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ज्योतिष में कालसर्प योग से प्राप्त फल
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ज्योतिष की परिभाषा में कालसर्प दो शब्दों से मिलकर बना है-काल और सर्प। जब सूर्यादि सातों ग्रह राहु(सर्प मुख) और केतु(सर्प की पूंछ) के मध्य आ जाते हैं तो कालसर्प योग बन जाता है। जिसकी कुण्‍डली में यह योग होता है उसके जीवन में काफी उतार चढ़ाव और संघर्ष आता है। इस योग को अशुभ माना गया है। कुण्‍डली में कालसर्प योग के अतिरिक्‍त सकारात्‍मक ग्रह अधिक हों तो व्‍यक्ति उच्‍चपदाधिकारी भी बनता है, परन्‍तु एक दिन उसे संघर्ष अवश्‍य करना पड़ता है। यदि नकारात्‍मक ग्रह अधिक बली हों तो जातक को बहुत अधिक संघर्ष करना पड़ता है। यदि आपकी कुण्‍डली में कालसर्प दोष है तो घबराएं नहीं, इसके उपाय आसानी से किये जा सकते हैं और इससे होने वाले कष्टों से निजात पाया जा सकता है।

कालसर्प दोष के लक्षण
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रोजगार में दिक्कत या फिर रोजगार हो तो बरकत न होना। बाल्यकाल में किसी भी प्रकार की बाधा का उत्पन्न होना। अर्थात घटना-दुर्घटना, चोट लगना, बीमारी आदि का होना। विद्या अध्ययन में रुकावट होना या पढ़ाई बीच में ही छूट जाना। पढ़ाई में मन नहीं लगना या फिर ऐसी कोई आर्थिक अथवा शारीरिक बाधा जिससे अध्ययन में व्यवधान उत्पन्न हो जाए। घर-परिवार मांगलिक कार्यों के दौरान बाधा उत्पन्न होना।आए दिन घटना-दुर्घटनाएं होते रहना।घर में कोई सदस्य यदि लंबे समय से बीमार हो और वह स्वस्थ नहीं हो पा रहा हो साथ ही बीमारी का कारण पता नहीं चल रहा है। यदि परिवार में किसी का गर्भपात या अकाल मृत्यु हुई है तो यह भी कालसर्प दोष का लक्षण है। एक अन्य लक्षण कालसर्प दोष है संतान का न होना और यदि संतान हो भी जाए तो उसकी प्रगति में बाधा उत्पन्न होती है। घर के किसी सदस्य पर प्रेतबाधा का प्रकोप रहना या पूरे दिन दिमाग में चिड़चिड़ापन रहना। इस दोष के चलते घर की महिलाओं को कुछ न कुछ समस्याएं उत्पन्न होती रहती हैं। विवाह में विलंब भी कालसर्प दोष का ही एक लक्षण है। यदि ऐसी स्थिति दिखाई दे तो निश्चित ही किसी विद्वान ज्योतिषी से संपर्क करना चाहिए। इसके साथ ही इस दोष के चलते वैवाहिक जीवन में तनाव और विवाह के बाद तलाक की स्थिति भी पैदा हो जाती है। रोज घर में कलह का होना। पारिवारिक एकता खत्म हो जाना।परिजन तथा सहयोगी से धोखा खाना, खासकर ऐसे व्यक्ति जिनका आपने कभी भला किया हो।

ग्रह स्थितियों अनुसार कालसर्प दोष की पहचान
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जब लग्न मेष, वृष या कर्क हो तथा राहु की स्थिति १, ३, ४, ५, ६, ७, ८, ११ या १२ वें भाव में हो। तब उस स्थिति में जातक स्त्री, पुत्र, धन-धान्य व अच्छे स्वास्थ्य का सुख प्राप्त करता है।जब राहु छठे भाव में अवस्थित हो तथा बृहस्पति केंद्र में हो तब जातक का जीवन खुशहाल व्यतीत होता है।जब राहु व चंद्रमा की युति केंद्र (१,४,७,१० वें भाव) या त्रिकोण में हो तब जातक के जीवन में सुख-समृद्धि की सारी सुविधाएं उपलब्ध हो जाती हैं। जब राहु के साथ बृहस्पति की युति हो तब जातक को तरह-तरह के अनिष्टों का सामना करना पड़ता है। जब राहु की मंगल से युति यानी अंगारक योग हो तब संबंधित जातक को भारी कष्ट का सामना करना पड़ता है। जब राहु के साथ सूर्य या चंद्रमा की युति हो तब भी जातक पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, शारीरिक व आर्थिक परेशानियाँ बढ़ती हैं।जब कालसर्प योग में राहु के साथ शुक्र की युति हो तो जातक को संतान संबंधी ग्रह बाधा होती है।जब लग्न व लग्नेश पीड़ित हो, तब भी जातक शारीरिक व मानसिक रूप से परेशान रहता है।चंद्रमा से द्वितीय व द्वादश भाव में कोई ग्रह न हो। यानी केंद्रुम योग हो और चंद्रमा या लग्न से केंद्र में कोई ग्रह न हो तो जातक को मुख्य रूप से आर्थिक परेशानी होती है।जब राहु के साथ चंद्रमा लग्न में हो और जातक को बात-बात में भ्रम की बीमारी सताती रहती हो, या उसे हमेशा लगता है कि कोई उसे नुकसान पहुँचा सकता है या वह व्यक्ति मानसिक तौर पर पीड़ित रहता है।जब अष्टम भाव में राहु पर मंगल, शनि या सूर्य की दृष्टि हो तब जातक के विवाह में विघ्न, या देरी होती है। यदि जन्म कुंडली में शनि चतुर्थ भाव में और राहु बारहवें भाव में स्थित हो तो संबंधित जातक बहुत बड़ा धूर्त व कपटी होता है। इसकी वजह से उसे बहुत बड़ी विपत्ति में भी फंसना पड़ जाता है। जब राहु के साथ शनि की युति यानी नंद योग हो तब भी जातक के स्वास्थ्य व संतान पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, उसकी कारोबारी परेशानियाँ बढ़ती हैं।जब राहु की बुध से युति अर्थात जड़त्व योग हो तब भी जातक पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, उसकी आर्थिक व सामाजिक परेशानियाँ बढ़ती हैं।जब लग्न में राहु-चंद्र हों तथा पंचम, नवम या द्वादश भाव में मंगल या शनि अवस्थित हों तब जातक की दिमागी हालत ठीक नहीं रहती। उसे प्रेत-पिशाच बाधा से भी पीड़ित होना पड़ सकता है।जब दशम भाव का नवांशेश मंगल/राहु या शनि से युति करे तब संबंधित जातक को हमेशा अग्नि से भय रहता है और अग्नि से सावधान भी रहना चाहिए।जब दशम भाव का नवांश स्वामी राहु या केतु से युक्त हो तब संबंधित जातक मरणांतक कष्ट पाने की प्रबल आशंका बनी रहती है।जब राहु व मंगल के बीच षडाष्टक संबंध हो तब संबंधित जातक को बहुत कष्ट होता है। वैसी स्थिति में तो कष्ट और भी बढ़ जाते हैं जब राहु मंगल से दृष्ट हो।जब लग्न में मेष, वृश्चिक, कर्क या धनु राशि हो और उसमें बृहस्पति व मंगल स्थित हों, राहु की स्थिति पंचम भाव में हो तथा वह मंगल या बुध से युक्त या दृष्ट हो, अथवा राहु पंचम भाव में स्थित हो तो संबंधित जातक की संतान पर कभी न कभी भारी मुसीबत आती ही है, अथवा जातक किसी बड़े संकट या आपराधिक मामले में फंस जाता है।जब दशम भाव में मंगल बली हो तथा किसी अशुभ भाव से युक्त या दृष्ट न हो। तब संबंधित जातक पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता।जब मंगल की युति चंद्रमा से केंद्र में अपनी राशि या उच्च राशि में हो, अथवा अशुभ ग्रहों से युक्त या दृष्ट न हों। तब कालसर्प योग की सारी परेशानियां कम हो जाती हैं।जब शुक्र दूसरे या १२ वें भाव में अवस्थित हो तब जातक को अनुकूल फल प्राप्त होते हैं।जब बुधादित्य योग हो और बुध अस्त न हो तब जातक को अनुकूल फल प्राप्त होते हैं।जब लग्न व लग्नेश सूर्य व चंद्र कुंडली में बलवान हों साथ ही किसी शुभ भाव में अवस्थित हों और शुभ ग्रहों द्वारा देखे जा रहे हों। तब कालसर्प योग की प्रतिकूलता कम हो जाती है।जब राहु अदृश्य भावों में स्थित हो तथा दूसरे ग्रह दृश्य भावों में स्थित हों तब संबंधित जातक का कालसर्प योग समृध्दिदायक होता है। जब राहु छठे भाव में तथा बृहस्पति केंद्र या दशम भाव में अवस्थित हो तब जातक के जीवन में धन-धान्य की जरा भी कमी महसूस नहीं होती।जब शुक्र से मालव्य योग बनता हो, यानी शुक्र अपनी राशि में या उच्च राशि में केंद्र में अवस्थित हो और किसी अशुभ ग्रह से युक्त अथवा दृष्ट न हो रहा हो। तब कालसर्प योग का विपरत असर काफी कम हो जाता है।जब शनि अपनी राशि या अपनी उच्च राशि में केंद्र में अवस्थित हो तथा किसी अशुभ ग्रह से युक्त या दृष्ट न हों। तब काल सर्प योग का असर काफी कम हो जाता है।
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ज्योतिषियों का एक वर्ग के अनुसार अगर कोई ग्रह अपनी उच्च की राशि में स्थित होने पर वक्री हो जाता है तो उसके फल अशुभ हो जाते हैं तथा यदि कोई ग्रह अपनी नीच की राशि में वक्री हो जाता है तो उसके फल शुभ हो जाते हैं।

सूर्य : यह ग्रह मेष में उच्च का और तुला में नीच का होता है। लेकिन यह वक्री नहीं होता है।
चंद्र : यह ग्रह वृषभ में उच्च का और वृश्चिक में नीच का होता है। लेकिन यह वक्री नहीं होता है।

1.मंगल- मंगल की दो राशियां है- पहली मेष और दूसरी वृश्चिक। यह ग्रह मकर राशि में उच्च का और कर्क राशि में नीच का होता है। जब मंगल वक्री होता है तो स्वा‍भाविक रूप से मकर राशि वालों के लिए सकारात्मक और कर्क राशि वालों के लिए नकारात्मक असर देता है। मतलब यह कि उच्च राशि पर अच्छा, नीच राशि पर बुरा और सम राशि पर मिलाजुला असर रहता है। लेकिन मंगल जब अन्य राशियों में भ्रमण करता है तो उसका इस राशि वालों लोगों के लिए फल अलग होता है। यही बात सभी राशियों पर लागू होती है।

2.बुध- बुध ग्रह की दो राशियां हैं- पहली मिथुन और दूसरी कन्या। यह ग्रह कन्या में उच्च का और मीन में नीच का होता है। जब बुध वक्री होता है तो स्वा‍भाविक रूप से कन्या राशि वालों के लिए सकारात्मक और मीन रा‍शि वालों के लिए नकारात्मक असर देता है। लेकिन बुध जब अन्य राशियों में भ्रमण करता है तो उसका इस राशि वालों लोगों के लिए फल अलग होता है।

3.बृहस्पति- इस ग्रह की दो राशियां हैं- पहली धनु और दूसरी मीन। यह ग्रह कर्क में उच्च का और मकर में नीच का होता है। जब बृहस्पति ग्रह वक्री होता है तो स्वा‍भाविक रूप से कर्क राशि वालों के लिए सकारात्मक और मकर राशि वालों के लिए नकारात्मक असर देता है। लेकिन बृहस्पति जब अन्य राशियों में भ्रमण करता है तो उसका इस राशि वालों लोगों के लिए फल अलग होता है।

4.शुक्र ग्रह- इस ग्रह की दो राशियां हैं- पहली वृषभ और दूसरी तुला। यह ग्रह मीन राशि में में उच्च और कन्या ‍राशि में नीच का होता है। जब यह ग्रह वक्री होता है तो स्वा‍भाविक रूप से मीन राशि वालों के लिए सकारात्मक और कन्या राशि वालों के लिए नकारात्मक असर देता है। लेकिन शुक्र जब अन्य राशियों में भ्रमण करता है तो उसका इस राशि वालों लोगों के लिए फल अलग होता है।

5.शनि- इस ग्रह की दो राशियां है- पहली कुंभ और दूसरी मकर। यह ग्रह तुला में उच्च और मेष में नीच का होता है। जब यह ग्रह वक्री होता है तो स्वाभाविक रूप से तुला राशि वालों के लिए सकारात्मक और मेष राशि वालों के लिए नकारात्मक असर देता है। लेकिन शनि जब अन्य राशियों में भ्रम करता है तो उसका अलग असर होता है। यदि वह मेष की मित्र राशि धनु में भ्रमण कर रहा है तो मेष राशि वालों पर नकारात्मक असर नहीं डालेगा।

6.राहु- राहु मिथुन मतांतर से यह ग्रह वृषभ में उच्च का और वृश्चिक में नीच का होता है। जब यह ग्रह वक्री होता है तो स्वा‍भाविक रूप से वृषभ राशि वालों के लिए सकारात्मक और वृश्चिक राशि वालों के लिए नकारात्मक असर देता है। लेकिन राहु जब अन्य राशियों में भ्रमण करता है तो उसका इस राशि वाले लोगों के लिए फल अलग होता है।

7.केतु- राहु मिथुन मतांतर से यह ग्रह वृश्चिक में उच्च का और वृषभ में नीच का होता है। जब यह ग्रह वक्री होता है तो स्वाभाविक रूप से वृश्चिक राशि वालों के लिए सकारात्मक और वृषभ राशि वालों के लिए नकारात्मक होता है। लेकिन केतु जब अन्य राशियों में भ्रमण करता है तो उसका इस राशि वाले लोगों के लिए फल अलग होता है
[आदरणीय विद्वत जनों ने वक्री ग्रहों के फलाफल पर ऊपर अत्यंत ज्ञान कारी चर्चाएं करी हैं आप सभी को साधुवाद इस चर्चा में मैं भी शामिल हो रहा हूं आप सब को प्रणाम🙏🙏🌹
सारावली के अनुसार वक्री ग्रह सुख प्रदान करने वाले होते हैं लेकिन यदि जन्म कुंडली में वक्री ग्रह शत्रु राशि में है या बलहीन अवस्था में हैं तब वह व्यक्ति को बिना कारण भ्रमण देने वाले होते हैं. यह व्यक्ति के लिए अरिष्टकारी भी सिद्ध होते हैं.
संकेतनिदि के अनुसार मंगल जब वक्री होता है तब अपने स्थान से तीसरे भाव के प्रभाव को दिखाता है. गुरु वक्री होने पर अपने स्थान से पंचम भाव के फल, बुध अपने स्थान से चतुर्थ भाव का प्रभाव, शुक्र अपने स्थान से सप्तम भाव का प्रभाव और शनि अपने स्थान से नवम भाव के परिणाम देता है.
जातक पारिजात के अनुसार वक्री ग्रह के अलावा शत्रु भाव में किसी अन्य ग्रह का भ्रमण अपना एक तिहाई फल खो देता है.
उत्तर कालामृत के अनुसार जिस तरह से ग्रह अपने उच्च अथवा मूल त्रिकोण राशि में होता है ठीक वैसे ही ग्रह वक्री अवस्था में भी होता है.
फल दीपिका में मंत्रेश्वर जी का कथन है कि ग्रह की वक्र गति उस ग्रह विशेष के चेष्टाबल को बढ़ाने का काम करती है.
कृष्णमूर्ति पद्धति के अनुसार प्रश्न के समय संबंधित ग्रह का वक्री होना अथवा वक्री ग्रह के नक्षत्र में होना नकारात्मक माना जाता है. काम के ना होने की संभावनाएँ अधिक बनती हैं. यदि संबंधित ग्रह वक्री नहीं है लेकिन प्रश्न के समय वक्री ग्रह के नक्षत्र में स्थित है तब कार्य पूर्ण नहीं होगा जब तक कि ग्रह वक्री अवस्था में स्थित रहेगा.
सर्वार्थ चिन्तामणि में आचार्य वेंकटेश ने वक्री ग्रहों की दशा व अन्तर्दशा का बढ़िया विवरण किया है. उनके अनुसार यदि मंगल ग्रह वक्री है और उसकी दशा/अन्तर्दशा चल रही हो तब व्यक्ति अग्नि तथा शत्रु आदि के भय से परेशान रहता है. ऎसी स्थिति में व्यक्ति एकांतवास करना चाहता है.
सर्वार्थ चिन्तामणि के अनुसार ही वक्री बुध अपनी दशा/अन्तर्दशा में शुभ फल प्रदान करता है. व्यक्ति अपने साथी व परिवार का सुख भोगता है. व्यक्ति की रुचि धार्मिक कार्यों की ओर भी बनी रहती है.
सर्वार्थ चिन्तामणि के अनुसार ही वक्री गुरु परिवार में सुख व समृद्धि प्रदान करता है और शत्रु पक्ष पर विजय हासिल कराता है. व्यक्ति वैभवशाली जीवन जीता है.
शुक्र मान – सम्मान का द्योतक है इसलिए सर्वार्थ चिन्तामणि में कहा गया है कि वक्री शुक्र की दशा में व्यक्ति वाहन सुख पाता है और अपनी सुख सुविधाओं के लिए सभी तरह के साधन जुटा लेता है.
सर्वार्थ चिन्तामणि के अनुसार ही वक्री शनि अपनी दशा/अन्तर्दशा में अपव्यय करवाता है. व्यक्ति चाहे कितने भी प्रयास क्यूँ ना कर ले उसे सफलता नहीं मिलती है. ऎसा शनि व्यक्ति को मानसिक तनाव व दुख प्रदान करता है.🌹🌹🌹🙏🙏🌹🌹
जब कोई भी ग्रह अपनी सामान्य गति से या सामान्य दिशा में नही चलता तो इसका अर्थ हुआ कि उस ग्रह के विषय मे कुछ विचित्र है।
जहां पर भी वक्री ग्रह बैठता है उस भाव के किसी एक कारकत्व में आवश्य ही कुछ विचित्र होता है।

हर ग्रह सूर्य से 5वे, 6ठे, 7वे, 8वे भाव में वक्री होता है।
सूर्य और चन्द्र कभी वक्री नही होते।

बुध साल में 3 बार वक्री होता है।
शनि और गुरु साल में 1 बार कुछ माह के लिए वक्री होते हैं।

मंगल और शुक्र दो साल में एक बार वक्री होते हैं।

राहु केतु हमेशा वक्री रहते हैं।

वक्री ग्रह स्वस्थ पर बुरा प्रभाव डालते है । जब भी सप्तमेष से सप्तम में बैठा ग्रह वक्री होगा, वो सम्बन्धों में बधाए उत्पन्न करेगा।

वक्री ग्रह अचंभित करने वाले इवेंट्स को प्रस्तुत करते हैं। क्योंकि वक्री ग्रह पृथ्वी के समीप होते हैं, ये जातक के व्यक्तिव में उस भाव को emphasise करते हैं जो विशेष हो।

वक्री ग्रह हमे हमारी पास्ट लाइफ के lessons को लेकर हमारी वर्तमान के जीवन से जोड़ते हैं।

वक्री ग्रह चल तो आगे ही रहे होते हैं किन्तु जातक को ये spiritually आगे की ओर ले जाते हैं।
[ • वक्री ग्रह किसी कुंडली विशेष में स्वभाव से विपरीत आचरण करते हैं। किसी कुंडली में सामान्य रूप से शुभ फल देने वाला ग्रह वक्री होने की स्थिति में अशुभ फल देना शुरू कर देता है या फिर अगर किसी कुंडली में सामान्य रूप से अशुभ फल देने वाला वक्री होने की स्थिति में शुभ फल देना शुरू कर देता है। वक्री ग्रह उल्टी दिशा में चलने के कारन कुंडली में शुभ या अशुभ का प्रभाव भी उल्टा कर देता है। • अगर कोई ग्रह अपनी उच्च की राशि में स्थित होने पर वक्री हो जाता है तो उसके फल अशुभ हो जाते हैं तथा यदि कोई ग्रह अपनी नीच की राशि में वक्री हो जाता है तो उसके फल शुभ हो जाते हैं।
: बुध का संबंध बौद्धिक क्षमता, विचार, निर्णय लेने की क्षमता, लेखन, व्यापार आदि से होता है। इसलिए बुध जब वक्री हो तो व्यक्ति को शांति से काम लेना चाहिए। इस दौरान अति उत्साह में आकर कोई निर्णय नहीं लेना चाहिए। क्योंकि वक्री बुध अक्सर गलत निर्णय करवा बैठता है। इसलिए जो काम जैसा चल रहा होता है, उसे चलने देना चाहिए। वक्री बुध के समय में कोई नया कार्य प्रारंभ न करें। अनुबंध या ठेकेदारी में नए कार्य हाथ में न लें, वरना घाटा उठाना पड़ता है। स्त्रियों के गोचर में वक्री बुध होने से वे परिवार, समाज, कार्यस्थल पर अपमान का सामना करती हैं। उनके सभी निर्णय गलत साबित होते हैं। इस कारण उनकी तरक्की भी बाधित हो जाती है। यदि कुंडली में बुध अत्यंत उच्च स्थिति में हो तो वक्री बुध लाभ भी देता है। इस ग्रह योग वालों को अचानक कहीं से धन प्राप्ति के योग बनते हैं।

बृहस्पति
बृहस्पति का वक्री होना अत्यंत शुभ माना गया है। इससे व्यक्ति का भाग्य चमकता है। बृहस्पति जिस भाव में वक्री होता है उस भाव के फलादेश में अनुकूल परिवर्तन आते हैं। इस दौरान व्यक्ति अपने परिवार, देश, संतान, जिम्मेदारियों और धर्म के प्रति अधिक संवेदनशील और चिंतित होकर शुभ कार्यों में प्रवृत्त हो जाता है। जब व्यक्ति कुंडली के द्वितीय भाव में आकर वक्री होता है तो अपार धन-संपदा प्रदान करता है। सिर से कर्ज का बोझ उतर जाता है। धन संचय होने लगता है। डूबा हुआ पैसा वापस मिल जाता है। नौकरीपेशा व्यक्तियों को प्रमोशन और वेतनवृद्धि मिलती है। नवम भाव में वक्री होने पर भाग्योदय होता है। द्वादश स्थान में वक्री होने पर व्यक्ति अपने जन्म स्थान की ओर बढ़ता है और संपत्ति प्राप्त करता है। स्त्रियों की कुंडली में वक्री बृहस्पति हो तो उन्हें विवाह सुख की प्राप्ति होती है। आर्थिक तरक्की होती है।

शुक्र
शुक्र ग्रह का सीधा संबंध भोग-विलास, यौन सुख से होता है। शुक्र के वक्री होने पर स्त्रियों के मन में दबी भावनाएं बाहर आने लगती हैं। उनमें कामुकता बढ़ जाती है और उनमें यौन संबंध बनाने भावना तीव्र हो जाती है। उस समय वे अपने पति या प्रेमी से अधिक प्यार पाना चाहती हैं। और यदि उन्हें प्यार न मिले तो वे पुरुषों को त्यागने में जरा भी संकोच नहीं करती। पुरुषों की कुंडली में शुक्र वक्री हो और गोचर में वक्री हो तो उनमें भी यौन इच्छाएं तीव्र हो जाती हैं। इस दौरान यदि पुरुषों को पत्नी से सुख-संतोष प्राप्त न हो तो वे अन्य स्त्रियों के साथ संसर्ग करने लग जाते हैं। इस दौरान पुरुष शराब का सेवन भी अधिक करने लगते हैं। शुक्र जब वक्री के बाद मार्गी होता है तो पति-पत्नी के बीच के मतभेद तुरंत मिट जाते हैं। कोर्ट-कचहरी के मुकदमों का निपटारा हो जाता है और टूटे संबंध पुनः जुड़ जाते हैं।

शनि
शनि के वक्रत्व को लेकर भारतीय और विदेशी ज्योतिषियों में कुछ बातों पर मतभेद है। कुछ भारतीय ज्योतिषियों का मत है कि शनि का वक्री होना दुर्घटनाएं, धन हानि करवाता है। जबकि इससे उलट विदेशी विद्वान मानते है। कि शनि के वक्री होने पर व्यक्ति को परेशानियों से राहत मिलती है। वक्री शनि तनाव व संघर्षों में राहत देता है। ऐसे समय में व्यक्ति की सोचने-समझने की शक्ति बढ़ जाती है और वह अपने अच्छे-बुरे कार्यों का स्वयं विश्लेषण करता है। साथ ही विद्वानों का यह भी मानना है कि शनि सिंह व धनु राशि में प्रतिकूल प्रभाव देता है।

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इन ग्रहों के बुरे असर करवाएंगे पाप

कुंडली के नौ ग्रहों में से कुछ ग्रहों को पाप ग्रह माना गया है. जीवन में इनके असर से न चाहते हुए भी मनुष्य गलत कामों में शामिल होने लगता है. वहीं इनके शुभ प्रभाव से इंसान धर्म की राह पर चलने लगता है.

नौ ग्रहों में से तीन हैं पाप ग्रह
ज्योतिष के अनुसार कुल नौ ग्रहों में कुछ शुभ होते हैं तो कुछ ग्रहों को पाप ग्रह माना गया है. इनके प्रभाव में आते ही इंसान न चाहते हुए भी पाप में शामिल हो जाता है. शनि, राहु और केतु पाप ग्रह की श्रेणी में आते हैं.

पाप ग्रहों का असर –

  • ज्योतिष में शनि, राहु और केतु को पाप ग्रह माना गया है.
  • ये ग्रह जीवन को पाप की ओर ले जाते हैं.
  • पाप ग्रहों के बुरे प्रभाव में आकर इंसान बिना इच्छा के भी पाप करता है.
  • लेकिन कभी-कभी यही पाप ग्रह बहुत शुभ हो जाते हैं.
  • शुभ दशाओं में यही पाप ग्रह इंसान को पुण्य और मुक्ति की ओर ले जाते हैं.

शनि के शुभ और अशुभ प्रभाव –
जिस पर शनि का पाप प्रभाव पड़ता है उसका किसी भी काम में मन नहीं लगता. लेकिन शनि जब पुण्य देते हैं तो इंसान खुद के साथ-साथ समाज का भी कल्याण करने वाला बनता है.

  • शनि का दुष्प्रभाव होने से इंसान आलसी , लापरवाह और कठोर होता है – इंसान क्षुद्र देवताओं की उपासना करने लगता है.
  • मनुष्य साफ-सफाई से नहीं रहता और बुरे कर्म करता है.
  • शनि के शुभ परिणाम से इंसान अनुशासित हो जाता है.
  • ध्यान और धर्म से ईश्वर की ओर आकर्षित होने लगता है.
  • शनि के शुभ फल से इंसान लोगों को सच्चाई और अच्छाई की राह दिखाता है.

कैसे बढ़ाएं शनि का शुभ प्रभाव –

  • शनि का शुभ प्रभाव बढ़ाने के लिए हनुमान जी की पूजा करें.
  • अपनी क्षमता के अनुसार भोजन, वस्त्र और धन का दान करें.

राहु के प्रभाव –
ज्योतिष के अनुसार राहु दूसरा प्रभावी पाप ग्रह है. जिस इंसान पर राहु का पाप प्रभाव पड़ता है वह झूठ, धोखा, छल और कपट जैसी बुरी आदतों का शिकार हो जाता है. यह पाप ग्रह भी कभी-कभी शुभ का कारक बनता है.

  • अशुभ राहु चरित्र पतन और नशे की ओर ले जाता है.
  • राहु इंसान को षडयंत्र और दूसरों को परेशान करने की आदत देता है.
  • राहु की वजह से इंसान धर्म और आध्यात्म के खिलाफ बोलता है.
  • राहु का शुभ प्रभाव हो तो इंसान जन्म से ही सिद्ध होता है.
  • ऐसे इंसान में अद्भुत चमत्कारी शक्ति होती है.
  • ऐसी दशा में इंसान आध्यात्म की नई राह खोज लेता है.

कैसे बढ़ाएं राहु का शुभ प्रभाव –

  • राहु का शुभ प्रभाव बढ़ाने के लिए सात्विक आहार ग्रहण करें.
  • शिव जी की उपासना करें.
  • रोगियों और विकलांगों की सेवा करें.

पाप ग्रह केतु के प्रभाव –
ज्योतिष में केतु को पाप ग्रह माना गया है. केतु खराब हो तो इंसान को दिशा से भटका देता है. यह पाप करवाता है. लेकिन कभी–कभी यह ग्रह भी आपके लिए बड़ा शुभ फल देने वाला होता है.

  • केतु का अशुभ प्रभाव होने से इंसान धर्म और ईश्वर का विरोधी हो जाता है.
  • मनुष्य जीवन की हर समस्या के लिए ईश्वर को जिम्मेदार ठहराता है.
  • उल्टे-सीधे प्रयोग करके मानसिक रूप से असंतुलित हो जाता है.
  • केतु का पुण्य प्रभाव तीर्थ यात्राएं करवाता है.
  • इंसान को सद्गुरू देता है और संत बनाता है.
  • केतु के पुण्य प्रभाव से अद्भुत व आध्यात्मिक शक्ति मिलती है.
  • केतु का शुभ असर इंसान को मुक्ति और मोक्ष भी देता है.

केतु का शुभ प्रभाव बढ़ाने के उपाय –
पाप ग्रह केतु से परेशान हैं तो उसके शुभ प्रभाव बढ़ाने के उपाय करें. फिर यही केतु आपके जीवन में सुख लाएगा –

  • रोज स्नान करके भगवान गणेश की उपासना करें.
  • तीर्थ स्थानों और मंदिरों की यात्रा करें.

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