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शनि खराब के लक्षण बीमारी

असमय आंख खराब होना असमय बाल सफेद होना जोड़ो में कहीं ना कहीं दर्द रहना पेट से संबधित खराबी होना नसों में खिंचाव आना ओर सबसे घातक वो रोग जिसे अल्सर कहते हैं जो कभी ठीक हो जाये मगर फिर वापस जख्म हो जाये बार बार जख्म होना ये सब खराब शनि के लक्षण हैं क्योंकि शनि जब खराब होगा तो इसका पूरा ग्रुप ही डिस्टर्ब होगा राहु केतु बुध ये सब सक्रिय हो जाते हैं ऐसे में मंगल को भी खराब कर देते हैं इसलिये पेट में गर्मी पैदा कर देते हैं शनि धीरे धीरे ओर लंबी कठिनाई देता है ओर धीरे धीरे ही लंबे सुख देता है यानी शनै शनै इसलिये शनि कहते हैं इसका एक राशि पर गोचर भी सबसे लंबा है ढाई साल अब परेशानी तो ढाई दिन की ही काफी है ढाई साल तो बहुत होते है ये बुराई पर आये तो आदमी को इतना आलसी बना देगा कि वो अंधेरे का आदि होगा ओर अकेला रहना पसंद करेगा ये जातक के बस की बात नहीं शनि का दोष है क्योंकि शनि अंधेरा है ओर बैराग भी दे देता है इसलिये बुजुर्गो नें भी कहा है लाल किताब भी कहती है कि घर के अंतिम छोर में अंधेरा कमरा कोठरी जरूर रखें ताकि शनि को स्थान मिले राजा विक्रमादित्य नें भी तो शनि को आखरी आसान पर बैठाया था चूंकि वो स्थान तो मान्य कर लिया मगर लेकिन अपनी बेइज्जती समझ कर तकलीफ भी बहुत दी थी तो शनि के दान कथा तेल चढ़ाना ये लाजमी कर दिये यानी क्षमा के लिये शनि को प्रधानता देनी जरूरी हो गई इसलिये स्थान भी दें दान भी दें मगर अच्छी अवस्था में हो या उच्च का हो पीड़ित ना हो तो ऐसा ना करें क्योंकि आप पर शनि की मेहरबानी है पूर्व जन्म में ऐसा कोई कर्म नहीं किया जिसका दंड शनि से मिले ॥ जिस तरह झगड़े में ग्रुप में जो बलवान हो उसको सबसे पहले सब मिल कर भगाने का प्रयास करते हैं तो मंगल बलवान भी है ओर पापी ग्रह को दबा भी देता है इसलिये मंगल को मजबूत करें मीठा खिलाएं मंगलवार को ओर राहु शनि की वस्तुओं को धर्म स्थान में दें वहां ये अपना पाप त्याग देंगे ॥ पश्चिम दीवार शनि की होती है वहां सूर्य मंगल बृहस्पति चंद्र की वस्तुएं रखें ॥

: सूर्य केतु

सूर्य जहाँ राजसी ग्रह है वहां केतु साधु वादी ग्रह है सूर्य का कार्य सरेआम धड़ल्ले से कार्य करना है वहीं केतु का काम रहस्यम है छुप कर करना तो एक तरह ग्रहण की स्तिथि पैदा होगी क्योंकि केतु जहाँ बैठेगा उसके ठीक सामने राहु भी होगा इसलिये उसका प्रभाव भी शामिल होगा अगर अशुभ घर में अशुभ राशि में हों ओर डिग्री का फर्क ज्यादा ना हो तो ये अपने कार्य काल में अशुभ फल देंगे जिस घर में होंगे उसे प्रभावित करेंगे उस से संबधित अंग को प्रभावित करेंगे व्यापार में बाधा कोई ना कोई रुकावट आना नौकरी में बाधा स्टाफ से अपने मालिक से ना बनना शारीरिक तकलीफ सूर्य हड्डी का कारक है जहाँ बैठे हैं उस अंग में हड्डी की तकलीफ देना कुल मिला कर केतु सूर्य के बल को कमजोर कर देता है ऐसे में सूर्य को बलवान करे ओर केतु के दान करें खाने में नमक कम खाएं क्योंकि ऐसे लोगों को ज्यादा नमक खाना पसंद होता है एक आदत सी होती है कि बनी बनाई खाध्य सामग्री में ऊपर से चाहे थोड़ा सा नमक डालें नाम मात्र का पर डालते जरूर हैं यहां सूर्य को सहायता देने के लिये ओर केतु को शांत करने के लिये बृहस्पति चंद्र की सहायता लें चने की दाल बृहस्पति है बहता पानी चंद्रमा चने की दाल जलप्रवाह कर दें कान केतु है इसलिये कान के पीछे केसर का तिलक लगाएं यानी जैसा केतु का स्वभाव है छुपाना तो कान के पीछे का हिस्सा छुपा हुआ होता है हर किसी को नजर नहीं आता गुड़ से बनी खीर यानी एक तरह से चंद्रमा ओर सूर्य का मिश्रण है बना कर खाएं ॥ अगर कहीं युति मित्र या उच्च घर स्थान पर हो तो इसका प्रभाव इतना नहीं पडे़गा ॥
[||#शनिराहुयाशनिकेतुसंबंधफल|| शनि और राहु की युति या शनि और केतु की युति संबंध किस तरह के फल देगा इस विषय पर बात करते है।शनि के साथ राहु सामान्य रूप से प्रेत श्राप योग बनाता है लेकिन शनि के साथ राहु या केतु की युति उच्च सफलता, उन्नति, शुभ फल भी दे सकती है और असफलता, परेशानियां और नुकसान भी दे सकता है।अब निर्भर करता है आपकी जन्मकुंडली में शनि के साथ राहु या केतु का या राहु केतु का शनि के साथ संबंध कैसा है? इसमे यह सबसे महत्वपूर्ण बात होती है शनि कुंडली मे शुभ है या अशुभ साथ ही कुंडली के लिए शुभ फल देने वाला है या नही साथ ही शनि के घर मकर और कुम्भ राहु केतु से पीड़ित नही है और शनि की placemant अच्छी तब राजयोग, सफलता, आदि कुंडली के अनुसार शुभ फल देगा बाकी यदि स्थिति अशुभ है तब फल दिक्कत वाले होंगे| #उदाहरणअनुसार:- किसी जातक की वृष लग्न की कुंडली बनती हो यहाँ शनि 9वे-10वे भाव का स्वामी होकर योगकारक ग्रह होता है नैसर्गिक रूप से कुंडली के लिए शुभ फल कारक ग्रह है।अब यहाँ शनि के साथ राहु केतु की युति तब ही शुभ फल देगी जब दसवे भाव,नवे भाव पर राहु केतु की कोई दृष्टि न हो जैसे इसी वृष लग्न में 5वे भाव मे 11वे भाव मे शनि और राहु की युति इसी वर्ष लग्न में बने तब यह शुभ फल देगी और राजयोग ,सफलता उन्नति शुभ फल मिलेंगे क्योंकि शनि के घर पर राहु केतु का कोई प्रभाव नही और शनि स्वयम नवमेश-दश्मेश होकर राजयोगकारक है।ऐसी स्थिति शनि के साथ राहु या केतु की बेहद सफलता दायक फल देगी।। अब अशुभ फल कैसे मिलेंगे?, #उदाहरणअनुसार2:- अब किसी जातक की धनु लग्न की कुंडली है यहाँ शनि दूसरे और तीसरे भाव का स्वामी होता है, दूसरा भाव धन का होता है अब यहाँ धन भाव मे धनेश शनि खुद बेठा हो और राहु या केतु शनि के साथ बेठे हो तब ऐसी स्थिति में जब भी राहु केतु या शनि की दशा लगेगी बहुत ज्यादा रुपया-पैसे का नुकसान व्यापार में या किसी न किसी तरह से होता रहेगा , क्योंकि यहाँ राहु केतु ने शनि के साथ साथ शनि के घर को भी पीड़ित करा जो कि दूसरा भाव है।यहाँ दिक्कत रुपये पैसे की ही देगा लेकिन यही धनु लग्न में धनेश शनि के साथ राहु 11वे भाव मे लाभ स्थान में बेठे तब राहु या केतु का कोई प्रभाव दूसरे भाव शनि के घर और नही होगा साथ ही शनि यहां धन भाव स्वामी होकर लाभ स्थान में राहु केतु के साथ परम् शुभ होकर राहु केतु की दशा में या शनि की दशा में बहुत धन लाभ या धनः लाभ के रास्ते खुल जाएंगे काफी, शनि यहाँ उच्च होने से बलवान भी होगा। इसी तरह शनि राहु या शनि केतु की युति में शनि और शनि के घर की स्थिति महत्वपूर्ण होती है।शनि का राहु केतु के साथ संबंध कुंडली अनुसार शुभ फल देने वाला बनता हो तब बहुत अच्छा है और अशुभ फल देने वाला दिखता हो तब काफी दिक्कते, शनि राहु या केतु की दशाओ में होगी।

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