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*प्राकृतिक चिकित्सा

जल कितना पियें और कैसे

भोजन के साथ-साथ जल की चर्चा करना अति आवश्यक है। प्रायः लोग पानी को पीने लायक वस्तु नहीं मानते और बहुत प्यास लगने पर ही पानी पीते हैं। इसके स्थान पर वे तरह-तरह की तरल वस्तुएँ चाय, काॅफी, कोल्ड ड्रिंक आदि पीते रहते हैं। ऐसे लोग बहुत गलतियाँ कर रहे हैं, जिनका कुपरिणाम उन्हें आगे चलकर भुगतना पड़ता है, क्योंकि ये वस्तुएँ जल का स्थानापन्न नहीं हैं, बल्कि जल पीने की आवश्यकता और अधिक बढ़ा देती हैं।

जल केवल हमारी प्यास ही नहीं बुझाता, बल्कि हमारा स्वास्थ्य बनाये रखने के लिए भी अनिवार्य है। जिस प्रकार हम स्नान द्वारा अपने शरीर की बाहर से सफाई करते हैं, उसी प्रकार शरीर की अन्दर से सफाई के लिए जल पिया जाता है। यह हमारे भोजन और रक्त को छानकर उनसे हानिकारक पदार्थों को दूर करने में बहुत सहायक होता है। वे पदार्थ मूत्र द्वारा हमारे शरीर से बाहर निकल जाते हैं।

वैसे भी हमारे शरीर का 70 प्रतिशत भाग जल ही है। उसका बहुत सा भाग मूत्र और पसीने के रूप में शरीर से निकलता रहता है, जिसकी पूर्ति होना आवश्यक है। जल के अभाव में हमारे शरीर की बहुत सी क्रियायें मन्द हो जाती हैं या रुक जाती हैं, जो जीवन के लिए हानिकारक होता है। हम भोजन के बिना महीनों तक जीवित रह सकते हैं, लेकिन पानी के बिना कुछ दिन भी जीवित रहना लगभग असम्भव है। इसलिए हमें हर मौसम में हर जगह नियमित अन्तराल पर जल पीने का ध्यान रखना चाहिए।

यह बात हमेशा याद रखें कि पीने का जल अधिक ठंडा या गर्म न हो। जाड़ों में कभी कभी हम गुनगुना जल पी सकते हैं, लेकिन अन्य सभी दिनों में वह साधारण शीतल होना चाहिए। फ्रिज आदि का अधिक ठंडा जल स्वास्थ्य के लिए बहुत हानिकारक होता है। इसलिए यथासम्भव इससे बचना चाहिए। यदि विवशता में फ्रिज का जल पीना ही पड़े तो उसमें बराबर का साधारण जल मिलाकर उसका तापमान बढ़ा लेना चाहिए। पीने के लिए जल हमेशा साधारण ठंडा होना चाहिए। अति शीतल और अति गर्म वस्तुएँ खाना या पीना पाचन शक्ति के लिए हानिकारक होता है।

पीने के पानी की मात्रा भी बहुत महत्वपूर्ण है। किसी स्वस्थ वयस्क व्यक्ति को ढाई-तीन लीटर जल प्रतिदिन अवश्य पी लेना चाहिए। इसका एक सुनहरा नियम यह हो सकता है कि हम हर घंटे या सवा घंटे पर एक गिलास (लगभग एक पाव) पानी पियें, जैसे 6 बजे, 7 या सवा 7 बजे, 8 या साढ़े 8 बजे आदि। इस प्रकार यदि आप दिन में 16 घंटे जगे रहते हैं, तो दिनभर में 12 गिलास या 3 लीटर पानी हो जायेगा। यह स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभदायक होता है। इसको शब्दों में नहीं बताया जा सकता। इसका केवल अनुभव ही किया जा सकता है।

जल पीने के साथ नियमित मूत्र विसर्जन करना भी अनिवार्य है। जितनी बार आप जल पीते हैं, यदि उतनी बार मूत्र विसर्जन के लिए जाना पड़े तो भी कोई चिन्ता की बात नहीं है। जल पीने के लगभग 45 मिनट से 1 घंटे बार मूत्र के दवाब का अनुभव होता है। यदि मूत्र विसर्जन की सुविधा हो, तो उसी समय मूत्र विसर्जन कर आना चाहिए। मूत्र को अधिक देर तक रोकना बहुत हानिकारक होता है। एक बात और ध्यान रखें कि मूत्र विसर्जन स्वाभाविक रूप से होना चाहिए, उसके लिए जोर बिल्कुल न लगायें, क्योंकि जोर लगाकर मूत्र त्यागने से मूत्राशय की सूजन, जलन आदि समस्यायें उत्पन्न हो जाती हैं। स्वाभाविक रूप से मूत्र विसर्जन करने पर ये समस्याएँ नहीं होतीं और यदि पहले से हैं तो ठीक हो जाती हैं।

बहुत से डाॅक्टर अधिक जल पीने को हानिकारक बताते हैं। वे प्रतिदिन दो-ढाई लीटर से अधिक जल पीने से मना करते हैं। यह गलत है। मेरा अनुभव है कि यदि आप नियमित अंतराल पर जल पीते हैं और समय पर मूत्र विसर्जन कर आते हैं, तो प्रतिदिन चार लीटर तक जल पीना भी हानिकारक नहीं है, बल्कि बहुत लाभदायक होता है। कई बार शरीर की सफाई के लिए प्रतिदिन चार लीटर जल पीना आवश्यक होता है। इससे अधिक जल पीने की सलाह मैं किसी को नहीं देता।

एक बात ध्यान रखें कि एक बार में सामान्यतया एक गिलास जल ही पीना चाहिए। यदि बहुत अधिक प्यास लगी है, तो डेढ़ गिलास (लगभग 400 मिलीलीटर) तक जल पी सकते हैं, परन्तु इससे अधिक नहीं। यदि इससे प्यास नहीं बुझती, तो आधा-पौन घंटा बाद फिर जल पी सकते हैं। कई लोग सुबह उठते ही एक साथ चार-पाँच गिलास जल पीने की सलाह देते हैं। यह भी हानिकारक होता है। मेरे विचार से सुबह पहली बार अधिकतम दो गिलास जल पी सकते हैं, उसके बाद हमेशा एक-एक गिलास ही पीना चाहिए।

ऐलोपैथिक डाॅक्टर गुर्दे के रोगियों को जल पीने से मना करते हैं, क्योंकि उनके अनुसार जल पीने से गुर्दों का काम बढ़ जाता है। यह विचार बहुत भयंकर है, क्योंकि ऐसा करने से गुर्दे धीरे-धीरे निष्क्रिय होकर पूरी तरह खराब हो जाते हैं। फिर उनके पास डायलाइसिस कराने और आगे चलकर गुर्दा बदलवाने के अलावा कोई विकल्प नहीं रहता। मेरे विचार से खराब गुर्दे के रोगियों को प्रतिदिन दो से ढाई लीटर जल थोड़ा थोड़ा करके अवश्य पीना चाहिए, ताकि गुर्दे सक्रिय बने रहें। मैंने सही मात्रा में इस प्रकार जल पिलाकर गुर्दे के रोगियों को स्वस्थ किया है, जिनको पहले डायलाइसिस कराना पड़ता था।

यहाँ यह बताना आवश्यक है कि भोजन के तुरन्त पहले और तुरन्त बाद जल पीना हानिकारक होता है। खाने के ठीक पहले पानी पीने से भूख कम होती है और ठीक बाद पीने से पाचन शक्ति खराब होती है और गैस बनती है। इसके बजाय भोजन के एक घंटे पहले और एक-डेढ़ घंटे बाद इच्छानुसार जल पीना चाहिए। खाने के बीच में प्यास लगने पर एक-दो घूँट पानी पिया जा सकता है। पानी पीने के सम्बंध में सबसे सुनहरा नियम यह है कि जब भी प्यास लगे पानी अवश्य पीना चाहिए। इसके अलावा कुछ परिस्थितियाँ ऐसी हैं जिनमें जल पीना वर्जित किया गया है। फल खाने के बाद, कोई अन्य तरल पदार्थ पीने के बाद और धूप में से आने पर तुरन्त जल नहीं पीना चाहिए। इनके आधा घंटे बाद जल पिया जा सकता है।

भोजन और जल के सम्बंध में एक सुन्दर दोहा प्रचलित है, जिसमें सुन्दर स्वास्थ्य का रहस्य छिपा हुआ है। यह दोहा निम्न प्रकार है-
भोजन को आधा करो, दुगुना पानी पीव।
चैगुन श्रम अठगुन हँसी, वर्ष सवा सौ जीव।।

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