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नाड़ी-दोष

Thalassemia
DNA – Genetic fault.

•• गर्भ धारण की प्रक्रिया के दौरान प्रथम मास में वीर्य और रज्ज का मिश्रण होता है ।
दूसरे मास में वीर्य और रज्ज का पिण्ड घनीभूत होता है ।
तीसरे मास में पिण्ड का लड़का बनेगा यां लड़की, लिंग निर्धारण हो जाता है । अर्थात लड़का यां लड़की का आकार बन जाता है ।
चौथे मास में निर्धारित लिंग की हड्डियों का निर्माण होता है ।
पाँचवें मास में त्वचा का निर्माण होना आरम्भ हो जाता है ।
छठवें मास में रोम और नख का निर्माण होता है ।
सांतवे मॉस में इस पिण्ड में चेतना का पदार्पण होता है और उसे आभास होने लगता है ।
आँठवे मास में शिशु रूप प्रकट हो जाता है और उसे सम्पूर्ण अवस्था स्वरुप सुख-दुःख का आभास होने लगता है । नवम मास में निर्माण की प्रक्रिया अंतिम रूप में होती है और प्रसव की तैयारी आरम्भ हो जाती है ।
दशम मास के प्रथम नौ दिनों में प्रसव हो जाता है । अर्थात नौ मास नौ दिन का और नौ ग्रहों का प्रभाव पूर्ण हो जाता है । एक नया जीवन पृथ्वी पर प्रकट हो जाता है ।
यहाँ ये जान लें कि गर्भ धारण की इस प्रक्रिया के दौरान हर मास का अधिपति एक ग्रह होता है । जैसे प्रथम मास का स्वामी शुक्र होता है । अगर स्त्री की कुंडली में शुक्र बलवान है तो प्रथम मास में वीर्य और रज्ज का मिश्रण सहज हो जाता है और स्त्री गर्भवती हो जाती है । लेकिन अगर शुक्र बलवान नहीं है तो गर्भ धारण में अड़चन आती है । इसी तरह हर मास का अधिपति अपने बलाबल के अनुसार अड़चन और सहजता प्रकट करता है । ऐसे ही स्त्रियां किसी किसी मास में दर्द और बे-चैनी की शिकायत करती हैं । क्योंकि उस मास का स्वामी निर्बल होता है । ऐसे ही – किसी मास के दौरान वो प्रसन्नता महसूस करती हैं और सुन्दर दिखाई देती है । क्योंकि – उस मास का अधिपति बलवान होता है ।
अगर ऐसा गर्भ धारण नाड़ी-दोष युक्त है तो ऐसे में वात – पित – कफ़, धातुओं का स्वरुप सामान्य नहीं होगा और वीर्य और रज्ज के मिश्रण के दौरान ही विकृति प्रवेश हो जाएगा । ऐसे में Genetic fault हो जायेगा और बच्चा विकृति के साथ पैदा हो सकता है ।
अब ये विकृति विकलांगता अथवा अपंगता यां थैलेसीमिया के रूप में प्रकट होगी । इसके अलावा सैकड़ो और रूपों में भी ये प्रकट हो सकती है । और तो और कई बार ये विकृतियां बाहरी तौर पर ना दिखें तो आंतरिक रूप से विद्यमान रहती है ।
बे-वजह शरीर में गाँठे बनना, एलर्जी होना, हड्डियों की ला-इलाज बीमारियां होना इत्यादि अनुवांशिक विकृति हो सकती है । मैंने ऐसा देखा है कि – जिनकी कुंडली में शनि-मंगल का इत्थशाल योग हो, तो ऐसे जातक अनुवांशिक विकृति से युक्त हो सकते हैं । मैंने ऐसा भी देखा है कि – शनि-मंगल का ये इत्थशाल योग अगर संतान कारक ग्रहों यां भावों से सम्बन्ध करलें तो इस विकृति को अगली पीढ़ी में भी पहुचाते हैं ।
खैर, थैलेसीमिया हो यां नाड़ी-दोष ।
ऐसा देखा गया है कि – इस विकृति से युक्त लोगों के सभी बच्चे प्रभावित नहीं हुये । दो तीन बच्चे थे तो कोई हुआ कोई नहीं हुआ । इसका कारण ये हो सकता है कि – नाड़ी-दोष जिस राशि और उसके नक्षत्र तथा उस नक्षत्र के जिस पाद से बना है । उसके स्वामियों की दशा में पैदा होने वाले बच्चे विकृति युक्त होंगे । इसके अलावा पैदा होने वाले बच्चे विकृति रहित होंगे । बहरहाल थैलेसीमिया भी नाड़ी-दोष का एक प्रकार ही है ।
जिस पर शोध चल रहा है ।

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