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: दैनिक जीवन की समस्या में छाया दान का उपाय
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अक्सर ऐसा होता है कि व्यक्ति का बिता हुआ काल अर्थात भुत काल अगर दर्दनाक रहा हो या निम्नतर रहा हो तो वह व्यक्ति के आने वाले भविष्य को भी ख़राब करता है और भविष्य बिगाड़ देता है। यदि आपका बीता हुआ कल आपका आज भी बिगाड़ रहा हो और बीता हुआ कल यदि ठीक न हो तो निश्चित तोर पर यह आपके आनेवाले कल को भी बिगाड़ देगा। इससे बचने के लिए छाया दान करना चाहिये। जीवन में जब तरह तरह कि समस्या आपका भुतकाल बन गया हो तो छाया दान से मुक्ति मिलता है और आराम मिलता है।

नीचे हम सामाजिक एवं पारिवारिक जीवन की विभिन्न समस्या अनुसार छाया दान के विषय मे बता रहे है।

1 . बीते हुए समय में पति पत्नी में भयंकर अनबन चल रही हो
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अगर बीते समय में पति पत्नी के सम्बन्ध मधुर न रहा हो और उसके चलते आज वर्त्तमान समय में भी वो परछाई कि तरह आप का पीछा कर रहा हो तो ऐसे समय में आप छाया दान करे और छाया दान आप बृहस्पत्ति वार के दिन कांसे कि कटोरी में घी भर कर पति पत्नी अपना मुख देख कर कटोरी समेत मंदिर में दान दे आये इससे आप कि खटास भरे भुत काल से मुक्ति मिलेगा। और भविष्य मृदु और सुखमय रहेगा। यह प्रक्रिया कम से कम 3 बार (हफ्ते) दोहराए।

2 . बीते हुए समय में भयावह दुर्घटना या एक्सीडेंट हुआ हो
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अगर बीते समय में कोई भयंकर दुर्घटना हुई हो और उस खौफ से आप समय बीतने के बाद भी नहीं उबार पाये है। मन में हमेशा एक डर बना रहता है। आप कही भी जाते है तो आप के मन में उस दुर्घटना का भय बना रहता है तो आप छाया दान करे। आप एक मिटी के बर्तन में सरसो का तेल भर कर शनिवार के दिन अपनी छाया देख कर दान करे। इससे आप को लाभ होगा बीती हुई दर्दनाक स्मृति से छुटकारा मिलेगा। और भविष्य सुरक्षित रहेगा। यह प्रक्रिया कम से कम 2 बार (हफ्ते) दोहराए।

3 . बीते समय में व्यापर में हुए घाटे से आज भी डर लगता हो
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कई बार ऐसा होता है कि बीते समय में व्यापारिक घाटा या बहुत बड़े नुकसान से आप बहुत मुश्किल से उबरे हो और आज स्थिति ठीक होने के बावजूद भी आप को यह डर सता रहा है कि दुबारा वैसा ही न हो जाये ,तो इससे बचने के लिए आप बुधवार के दिन एक पीतल कि कटोरी में घी भर कर उसमे अपनी छाया देख कर छाया पात्र समेत आप किसी ब्राह्मण को दान दे। इससे दुबारा कभी भी आप को व्यापार में घाटा नहीं होगा। और भविष्य में व्यापर भी फलता फूलता रहेगा। यह प्रक्रिया कम से कम 3 बार (हफ्ते) दोहराए।

4 . भुत काल कि कोई बड़ी बीमारी आज भी परछाई बन कर डरा रही हो
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बीते समय में कई बार कोई लम्बी बीमारी के कारण व्यक्ति मानसिक तौर पर कमजोर हो जाता है। और व्यक्ति ठीक होने के बावजूद भी मानसिक तौर पर अपने भूत काल में ही घिरा रहता है और उससे उबर नहीं पाता। ऐसी स्थिति में व्यक्ति को शनिवार के दिन एक लोहे के पात्र में तिल का तेल भर कर अपनी मुख छाया देखकर उसका दान करे। इससे आप को इस स्मृति से मुक्ति मिलेगा और भविष्य में बीमार नहीं होंगे और स्वस्थ्य रहेंगे। यह प्रक्रिया कम से कम 5 बार (हफ्ते) दोहराए।

5 लम्बे समय के बाद नौकरी मिली है लेकिन भुतकाल का डर कि फिर बेरोजगार न हो जाये
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बहुत लम्बे समय की बेरोजगारी के बाद नौकरी मिलती है लेकिन मन में सदैव एक भय सताता है कि दोबारा नौकरी न चली जाये और ये सोच एक प्रेत कि तरह आपका पीछा करती है तो ऐसे स्थिति में आप सोमवार के दिन ताम्बे की एक कटोरी में शहद भर कर अपनी छाया देख कर दान करें ,इससे आप को लाभ मिलेगा। इस छाया दान से उन्नति बनी रहती है रोजगार बना रहता है। यह प्रक्रिया कम से कम 7 बार (हफ्ते) दोहराए।

6 .कुछ ऐसा काम कर चुके है जो गोपनीय है लेकिन उसके पश्चाताप से उबार नहीं पाये है
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कई बार जीवन में ऐसी गलती आदमी कर देता है कि जो किसी को बता नहीं पता लेकिन मन ही मन हर पल घुटता रहता है और भविष्य में भी इस गलती से उबर नहीं पाता है तो ऐसी स्थिति में व्यक्ति को पीतल कि कटोरी में बादाम का तेल भरकर उसमे अपना मुख देख कर शुक्रवार के दिन छाया दान करना चाहिएय। इससे पश्चाताप कि अग्नि से मुक्ति मिलती है ,और कि हुई गलती के दोष से मुक्ति मिलती है। यह प्रक्रिया कम से कम 11 बार (हफ्ते) दोहराए।

7 . पहली शादी टूट गयी दूसरी शादी करने जा रहे है लेकिन मन में इसके भी टूटने का डर है
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संयोग वश या किसी दुर्घटनावश व्यक्ति कि पहली शादी टूट गयी है और दूसरी शादी करने जा रहे है और मन में भय है कि जैसे पहले हुआ था वैसे दुबारा न हो जाये तो इसके लिए व्यक्ति को स्त्री हो या पुरुष उसको रविवार के दिन ताम्बे के पात्र में घी भरकर उसमे अपना मुख देख कर छाया दान करे। इससे भुत काल में हुई घटना या दुर्घटना का भय नहीं रहेगा। और भविष्य सुखमय रहेगा। यह प्रक्रिया कम से कम 5 बार (हफ्ते) दोहराए।


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वैदिक ज्योतिष में “बाधक व श्रापित ग्रह” विचार —

    पाराशरी दशान्तर्दशादी को लेकर  फल आकलन में कभी कभी ज्यादातर फरक दिखाई देता है। क्योंकि कुछ विद्वान, बाधक ग्रह विचार को अनदेखा कर देते हैं। परंतु, दशादि विचार में बाधक ग्रहों को नजर में रखकर फल आकलन शास्त्रीय है।।

   (1) शास्त्रों के अनुसार “चर” लग्न के लिये एकादशेश, “स्थिर” लग्न के लिये नवमेश और “द्विस्वभाव” लग्न के लिये सप्तमेश को “बाधक ग्रह” माना गया है।।

    बाधक ग्रहों ने शँश्लिष्ट भाव के लिए तो बाधाकारी, अधिकन्तु  जंहा बैठे हुए हैं, साथ में जो ग्रह है और बाधक भाव में जो ग्रह बैठे है--ओ सब भी बाधक प्रभावी हो जाते हैं।।

    (2) ये मुद्दे के बाद, प्रत्येक लग्न के लिये “अष्टम भाव” अशुभ स्थान है और “अष्टमेश” भी अष्टम के अतिरिक्त जिस भाव/भावेश से “दृष्टि-युति” सम्बन्ध करता है, अपनी “दशा- अंतर्दशा” में उन भावों से प्राप्त होने वाले शुभ फलों में “बाधा” पहुँचाता है।।

अतः कुंडली में सूर्यादि ग्रहों के अवस्थिति को विचार के बाद, उनके “अधिपति” देवता- पूजन व शास्त्रीय उपाय विधान अवश्य कल्याणप्रद होगा।।

    (3) अष्टविध प्रारब्ध श्राप---
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  इसके अतिरिक्त पूर्व जन्म श्राप भी 

कुंडली में है और इसलिए जातक को इह जन्म में दुर्भाग्य को झेलकर कष्ट में जीवन बिताना पड़ता है। कुंडली विचार माध्यम ये सूचना समझ कर उपाय भी करना जरूरी है।।

१. सूर्य - पित्रबाधा (पिता/पितरों को दिये गए कष्ट के कारण श्राप)।।

२. चंद्र – भगवती श्राप (माता/महिला को दिये कष्ट के कारण श्राप)।।

३. मंगल – अनुज श्राप (छोटे भाई को दिये कष्ट के कारण श्राप)।।

४. बुध- तरुण श्राप (मित्र, मामा, पड़ौसी को दिये कष्ट के कारण श्राप)।।

 ५. गुरु - पुरोहित श्राप (ब्राह्मण, बड़े भाई को दिये कष्ट के कारण तथा फलदार वृक्ष काटने के कारण श्राप)।।

 ६. शुक्र - यक्षिणी श्राप ( पत्नी को दिये कष्ट अथवा फूलदार पौधे को दिये कष्ट के कारण श्राप)।।

 ७. शनि - प्रेत श्राप (वृद्ध महिला/पुरुष को दिए कष्ट के कारण अथवा पीपल के वृक्ष को काटने के कारण श्राप)।।

८. राहु-केतु – सर्प श्राप ( साँप मारने अथवा कुत्ता/बिल्ली आदि जानवर को दिए कष्ट के कारण श्राप)। फिर कुछ शोधकारों ने ये श्राप की दुष्परिणाम को परीक्षा- निरिक्सा करने के बाद, उनके द्वारा द्वादश किसम कालसर्प- दोष के नाम में ये श्राप आजकल बहुधा प्रसिद्ध है।।

प्रारब्ध श्राप “शांति” उपाय—

      जो भी ग्रह सम्बंधित श्राप बन रहा है, कुंडली विचार से प्रतिकार के लिए दिग्दर्शन मिल जाता है। बैदिक पद्धत्ति में उस ग्रह का प्रतिनिधित्व करने वाले “ईश्वर” रूप की “आराधना” अवश्य करें ।।

    इसके अतिरिक्त जप-तप, हवन-कीर्तन,सेतु स्नान, मूर्ति स्थापना, मूर्ति विसर्जन, शिव आराधना, विष्णु व्रत, ब्राह्मण भोज, दान-पुण्य, कवच विधान इत्यादि कार्य भी सात्विक भाव से पूर्ण करे।।
   

                       

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