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हम उपवास तो करते है, लेकिन उपवास का असली मायने क्या है ?

कुछ खाओगे नहीं। नहीं आज नहीं, आज मेरा उपवास है । कल सुबह ही कुछ खाऊंगा। कोई कहता है कि आज मेरा व्रत है। एक मित्र से मैंने पूछा कि किसका व्रत या उपवास है। उसने कहा – फला देवी या देवता का व्रत है। ऐसा करने से क्या होता है? उसने कहा – इससे देवी-देवता प्रसन्न रहते है ।

मैंने पूछा कि आपको भूखे रखकर देवी-देवता को क्या ख़ुशी मिलती होगी? वह भला क्यों चाहेंगे कि उसका भक्त भूखा-प्यासा रहे। हमारे यहाँ देवी-देवताओ को माँ-बाप का दर्जा दिया जाता है। कोई माँ-बाप क्यों चाहेंगा की उसका बेटा या बेटी भूखे प्यासे रहे। यदि भूखे प्यासे रहने से देवी-देवता प्रसन्न होते तो, कितने गरीब लोग आज भी भूखे, प्यासे और नंगे सोते है, फिर तो उनको कोई परेशानी ही नहीं होती!

उपवास या व्रत किसी देवी-देवता को प्रसन्न करने के लिए नहीं किया जाता है । देवी-देवता का रोल यही होता है कि वह साक्षी रहते है, आपके उपवास या व्रत के।

व्रत का मतलब होता है – प्रतिज्ञा। किस चीज़ को किस अमुक दिन को खाना है या करना है, और कितनी मात्रा में खाना है और कितनी बार खाना है या नहीं खाना है, यह व्रत मनुष्य ही ले सकता है, जानवर नहीं। जानवर के सामने जो भी रखोगे, जब भी रखोगे, खाना शुरू कर देता है।

मनुष्य, मनुष्य इसलिए है क्योकि उसमे चुनाव करने की क्षमता है(विवेक), निर्णय लेने की क्षमता है। मनुष्य के अंदर वह क्षमता है कि अपनी प्रतिज्ञा से अपने मन-मुताबिक काम को अंजाम दे सकता है।

कुछ लोग इसे उपवास भी कहते है। उपवास दो शब्दो से मिलकर बना है – उप और वास । यह दोनों संस्कृत शब्द है। उप का मतलब होता है – नजदीक और वास का मतलब होता है – निवास। इस तरह से उपवास का मतलब हुआ – नजदीक में निवास ।

नजदीक में निवास ! क्या मतलब ?

हम शरीर या मष्तिष्क नहीं है, यह तो क्षणिक और निश्चित नश्वर है। शरीर के नष्ट होने की वस्तु इसके अंदर ही विद्यमान है। धीरे-धीरे समय के साथ, वह अपना काम कर रही है। कोई भी उपाय कर लो, इसको रोका नहीं जा सकता। हम आत्मा है, जो अजर और अमर है, जो शाश्वत है। इसको किसी भी विधि से नष्ट नहीं किया जा सकता, और शरीर को किसी भी विधि से बचाया नहीं जा सकता।

भोजन शरीर के लिए है। हमारी इन्द्रिया, तरह-तरह के भोजन और वासना की मांग करती रहती है। हम इस नश्वर चीज़ के शाश्वत मांग को पूरा करते-करते, अपने आत्मा को दरकिनार कर देते है। आत्मा सत्य और शरीर नाशवान। सत्य को पकडे रहने के लिए, सत्य का एहसास होना और इसके करीब होना बहुत ही ज़रूरी है।

उपवास इसलिए किया जाता है, ताकि हम शारीरिक मांगो से ऊपर उठकर, अपने आत्मा के नज़दीक आ सके, और इसको समझ सके, और हमारे अंदर जो दैवि शक्ति है, उसको जागृत कर सकें।

भूखे रहने से यह भी एहसास होता है कि भूख या प्यास क्या होती है। भोजन और जल की अहमियत समझ में आता है। भूखे और प्यासे सोने वालो की पीड़ा समझ में आती है । इससे मनुष्य भाव बढ़ता है।

उपवास ईश्वर से कुछ माँगने के लिये नहीं, बल्कि अंदर की जानवर की प्रवृति त्याग कर, मनुष्य बन कर मनुष्य की सेवा के लिए की जाती है। तभी तो, उपवास के बाद, भंडारा या प्रसाद बाटने का प्रावधान है। ताकि सबको भोजन प्राप्त हो, और सभी खुश रहें। यह तभी संभव है, जब मनुष्य भौतिक चीज़ों से ऊपर उठकर, आत्मितकता को अपना जीवन का केंद्र बनाने का व्रत ले।

उपवास – आत्मा और परमात्मा के निकट होने के एहसास के साथ-साथ, शरीर के अशुद्धियो को भी नष्ट कर देती है। यानि उपवास में शारीरिक, मानसिक, आत्मिक, दैविक और सामाजिक(प्रसाद वितरण, भंडारा आदि) स्वस्थता लाने की शक्ति होती है।

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