमाध्यम से )
-:भाग्येश द्वादश भाव में हो तो जातक धर्म कार्य के लिए विदेश योग बनता हे
-:पंचमेश का सम्बन्ध ,द्वआदश भाव ,नवम भाव ,तृतीय भाव से हो तो जातक स्टडी के लिए विदेश जाता हे
-:चर राशि में ज्यादा ग्रह हो तो विदेश योग बनता हे
-:वायु तत्व राशि में ज्यादा ग्रह हो तो हवाई यात्रा ,जल तत्व राशि में ज्यादा ग्रह हो तो समुद्र यात्रा ,पृथ्वी तत्व राशि में ज्यादा ग्रह हो तो …रोड यात्रा …यह अनुमान लगाया जा सकता हे

-:केतु ग्रह सूर्य से 6th ,8th ,12th भाव में हो तो सूर्य दशा केतु अंतर दशा में विदेश योग बनता हे …

नोट …
-:इन सब योगो में चन्द्र का बलवान होना जरुरी हे (चन्द्र मन का करक हे )
-:लग्न और लग्नेश जितना निर्बल उतना विदेश योग प्रबल बनता हे ..

-:चतुर्थ भाव और चतुर्थेश भी निर्बल होना चाहिए

-:भाग्येश की दशा ,द्वादशेश की दशा ,चन्द्र ,केतु ,राहू महादशा में ज्यादातर विदेश जाने का योग बनता हे
-:और शनि ढैया,पनोती का समय भी विदेश जाने के योग बनते हे।
[: ज्योतिष और यौन सुख का रहस्य

नौ ग्रहों में सूर्य को राजा, चंद्रमा को राजमाता और शुक्र को रानी माना गया है। चंद्रमा व शुक्र दोनों ही स्त्रीकारक ग्रह हैं लेकिन दोनों में सूक्ष्म अंतर है। चंद्रमा स्नेहिल है, पावन है, मां जैसा प्रेम चंद्रमा में है। शुक्र मन मोहता है, उसमें आकर्षण है, आसक्ति है और वासना है। इसलिए शुक्र से विवाह या पत्नी के लिए देखा जाता है। शुक्र को आकर्षण, खूबसूरती व मर्दानगी को चुनौती देने वाला, विषय वासनामय कहा गया है।

ज्योतिष विज्ञान के अनुसार शुक्र ग्रह की अनुकूलता से व्यक्ति भौतिक सुख पाता है। जिनमें घर, वाहन सुख आदि समिल्लित है। इसके अलावा शुक्र यौन अंगों और वीर्य का कारक भी माना जाता है। शुक्र सुख, उपभोग, विलास और सुंदरता के प्रति आकर्षण पैदा करता है। विवाह के बाद कुछ समय तो गृहस्थी की गाड़ी बढिय़ा चलती रहती है किंतु कुछ समय के बाद ही पति पत्नि में कलह झगडे, अनबन शुरू होकर जीवन नारकीय बन जाता है. इन स्थितियों के लिये भी जन्मकुंडली में मौजूद कुछ योगायोग जिम्मेदार होते हैं. अत: विवाह तय करने के पहले कुंडली मिलान के समय ही इन योगायोगों पर अवश्य ही दॄष्टिपात कर लेना चाहिये |

ज्योतिष विज्ञान के अनुसार शुक्र ग्रह की अनुकूलता से व्यक्ति भौतिक सुख पाता है। इसके अलावा शुक्र यौन अंगों और वीर्य का कारक भी माना जाता है। विवाह तय करने के पहले कुंडली मिलान के समय ही इन योगायोगों पर अवश्य ही दॄष्टिपात कर लेना चाहिए। यदि शुक्र के साथ लग्नेश, चतुर्थेश, नवमेश, दशमेश अथवा पंचमेश की युति हो तो दांपत्य सुख यानि यौन सुख में वॄद्धि होती है।शुक्र मनोरंजन का कारक ग्रह है | शुक्र स्त्री, यौन सुख, वीर्य और हर प्रकार के सुख और सुन्दरता का कारक ग्रह है | यदि शुक्र की स्थिति अशुभ हो तो जातक के जीवन से मनोरंजन को समाप्त कर देता है | नपुंसकता या सेक्स के प्रति अरुचि का कारण अधिकतर शुक्र ही होता है | मंगल की दृष्टि या प्रभाव निर्बल शुक्र पर हो तो जातक को ब्लड शुगर हो जाती है | इसके अतिरिक्त शुक्र के अशुभ होने से व्यक्ति के शरीर को बेडोल बना देता है | बहुत अधिक पतला शरीर या ठिगना कद शुक्र की अशुभ स्थिति के कारण होता है |

किसी भी व्यक्ति की भौतिक समृद्धि एवं सुखों का भविष्य ज्ञान प्राप्त करने के लिए जन्म कुंडली में शुक्र ग्रह की स्थिति एवं शक्ति (बल) का अध्ययन करना अत्यंत महत्वपूर्ण एवं आवश्यक है। अगर जन्म कुंडली में शुक्र की स्थिति सशक्त एवं प्रभावशाली हो तो जातक को सब प्रकार के भौतिक सुखों की प्राप्ति होती है। इसके विपरीत यदि शुक्र निर्बल अथवा दुष्प्रभावित (अपकारी ग्रहों द्वारा पीड़ित) हो तो भौतिक अभावों का सामना करना पड़ता है।

इस ग्रह को जीवन में प्राप्त होने वाले आनंद का प्रतीक माना गया है। प्रेम और सौंदर्य से आनंद की अनुभूति होती है और श्रेष्ठ आनंद की प्राप्ति स्त्री से होती है। अत: इसे स्त्रियों का प्रतिनिधि भी माना गया है और दाम्पत्य जीवन के लिए ज्योतिषी इस महत्वपूर्ण स्थिति का विशेष अध्ययन करते हैं।

सातवें भाव में खुद सप्तमेश स्वग्रही हो एवं उसके साथ किसी पाप ग्रह की युति अथवा दॄष्टि भी नही होनी चाहिये. लेकिन स्वग्रही सप्तमेश पर शनि मंगल या राहु में से किन्ही भी दो ग्रहों की संपूर्ण दॄष्टि संबंध या युति है तो इस स्थिति में दापंत्य सुख अति अल्प हो जायेगा. इस स्थिति के कारण सप्तम भाव एवम सप्तमेश दोनों ही पाप प्रभाव में आकर कमजोर हो जायेंगे |

यदि शुक्र के साथ लग्नेश, चतुर्थेश, नवमेश, दशमेश अथवा पंचमेश की युति हो तो दांपत्य सुख यानि यौन सुख में वॄद्धि होती है वहीं षष्ठेश, अष्टमेश उआ द्वादशेश के साथ संबंध होने पर दांपत्य सुख में न्यूनता आती है.

यदि सप्तम अधिपति पर शुभ ग्रहों की दॄष्टि हो, सप्तमाधिपति से केंद्र में शुक्र संबंध बना रहा हो, चंद्र एवम शुक्र पर शुभ ग्रहों का प्रभाव हो तो दांपत्य जीवन अत्यंत सुखी और प्रेम पूर्ण होता है |

शुक्र के अधिकार वाली वृषभ राशि नैसर्गिक कुण्डली में द्वितीय भाव यानी कुटुम्ब स्थान में आती है। यह स्थान परिवार और खाने-पीने की आदतों का है, इसलिए परिवार सुख, परिवार के लोग, मीठी बातें और रसदार भोज्य पदार्थ शुक्र के अधिकार में है। पुराणों में शुक्र को शुक्राचार्य से संबंधित माना गया है। अत: मंत्र, तंत्र और काम्य साधना भी शुक्र के अधिकार में है। चेहरे की खूबसूरती जिससे बढ़ती है उसपर भी इसका अधिकार है। सुखोपभोग अर्थात केवल शरीर सुख ही नहीं बल्कि शरीर के हर हिस्से को सुख देने वाली चीजें- संगीत, गायन, वादन, आंखों को सुख देने वाली फिल्में, नाटक, खूबसूरत चीजें व चित्र, खूबसूरत जगह, नाक को सुख देने वाले इत्र, सुगन्ध, चंदन जैसी चीजें, जीव को सुख देने वाली स्वादिष्ट मीठी वस्तुएं, शराब, पेय, तम्बाकू, सिगरेट, सिगार आदि चीजें शुक्र के अधिकार में आती हैं।

शुक्र के गुण— शुक्र खूबसूरती का कारक है अत: कलात्मक सोच और आकर्षण के कारण ये प्रतिवादियों पर हावी रहते हैं। यह शरीर सुख का कारक ग्रह है इसलिए भिन्न लिंग के प्रति आकर्षण, अत्यधिक चाह, प्यार का कारक होने से दया, समझ व समझौता शुक्र का गुण है।

शरीर में शुक्र के हिस्से- शुक्र खूबसूरती का कारक ग्रह है इसलिए आंखें, नाक, ठुड्डी, शुक्र की वृषभ राशि द्वितीय भाव में है इसलिए गला, गर्दन, कान के हिस्से, शुक्र यौन का कारक ग्रह है इसलिए लिंग, शुक्राणु, वीर्य पर इसका प्रभाव होता है। शुक्र की तुला राशि नैसर्गिक कुण्डली में सप्तम भाव में आती है, इसलिए इस भाव से देखा जाने वाला मूत्रपिण्ड, मूत्राशय, गर्भाशय आदि हिस्से शुक्र के अधिकार में हैं।

लग्नेश सप्तम भाव में विराजित हो और उस पर चतुर्थेश की शुभ दॄष्टि हो, एवम अन्य शुभ ग्रह भी सप्तम भाव में हों तो ऐसे जातक को अत्यंत सुंदर सुशील और गुणवान पत्नि मिलती है जिसके साथ उसका आजीवन सुंदर और सुखद दांपत्य जीवन व्यतीत होता है. (यह योग कन्या लग्न में घटित नही होगा)

सप्तमेश की केंद्र त्रिकोण में या एकादश भाव में स्थित हो तो ऐसे जोडों में परस्पर अत्यंत स्नेह रहता है. सप्तमेश एवम शुक्र दोनों उच्च राशि में, स्वराशि में हों और उन पर पाप प्रभाव ना हो तो दांपत्य जीवन अत्यंत सुखद होता है.

सप्तमेश बलवान होकर लग्नस्थ या सप्तमस्थ हो एवम शुक्र और चतुर्थेश भी साथ हों तो पति पत्नि अत्यंत प्रेम पूर्ण जीवन व्यतीत करते हैं.

अगर शुक्र ग्रह जन्मकुंडली में निर्बल अथवा दुष्प्रभावित हो तो दाम्पत्य सुख का अभाव रहता है। सप्तम भाव में शुक्र की स्थिति विवाह के बाद भाग्योदय की सूचक है। शुक्र पर मंगल के प्रभाव से जातक का जीवन अनैतिक होता है और शनि का प्रभाव जीवन में निराशा व वैवाहिक जीवन में अवरोध, विच्छेद अथवा कलह का सूचक है।

पुरूष की कुंडली में स्त्री सुख का कारक शुक्र होता है उसी तरह स्त्री की कुंडली में पति सुख का कारक ग्रह वॄहस्पति होता है. स्त्री की कुंडली में बलवान सप्तमेश होकर वॄहस्पति सप्तम भाव को देख रहा हो तो ऐसी स्त्री को अत्यंत उत्तम पति सुख प्राप्त होता है.

जिस स्त्री के द्वितीय, सप्तम, द्वादश भावों के अधिपति केंद्र या त्रिकोण में होकर वॄहस्पति से देखे जाते हों, सप्तमेश से द्वितीय, षष्ठ और एकादश स्थानों में सौम्य ग्रह बैठे हों, ऐसी स्त्री अत्यंत सुखी और पुत्रवान होकर सुखोपभोग करने वाली होती है.

पुरूष का सप्तमेश जिस राशि में बैठा हो वही राशि स्त्री की हो तो पति पत्नि में बहुत गहरा प्रेम रहता है.

वर कन्या का एक ही गण हो तथा वर्ग मैत्री भी हो तो उनमें असीम प्रम होता है. दोनों की एक ही राशि हो या राशि स्वामियों में मित्रता हो तो भी जीवन में प्रेम बना रहता है.

अगर वर या कन्या के सप्तम भाव में मंगल और शुक्र बैठे हों उनमे कामवासना का आवेग ज्यादा होगा अत: ऐसे वर कन्या के लिये ऐसे ही ग्रह स्थिति वाले जीवन साथी का चुनाव करना चाहिये | सभी ग्रह यहां अलग-अलग परिणाम देते हैं। केवल गुरु, चंद्र और शुक्र ही ऐसे ग्रह हैं, जो यौन संतुष्टि देते हैं। अन्यथा की स्थिति में व्यक्ति को कभी आनंद नहीं आता और इससे उनके यौन व्यवहार में भी बदलाव आते हैं, जो कदापि सही नहीं होते।

ज्योतिषशास्त्र के अनुसार मंगल पहले घर में होने पर व्यक्ति को स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। ऐसे में चोट एवं दुर्घटना की आशंका अधिक रहती है। यह मंगल पारिवारिक जीवन के साथ ही साथ जीवनसाथी एवं यौन सुख में कमी लाता है। मंगल की दृष्टि पहले घर से आठवें घर पर होने के कारण जीवनसाथी की आयु भी प्रभावित होती है।

जिनकी कुण्डली में मंगल चौथे घर में बैठा होता है उनके जीवन में सुख की कमी करता है। सातवें घर में मंगल की दृष्टि से इनकी शादी में देरी होती है। जीवनसाथी से मतभेद एवं यौन सुख में कमी लाता है। ऐसे व्यक्ति यौन रोग से पीड़ित भी हो सकते हैं।

जिनकी जन्मपत्री में मंगल सातवें यानी जीवनसाथी के घर में होता है उनका अपने जीवनसाथी से अक्सर मतभेद बना रहता है और जिससे दांपत्य जीवन के सुख में कमी आती है। मंगल की दृष्टि यहां से पहले घर पर होने के कारण व्यक्ति क्रोधी होता है |

दांपत्य सुख का संबंध पति पत्नि दोनों से होता है. एक कुंडली में दंपत्य सुख हो और दूसरे की में नही हो तो उस अवस्था में भी दांपत्य सुख नही मिल पाता, अत: सगाई पूर्व माता पिता को निम्न स्थितियों पर ध्यान देते हुये किसी सुयोग्य और विद्वान ज्योतिषी से दोनों की जन्म कुंडलियों में स्वास्थ्य, आयु, चरित्र, स्वभाव, आर्थिक स्थिति, संतान पक्ष इत्यादि का समुचित अध्ययन करवा लेना चाहिये सिफर् गुण मिलान से कुछ नही होता |

वैवाहिक जीवन को सफल बनाने में यौन आनंद महत्वपूर्ण कारक होता है। हर व्यक्ति की यौन संतुष्टि का पैमाना अलग-अलग है और देखने में आया है कि सभी को यौन संतुष्टि नहीं मिल पाती। ऐसे लोगों को यह पता चल जाए कि वास्तव में उनके ग्रह इसका कारक हैं, तो शायद वह अपने संतुष्टि के स्तर पर मन को समझा सकते हैं अथवा उन ग्रहों का उपाय कर सकते हैं।

वर वधु की आयु का अधिक अंतर भी नही होना चाहिये, दोनों का शारीरिक ढांचा यानि लंबाई उंचाई, मोटाई, सुंदरता में भी साम्य देख लेना चाहिये. अक्सर कई धनी माता पिता अपनी काली कलूटी कन्या का विवाह धन का लालच देकर किसी सुंदर और गौरवर्ण लड़के से कर देते हैं जो बाद में जाकर कलह का कारण बनता है.

स्त्री की कुंडली (स्त्री जातक) में शुक्र की अच्छी स्थिति का महत्व है। अगर स्त्री की कुंडली में लग्र में शुक्र और चंद्र हो तो उसे अनेक सुख-सुविधाओं की प्राप्ति होती है। शुक्र और बुध की युति सौंदर्य, कलाओं में दक्षता और सुखमय दाम्पत्य जीवन की सूचक है। शुक्र की अष्टम स्थिति गर्भपात को सूचित करती है और यदि मंगल के साथ युति हो तो वैधव्य की सूचक है।

जीवन में प्राप्त होने वाले आनंद, अलंकार, सम्पत्ति, स्त्री सुख, विवाह के कार्य, उपभोग के स्थान, वाहन, काव्य कला, संभोग तथा स्त्री आदि के संबंध में शुक्र से विचार करना उपयुक्त है। अगर यह ग्रह जन्म कुंडली में शुभ एवं सशक्त प्रधान है तो जातक का जीवन सफल एवं सुखमय माना जाता है किंतु शुक्र के निर्बल या अशुभ होने पर जातक की अनैतिक कार्यों में प्रवृत्ति होती है, समाज में मान-सम्मान नहीं मिलता तथा अनेक सुखों का अभाव रहता है।

शुक्र सौंदर्य, भोग विलास और प्रसन्नता का कारक ग्रह है. लंबे और सुंदर केश स्त्रियों का आधारभूत सौंदर्य हैं, इनके बाद ही सौंदर्य की अन्य उपमाओं का नंबर आता है. जब स्त्री द्वारा अपने केशों को कटवा कर छोटा कर लिया जाता है तो शुक्र बुरी तरह पीड़ित हो जाता है और अशुभ परिणाम देने लगता है | हिन्दू समाज में किसी की मृत्योपरांत पारिवारिक सदस्यों का मुंडन और किसी सन्यासी परंपरा के अनुसरण द्वारा पुरुषों का गंजा रहना भी इसी सत्य को प्रतिपादित करता है. यह भी शुक्र को निर्बल करने की प्रक्रिया है | अनुभव में पाया गया है की लड़कों जैसे छोटे बाल रखने वाली स्त्रियां दुखी रहती हैं | चाहे वे उच्च पदस्थ अथवा धनी हों उनके जीवन में सुख नहीं होता. खासतौर पर पति सुख या विपरीत लिंगी सुख. ऐसी स्त्रियों को पुरुषों के प्यार और सहानुभूति की तलाश में भटकते देखा जा सकता है. यदि वे विवाहित हैं तो पति से नहीं बनती और अलगाव की स्थिति बन जाती है और अधिकांश मामलों में पति से संबंध विच्छेद हो भी जाता है | इसका कारण ज्योतिष में छिपा है. कालपुरुष कुंडली का सप्तम भाव शुक्र का भाव है.

कुल मिलाकर शिक्षा, खानदान, खान पान परंपरा इत्यादि की साम्यता देखकर ही निर्णय लेना चाहिये. इस सबके अलावा वर कन्या के जन्म लग्न एवन जन्म राशि के तत्वों पर भी दॄष्टिपात कर लेना चाहिये. दोनों के लग्न, राशि के एक ही ततव हों और परस्पर मित्र भाव वाले हों तो भी पति पत्नि का जीवन प्रेम मय बना रहता है. इस मामले में विपरीत तत्वों का होना पति पत्नि में शत्रुता पैदा करता है यानि पति अग्नि तत्व का हो और पत्नि जल तत्व की हो तो गॄहस्थी की गाड़ी बहुत कष्ट दायक हो जाती है. कुल मिलाकर एक ही तत्व वाले जोडे अधिक सुखद दांपत्य जीवन जीते हैं

यौन रोग और ज्योतिष—

मनुष्य का वर्तमान जीवन उनके पूर्व जन्म के कार्मों पर न‌िर्भर करता है। अपने कार्मों के कारण ही मनुष्य को सुख-दुख, रोग और मृत्यु की प्राप्त‌ि होती है। व्यक्त‌ि का जैसा कर्म होता है उसी अनुसार जन्म के समय उनकी कुंडली में ग्रहों की स्‍थ‌ित‌ि बनती है और उनसे व्यक्त‌ि जीवन भर प्रभाव‌ित होता है। हृदय रोग, कैंसर, एड्स और यौन रोग के ल‌िए भी उनके कर्म और ग्रहों की स्थित‌ि ज‌िम्मेदार होती है। प्राचीन काल में च‌िक‌ित्सक रोगी का उपचार करते समय उनकी जन्मपत्री भी देखते थे और उसके अनुसार जड़ी-बूटी, रत्नों और मंत्रों का प्रयोग करते थे।

ज्योत‌िष में यौन रोग की चर्चा करते हुए बताया गया है क‌ि वृश्च‌िक राश‌ि का प्रभाव व्यक्त‌ि के गुप्तांग पर होता है। कुंडली में अगर वृश्च‌िक राश‌ि दूसरे, छठे, आठवें या बारहवें घर में हो और इन पर अशुभ ग्रहों प्रभाव हो तब व्यक्त‌ि को यौन और गुप्त रोग होने की आशंका रहती है। लेक‌िन इस रोग का एक मात्र कारण यही नहीं है। कुछ दूसरे ग्रह भी हैं जो इस रोग के ल‌िए ज‌िम्मेदार होते हैं।

जन्मकुंडली में आठवां घर और उस घर के स्वामी ग्रह के साथ शुक्र, मंगल, शन‌ि, राहु का संबंध एड्स रोग की आशंका को जन्म देता है।

जन्मपत्री के सातवें घर में शन‌ि, राहु का संबंध हो और सप्तेश पर इन दोनों ग्रहों की दृष्ट‌ि होने पर पुरुष में शुक्र की कमी होती है ज‌िससे संतानोत्पत्त‌ि में बाधा आती है।

ज्योत‌िषशास्‍त्र के अनुसार कुंडली के सातवें घर में शन‌ि राहु बैठे हों, सातवें घर का स्वामी पर शन‌ि राहु की दृष्ट‌ि हो या शन‌ि के साथ नीच का शुक्र हो तब पुरुषों में शुक्र की कमी होती है। स्‍त्री की कुंडली में ऐसा योग होने पर गर्भाशय में परेशानी रहती है ज‌िससे संतान प्राप्त‌ि में परेशानी आती है।
[ बेडरूम में रखें गुलदस्ता, क्यों?

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वास्तु शास्त्र के अनुसार घर का हर हिस्सा व्यवस्थित होना चाहिए। इससे घर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रसार होता है। वास्तु शास्त्र में घर के रंग-रोगन, साज-सज्जा पर भी विशेष ध्यान दिया जाता है। अगर आप भी अपने घर को वास्तु सम्मत बनाना चाहते हैं तो नीचे लिखे वास्तु टिप्स का उपयोग करें-
1- अगर आप अपना दाम्पत्य जीवन सुखमय बनाना चाहते हैं तो बेडरूम में फ्लावर पॉट अवश्य रखें लेकिन उसकी रोजाना सफाई अवश्य करें। सफाई नहीं करने से दाम्पत्य जीवन में खटास आ सकती है।
2- शयन कक्ष बहुत खास जगह होती है। यहां आप कपल फोटो लगा सकते हैं लेकिन पैरों की ओर नहीं लगाएं।
3- बेडरूम में हल्की व सुंदर लाइट व्यवस्था होनी चाहिए।
4- जहां तक हो सके बाहरी दीवारों पर वाटर प्रुफ कलर का इस्तेमाल करें।
5- घर के बाहर खुले स्थानों पर सीमेंटेड गमलों में फूल या बेलें लगाएं।
6- रसोई के हर कोने में प्रकाश की उचित व्यवस्था होनी चाहिए।
7- पेंटिग्स दीवारों का खालीपन दूर करती है। बेडरूम व भोजन कक्ष में हल्के रंगों वाली पेंटिग्स लगाएं।
बिना तोड़-फोड़ कैसे मिटाएं वास्तु दोष,
बिना सोचे-विचारे मकान बनवाने पर उसमें कई वास्तु दोष आ जाते हैं। जिनका असर हमारे जीवन पर पड़ता है।
वास्तु शास्त्रियों के अनुसार कुछ मामूली परिवर्तन कर इन वास्तु दोषों को समाप्त किया जा सकता है। यह उपाय निम्न हैं-
1- यदि आपके घर की छत पर व्यर्थ का सामान पड़ा हो तो उसे वहां से हटा दें।
2- प्लास्टर आदि उखड़ गया हो तो उसकी तत्काल मरम्मत करवा दें।
3- यदि आपकी रसोई के गेट के ठीक सामने बाथरूम का गेट हो तो यह नकारात्मक ऊर्जा देगा। इस दोष से बचने के लिए बाथरूम तथा रसोई के बीच में एक कपड़े का पर्दा या किसी अन्य प्रकार का पार्टीशन खड़ा कर सकते हैं ताकि रसोई से बाथरूम दिखाई न दे।
4- यदि घर के दरवाजे व खिड़कियां खुलने व बंद होने पर आवाज करते हैं तो उनकी आवश्यक मरम्मत करवाएं।
5- आग्नेय कोण में रसोई न होने पर गैस चूल्हे को रसोई के आग्नेय कोण में रखकर दोष का निवारण कर सकते हैं।
और यह भी नहीं सकते तो आग्नेय कोण में एक जीरो वाट का बल्ब जलाकर भी इस दोष से बचा जा सकता है।
6- यदि ईशान में बोरिंग या अण्डर ग्राउंड टैंक आदि न बनवा सके हों तो ईशान में एक सादा जल लगवा कर दोष का निवारण कर सकते हैं।
7- यदि भूखण्ड चौकोर नहीं हो तो यह अवश्य देख लें कि लंबाई, चौड़ाई की दुगुनी से अधिक न हो। यदि लंबाई, चौड़ाई से दुगुनी हो तो अतिरिक्त भूभाग पर स्वतंत्र इकाई का निर्माण करवाया जा सकता है।
[कैसी तस्वीर लगाएं घर में?,
घरों में तस्वीर या चित्र लगाने से घर सुंदर दिखता है। परंतु बहुत कम ही लोग यह जानते हैं कि घर में लगाए गए चित्र का प्रभाव हमारे जीवन पर भी पड़ता है—–

वास्तु शास्त्र के अनुसार घर में श्रृंगार, हास्य व शांत रस उत्पन्न करने वाली तस्वीरें ही लगाई जानी चाहिए।
1- फल-फूल व हंसते हुए बच्चों की तस्वीरें जीवन शक्ति का प्रतीक है। उन्हें पूर्वी व उत्तरी दीवारों पर लगाएं।
2- लक्ष्मी व कुबेर की तस्वीरें भी उत्तर दिशा में लगानी चाहिए। ऐसा करने से धन लाभ होने की संभावना है।
3- पर्वत आदि प्राकृतिक दृश्यों को दक्षिण व पश्चिम में लगा सकते हैं।
4- नदियों-झरनों आदि की तस्वीरें उत्तरी व पूर्वी दिशा में लगा सकते हैं।
5- उजड़े शहर, खण्डहर, वीरान दृश्य, सूखी नदियां, सूखी झीलों, हिंसक युद्ध, अस्त्र-शस्त्र, महाभारत, बाघ, शेर, कौआ, उल्लू, भालू, चील, गिद्ध या रेगिस्तान का चित्र घर में नहीं लगाना चाहिए। इससे घर में अशांति फैलती है तथा परिवार के सदस्यों में मनमुटाव होता है।
[बेडरूम में लगाएं बालकृष्ण की तस्वीर,
बेडरूम घर का सबसे खास हिस्सा होता है। यहां रखी हर एक वस्तु का दाम्पत्य जीवन पर प्रभाव पड़ता है जैसे- तस्वीर, गुलदस्ता आदि। यदि आप भी चाहते हैं कि आपका दाम्पत्य जीवन सफल रहे तो यह उपाय करें-
1- ऐसे नवदम्पत्ति जो संतान सुख पाना चाहते हैं वे श्रीकृष्ण का बाल रूप दर्शाने वाली तस्वीर अपने बेडरूम में लगाएं।
2- ध्यान रखें कि कृष्ण का फोटो स्त्री के लेटने के समय बिल्कुल मुख के सामने की दीवार पर रहे।
3- यूं तो पति-पत्नी के कमरे में पूजा स्थल बनवाना या देवी-देवताओं की तस्वीर लगाना वास्तुशास्त्र में निषिद्ध है फिर भी राधा-कृष्ण की तस्वीर बेडरूम में लगा सकते हैं।
4- भवन में महाभारत के युद्ध दर्शाने वाली तस्वीर वास्तुशास्त्र के अनुरूप नहीं माना जाता इसलिए ऐसे चित्र घर में न लगाएं।
5- भगवान श्रीकृष्ण का चित्र आवासीय एवं व्यावसायिक दोनों ही स्थानों पर रखा जाना चाहिए, इससे सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
6- भगवान श्रीकृष्ण की रासलीला के दृश्यों की तस्वीरों को भवन की पूर्व दिशा पर लगाया जा सकता है।
7- वसुदेव द्वारा बाढग़्रस्त यमुना से श्रीकृष्ण को टोकरी में ले जाने वाली झांकी समस्याओं से उबरने की प्रेरण
[दर्पण (Mirror) ,
दर्पण (Mirror) – कभी भी दर्पण को अपने कमरे के ऐसे स्थान पर न लगायें जहाँ से आपको अपना प्रतिबिम्ब लेटी हुई अवस्था में दिखाई दें. इसके सतह ही बेड को कभी भी दीवार के कोने से सटाकर बिल्कुल न रखें. क्योंकि इसका असर भी आपकी सेहत पर पड़ता हैं.

बीम (Beem) – घर बनवाते समय बीम को भी घर के बीचों बीच न बनवाएं. क्योंकि इससे दिमाग से सम्बन्धित परेशानियाँ उत्पन्न हो सकती हैं.

अक्सर लोग अपने घरों में फर्नीचर ड्राइंग रूम के बीच में रखते हैं लेकिन वास्तु शास्त्र के अनुसार घर के बीच में फर्नीचर नहीं रखने चाहिए. घर के बीच का स्थान ब्रहमस्थल होता हैं. इस स्थान में किसी तरह के पत्थर का या कंकरीट का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए तथा प्रयास करना चाहिए कि यह स्थाम अधिकतर खाली ही रहे. क्योंकि इससे घर के सदस्यों की तबियत अधिकतर समय ख़राब रहती हैं.
[राशियाँ, अंक ज्योतिष और भविष्‍य

अंक ज्योतिष और हस्तरेखा विज्ञान दोनों एक सिक्के के दो पहलू हैं। जिस प्रकार आत्मा शरीर के बिना अधूरी है, उसी प्रकार अंक ज्योतिष हस्तरेखा विज्ञान के बिना अधूरा है तथा हस्त रेखा विज्ञान, अंक ज्योतिष के बिना अधूरा है।

आमतौर पर ज्योतिषी हाथ की रेखाओं के अवलोकन मात्र से अथवा अंक विज्ञान की गणना मात्र से ही किसी भी व्यक्ति का भविष्य बता देते हैं, मगर मेरे विचार में हमें दोनों विज्ञानों के गहन अवलोकन पश्चात ही कोई निर्णय देना चाहिए। ज्योतिष से संबंधित विभिन्न पहलुओं पर हम पाठकों से प्राप्त सामग्री यहाँ दे रहे हैं। ये रचनाएँ लेखकों के अपने अनुभव और विचार हैं। संपादक की इनसे कोई सहमति नहीं है।

आइए देखें, अंक ज्योतिष के आधार पर किसी व्यक्ति का भविष्य किस तरह ज्ञात किया जा सकता है। पहले हम राशियों के क्रम के बारे में जानें।

राशि क्रम संख्या
मेष 1
वृष 2
मिथुन 3
कर्क 4
सिंह 5
कन्या 6
तुला 7
वृश्चिक 8
धनु 9

चूँकि 1 से 9 तक के अंक के बाद के अंक ज्योतिष में पुनरावृत्ति होती है,
अतः हम 9 के बाद के वाले अंक को पुनः उसी क्रम में रखेंगे-
मकर 10 = 1+0 = 1
कुंभ 11 = 1+1 = 2
मीन 12 = 1+2 =3
इस प्रकार हम राशि, उनके स्वामी का शुभ सहयोगी अर्थात सहानुभूति अंक प्राप्त कर सकते हैं, जैसे-

राशि क्रम राशियाँ उनके स्वामी
1, 8 मेष, वृश्चिक मंगल
2, 7 वृष, तुला शुक्र
3, 6 मिथुन, कन्या बुध
4 कर्क चन्द्र
5 सिंह सूर्य
9, 3 धनु, मीन गुरु
1, 2 मकर, कुंभ शनि

नोट- चन्द्र व सूर्य मात्र एक-एक राशि के ही स्वामी हैं जैसे- कर्क का चन्द्र व सिंह का सूर्य। अतः इन्हें एकराशि स्वामी भी कहा जाता है। शेष को द्विराशि स्वामी कहा जाता है।

यहाँ हमें स्वामी अंकों का ज्ञान होना आवश्यक है। जैसे-

स्वामी अंक
मंगल 9
शुक्र 6
बुध 5

नोट = राहु 4 तथा केतु 7 को हम क्रमशः सूर्य व चन्द्र के अंतर्गत रख सकते हैं।

चन्द्र 2 – केतु 7
सूर्य 1 – राहु 4
गुरु 3
शनि 8

इस प्रकार हम राशि क्रमों के योग से शुभ सहयोगी अंक प्राप्त कर सकते हैं-

राशियाँ क्रम सहयोगी अथवा शुभ अंक
मेष+वृश्चिक 1 + 8 = 9
वृष +तुला 2 + 7 = 9
मिथुन+कन्या 3 + 6 = 9
कर्क 4 = 4
सिंह 5 = 5
धनु+ मीन 9+3 = 12= 1+2 =3
मकर+कुंभ 1+2 = 3

अतः स्पष्ट है कि मेष+वृश्चिक (1+8 = 9 योग) के स्वामी मंगल का अंक 9 है तथा दोनों राशियों के क्रम का योग भी 9 आ रहा है, अतः इस प्रकार दोनों राशि नामों का शुभ अंक 9 हुआ।

स्पष्ट है कि मेष और वृश्चिक में मित्रता का संबंध होगा। ये दोनों मित्र होने के साथ-साथ आपसी विचारों में भी समान होंगे। इन राशियों के व्यक्ति यदि साथ मिलकर कोई व्यवसाय करें तो लाभ होगा।

अतः हम यह भी कह सकते हैं कि मेष+वृश्चिक जिनका स्वामी मंगल है का प्रभाव उनके ऊपर जीवन भर रहेगा और यदि इनका भाग्यांक भी 9 आ रहा है, तो यह इन दोनों के लिए अतिशुभ होगा। इसी प्रकार हम अन्य ग्रहों के बारे में भी जान सकते हैं।

यदि हम शुभ दिन या माह ज्ञात करना चाहें तो यह बिलकुल आसान होगा।

जैसे- मेष+वृश्चिक का स्वामी मंगल हुआ अतः मंगलवार शुभ होगा। उसी प्रकार यदि अंक ज्ञात हो तो भी शुभ दिन ज्ञात किया जा सकता है।

माना किसी व्यक्ति का जन्म 2 फरवरी को हुआ है। अतः 2 अंक का स्वामी चन्द्र हुआ, इसलिए सोमवार शुभ दिन होगा। इसी के साथ ही उस व्यक्ति का फरवरी माह बराबर का भाग्यशाली हुआ, क्योंकि माह के क्रम में फरवरी दूसरे (2) स्थान पर आ रहा है।

यदि एक ही स्वामी वाले दो राशियों, नामों के व्यक्तियों का स्वामी, अंक व शुभांक (मूलांक + भाग्यांक + नामांक + स्तूपांक) एक ही आता है, तो उनकी मित्रता अटल रहेगी। ऐसे पति-पत्नियों के विचारों में भी समानता होगी।

शुभ अंक निकालने की विधि-
सूत्र : शुभांक = (मूलांक +भाग्यांक + नामांक + स्तूपांक)
शुभांक निकालने की तीन पद्धतियाँ हैं।
(1) सैफेरियल पद्धति।
(2) कीरो पद्धति ।
(3) अँगरेजी पद्धति।

हम यहाँ सैफेरियल पद्धति का प्रयोग करेंगे, क्योंकि सटीक परिणाम निकालने हेतु अधिकतर ज्योतिषी इसी पद्धति का प्रयोग करते हैं।

शुभांक निकालने हेतु जन्म तिथि, माह, सन्‌ का ज्ञान आवश्यक है।

उदाहरणार्थ- यहाँ हम किसी अ का शुभांक निकालते हैं। मान लीजिए अ का जन्‍म 11-2-1942 को हुआ। अतः

रमेश का जन्म 11-2-1942 को हुआ था। अतः

मूलांक = 11 = 1 +1 = 2

अतः जन्मतिथि का मूलांक 2 हुआ।

अब भाग्यांक निकालने के लिए जन्मतिथि सहित माह एवं सन्‌ सबको जोड़ लिया जाएगा।

जैसे भाग्यांक = 11.2.1942

1+1+2+1+9+4+2
= 20 = 2+0 = 2

अतः इनका भाग्यांक (2) भी मूलांक (2) के साथ बराबर का भाग्यशाली हुआ।
नामांक निकालने के लिए अँगरेजी वर्णमाला के अक्षरों को क्रमसंख्या दी गई है जो इस प्रकार है-

सैफेरियल पद्धति
छ-1, ळ-2, भ-3,घ-4, ङ-5, ख-6, क्ष-7, –8, ‘-9, व-1,
ण-2, ‍र्‍ि -3, ष-4, श-5, ‘-6, ×-7, ऊ-8, इ-9, झ-1, ्-2,
-3, फ-4, उ-5, ठ-6, ए-7, ढ-8 .

सैफेरियल पद्धति से नामांक निकालने के लिए प्रसिद्ध नाम को अँगरेजी अक्षर में लिखा जाएगा।

AMITABH BACHCHAN
1492128 21383815

योग- 27 31
27+31 द58
5+8 द 13 द1+3द4
अतः नामांक द4

अब हम स्तूपांक निकालेंगे। स्तूपांक निकालने के लिए प्रसिद्ध नाम को अँगरेजी में लिखकर उसके अक्षरों की क्रमसंख्या को नामांक निकालने की तरह ही लिखते हैं-

AMITABH BACHCHAN
1492128 21383815

स्तूपांक निकालने के लिए पहले को दूसरे से, दूसरे को तीसरे से, इसी प्रकार हम चौदहवें तक गुणा करते चले जाएँगे और अंतिम अंक छोड़ देंगे। यही क्रम नीचे भी जारी रहेगा। अंत में जो अंक बचेगा वही स्तूपांक होगा।

AMITABH BACHCHAN
1492128 21383815
499227 7236668
99945 456999
9992 22399
999 4469
99 976
9 99

9 स्तूपांक

अब शुभांक ज्ञात करना सरल है।
शुभांक = मूलांक + भाग्यांक + नामांक + स्तूपांक
= 2 + 2 + 4 + 9
= 17
= 1+7 = 8

अतः अमिताभ बच्चन का शुभ अंक आठ (8) आया।

इस प्रकार चलचित्र क्षेत्र में पदार्पण करने वालों के लिए मूलांक 2, 4, 8, 9 उत्तम होता है। अतः उक्त क्षेत्र का शीर्षक इन अंकों से प्रभावित हो रहा हो तो अति शुभ होगा।

संयोगवश अमिताभ बच्चन के साथ ये सभी संलग्न हैं।
जैसे – मूलांक -2, भाग्यांक – 2, नामांक – 4, स्तूपांक – 9 और शुभांक – 8।

यही कारण है कि लगातार 12 फिल्में फ्लॉप देने के बाद 13वीं फिल्म उनकी सुपर हिट हुई। अंक 13 का योग 1+3 = 4 हुआ। अतः 4 अंक ने 13वीं फिल्म ‘जंजीर’ सुपर हिट कर दी।

आगे हम एक विचित्र पहलू और देखते हैं-

JANZIR
815899
योग 40 = 4
अतः जंजीर फिल्म का योग भी 4 हुआ।

यह फिल्म सन्‌ 1973 में बनी थी अर्थात 1+9+7+3 =20 = 2+0 = 2। इसका मूलांक 2 आ रहा है- जो अमितजी का मूलांक और भाग्यांक नम्बर है।

इस प्रकार हम उपरोक्त विधि से किसी भी व्यक्ति का शुभांक ज्ञात कर सकते हैं। हमें एक बात याद रखनी चाहिए कि जिस व्यक्ति का शुभांक, तिथि, वार, माह, वर्ष सभी का एक ही अंक आ रहा है, तो वह समय उस व्यक्ति के लिए शुभ ही शुभ होगा।

मूलांक 2 के लिए 1 अशुभ माना गया है, अतः यदि किसी व्यक्ति (या अमितजी जिनका मूलांक -2 है) के लिए यदि तिथि, वार, माह, वर्ष सभी एक से संबंधित हों तो वह समय अमितजी के लिए अशुभ ही अशुभ होगा। यदि किसी व्यक्ति की जन्मतिथि ज्ञात न हो तो उस व्यक्ति के प्रसिद्ध नाम से नामांक निकालकर उसका शुभ अंक ज्ञात किया जा सकता है, परन्तु यह सामान्य फल ही देता है।
[ “पितृपक्ष: जानिए, किन लोगों को लगता है पितृदोष”
✍🏻पितृपक्ष का समय आ रहा है, इस दौरान सभी अपने पूर्वजों को याद कर उनकी सेवा सत्कार करते हैं और उनसे क्षमा याचना कर दान करते हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कुछ लोगों को पितृदोष लग जाता है, ऐसे लोगों के जीवन में कठिनाईयों का दौर शुरू हो जाता है और कोई भी मंगल काम नहीं बन पाता, किन लोगों को पितृदोष लगता पितृदोष उन लोगों को लगता है जिनके पूर्वज या पितर उनसे नाराज होते हैं जिसकी वजह से लोगों के जीवन में खूब समस्याएं रहती हैं, पितृदोष एक बार किसी को लग जाएं तो उसके जीवन में समस्याएं ही समस्याएं रहती हैं, पितृदोष होने पर लोगों को कई समस्याओं से गुजरना पड़ता है… जैसे पितृदोष मंगल काम को होने नहीं देता है…. पितृ दोष का सबसे बड़ा कारण ऋण हैं जो लोगों को परेशानियां देता है, शास्त्रों में पांच तरह के ऋण बताए गए हैं:- ईश्वर, आचार्य, पित्तरों, माता-पिता और मातृभूमि का ऋण.. प्रकृति को नष्ट करने बाले, गो हत्या करने बाले, स्त्रियों को परेशान करने बाले, भ्रूण हत्या करने वालों को पितृदोष लगता है…. जो दूसरों का धन छीन लेते हैं, दूसरों की प्रतिष्ठा या चरित्र की हानि करते है उनको पितृदोष लगता है, जो दूसरों की संपत्ति हड़प लेते हैं, पशु-पक्षियों को मारते हैं उनको पितृदोष परेशान करता है…….!
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शुक्र ग्रह का हमारे जीवन पर प्रभाव ।

  • शुक्र मुख्य रूप से हमारे जीवन के सुख से संबंध रखता है.
  • वैभव, ऐश्वर्य, सम्पदा और ग्लैमर, शुक्र की कृपा से ही मिलते हैं.
  • जीवन में प्रेम, करुणा और सौंदर्य शुक्र के कारण ही आता है.
  • पुरुषों के जीवन में स्त्री सुख भी शुक्र के कारण मिलता है.
  • कोई भी वैवाहिक जीवन शुक्र की कृपा से ही चलता है.

विभिन्न राशियो के लिये शुक्र का प्रभाव।

मेष

मेष राशियों के लिये शुक्र दूसरे व सातवें घर का स्वामी होता है।

  • इनको शुक्र से वाणी, धन और पारिवारिक सुख मिलता है
  • यहाँ पर वैवाहिक जीवन पूरी तरह से शुक्र पर निर्भर करता है

वृष

वृष राशियों के लिये शुक्र लग्नेश व षष्टेश होता है।

  • इनको शुक्र से अच्छा स्वास्थ्य और शानदार व्यक्तित्व मिलता है
  • इनकी नौकरी तभी अच्छी रह सकती है, जब शुक्र अच्छा हो

मिथुन

मिथुन राशियों के लिये शुक्र 12 वें व 5 वें घर का स्वामी होता है।

  • इनको शुक्र से संतान, विद्या और बुद्धि का वरदान मिलता है
  • शुक्र से ही इनको जीवनसाथी का प्रेम और ऐश्वर्य मिल पाता है

कर्क

कर्क राशियों के लिये शुक्र 11 वें व 4 थे घर का स्वामी होता है।

  • शुक्र से इनको भावनाएं, करुणा, प्रेम और अच्छा ह्रदय मिलता है
  • शुक्र ही इनको अच्छी आय और अच्छी नौकरी दे सकता है

सिंह

सिंह राशियों के लिये शुक्र 10 वें व 3 रे घर का स्वामी होता है।

  • शुक्र से इनको साहस, भाई बहन और यात्राओं का सुख मिलता है
  • शुक्र के कारण ही इनको उच्च पद और प्रतिष्ठा प्राप्त होती है

कन्या

कन्या राशियों के लिये शुक्र 9 वें व 2 रे घर का स्वामी होता है।

  • शुक्र ही इनके भाग्य, धर्म और विदेश यात्राओं को नियंत्रित करता है
  • शुक्र के कारण ही इनको अच्छी वाणी, धन और पारिवारिक सुख मिलता है

तुला

तुला राशियों के लिये शुक्र पहले व 8 वें घर का स्वामी होता है।

  • इनका स्वास्थ्य और उम्र शुक्र के हाथों में होता है
  • इनको पूरा व्यक्तित्व और आकर्षण शुक्र से ही प्राप्त होता है

वृश्चिक

वृश्चिक राशियों के लिये शुक्र 7 वें व 12 वें घर का स्वामी होता है।

  • इनका विवाह, कारोबार और रिश्ते शुक्र पर निर्भर करते हैं
  • इनका मान सम्मान, यश और ग्लैमर शुक्र पर ही निर्भर करता है

धनु

धनु राशियों के लिये शुक्र छठे व 11 वें घर का स्वामी होता है।

  • इनकी नौकरी और रोजगार पूरी तरह से शुक्र के हाथों में होता है
  • इनकी बीमारियां, कर्जे और शत्रु, शुक्र से ही सम्बन्ध रखते हैं

मकर

मकर राशियों के लिये शुक्र 5 वें व 10 वें घर का स्वामी होता है।

  • इनको उच्च पद, प्रतिष्ठा और मान सम्मान शुक्र से मिलता है
  • इनको संतान और विद्या-बुद्धि भी शुक्र की कृपा से ही मिलती है

कुम्भ

कुम्भ राशियों के लिये शुक्र चोथे व 9 वें घर का स्वामी होता है।

  • इनका मन, ह्रदय, भावनाएं और सोच शुक्र से नियंत्रित होता है
  • शुक्र ही इन्हे भाग्यवान भी बनाता है और आध्यात्मिक भी

मीन

मीन राशियों के लिये शुक्र 3 रे व 8 वें घर का स्वामी होता है।

  • इनकी आयु और आकस्मिक सफलता शुक्र से प्राप्त होती है
  • लेखन, कला, संगीत और अभिव्यक्ति की क्षमता भी इन्हे शुक्र ही देता है

शुक्र को मजबूत करने के उपाय।

  • नित्य प्रातः और सायं शुक्र के मन्त्र का जप करें
  • एक स्फटिक की माला गले में धारण करें
  • शुक्रवार को देवी को सफ़ेद मिठाई का भोग अर्पित करें
  • महिलाओं की यथाशक्ति सहायता करें

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