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लाजवन्ती (छुई-मुई)

          छुई-मुई के क्षुप (पौधे) छोटे होते हैं। यह भारत में गर्म प्रदेशों में पाया जाता है। इसका पौधे जमीन पर फैला हुआ या थोड़ा सा उठा होता है। इसके 30 से 60 सेमी तक के क्षुप पाये जाते हैं। इसके पत्ते चने के पत्तों के समान होते हैं। छुई-मुई के फूलों का रंग हल्का बैंगनी होता है और इस फूल के ही ऊपर गुलाबी रंग के 3 से 9 सेमी लंबी फली लगती है जिसमें 3 से 5 बीज होते हैं। बारिश के महीनों में छुई-मुई में फल लगते हैं। छुई-मुई की खासियत है कि इसको छूने से ही यह सिकुड जाती है। इसकी अनेक प्रजातिया होती हैं।

विभिन्न भाषाओं में छुई-मुई के नाम : संस्कृत   लज्जालु, नमस्कारी, शमीपत्रा।हिन्दी       लजालु, छुई मुई।अंग्रेजी       सेनसिटिव पलॉटमराठी       लाजालू।बंगाली       लाजक।पंजाबी       लालवन्त।तैलुगु    अत्तापत्ती।

विभिन्न रोगों में प्रयोग :

अजीर्ण: छुई-मुई के पत्तों का 30 मिलीलीटर रस निकालकर पिलाने से अजीर्ण नष्ट हो जाता है।

कामला (पीलिया): छुई-मुई के पत्तों का रस निकालकर पीने से कामला (पीलिया) रोग दो हफ्ते में दूर हो जाता है।

पथरी:

छुई-मुई की 10 मिलीलीटर जड़ का काढ़ा बनाकर सुबह-शाम पीने से पथरी गलकर निकल जाती है।

लाजवन्ती (छुई-मुई) के पंचांग का काढ़ा बनाकर प्रतिदिन सुबह-शाम पीयें। इसके काढ़े से पथरी घुलकर निकल जाती है तथा मूत्रनलिका पर आई सूजन मिट जाती है।

मधुमेह: छुई-मुई की जड़ का काढ़ा 100 मिलीलीटर बनाकर रोजाना सुबह-शाम देने से मधुमेह का रोग ठीक होता है।

पेशाब का अधिक आना: छुई-मुई के पत्तों को पानी में पीसकर नाभि के निचले हिस्से में लेप करने से पेशाब का अधिक आना बंद हो जाता है।

योनिभ्रंश (योनि का फटना): छुई-मुई के पत्तों का रस या जड़ पानी के साथ घिसकर बाहर निकले हुए गर्भाशय पर लगायें और हाथों पर लेपकर ऊपर चढ़ाकर पट्टी बांध दें और रोगी को आराम करने दें। इससे योनिभ्रंश ठीक होता है। कुछ दिनों तक रोजाना इसे योनि पर लगाने से योनि संकोचन भी दूर होता है।

नाड़ी का घाव:

छुई-मुई की जड़ को घिसकर घाव पर लेप करने से नासूर खत्म हो जाता है।

छुई-मुई के पत्तों को कुचलकर इसमें रूई का फोहा बनाकर पुराने घाव व नाड़ी के घाव में रखने से लाभ होता है।

घाव में दर्द:

छुई-मुई की जड़ को घिसकर लेप बनाकर घाव व सूजन पर लगाने से घाव व सूजन मिट जाती है।

इसके बीजों का चूर्ण घाव पर लगाने से फायदा होता है।

गंडमाला: छुई-मुई के पत्तों का 40 मिलीलीटर रस निकालकर पिलाने से गले की छोटी-छोटी गांठे खत्म होती हैं।

स्तनों का ढ़ीलापन: छुई-मुई और असगंधा की जड़ को पीसकर लेप बना लें और स्तनों पर लगायें। इससे स्तनों का ढीलापन दूर होता है।

बवासीर:

छुई-मुई के पत्तों का 1 चम्मच पाउडर दूध के साथ रोज सुबह-शाम या दिन में 3 बार देने से बवासीर में आराम मिलता है।

लाजवन्ती (छुई-मुई), मोचरस, लोध्र, कमल, लालचन्दन और भुनी फिटकरी बराबर मात्रा में लेकर उसका चूर्ण बना लें। इसके 2 से 3 ग्राम चूर्ण को प्रतिदिन गाय के दूध के साथ सुबह-शाम खाने से खून का अधिक गिरना बंद हो जाता है।

छुई-मुई की जड़ और पत्तों का पाउडर दूध में मिलाकर दो बार देने से बवासीर और भंगदर रोग ठीक होता है।    

रक्तातिसार (खूनी दस्त):

छुई-मुई की जड़ का चूर्ण 3 ग्राम, दही के साथ रोगी को खिलाने से खूनी दस्त जल्दी बंद होता है।

छुई-मुई की जड़ के 10 ग्राम चूर्ण को 1 गिलास पानी में काढ़ा डालकर बनायें जब थोड़ा सा रह जाये तब बचे काढ़े को सुबह-शाम पिलाने से खूनी दस्त बंद हो जाता है।

खांसी: छुई-मुई की जड़ को गले में बांधने से खांसी मिटती है। यह एक आश्चर्यजनक मगर चमत्कारिक प्रयोग है।

पित्त बढ़ना: लज्जालु (छुई-मुई) का रस 10 से 20 मिलीलीटर सुबह-शाम खाने से पित्त के बढ़ने से होने वाले सभी रोग दूर होते हैं।

प्लेग रोग: 80 मिलीलीटर लाजवन्ती के पत्तों का रस सेवन कराने से प्लेग रोग ठीक हो जाता है।

शिरास्फीति: लाजवन्ती को पीसकर बांधने से शिरास्फीति के रोग में लाभ मिलता है।

वीर्यस्तंभन: लाजवन्ती को सम्भोग के समय मुंह में रखने से वीर्य स्तंभन हो जाता है।

वीर्य की कमी में: लाजवन्ती के बीजों का चूर्ण दूध के साथ खाने से लाभ होता है।

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