‼दान, त्याग, वैराग्य तीनो में अंतर क्या है ?? जब कि तीनों की बाहर से दिखने वाली क्रिया समान है… ??‼
कैसे भी, किसी को भी , कुछ भी देने से हमारा भला,सुभ होगा ही
दान से श्रेष्ठ है — त्याग
त्याग से श्रेष्ठ है — वैराग्य
दान – अधिकतर वस्तु, पैसा से होता है,
दान- अधिकतर उन वस्तु का होता है जो हमारे लिए अधिक उपयोगी नही रह जाती है,या फिर जो उपयोगी वस्तु, पैसा है, उसमे से 5% – 10% का ही हम दान कर पाते है
दान- अधिकतर दया के कारण होता है,
कभी-कभी, पुण्य की चाहत या नर्क के भय के कारण भी
त्याग — अधिकतर इक्छा प्रधान है
पहली बार त्याग होने का कारण है — विषम परिस्थिति + ममता
(उस व्यक्ति से अपनेपन का भाव इतना strong था कि हम उसका दर्द देख ही नही पाए , और अपनी इक्छा का त्याग करके , उस व्यक्ति का कष्ट दूर करने का प्रयास किया )
त्याग कर्म करने के बाद, हमे त्याग करने का सुख मिल जाता है इसलिये हमारा मन उस सुख को पाने के लिये बार बार त्याग कर्म करने लगता है,
क्यो कि त्याग का सुख, 4 शर्ते पूरी करने वाला बहुत बड़ा सुख है
सुख को नापने का पैमाना है — 6 शर्ते
जिस सुख में जितनी अधिक शर्ते पूरी होती है,वो उतना ही अधिक बड़ा सुख होता है
लेकिन त्याग के सुख में भी एक बहुत बड़ी समस्या है कि हमे, त्यागी होने का अहंकार बहुत जल्दी पकड़ लेता है,
और फिर हम उस अहंकार में , त्याग कम करते है, दिखाते ज्यादा है, त्याग करने का दिखावा,दम्भ करके झूठे अभिमान का सुख लेने लगते है,क्योंकि झूठे अभिमान का सुख भी 4 शर्ते पूरी करने वाला बहुत बड़ा सुख है
त्याग का सुख भी हमे तभी तक मिलता है,जब तक वो व्यक्ति हमारे मन के अनुकूल मीठी वाणी बोले , क्रिया करे , जिसके लिये हमने अपनी इक्छा का त्याग किया था
जिस भी दिन, परिस्थितियों वस उस व्यक्ति ने कुछ भी उल्टा किया, उल्टा बोला ,हमारे विरुद्ध
तो तुरन्त गुस्सा आ गया,द्वेष हो गया, वाणी की हिंसा हो गयी,क्योकि त्यागी होने का अहंकार हमे पकड़ चुका था,उसी दिन से त्याग का सुख मिलना बंद हो गया
और त्यागी होने के, अहंकारी मन द्वारा ही ऐसी घोषणाएं होती कि —
1– किसी की भलाई करने का तो जमाना ही नही है
2– भलाई करो और जूते खावो
3– आज की दुनिया मे कोई किसी का नही होता है, सब स्वार्थी है, सब रिस्ते नाते दिखावटी है, सब मोह-माया है
4– हमे तो अपनो ने लूटा, गैरो में कहाँ दम था
5– अपनो की चोट बहुत मार्मिक होती है, बहुत गहरे घाव देती है
ऐसी बहुत सारी शिकायत , हमारे शिकायती मन , अहंकारी मन की घोषणा है
ऐसा शिकायती , अहंकारी मन ये कभी भी नही पा सकता —
शास्वत सुख का अनुभव,
सत्य का अनुभव,
आनंद का अनुभव,
प्रेम का अनुभव,
कान्हा का अनुभव
कथा श्रवण करके हमे इन भ्रमो से बाहर आना होगा, कथा श्रवण ही हमे प्रेम करना सीखा पायेगा, हमारे त्याग को वैराग्य में बदल पायेगा ,
जब तक ये ढेरो भृम न मिटे, 5 या 6 शर्ते पूरी करने वाले भजन का सुख न मिल जाय , तब तक शिकायते खत्म नही होती तब तक कान्हा का अनुभव पाना असंभव ही है
शिकायती मन ,कान्हा का अनुभव कर ही नही सकता है, कान्हा मनुष्य सरीर ले कर सामने भी आ जाय , तब भी हम पहचान नही पाएंगे
त्याग-वैराग्य में क्या अंतर है, ये उदाहण सहित , अगले अंक में समझने का प्रयास करेंगे
कान्हा प्रिय हो
प्रेम प्रिय हो
🙂🙂🙏🏻🙏🏻🙏🏻