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ज्योतिष कक्षा
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ग्रह जनित रोगों का सामान्य विचार एवं ग्रहो द्वारा रोग विवरण एवं रोग मुक्ति का ज्योतिषीय गणना से सम्भावित समय एवं उपाय
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रोगों में शारीरिक एवं मानसिक दोनों प्रकार के रोग आते हैं. इसके अतिरिक्त दुर्घटना इत्यादि का सम्बन्ध भी रोग एवं पीड़ा से होता है. रोगादि एवं शारीरिक पीड़ा का प्रारम्भ जन्म से ही हो जाता है।

गोचर काल मे ग्रह जब भ्रमण करते हुए संवेदनशील राशियों के अंगों से होकर गुजरता है तो वह उनको नुकसान पहुंचाता है। नकारात्मक ग्रहों के प्रभाव को ध्यान में रखकर आप अपने भविष्य को सुखद बना सकते हैं।

वैदिक वाक्य है कि पिछले जन्म में किया हुआ पाप इस जन्म में रोग के रूप में सामने आता है। शास्त्रों में बताया है-पूर्व जन्मकृतं पापं व्याधिरूपेण जायते अत: पाप जितना कम करेंगे, रोग उतने ही कम होंगे। अग्नि, पृथ्वी, जल, आकाश और वायु इन्हीं पांच तत्वों से यह नश्वर शरीर निर्मित हुआ है। यही पांच तत्व 360 अंशों की राशियों का समूह है।

इन्हीं में मेष, सिंह और धनु अग्नि तत्व, वृष, कन्या और मकर पृथ्वी तत्व, मिथुन, तुला और कुंभ वायु तत्व तथा कर्क, वृश्चिक और मीन जल तत्व का प्रतिनिधित्व करते हैं। कालपुरुष की कुंडली में मेष का स्थान मस्तक, वृष का मुख, मिथुन का कंधे और छाती तथा कर्क का हृदय पर निवास है जबकि सिंह का उदर (पेट), कन्या का कमर, तुला का पेडू और वृश्चिक राशि का निवास लिंग प्रदेश है। धनु राशि तथा मीन का पगतल और अंगुलियों पर वास है।

इन्हीं बारह राशियों को बारह भाव के नाम से जाना जाता है। इन भावों के द्वारा क्रमश: शरीर, धन, भाई, माता, पुत्र, ऋण-रोग, पत्नी, आयु, धर्म, कर्म, आय और व्यय का चक्र मानव के जीवन में चलता रहता है। इसमें जो राशि शरीर के जिस अंग का प्रतिनिधित्व करती है, उसी राशि में बैठे ग्रहों के प्रभाव के अनुसार रोग की उत्पत्ति होती है। कुंडली में बैठे ग्रहों के अनुसार किसी भी जातक के रोग के बारे में जानकारी हासिल कर सकते हैं।

कोई भी ग्रह जब भ्रमण करते हुए संवेदनशील राशियों के अंगों से होकर गुजरता है तो वह उन अंगों को नुकसान पहुंचाता है।

सामान्य रुप से कुंडली में ग्रहों की स्थितियों से रोगों के कारण निम्नलिखित हैं-

  1. लग्न एवं लग्नेश का अशुभ स्थिति में होना.
  2. चंद्रमा का क्षीण अथवा निर्बल होना अथवा चन्द्रलग्न में पाप ग्रहों का उपस्थित होना.
  3. लग्न, चन्द्रमा एवं सूर्य तीनों पर ही पाप अथवा अशुभ ग्रहों का प्रभाव होना.
  4. जन्मपत्रिका में शनि, मंगल आदि पाप ग्रहों का गुरु, शुक्र आदि शुभ ग्रहों की अपेक्षा अधिक बलवान होना.
  5. अष्टमेश का लग्न में होना अथवा लग्नेश का अष्टम भाव में उपस्थित होना.
  6. लग्नेश की अपेक्षा षष्ठेश का अधिक बली होना.

उक्त सभी योगों के अतिरिक्त यदि किसी जातक की जन्मपत्रिका में अरिष्ट योग बनता हो, तो भी जन्म के पश्चात उसे अनेक कष्टों एवं रोगादि का सामना करना पड़ता है।

कौन सा ग्रह किस रोग का कारक
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  1. सूर्य : पित्त, वर्ण, जलन, उदर, सम्बन्धी रोग, रोग प्रतिरोधक क्षमता की कमी, न्यूरोलॉजी से सम्बन्धी रोग, नेत्र रोग, ह्रदय रोग, अस्थियों से सम्बन्धी रोग, कुष्ठ रोग, सिर के रोग, ज्वर, मूर्च्छा, रक्तस्त्राव, मिर्गी इत्यादि.
  2. चन्द्रमा : ह्रदय एवं फेफड़े सम्बन्धी रोग, बायें नेत्र में विकार, अनिद्रा, अस्थमा, डायरिया, रक्ताल्पता, रक्तविकार, जल की अधिकता या कमी से संबंधित रोग, उल्टी किडनी संबंधित रोग, मधुमेह, ड्रॉप्सी, अपेन्डिक्स, कफ रोग,मूत्रविकार, मुख सम्बन्धी रोग, नासिका संबंधी रोग, पीलिया, मानसिक रोग इत्यादि.
  3. मंगल : गर्मी के रोग, विषजनित रोग, व्रण, कुष्ठ, खुजली, रक्त सम्बन्धी रोग, गर्दन एवं कण्ठ से सम्बन्धित रोग, रक्तचाप, मूत्र सम्बन्धी रोग, ट्यूमर, कैंसर, पाइल्स, अल्सर, दस्त, दुर्घटना में रक्तस्त्राव, कटना, फोड़े-फुन्सी, ज्वर, अग्निदाह, चोट इत्यादि.
  4. बुध : छाती से सम्बन्धित रोग, नसों से सम्बन्धित रोग, नाक से सम्बन्धित रोग, ज्वर, विषमय, खुजली, अस्थिभंग, टायफाइड, पागलपन, लकवा, मिर्गी, अल्सर, अजीर्ण, मुख के रोग, चर्मरोग, हिस्टीरिया, चक्कर आना, निमोनिया, विषम ज्वर, पीलिया, वाणी दोष, कण्ठ रोग, स्नायु रोग, इत्यादि.
  5. गुरु : लीवर, किडनी, तिल्ली आदि से सम्बन्धित रोग, कर्ण सम्बन्धी रोग, मधुमेह, पीलिया, याददाश्त में कमी, जीभ एवं पिण्डलियों से सम्बन्धित रोग, मज्जा दोष, यकृत पीलिया, स्थूलता, दंत रोग, मस्तिष्क विकार इत्यादि.
  6. शुक्र : दृष्टि सम्बन्धित रोग, जननेन्द्रिय सम्बन्धित रोग, मूत्र सम्बन्धित एवं गुप्त रोग, मिर्गी, अपच, गले के रोग, नपुंसकता, अन्त:स्त्रावी ग्रन्थियों से संबंधित रोग, मादक द्रव्यों के सेवन से उत्पन्न रोग, पीलिया रोग इत्यादि.
  7. शनि : शारीरिक कमजोरी, दर्द, पेट दर्द, घुटनों या पैरों में होने वाला दर्द, दांतों अथवा त्वचा सम्बन्धित रोग, अस्थिभ्रंश, मांसपेशियों से सम्बन्धित रोग, लकवा, बहरापन, खांसी, दमा, अपच, स्नायुविकार इत्यादि.
  8. राहु : मस्तिष्क सम्बन्धी विकार, यकृत सम्बन्धी विकार, निर्बलता, चेचक, पेट में कीड़े, ऊंचाई से गिरना, पागलपन, तेज दर्द, विषजनित परेशानियां, किसी प्रकार का रियेक्शन, पशुओं या जानवरों से शारीरिक कष्ट, कुष्ठ रोग, कैंसर इत्यादि.
  9. केतु : वातजनित बीमारियां, रक्तदोष, चर्म रोग, श्रमशक्ति की कमी, सुस्ती, अर्कमण्यता, शरीर में चोट, घाव, एलर्जी, आकस्मिक रोग या परेशानी, कुत्ते का काटना इत्यादि.

कब होगी रोग मुक्ति
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किसी भी रोग से मुक्ति रोगकारक ग्रह की दशा अर्न्तदशा की समाप्ति के पश्चात ही प्राप्त होती है. इसके अतिरिक्त यदि कुंडली में लग्नेश की दशा अर्न्तदशा प्रारम्भ हो जाए, योगकारक ग्रह की दशा अर्न्तदशा-प्रत्यर्न्तदशा प्रारम्भ हो जाए, तो रोग से छुटकारा प्राप्त होने की स्थिति बनती हैं. शनि यदि रोग का कारक बनता हो, तो इतनी आसानी से मुक्ति नही मिलती है,क्योंकि शनि किसी भी रोग से जातक को लम्बे समय तक पीड़ित रखता है और राहु जब किसी रोग का जनक होता है, तो बहुत समय तक उस रोग की जांच नही हो पाती है. डॉक्टर यह समझ ही नहीं पाता है कि जातक को बीमारी क्या है और ऐसे में रोग अपेक्षाकृत अधिक अवधि तक चलता है।

मंत्र जाप, व्रत एवं ग्रह सम्बन्धी वस्तुओं के दान से ग्रह जनित रोगों का निवारण
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ग्रहों की शुभता और अशुभता जन्म कुंडली में भावगत स्थित ग्रहों के अनुसार होती है। जन्म कुंडली में भावगत ग्रह शुभ स्थिति में हैं, तो व्यक्ति को परिणाम भी अच्छे मिलते हैं। यदि अशुभ स्थिति में हैं, तो बनते हुए काम भी बिगड़ जायेंगे प्रतिकूल ग्रहों को अनुकूल बनाने के लिए ग्रह सम्बन्धी मंत्र का जप या व्रत करें। यह उपाय इतने सरल और सुगम हैं, जिन्हें कोई भी साधारण व्यक्ति आसानी से कर सकता है।

सूर्य के लिए👉 सूर्य की प्रतिकूलता दूर करने के लिए रविवार का व्रत रखें। भोजन नमक रहित करें। सूर्य सम्बन्धी वस्तुओं- गुड, गेहूं, या ताम्बे का दान किसी औसत उम्र वाले व्यक्ति को दें। दान रविवार को सांयकाल करें। यदि चाहें तो गाय या बछड़े को गुड-गेहूं खिलाएं| अपने पिताजी की सेवा करें। यह नहीं कर सकें तो प्रतिदिन सूर्य नमस्कार करके आदित्य ह्रदयस्त्रोत का पाठ करें।

चंद्रमा के लिए👉 यदि कुंडली में चंद्रमा, प्रतिकूल चल रहा हो तो सोमवार का उपवास शुरू कर दें। अपनी माँ की सेवा करें। सोमवार को शाम किसी युवती को शंख, सफ़ेद वस्त्र, दूध, चावल व चांदी का निरंतर दान करते रहें। गाय को सोमवार को सना हुआ आता खिलाएं। चंद्रमा यदि दोषप्रद हो तो व्यक्ति दूध का प्रयोग नहीं करें।

मंगल के लिए👉 मंगल की प्रतिकूलता से बचाव के लिए मंगलवार का व्रत रखें। अपने छोटे भाई-बहन का विशेष ख्याल रखें। मंगल की वस्तुओं – लाल कपडा, गुड, मसूर की दाल, स्वर्ण, ताम्बा, तंदूर पर बनी मीठी रोटी का यथा-शक्ति दान करते रहें। आवेश पर हमेशा नियंत्रण रखने का प्रयास करें। हिंसात्मक कार्य से दूर रहें।

बुध के लिए👉 बुध दोष निवारणार्थ बुधवार का उपवास करें। इस दिन उबले हुए मूंग गरीब व्यक्ति को खिलाएं। गणेशजी की अभ्यर्थना दूर्वा से करें। हरे वस्त्र, मूंग की दाल का दान बुधवार मध्याह्न करें। बुध के दोष दूर करने के लिए अपने वजन के बराबर हरी घांस गायों को खिलाएं। बहिन व बेटियों का हमेशा सम्मान करें।

गुरु के लिए👉 देवगुरु बृहस्पति यदि दशावाश या गोचरवश प्रतिकूल परिणाम दे रहे हों तो गुरूवार का उपवास करें। इसके अलावा केले की पूजा, पीपल में नित्य जल चढ़ाना, गुरुजनों व विद्वान व्यक्तियों का सम्मान करने से भी गुरु की प्रतिकूलता दूर होती है।

शुक्र के लिए👉 शुक्र की प्रतिकूलता दूर करने के लिए शुक्रवार का व्रत किसी शुक्लपक्ष से प्रारम्भ करें। फैशन सम्बन्धी वस्तुओं इत्र, फुलेल, डियोडरेंट इत्यादि का प्रयोग ना करें। रेशमी वस्त्र, इत्र, चीनी, कर्पूर, चन्दन, सुगन्धित तेल इत्यादि का दान किसी ब्राह्मन युवती को दें।

शनि/राहू- केतु के लिए👉 शनि राहू – केतु मुख्यतया जप-तप की बजाय दान दक्षिणा से ज्यादा प्रसन्न होते हैं। इनके द्वारा प्रदत्त दोष निवारणार्थ शनिवार का व्रत रखें। सुबह पीपल को जल से सींचे व सांयकाल गृत का दीपक जलाएं। काले वस्त्र व काली उड़द, लौह, तिल, सरसों का तेल, गाय आदि का दान करें।


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: ज्योतिष चर्चा
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मेष लग्न में सूर्यादि नवग्रहों का भावानुसार फल
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मेष लग्न में चिन्ता-कष्ट-गुप्तयुक्ति के अधिपति राहु का द्वादश भावो में फल
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प्रथम भाव👉 मेष लग्न में प्रथम केंद्र देह के स्थान में शत्रु मंगल की राशि पर राहु के बैठने से जातक साहसी, उदार हृदय, आकस्मिक धन का खर्च करने वाला, तीक्ष्ण बुद्धि वाला परंतु स्वास्थ्य में कमी एवं गुप्त चिंताएं, मस्तिष्क रोग, व्यवसाय में अत्यंत संघर्ष के पश्चात सफलता पाने वाला बनता है। जातक गुप्त युक्तियों से धन अर्जन करने वाला तथा वैवाहिक जीवन में कलह देखने वाला एवं कम संतान पाने वाला होता है। राहु यहां गर्म ग्रह मंगल की राशि पर बैठा है इसलिए जातक अपने आत्मसम्मान तथा देह के सुख को पाने के लिए अपने युक्ति बल को बड़े हथधर्मिता के रूप में इस्तेमाल करेगा। जातक झूठ तथा छुपाओं की शक्ति से भी फायदा उठाएगा। जातक बड़ी-बड़ी कठिन परिस्थितियों से गुजरता हुआ गुप्त योजनाओं के बल पर आगे बढ़ता जाएगा।

द्वितीय भाव👉 मेष लग्न में दूसरे धन एवं कुटुंब स्थान में मित्र शुक्र की राशि पर राहु के बैठने से ऐसे जातक अनेक संसाधनों द्वारा आय प्राप्त करने वाले एवं समाज में प्रतिष्ठित माने जाते हैं। लेकिन जातक आवेश पूर्ण वाली बातें करके आसपास का वातावरण भी गर्म बनाते रहते हैं। ऐसे जातक विदेश में परिवार से दूर स्थान पर धनार्जन करने वाले होते हैं। जातक अल्प संतति वाहन तथा अनेक स्तोत्र द्वारा धन अर्जन करने वाले होते हैं। ऐसे जातक धन की वृद्धि करने के लिए गहरी गुप्त युक्तियों का सहारा लेते हैं जीवन काल में अनेकों बार धनजन की हानियां भी हो सकती हैं। जातक गुप्त युक्तियों के बल से कार्यक्षेत्र पर होने वाले नुकसान की पूर्ति भी करता रहता है। जातक प्रकट रूप में धनवान इज्जत दार माने जाते हैं लेकिन फिर भी इन्हें आर्थिक विषयों में संतोष नहीं हो पाता।

तृतीय भाव👉 मेष लग्न में तीसरे भाई एवं पराक्रम स्थान में राहु अपनी उच्च मिथुन राशि में बैठा हो तो तीसरे स्थान पर क्रूर ग्रह शक्तिशाली फल का दाता माना जाता है उसमें भी राहु यहां अपनी उच्च राशि में बैठकर और अधिक शक्तिशाली फल का दाता बन गया है इसके प्रभाव से जातक अत्यंत पराक्रमी साहसी आत्मविश्वासी होता है। जातक को विदेश गमन के योग उपलब्ध होते रहते हैं। ऐसे जातक उद्यमशील एवं गुणवान होते हैं। विषमा परिस्थितियों में भी जातक अपने पुरुषार्थ द्वारा यथा योग्य साधन जुटा लेते हैं। लेकिन इन्हें भाई-बहन की ओर से सहयोग कम ही प्राप्त होता है ये खुद भी भाई बहनों की परवाह कम ही करते हैं। राहु विवेकी ग्रह बुध की राशि पर बैठा है इसलिए जातक गुप्त विवेक के योग से सफलता प्राप्त करेगा किंतु फिर भी राहु के स्वाभाविक गुणों के कारण कभी-कभी आंतरिक हिम्मत व कमजोरी भी अनुभव होगी लेकिन जातक इसे प्रकट नहीं होने देगा।

चतुर्थ भाव👉 मेष लग्न में चतुर्थ केंद्र माता एवं भूमि के स्थान में शत्रु चंद्रमा की राशि पर राहु के बैठने से ऐसे जातक को आजीवन माता भूमि एवं मकान आदि के सुख में कुछ ना कुछ कमी बनी रहती है। जातकों के कार्य एवं व्यवसाय में भी अनिश्चितता एवं परिवर्तन की संभावना तथा गृहस्थ जीवन भी अशांति युक्त रहता है। विविध कारणों से जातक को घर परिवर्तन करना पड़ता है एवं घरेलू वातावरण में सुख शांति स्थाई नहीं रह पाती। राहु यहां मन की गति के स्वामी चंद्रमा की राशि पर बैठा है इसलिए घरेलू एवं मानसिक अशांति होने पर भी जातक गुप्त मनोयोग की शक्ति से सुख शांति की सफलता प्राप्त करने के लिये सदैव प्रयत्नशील रहेगा।

पञ्चम भाव👉 मेष लग्न में पांचवे त्रिकोण विद्या एवं संतान स्थान में अपने परम शत्रु सूर्य की राशि पर राहु के बैठने से जातक को उच्च शिक्षा के क्षेत्र में अत्यंत कठिनाइयों एवं बाधाओं के बाद सफलता मिल पाती है। कभी-कभी जातक को विविध कारणों से पढ़ाई बीच में भी छोड़नी पड़ जाती है। जातक को संतान संबंधी अरिष्ट की संभावना भी बनी रहती है। ऐसे जातक को व्यवसाय एवं धनार्जन में विशेष संघर्ष का सामना करना पड़ता है। जातक शेयर लाटरी आदि में रुचि रखते हैं। ऐसे जातक अपनी विद्या की अंदरूनी कमजोरी को वाणी की प्रकट चतुराई द्वारा बुद्धिमानी से बदलकर सफाई के रूप में दिखाते हैं। मन चिंता और परेशानियों से ग्रस्त रहने के बाद भी जातक गुप्त बुद्धि योग के बल से अपने कार्य सिद्ध करते रहते हैं।

छठा भाव👉 मेष लग्न में छठे शत्रु स्थान में मित्र बुध की कन्या राशि पर राहु के प्रभाव से जातक साहसी शत्रुओं का नाश करने वाला लेकिन मात्र पक्ष के लिये हानीकर होता है। ऐसे जातक अत्यंत कठिन परिस्थितियों में भी अपने धैर्य एवं हिम्मत को बनाए रखने में सफल होते हैं। जातक साहित्य में रुचि लेते हैं एवं विभिन्न गुप्त युक्तियों के द्वारा निर्वाह योग्य धन जुटा लेते हैं जातकों को मामा और चाचा के सुख में कमी रहती है छठे स्थान पर क्रूर ग्रह शक्तिशाली फल का दाता माना जाता है इसलिए जातक अनेक प्रकार के झगड़े झंझट ओं एवं मुसीबतों में अपने गुप्त विवेक के योग से प्रभाव जमाएगा।

सातवां भाव👉 मेष लग्न में सातवें केंद्र स्त्री एवं रोजगार के स्थान में मित्र शुक्र की तुला राशि पर राहु के होने से जातक को स्त्री के संबंध में कुछ ना कुछ कष्ट अवश्य होता है। ऐसे जातक व्यवसाय में भी अत्यंत संघर्षपूर्ण परिस्थितियों का सामना करते हैं। इनका वैवाहिक जीवन भी सुखमय नहीं रहता येन केन प्रकारेण निर्वाह करना ही पड़ता है। ऐसे जातकों को साझेदारी के व्यवसाय से बचना चाहिए सफलता की संभावना बहुत ही कम रहती है जातकों को मधुमेह आदि गुप्त रोग का भय भी रहता है।

आठवां भाव👉 मेष लग्न में आठवें आयु मृत्यु एवं पुरातत्व स्थान में मंगल की वृश्चिक राशि पर राहु के बैठने से जातक कुसंगति के कारण कई बार अनैतिक कार्यों में पड़ जाता है। ऐसे जातक पेट विकार या प्रमेह आदि गुप्त रोग के कारण दुखी रहते हैं। जातकों को जीवन में कई बार मृत्यु तुल्य (अपमृत्यु) कष्ट का भी सामना करना पड़ता है राहु यहां गर्म ग्रह मंगल की राशि पर बैठा है इसलिए जातक अपने दैनिक जीवन में कठोर परिश्रम करेगा फिर भी कुछ ना कुछ कमी अनुभव होगी। जातक के आसपास का वातावरण भी अधिकांशत है अशांत ही रहता है।

नवां भाव👉 मेष लग्न में नवम त्रिकोण भाग्य एवं धर्म स्थान में राहु नीच का होकर गुरु की राशि पर बैठा हो तो ऐसा जातक भाग्य उन्नति के मार्ग में बड़ी बड़ी कठिनाइयों का सामना करता है। जातक का आरंभिक जीवन अत्यंत संघर्ष पूर्ण होता है। 42 वर्ष की आयु के बाद कुछ सफलता प्राप्त होती है। ऐसे जातकों को अपने जन्म स्थान से दूर अथवा विदेश में भाग्यउन्नति एवं लाभ की संभावना अधिक रहती है। अपने देश में इन्हें अत्यधिक परिश्रम के बाद भी कठिनता से निर्वाह योग्य आय के साधन प्राप्त हो पाते हैं। ऐसे जातकों को पारंपरिक धार्मिक कृतयों में विशेष अभिरुचि नहीं रहती है।

दसवा भाव👉 मेष लग्न में दशम केंद्र पिता एवं राज स्थान में शनि की मकर राशि पर राहु के प्रभाव से जातक मिलनसार स्वभाव स्नेहशील, परोपकारी उच्चाकांक्षी स्वभाव वाला परंतु कुछ आलस्य युक्त एवं अनियमित कार्य करने वाला होता है। जातक अपने माता पिता के लिए कष्टकारी माना जाता है। ऐसे जातकों के कार्य व्यवसाय में भी अनिश्चितताएं एवं संघर्ष रहने के संकेत मिलते हैं। जातकों की 36 वर्ष के बाद भाग्य उन्नति होती है।

ग्यारहवां भाव👉 मेष लग्न में 11 वे लाभ स्थान में शनि की कुंभ राशि पर राहु के बैठने से जातक विभिन्न स्त्रोतों साधनों द्वारा धन लाभ प्राप्त करने वाला होता है लेकिन पिता एवं संतान पक्ष की चिंता लगी रहती है ऐसे जातकों को सट्टा लाटरी शेयर या वाहन आदि से संबंधित कार्यों में विशेष लाभ की संभावना होती है ऐसे जातकों का प्रायर 27 वर्ष में विवाह का योग तथा 42 वर्ष में आकस्मिक धन प्राप्ति के योग बनते हैं।

बारहवां भाव👉 मेष लग्न में बारहवें खर्च एवं बाहरी स्थान में गुरु की मीन राशि पर राहु के प्रभाव से जातक को स्त्री एवं संतान संबंधित कष्ट मिलते हैं जातक नेत्र रोग के कारण परेशान रहता है इनके दांपत्य जीवन में कुछ ना कुछ कमी बनी रहती है जातक यदि जन्म स्थान से दूर जाकर रहे तो जन्म स्थान की तुलना में अधिक उन्नति के योग प्राप्त कर लेता है ऐसे जातकों के आय के साथ-साथ खर्च भी बहुत अधिक होते हैं।

क्रमशः अगले लेख में हम मेष लग्न में द्वादश भावों में स्थिति केतु द्वारा मिलने वाले फलों के विषय में चर्चा करेंगे।

( द्वादश भाव में सूर्य आदि ग्रहों के फल का अंतिम निर्णय करते समय जातक की ग्रह दशा तथा अन्य ग्रह योगों को भी ध्यान में रख ले तो फल अधिक सूक्ष्म)
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: कुंडली के ये 7 योग बताते हैं आपके पास धन है या नहीं

✍🏻ज्योतिष शास्त्र में जन्म कुंडली में मौजूद कुछ ऐसे योगों के बारे में बताया गया है, जिससे यह पता लगाया जा सकता है कि व्यक्ति के पास धन है या नहीं। कुंडली में मौजूद 12 भावों में हर भाव पर अलग ग्रह और अलग योग बनते हैं। इन्ही ग्रहों और योग के आधार पर पता लगता है कि व्यक्ति के जीवन में सुख-दुख कितना है और धन के मामले में उसका जीवन कैसा होगा। आइए जानते हैं कुंडली में मौजूद इन सात योगों के बारे में जो इंसान के जीवन में सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं…
१:-नहीं रहती कभी धन की कमी:- ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, जिस व्यक्ति की कुंडली के द्वितीय भाव पर शुभ ग्रह स्थित हो या उनकी शुभ दृष्टि तो यह भाव शुभ होता है। ऐसे व्यक्ति के जीवन में कभी धन की कमी नहीं रहती है।
२:-गरीबी का करना पड़ता है सामना:- जिस व्यक्ति की कुंडली के द्वितीय भाव में बुध ग्रह मौजूद हो और उस पर चंद्रमा की दृष्टि हो तो यह जातक के लिए अशुभ होता है। ऐसा व्यक्ति हमेशा गरीबी में रहता है। ऐसे लोग मेहनत तो बहुत करते हैं लेकिन कभी धन नहीं इकट्ठा कर पाते.!
३:-मिलती हैं सभी प्रकार की सुविधाएं:- जिस व्यक्ति की कुंडली के द्वितीय भाव में चंद्रमा स्थित हो यह स्थिति काफी शुभ मानी जाती है। ऐसे व्यक्ति काफी धनवान होता है और सभी प्रकार के भौतिक सुख-सुविधाओं का भोग करता है। ऐसे लोगों को कम मेहनत में ही सभी प्रकार की सुविधाएं मिलती हैं।
४:-हमेशा रहती है तंगी:- जिस व्यक्ति की कुंडली के द्वितीय भाव में किसी पाप ग्रह की दृष्टि हो तो ऐसी स्थिति जातक के लिए अशुभ होती है। ऐसे व्यक्ति मेहनत तो काफी करते हैं लेकिन उसका फल बहुत कम मिलता है। पैसा खर्च करने की आदत के कारण इनके पास हमेशा तंगी रहती है।
५:-परिवार का धन भी हो जाता है नष्ट:- जिस व्यक्ति की कुंडली के द्वितीय भाव में चंद्रमा मौजूद हो और उस पर नीच के बुध ग्रह की दृष्टि पड़ जाए तो यह स्थिति चिंताजनक होती है। ऐसा व्यक्ति कभी अमीर नहीं बन पाता, साथ ही उसके परिवार का धन भी नष्ट हो जाता है।
६:-आजीवन रहती है गरीबी:- यदि व्यक्ति की जन्म कुंडली में चंद्रमा अकेला हो और द्वितीय और द्वादश स्थान पर कोई ग्रह ना हो तो व्यक्ति के पास कभी पैसा नहीं रहता है। ऐसा व्यक्ति मेहनत तो काफी करता है लेकिन वह आजीवन गरीब ही रहता है।
७:-कभी नहीं टिकता इनके पास पैसा:- ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, व्यक्ति की जन्म कुंडली में सूर्य और बुध द्वितीय भाव में स्थित हों तो ऐसी स्थिति जातक के लिए काफी अशुभ होती है। ऐसे व्यक्ति के पास कभी पैसा नहीं टिकता और हर क्षेत्र में उसको हानि का सामना करना पड़ता है……!!

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