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भक्त बालिका करमैती जी
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इस कलयुग में संत तुलसीदास, मीराबाई, कर्माबाई जैसे महान भक्त हुए उन्हीं की श्रंखला में करमैती जी भी एक महान भक्त हुईं जिनहोनें कृष्ण की भक्ति से जन मानस को अभिभूत कर दिया।
भक्त बालिका करमैती जी राजा शेखावत के पुरोहित श्री परशुराम जी की पुत्री थीं |इनका निवास स्थान खंडेला (सीकर-राजस्थान )था |करोड़ो कामदेवों से भी मनोहर श्री श्याम सुन्दर बालिका करमैती के ह्रदय में बस गए थे |इसलिए इन्हें घर के काम-काज सब भूल गए थे ,नित्य भगवान की मानसी सेवा किया करती थीं |जब ध्यान लगाकर बैठ जातीं तो कई प्रहार बैठे बीत जाते थे |इनका मन सदैव कृष्ण की सेवा में रमा रहता था |निरंतर कृष्ण का ध्यान तथा नाम जाप किया करती थीं कभी वह हा नाथ! हा नाथ! कहती हुई क्रन्दन करती कभी कीर्तन करते हुए नाचने लगती और कभी हँसते हँसते लोट पोट हो जाती । नन्ही सी बच्ची के भगवत प्रेम को देखकर घर के लोग प्रसन्न हुआ करते थे इनका विवाह हो चुका था |और कुछ दिन बाद पतिदेव गौना कराने के लिए आए |इससे इनके माता-पिता बड़े प्रसन्न हुए |गौने की चर्चा सुनकर करमौती जी सोच में पड़ गईं कि हमें अब क्या करना चाहिए ?हड्डी और चमड़े से बना यह मानव शारीर प्रेम करने के योग्य नहीं है ,अत:इसे त्याग देना चाहिए |पुनः करमौती जी अपने मन को समझाते हुए कहने लगी –अरे मन अब तू जाग जा !जागने से ही तेरे भीतर के मेल धुलेंगे |श्री श्याम सुन्दर की प्रीति ही सच्ची और सुख देने वाली है |संसार में प्रीति मिथ्या और दुःख देने वाली है |

                 इस प्रकार करमैती जी ने पतिदेव के साथ नहीं जाने का फैसला किया ,क्योंकि ये पूर्ण रूप श्री कृष्ण के अनुराग में समर्पित हो चुकीं थीं |अत:सबके सो जाने पर वे घर से निकलीं सबेरा होने पर घर-गांव में सर्वत्र पता चल गया कि करमैती जी घर पर नहीं हैं |उनके पिता द्वारा उनको ढूढने के लिए घुड़सवार भेजे |करमैती जी ने देखा की मुझे ढूढने वाले घुड़सवार मेरे पास आ गए हैं |तब उन्होंने वहीं मरे हुए उंट के कंकाल में अपने आप को छुपा लिया |भगवान में मन लगा हुआ था इसलिए उन्हें विषयी संसार की दुर्गन्ध ऐसी खराब लगी कि उसकी तुलना में ऊंट के कंकाल की वह सड़ी दुर्गन्ध सुगंध के समान अच्छी लगी |बालिका करमैती जी को उंट के कंकाल में छिपे हुए तीन दिन हो गए |चौथे दिन कंकाल से निकलकर चलीं तो अपने को तीर्थ यात्रियों के साथ कर लिया |उनके साथ आप श्री गंगा जी किनारे आईं |वहां स्नान कर अपने सभी आभूषण ब्राह्मणों को दान कर दिए |उसके बाद आप श्री धाम वृन्दावन आ गईं |उनके पिता परशुराम जी उन्हें ढूढते हुए उन्हें मथुरा आ गए |वहां के लोगों ने उन्हें करमैती जी का पता बताया |तदनुसार मथुरा के पंडों के साथ वे वृन्दावन आए |उन दिनों ब्रह्म कुंड पर घाना जंगल था |वहां एक वटवृक्ष के ऊपर चढ़कर देखने पर करमैती जी दिखाई दीं |वे कृष्ण के विरह ध्यान में बैठकर रुदन कर रहीं थीं |उनकी कृष्ण भक्ति को देखकर उनके पिता उनके पैरों से लिपट गए |

                      वे बोले बेटी !इस प्रकार गौने के अवसर पर घर से छिपकर तुम्हारे भाग आने से संसार में हमारी नाक कट गई |मैं मुंह दिखाने के लायक नहीं रहा अब तुम चलकर घर पर रहो |जिससे संसार में जो हमारी हंशी और निंदा हुई है वह मिट जाए |तुम ससुराल नहीं जाना घर में रहकर ही भगवान की भक्ति करना |यहाँ कोई बाघ-सिंह तुम्हें आकर मार देगा ,मुझे इस बात का बड़ा डर लग रहा है अत:अपने घर चलो |

                      यह सुनकर करमैती बाई ने कहा –“पिताजी आपने सत्य  कहा |बिना भगवदभक्ति के शरीर मृतक ही समझिए |यदि आप जीवन चाहते हैं तो भगवान की भक्ति और उनकी कीर्ति और उनके गुणों का गान कीजिए |”

                      बालिका करमैती बाई ने पुनः कहा कि “-आपने जो यह कहा की मेरी नाक कट गई है नाक तो तब कटेगी जब नाक हो ,जब है ही नहीं तो क्या कटेगी ?नाक अर्थात प्रतिष्ठा तो केवल भगवत –भक्ति है ,आप अपने मन में विचारिये –पचास वर्षों से आप विषयों में आशक्त हैं ,फिर भी आपको वैराग्य नहीं हुआ |भोगे हुए विषयों को बार-बार भोग रहे हैं |मैंने उन सभी भोगों को देखते हुए भी उनको नहीं देखा |मैंने तो केवल एक श्याम सुंदर को देखा है ,अतःअब संसार की ओर मेरी द्रष्टि नहीं जा सकती है |आप भी सब कामों को छोड़कर भगवान की सेवा में ही तन मन और धन को लगाइए |करमैती जी के इस उपदेश को सुनकर पिता श्री परशुराम जी का अज्ञान उसी समय नष्ट हो गया |जब वे घर को वापस जाने लगे तो तो करमैती जी ने यमुना जी से प्राप्त उन्हें कृष्ण भगवान की एक मूर्ति दी ,उसे लेकर वे घर को चले आए |करमैती जी ने जो कहा वह उनके ह्रदय में आ गया |🌸🌷🌱🌸🌷🌱🌸🌷🌱

                   उन्होंने भगवान को घर में स्थापित किया और मन लगाकर उनकी सेवा करने लगे |अब उन्हें भगवान की भक्ति ही अच्छी लगती थी ,कहीं आना जाना लोगों से मिलना-जुलना अच्छा नहीं लगता था | कुछ दिनों बाद राजा को अपने पुरोहित श्री परशुराम जी की याद आई तब उन्होंने लोगों से पूछा –पंडित जी कहाँ हैं ?यह सुनकर किसी ने कहा कि वे अब अपने घर में ही भगवद सेवा और सत्संग में मग्न रहते हैं ऐसा सुनकर राजा को परशुराम जी के प्रति अत्यंत अनुराग हुआ |तब उन्होंने एक सेवक को भेजकर उनका समाचार बुलवाया |

                  परशुराम जी ने राजसेवक से कहा की –तुम जाकर राजा से कह दो कि हे राजन मै आपको यहीं से आशीर्वाद देता हूँ कि भगवद चरणों में आपका अनुराग बढे|मै अब राजदरबार नहीं आ सकता हूँ |यह सुनकर राजा पुरोहित जी के दर्शन करने चले ,राजा ने परशुराम जी का कृष्ण के प्रति प्रेम देखा ,उनकी भक्ति देखी ,तब राजा ने पुरोहित जी से उनकी बेटी करमैती का समाचार पूछा |तब परशुराम जी ने रोते रोते सब बात कही की “वह तो श्याम सुन्दर श्री कृष्ण की भक्ति के रंग में रंग गई है “राजा पुरोहित जी को साथ लेकर वृन्दावन  पहुचे तो उन्होंने देखा कि करमौती जी यमुना के किनारे खड़ी होकर रो रहीं हैं उनके नेत्रों से आंसुओं की धारा बह रही है |राजा कहे तो क्या कहे उन्होंने कुछ सेवा करने को कहा किन्तु करमैती जी ने माना कर दिया |बार बार मना करने पर भी राजा ने ब्र्म्हकुंड के पास करमैती जी के लिए एक कुटिया बनवा दी |इसके बाद वे अपने राज्य की ओर लौट गए |करमैती जी के दिव्य उपदेशों को स्मरण करके राजा भी कृष्ण के प्रेम में रंग गए तथा भगवद भजन करने लगे |करमैती जी के बारे में कहा जाता है |

                नस्वर पति रति त्यागि कृष्न पद सों रति जोरी |
                सबै जगत की फांसी तरकि तिनुका ज्यों तोरी ||
                निरमल कुल कांथडया धन्य परसा जिहिं जाई |
                बिदित वृन्दावन बास संत मुख करत बड़ाई ||
           संसार स्वाद सुख बांत करि फेर नहीं तिन तन चही |
           कठिन काल कलिजुग्ग में करमैती निकलक रही ||


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