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ढोल, गवाँर, शूद्र, पशु, नारी……..कैसी सोच ?

रामचरित मानस की चौपाई – ढोल, गवाँर, शूद्र, पशु, नारी। सकल ताड़ना के अधिकारी ||

वर्तमान समय में सर्वाधिक चर्चित चौपाइयों में से एक है। इस चौपाई पर विचार करने से पूर्व कुछ शब्दों पर ध्यान करना आवश्यक है। मर्यादा. अंकुश, ताड़ना, अनुशासन, कड़ी निगरानी, पैनी नजर इन सभी शब्दों का आपस में गहरा सम्बन्ध है परन्तु प्रताड़ना पूरी तरह भिन्न अर्थ रखने वाला शब्द है।ताड़ना और प्रताड़ना में बहुत अंतर है। प्रताड़ना शब्द पर ध्यान देंगे तो अत्याचार, उत्पीड़न तथा बल प्रयोग के द्वारा कष्ट देना है।

चर्चा में यह कहते हुए कई बार सुना होगा कि वह बहुत चतुर व्यक्ति है उसने फ़ौरन ताड़ लिया। वास्तव में ताड़ना शब्द का सम्बन्ध पैनी नजर एवं सूक्ष्म दृष्टि से है न कि प्रताड़ना से। जब हम ताड़ना और प्रताड़ना को समान अर्थी मान लेते हैं तो हमारी सोच और दृष्टि में इस चौपाई का अर्थ का अनर्थ हो जाता है | गोस्वामी तुलसीदास जी बहुत बड़े विद्वान, भक्त शिरोमणि और उच्च कोटि के साहित्यकार थे | वह ऐसी विवादास्पद चौपाई की रचना कर ही नहीं सकते।

सर्वप्रथम ढोल एवं उससे मिलते जुलते वाद्ययंत्रों तबला आदि पर चर्चा करते हैं। इन पर पका हुआ चमड़ा लगा होता है जो पानी या सीलन से ख़राब हो जाता है इस कारण पूरी सावधानी, देखरेख, कड़ी निगरानी रखना अनिवार्य है | प्रयोग करने से पहले रस्सियों को बार बार परीक्षण करते हुए कसना पड़ता है तथा प्रयोग करने के बाद ढीला करना और उचित सुरक्षा के साथ रखना होता है।

इसी को ताड़ना, सूक्ष्म दृष्टि रखना, पैनी नजर या कड़ी निगरानी कहते हैं। ऐसा करने पर ही वह वाद्ययंत्र ठीक से बजता है और दीर्घ काल तक उपयोगी रहता है | परन्तु अनर्थ लगाने वाले केवल थापों, उँगलियों या लकड़ी के उपकरणों से प्रहार को ताड़ना कहते हैं | परन्तु यह भूल जाते हैं कि कड़ी निगरानी में सुरक्षित व उपयोगी नहीं होगा तो कितने ही प्रहार किये जाएं वह बजेगा नहीं।

इस चौपाई में पशु से तात्पर्य पालतू पशुओं से है न कि जंगली पशुओं से,जंगली पशुओं से केवल सुरक्षा की बात आती है अथवा शिकार और उनका भक्षण का विषय आता है न कि ताड़ना अथवा प्रताड़ना का। गाय, भैंस, बकरी, भेड़, ये दुधारू पशु हैं इसलिए इनका पालन किया जाता है।

इनके खान पान, रहने, स्वास्थ्य, प्रजनन इत्यादि सभी विषयों पर कड़ी निगरानी व व्यवस्था पर ध्यान देना होता है तभी दूध व इनकी वंश वृद्धि का सुख प्राप्त होता है। इसमें प्रताड़ना का कोई स्थान हो ही नहीं सकता, हाँ थोड़ा अंकुश अवश्य रखना पड़ता है जो ताड़ना की श्रेणी में ही आता है।

दूसरे पशु जैसे हाथी, घोडा, ऊँट, गधा नर व मादा दोनों सवारी करने, व्यवसायिक उपयोग व सेना के उपयोग में तथा बैल व भैंसे कृषि एवं माल ढोने के उपयोग में आदि काल से लाये जाते हैं | इनकी बहुत सेवा करनी पड़ती है।

इनके खान पान, स्वास्थ्य, निवास की उत्तम व्यवस्था व पर्याप्त प्रशिक्षण करना पड़ता है | परन्तु उपयोग करते समय घोडा, ऊँट, बैल, भैंसा, गधा को लगाम की आवश्यकता होती है तथा हाथी को अंकुश की आवश्यकता होती है | नियंत्रण के लिए अंकुश व चाबुक की भी आवश्यकता पड़ती है | परन्तु अनर्थ करने वाले अंकुश व चाबुक को केवल अत्याचार, उत्पीड़न अर्थात प्रताड़ना के रूप में ही देखते हैं।

गंवार अर्थात मूर्ख, अविवेकी, सनकी आदि व्यक्तियों से सदैव उद्दंडता अपेक्षित रहती है | तथा ऐसा व्यक्ति किसी भी कार्य को ठीक से कर पाएगा इसमें शंका बनी रहती है तथा नकारात्मक परिणाम अधिक आते हैं | इनको सकारात्मकता के दायरे में रखने के लिए भी अनुशासन, मर्यादा, अंकुश, कड़ी निगरानी इत्यादि का सहारा लेना पड़ता है अर्थात ताड़ना की आवश्यकता होती है न कि प्रताड़ना की क्योंकि प्रताड़ना की प्रतिक्रिया में तो भयंकर परिणामों की ही शंका बनी रहती है।

जहाँ तक नारी का प्रश्न है तो वह माँ, बेटी, पत्नी, बहन, वधु तथा माँ के समकक्ष अन्य सम्बन्धों के रूप में हमारे साथ होती है। वह गृहलक्ष्मी होती है और परिवार का केंद्र बिंदु होती है। पत्नी के बिना घर घर नहीं होता इसीकारण पत्नी को घरवाली कहा जाता है। संतों को छोड़ दीजिये शेष व्यक्ति जो समाज में रहते हैं एक निश्चित आयु के बाद भी अविवाहित रहते हैं तो उन्हें सम्मान भी कम मिलता है और शंकाओं से भी घिरे रहते हैं। पाश्चात्य संस्कृतियों में नारी का स्थान भिन्न किस्म का है।

हमारे धर्म ग्रंथों में नारी का स्थान बहुत उच्च कोटि का है तथा भारतीय संस्कृति में सदैव नारी सम्मान की रक्षा पर बल दिया गया | सृष्टि निर्माण के समय क्षीरसागर में विष्णु भगवान् प्रकट हुए, उनकी नाभि से निकले कमल पर ब्रह्मा जी बिराजमान हुए तभी आदिदेव महादेव भी अर्धनारीस्वरूप में प्रकट हुए | उन्होंने बताया कि आदि-शक्ति मेरा अभिन्न अंग हैं परन्तु हमारी पूजा व आराधना प्रथक प्रथक होगी | प्रभु श्री राम ने सदैव कहा कि मैं सीता के बिना अधूरा हूँ।

राम रावण युद्ध को भी उन्होंने नारी के सम्मान की रक्षा के लिए किया गया युद्ध बताया | बालि के वध को भी नारी पर अत्याचार का कारण निरूपति किया गया | श्री कृष्ण अवतार में भी नरकासुर वध के बाद स्वतंत्र की गईं सोलह हजार एक सौ नारियों को सम्मान दिलाने के लिए प्रभु श्री कृष्ण ने सोलह हजार एक सौ आठ रूप धारण किये।

माता सीता ने लक्ष्मण रेखा रुपी मर्यादा का उल्लंघन किया तो उन पर कितनी विपत्ति आई और उसके कितने विध्वंशक परिणाम आये | परिवार का केंद्र बिंदु बनने के लिए कड़ा व उत्तम प्रशिक्षण व अंकुश की आवश्यकता होती है | सम्मान व सुरक्षा के लिए मर्यादा अनिवार्य होती है इसी कारण गोस्वामी तुलसीदास जी ने ताड़ना शब्द का प्रयोग किया जो बहुअर्थी तो है परन्तु बल प्रयोग के द्वारा प्रताड़ना से पूरी तरह भिन्न है।

वर्ण व्यवस्था के समय जो समाज का विभाजन हुआ वह प्रवृत्ति व क्षमता के आधार पर किया गया | बुद्धि तो प्रत्येक वर्ण के व्यक्तियों को चाहिए थी जो इश्वर द्वारा प्रदत्त भी की गयी | शूद्र वर्ण में उत्पादक, वैज्ञानिक, तकनीशियन, श्रमिक, और लागत अर्थात धन लगाने वाले लोग आते थे | अधिक लाभ के लालच में अनुचित कार्य न करें, समाज व देशहित का ध्यान रखें, कर सही समय पर प्रदान करें इस हेतु इन पर कड़ी निगरानी व अंकुक्ष आवश्यक था।

परन्तु उद्योग फलें फूलें व उत्पादन पर्याप्त व श्रेष्ठ हो इसका दायित्व भी राजा का होता था | इसको ताड़ना कहा जायेगा न कि प्रताड़ना | आज के युग में देखें तो उद्योग किसी भी श्रेणी का हो उद्यमियों तथा स्किल्ड व अनस्किल्ड श्रमिकों तथा व्यापारियों तथा उससे सम्बंधित वर्गों पर कानून की पकड़ नहीं हो अर्थात यदि कानून व शासन प्रशासन कमजोर होता है तो भ्रष्टाचार, करचोरी, मिलावट, जमाखोरी, नकली सामान, धोखाधड़ी जैसी घटना आम हैं | अतः अंकुश, कड़ी निगरानी अर्थात ताड़ना और पर्याप्त कानून व सुदृढ़ शासन आवश्यक होता है।

गोस्वामी तुलसीदास जैसे विद्वान ने समाज को उचित मार्गदर्शन देने का प्रयास किया है नकारात्मक सोच वाले भले ही इसका उल्टा अर्थ लगाएं।

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