मकोय (बचपन में मिलने वाला मुफ्त का वो फल जिसे खाने पर कोई भी यह नहीं कहते थे क्यों खा रहे हो व कोई भी इस फल पर अन्य फलो जैसे आम अमरूद बेर इत्यादि की तरहः इस पर अपना अधिकार नहीं जमाते थे इसलिए बचपन में इसे भरपूर खाने को मिलता था मैं जब भी अपने भाई बहन दोस्तो के साथ खाने लगता था को सब मिलजुल कर ही नहीं बड़े बुजुर्ग भी जरूर माँग लेते थे और सब थोड़ा थोड़ा जरूर खाते थे जब तक उपलब्ध होता था तो नियमित्त :- आपका सपूत अनुज अग्रज गोविन्द शरण प्रसाद)
मकोय एक छोटा-सा पौधा है जो भारतवर्ष के छाया-युक्त स्थानों में हमेशा पाया जाता है। मकोय में पूरे वर्ष फूल और फल होते हैं।
विभिन्न भाषाओ में नाम :
हिन्दी मकोय संस्कृत-काकमाची, रसायनवरा, काकिनी, सर्वतिक्ता मराठी कुदा गुजराती पीलुडी बंगाली काकमाची, गुड़कामाईअंग्रेजी ब्लाक नाईट ऑर नाईट पेड़, नाईट सीड पंजाबी केचूमेच, मको तेलगू काचि कन्नड़ गारीकेसोप्पू अरबी इनबुस्सा-लब फारसीअंगूर, रोबाह वैज्ञानिक नाम सोलनंम निर्गरूम कुलनाम सोलनंस*
रंग : कच्चे मकोय का रंग हरा होता है तथा ये पक जाने पर लाल, पीले और काले होते हैं।
स्वाद : कच्चे मकोय का स्वाद कड़वा और तीखा होता है। पका मकोय खट्टा-मीठा होता है।
स्वरूप : मकोय की शाखाएं एक-डेढ़ फुट तक ऊंची तथा शाखाओं पर उभरी हुई रेखाएं होती हैं। इसके पत्ते हरे, अण्डाकर या आयताकार, दन्तुर या खण्डित, 2-3 इंच लम्बे, एक-डेढ़ इंच तक चौडे़ होते हैं। फूल छोटे, सफेद वर्ण (रंग) के, फूल दंडों पर 3 से 8 के गुच्छों में नीचे झुके होते हैं। मकोय के फल छोटे, चिकने, गोलाकार अपरिक्व अवस्था में हरे रंग के और पकने पर नीले या बैंगनी रंग के, कभी-कभी पीले या लाल होते हैं। बीज छोटे, चिकने, पीले रंग के, बैंगन के बीजों की तरह होते हैं परन्तु बैंगन के बीजों से बहुत छोटे होते हैं। पकने पर फल मीठे लगते हैं।
स्वभाव : यह चिकना और गर्म होता है। इसकी पत्तियों में प्रोटीन 5.9 प्रतिशत, वसा खनिज 2.1 प्रतिशत, कार्बोहाइड्रेट 8.9 प्रतिशत पाया जाता है तथा प्रति 100 ग्राम मकोय में कैल्शियम लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग, फास्फोरस लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग, लोहा 20.5 मिलीग्राम होता है। इसके अतिरिक्त रिबोफ्लेबिन 0.59 मिलीग्राम, निकोटिनिक अम्ल 0.92 मिलीग्राम, विटामिन सी 0.11 मिलीग्राम तथा बी कैरोटिन 0.74 मिलीग्राम प्रति 100 ग्राम में होते हैं। कच्चे हरे फलों में चार स्टिरायड, एल्केलायड, सोलामर्जिन, सोलेसोनिन तथा ए. आर. बी. सोले नाइग्रीन होते हैं। इसके पके फलों में ग्लुकोज और फ्रक्टोज (15-20 प्रतिशत) तथा विटामिन `सी´ होते हैं तथा बीजों से एक हरे पीले रंग का तेल निकलता है।
दोषों को दूर करना : शहद, मकोय के गुणों को सुरक्षित रखकर दोषों को दूर करता है।
हानिकारक : बस्ति रोगों में मकोय का सेवन करना स्वास्थ्य के हानिकारक होता है। मकोय का अधिक सेवन मसाना (मूत्राशय) के लिए हानिकारक होता हैं।
तुलना : मकोय की तुलना काकनज से की जा सकती है।
गुण : मकोय वात, पित्त और कफनाशक होता है। यह सूजन, दर्द तथा व्रण शोथन (जख्म की सूजन) को दूर करता है तथा यकृत (लीवर) को उत्तेजना देने वाला, पित्तकारक और पाचक है। यह कफ, हिचकी और श्वास के रोगों को दूर करता है। इसके अलावा यह मूत्रल (मूत्र को बढ़ाने वाला), स्वेदजन (पसीना लाना वाला), कुष्ठ रोग, बुखार और विष को दूर करता है। मकोय कड़वा और पौष्टिक होता है। यकृत की क्रिया बिगड़ने से जो सूजन, बवासीर, अतिसार या कई प्रकार के त्वचा के रोग होते हैं, वे इसके सेवन से नष्ट हो जाते हैं। मकोय जुकाम (प्रतिश्याय), अरुचि, श्वास और खांसी (कास) को ठीक करने वाला तथा रक्तशोधक होता है।
विभिन्न रोगों में सहायक :
नींद का कम आना (अनिद्रा):
मकोय की जड़ों का 10 से 20 मिलीलीटर काढ़ा बनाकर उसमें थोड़ी मात्रा में गुड़ मिलाकर रोगी को पिलाने से नींद आने लगती है।
कच्चे सूत से मकोय की जड़ को माथे पर बांधें अथवा बिजौरा नींबू सिरहाने रखें तो नींद जल्दी आ जाती है।
आंखों के रोग:
पिल्ल रोग वालों की आंखों को ढककर, आंखों को इसके घी चुपड़े फलों की धूनी देने से कीड़े बाहर निकल आते हैं।
कान में दर्द होना:
नाक और कान के रोगों में मकोय के पत्तों का गर्म रस 2-2 बूंद कान में टपकाने से लाभ होता है।
मुंह के छाले:
मकोय के 5 से 6 पत्तों को चबाने से मुंह और जीभ के छालों में आराम मिलता है।
दांतों के लिए:
मकोय के पत्तों के रस में घी या तेल को बराबर मात्रा में मिलाकर दांतों की जगह पर लगाने से दांत बिना दर्द के निकल आते हैं।
हृदय रोग तथा जलोदर:
मकोय के पत्ते, फल और डालियों का रस निकालकर 2 से 6 मिलीलीटर तक की मात्रा में दिन में 2-3 बार रोगी को दें। इससे जलोदर (पेट में पानी भरना) और सभी प्रकार के हृदय रोग (दिल के रोग) मिट जाते हैं।
वमन (उल्टी):
मकोय के 10 से 15 मिलीलीटर रस में 125-250 मिलीग्राम सुहागा मिलाकर रोगी को पिलाने से वमन (उल्टी) बंद हो जाती है।
सब्जी:
मकोय के पत्ते और कोमल शाखाओं की सब्जी बनायी जाती है। इसके पके फल खाने के काम आते हैं।
भोजन का न पचना (मंदाग्नि):
50-60 मिलीलीटर मकोय के काढ़े के सेवन से मंदाग्नि (भोजन का न पचना) मिटती है। इस काढ़े से आंखों को धोने से आंखों की रोशनी बढ़ती है।
यकृत (लीवर) की वृद्धि:
मकोय के पौधों का डेढ़ ग्राम रस नियमित रूप से रोगी को पिलाने से बहुत दिनों से बढ़ा हुआ जिगर कम हो जाता है। एक मिट्टी के बर्तन में मकोय का रस निकालकर इतना गर्म करें कि रस का रंग हरे से लाल या गुलाबी हो जाए। इसे रात को उबालकर सुबह ठंडा करके प्रयोग में लाना चाहिए।
प्लीहा (तिल्ली) वृद्धि:
50 से 60 मिलीलीटर मकोय के काढ़े में सेंधानमक तथा जीरा मिलाकर पीने से अथवा पके आम के रस को शहद में मिलाकर पीने से प्लीहा बढ़ने के रोग में लाभ मिलता है।
कामला (पीलिया):
मकोय के पत्तों के 50-60 मिलीलीटर काढ़े में शोरा और नौसादर की 4-6 बूंद डालकर सुबह-शाम रोगी को पिलाने से बड़ा हुआ यकृत (जिगर) ठीक हो जाता है। मकोय के 40 से 60 मिलीलीटर काढ़े में हल्दी का 2 से 5 ग्राम चूर्ण डालकर रोगी को पिलाने से पीलिया रोग में लाभ मिलता है।
मकोय के काढ़े में हल्दी का चूर्ण डालकर पीने से कामला (पीलिया) रोग में लाभ होता है।
मकोय का 4 चम्मच रस गुनगुना करके 1 सप्ताह तक पीने से पीलिया रोग में आराम आता है।
शोथ (सूजन):
शरीर के किसी भी अंग की सूजन के ऊपर मकोय के फलों का गर्म लेप करने से सूजन दूर हो जाती है।
मकोय, शतावरी, बथुआ शाक, सौवर्चल, इनको घी तथा मांसरस में भूनकर जिस रोगी को अनुकूल पड़ता हो, उसे सेवन करने के लिए देना चाहिए। भोजन कर लेने के बाद गाय, भैंस तथा बकरी का दूध पीने के लिए देना चाहिए। इससे शरीर के सभी अंगों की सूजन समाप्त हो जाती है।
वृक्क (गुर्दे) के विकार:
मकोय के रस को 10-15 मिलीलीटर रोजाना रोगी को पिलाने से विरेचन (दस्त) होता है और मूत्र में वृद्धि होती है। गुर्दे और मूत्राशय की शोथ (सूजन) एवं पीड़ा भी मिटती है।
कुष्ठ (कोढ़):
काली मकोय की 20-30 ग्राम पत्तियों को पीसकर लेप लगाने से कोढ़ का रोग नष्ट हो जाता है।
लाल चट्टे:
मकोय के रस को थोड़ी मात्रा में रोगी को देने से शरीर के बहुत दिनों के हुए लाल चट्टे मिट जाते हैं।
अंडकोष की सूजन:
मकोय के पत्ते गर्म करके अंडकोषों की सूजन पर तथा हाथ-पैरों की सूजन पर लगाने से लाभ होता है।
कब्ज:
मकोय का रस पीने से शौच खुलकर आती है।
वमन (उल्टी):
मकोय के रस में सुहागा मिलाकर पीने से उल्टी होना बंद हो जाती है।
कान की नयी सूजन:
10 से 20 मिलीलीटर मकोय की डालियों और पत्तों के रस को शहद के साथ मिलाकर सुबह-शाम खाने से या इसके पत्तों की सब्जी बनाकर खाने से कान की सूजन में आराम आता है। इसके रस को कान की सूजन पर लगाने से भी जल्दी आराम आता है।
कान में कीड़ा पड़ जाना:
मकोय के पत्तों के रस को कान में डालने से कान में घुसा हुआ कीड़ा बाहर निकल आता है।
बवासीर (अर्श):
मकोय का रस पानी में मिलाकर रोजाना 3 बार पीने से खूनी बवासीर ठीक हो जाती है।
यकृत (जिगर) का रोग:
25 मिलीलीटर मकोय का रस हल्का गर्म करके यकृत (जिगर) के ऊपर लेप करें। इससे यकृत की वृद्धि (जिगर बढ़ना) रुक जाती है।
हरी मकोय का रस निकालकर 5 मिलीलीटर की मात्रा में 4-5 दिन सेवन करने से जिगर के रोग में लाभ होता है।
20 से 100 मिलीलीटर मकोय रस रोजाना तीन बार सेवन करने से जिगर की बीमारी और उदर रोग (पेट के रोगों) में लाभ होता है।
हरी मकोय का रस, गुलाब के फूल और अमलतास के गूदे को पीसकर यकृत (जिगर) पर लेप करने से यकृत वृद्धि (जिगर बढ़ना) रुक जाती है।
जलोदर (पेट में पानी भरना):
मकोय के पत्तों की सब्जी खाने से जलोदर (पेट में पानी भरना) का रोग दूर हो जाता है।
मकोय के पंचांग का चूर्ण 2 ग्राम से 8 ग्राम तक दिन में 1 से 2 बार रोगी को पानी के साथ देने से जलोदर (पेट में पानी भरना) समाप्त हो जाता है।
पेट का बढ़ना:
मकोय का रस 10 से 20 मिलीलीटर की मात्रा में सुबह-शाम सेवन करें। इससे बढ़ा हुआ पेट कम हो जाता है।
रक्तपित्त:
10 से 20 मिलीलीटर मकोय का रस सुबह-शाम पीने से मुंह से होने वाली खूनी की उल्टी दूर होती है।
एक्जिमा:
मकोय के रस में अंकोल के बीजों को पीसकर लगाने से एक्जिमा के चकते (निशान) समाप्त हो जाते हैं।
हृदय की आंतरिक और बाहय सूजन:
10 ग्राम से 20 मिलीलीटर मकोय के पत्तों का रस सुबह-सेवन करने से हृदय की आंतरिक एवं बाहरी सूजन में लाभ मिलता है।
सूखा रोग:
मकोय के पत्तों का रस रोजाना सुबह-शाम बच्चे को पिलाने से सूखा रोग (रिकेट्स) में लाभ होता है।
बच्चों के यकृत दोष:
20 मिलीलीटर मकोय का रस और 20 मिलीलीटर मूली के रस को मिलाकर रोजाना 2 बार बच्चे को पिलाने से यकृत (जिगर) के सभी प्रकार के रोग दूर हो जाते हैं।
खून के रोग :
10 से 20 मिलीलीटर मकोय का रस सुबह-शाम पीने से खून शुद्ध होता है। इसको पीने से पेट साफ होता है। जिससे शरीर का सारा जहर बाहर निकल जाता है। जिगर की क्रिया भी ठीक हो जाती है। खून साफ हो जाता है। त्वचा के सारे रोग ठीक हो जाते हैं। इसको पीने से पेशाब के साथ जहर भी बाहर आ जाता है। रोग अगर बहुत ज्यादा पुराना हो तो इसे खाने के साथ-साथ इसकी लकड़ी और पत्तों की सब्जी भी खिलाते हैं और पत्तों को पीसकर लेप करने से भी लाभ होता है।
बच्चों के रोग:
दांत के निकलते समय में बहुत दर्द होता हो तो हरी मकोय का पानी और गुलरोगन को गर्म करके उंगली से मसूढ़ों पर मलें और 1-2 बूंद तेल भी कान में डाल दें या संभालू की जड़ गले में बाधें।
मकोय के पत्तों का रस कान में डालने से `कान में घुसा हुआ कीड़ा´ मर जाता है।
गले के रोग:
मकोय, कालीजीरी, खड़िया मिट्टी को बराबर मात्रा में लेकर पीस लें और पानी में मिलाकर गले पर लेप करें इससे गले के रोग में आराम आता है।
सूखी मकोय, नीम के पत्ते और शहद को मिलाकर पानी में उबाल लें जब उबलते-उबलते पानी आधा रह जाये तब उस पानी को ठंडा करके उस पानी से कुल्ला करें। इससे गले का दर्द ठीक हो जाता है।
बचपन में जाने अनजाने में उपयोग सेवन किये गए इस फल का ही परिणाम रहा होगा की उपर्युक्त रोग हममें व बड़े बुजुर्ग में पहले आज की अपेक्षा न के बराबर होती थी