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जड़ों के इन चमत्कारी गुणों को नहीं जानते होंगे आप, बदल सकती है किस्मत

हमारे आसपास कई प्रकार के पेड़ पौधे उपलब्ध हैं जो हमारे खुशहाल जीवन के नितांत आवश्यक हैं। इन्हीं में से कुछ पेड़ पौधे ऐसे हैं जिनकी जड़ों के महत्व को ज्योतिष शास्त्र में भी वर्णित किया गया है। ये जड़ें कई ग्रहों से संबंध रखती हैं तथा ग्रह दोषों को दूर करती हैं। स्वास्थ्य की दृष्टि से भी इन जड़ों के महत्व को कम नहीं आंका जा सकता है। दरअसल, हम आपको बता रहे हैं ऐसे पौधों की जड़ों के बारे में जिनके प्रयोग से आपकी किस्मत बदल सकती है। हालांकि यह जड़े किसी जानकार से पूछकर ही घर में लाएं। यहां जो जानकारी दी जा रही है वह भिन्न स्रोत से एकत्रित की गई है। हालांकि इसमें कितनी सचाई है यह बताना मुश्किल है। ऐसे माना जाता है कि इन चमत्कारी जड़ों को धारण करने से परेशानी, दुख, रोगा दूर हो सकते हैं। तो आइए जानते हैं कौन सी है ये जड़ें और किसी ग्रह से है संबंधित :-

बेल मूल । संबंधित ग्रह – सूर्य

बेल मूल का महत्व : ज्योतिष में सूर्य ग्रह को आत्मा का कारक माना जाता है। बेल की जड़ को धारण करने से व्यक्ति के जीवन में सूर्य के नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ते हैं और उनको इससे सकारात्मक ऊर्जा की प्राप्ति होती है। इसके अलावा यह हृदय रोग, रीढ़ की हड्डी से संबंधित बीमारी, अपच, थकावट से भी मुक्ति दिलाने में सहायक है।

धारण करने की विधि:
बेल मूल को पहले गंगा जल से पवित्र कर लें।
इसके बाद “ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं सः सूर्याय नमः॥” मंत्र का जाप करें।
अब इसे पीले रंग के कपड़े में लपेटकर अपनी बाजु में कसकर बाँध लें।
इस जड़ी को रविवार के दिन धारण करें।

खिरनी की जड़ । संबंधित ग्रह – चंद्र

खिरनी की जड़ का महत्व : खिरनी की जड़ चंद्र ग्रह से संबंधित दोषों को दूर करने में सहायक है। चंद्रमा को मन एवं माता का कारक माना जाता है। यदि आपकी जन्म कुडली चंद्र ग्रह राहु, केतु या शनि से प्रभावित है तो आपको खिरनी की जड़ को धारण करना चाहिए। यह जड़ हमारे मन को एकाग्र करती है।

धारण करने की विधि :
जड़ को पहले गंगाजल से धो लें।
फिर “ॐ श्रां श्रीं श्रौं सः चंद्रमसे नमः॥” का जाप करें।
जड़ को सफेद कपड़े में बांधकर अपनी दाहिनी बाजू में बांध लें।
इस उपाय को सोमवार के दिन करें।

अनंतमूल । संबंधित ग्रह – मंगल

अनंतमूल का महत्व : अनंतमूल की जड़ी मंगल ग्रह के बुरे प्रभाव से बचाती है। ज्योतिष में मंगल ग्रह ऊर्जा, साहस, ज़मीन और भाई का कारक होता है। मंगल दोष को दूर करने में अनंतमूल की जड़ी बेहद कारगर है। इसके अलावा यह जड़ी शारीरिक रोगों को दूर करती है, जैसे- चर्म रोग, यकृत संबंधी बीमारी, कब्ज़ रोग आदि।

धारण करने की विधि :
मंगलवार के दिन गंगा जल से इस जड़ी को पवित्र करें।
“ॐ क्रां क्रीं क्रौं सह भोमाय नमः” मंत्र का जाप करें।
फिर जड़ी को लाल कपड़े में लपेटकर अपनी दाहिनी भुजा में बाँध लें।

विधारा मूल । संबंधित ग्रह – बुध

विधारा मूल जड़ी का महत्व : वैदिक ज्योतिष के अनुसार बुध ग्रह भाषा, संवाद शक्ति, बुद्धि-विवेक, भाव-भंगिमा का कारक होता है, जबकि घबराहट एवं क्रोध इसके नकारात्मक पक्ष को दर्शाते हैं। अतः विधारा मूल को धारण करने से बुध के सभी नकारात्मक पक्ष शून्य हो जाते हैं। आयुर्वेद विज्ञान के अनुसार विधारामूल की जड़ अल्सर, एसिडिटी एवं ब्लड प्रेशर जैसे रोगों को दूर करने में भी सहायक होता है।

धारण करने की विधि :
बुधवार के दिन इस यंत्र को धारण करें।
जड़ी को पहले गंगाजल से पवित्र कर लें।
उसके बाद “ॐ ब्रां ब्रीं ब्रौं सः बुधाय नमः॥” मंत्र का जाप करें।
फिर इसे हरे कपड़े में अच्छी तरह लपेटकर अपनी दाहिने हाथ की बाजू में बाँध लें।
इस दौरान माँ दुर्गा की पूजा करें।

भारंगी की जड़ । संबंधित ग्रह – गुरु

भारंगी की जड़ का महत्व : हिन्दू ज्योतिष के अनुसार बृहस्पति ग्रह गुरु, ज्ञान एवं सद्गुणों का कारक होता है। भारंगी की जड़ धारण करने से जातक के स्वभाव में मानवीय प्रेम, धार्मिक एवं आध्यात्मिक ज्ञान की वृद्धि होने लगती है। वैवाहिक जीवन में सुख शांति लाने एवं संतान प्राप्ति के लिए भी भारंगी की जड़ को धारण किया जाता है। वहीं जिन छात्रों का ध्यान पढ़ाई में नहीं लगता है, उनके लिए भी यह जड़ लाभकारी है।

धारण करने की विधि :
भारंगी की जड़ को गुरुवार के दिन धारण करें
धारण करने से पहले जड़ को गंगा जल से पवित्र करें।
फिर “ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं सः गुरुवे नमः॥” मंत्र का जाप करें।
उसके बाद जड़ को पीले वस्त्र में लपेटकर अपनी दाहिनी भुजा कसकर बाँध लें।

अरंड मूल । संबंधित ग्रह – शुक्र

अरंड मूल का महत्व : अरंड मूल शुक्र ग्रह ग्रह से संबंधित है। वैदिक ज्योतिष के अनुसार शुक्र को विवाह, धन वैभव, काम आदि का कारक माना जाता है। अरंड मूल धारण करने से जातक के जीवन में प्रेम एवं विवाह संबंध अच्छा बना रहता है। इससे शुक्र के बुरे प्रभाव नष्ट हो जाते हैं। स्वास्थ्य की दृष्टि से यह जड़ी अस्थमा, ज्वर, खाँसी आदि रोगों को दूर करने भी सहायक है।

धारण करने की विधि :
अरंड मूल को शुक्रवार के दिन धारण करना चाहिए।
पहले जड़ी को गंगा जल से पवित्र करें।
फिर “ॐ द्रां द्रीं द्रौं सः शुक्राय नमः॥” मंत्र का जाप करें।
उसके बाद जड़ी को सफेद कपड़े में लपेटकर अपनी गर्दन में धारण करें।

धतूरे की जड़ । संबंधित ग्रह – शनि

धतूरे की जड़ का महत्व : सामान्य रूप से शनि ग्रह अच्छा नहीं माना जाता है, परंतु यदि जीवन में इसकी कृपा दृष्टि बरसती है तो व्यक्ति के भाग्य खुल जाते हैं। यह हमारे कर्म का कारक होता है। शनि दोष के कारण व्यक्ति का जीवन कष्टमय गुजरता है। इसलिए इसके बुरे प्रभाव से बचने एवं कृपा दृष्टि पाने के लिए धतूर की जड़ को धारण करना शुभ माना जाता है। आयुर्वेद की दृष्टि से तंत्रिका और गठिया रोग से मुक्ति पाने के लिए भी यह बेहद कारगर है।

धारण करने की विधि :
धतूरे की जड़ को शनिवार के दिन धारण करना चाहिए।
जड़ को गंगा जल से पहले स्वच्छ कर लें।
फिर “ॐ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः॥” मंत्र का जाप करें।
अब नीले कपड़े में इसे लपेटकर अपनी दाहिने हाथ की बाजु में बाँध लें।

नागरमोथा की जड़ । संबंधित ग्रह – राहु

नागरमोथा की जड़ का महत्व : नागरमोथा की जड़ को धारण करने से राहु से संबंधित दोष दूर होते हैं। इससे मानसिक तनाव एवं पुरानो रोगों से मुक्ति मिलती है। यदि जातक की कुंडली में कालसर्प दोष है तो इस जड़ को धारण करने से यह दोष समाप्त हो जाता है। नागरमोथा की जड़ व्यक्ति में साहस बढती है और राह में आने वाली कठिनाई को दूर करती है।

धारण करने की विधि :
सर्वप्रथम जड़ को गंगाजल से पवित्र कर लें।
अब “ॐ भ्रां भ्रीं भ्रौं सः राहवे नमः॥” मंत्र का जाप करें।
जड़ को सफेद कपड़े में लपेटकर अपनी दाहिने हाथ की बाजू में बाँध लें।
शनिवार के दिन नागरमोथा की जड़ को धारण करें।

अश्वगंधा । संबंधित ग्रह – केतु

अश्वगंधा जड़ी का महत्व : केतु ग्रह समृद्धि, स्वास्थ्य, धन का प्रतीक माना जाता है। अश्वगंधा की जड़ धारण करने से व्यक्ति को सर्पदंश आदि का ख़तरा नहीं होता है। इसके साथ ही अश्वगंधा जड़ी केतु ग्रह के अन्य बुरे प्रभावों भी बचाती है। यह जातकों के रोग-दोष मुक्त करने में भी सहायक है। जैसे- चर्म रोग, मूत्र मार्ग में संक्रमण आदि।

धारण करने की विधि :
सर्वप्रथम जड़ को गंगा जल से पवित्र करें।
धूप, दीप जलाकर केतु मंत्र “ॐ स्त्रां स्त्रीं स्त्रौं सः केतवे नमः॥” का जाप करें।
पूजा करने के बाद जड़ी को काले रंग के कपड़े में लपेटकर अपनी दाहिनी भुजा में बाँध लें।
यह उपाय बुधवार के दिन करें।

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