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ज्ञान की प्यास हम सबमें है। अन्तस् में कुछ जल रहा है, जो शान्त होना चाहता है। इस शान्ति के लिए अनेकों कोशिशें की जाती हैं। इंसान कितनी ही दिशाओं में इसे खोजता है। शायद अनगिनत जन्मों से यह खोज चल रही है। किसी मायामृग की खोज में उसका चित्त भटकता रहता है।
सच तो यह है कि जिन्दगी के मूलभूत प्रश्नों के उत्तर बौद्धिक तर्कों से नहीं मिलते। बौद्धिक तर्कों में ज्ञान का आभास तो है, पर ज्ञान नहीं है।

समाधान समाधि के शून्य से आता है। ज्ञान की इस किरण के फूटते ही चेतना के एक नये आयाम पर जीवन का प्रवेश हो जाता है। यही भाव दशा तो समाधि है। इसके लिए पूछें और शान्त हो जायें। गहरी शून्यता में डूबें। समाधि में समाधान को आने दें, फलने दें। चित्त की इस निस्तरंग-निर्विकल्प स्थिति में उसका दर्शन करें-जो है, सो मैं हूँ। स्वयं को जाने बिना ज्ञान की प्यास नहीं मिटती। स्वयं को खोजे बिना अन्तस् की जलन नहीं घटती। स्वयं को जानना ज्ञान है, बाकी सब जानकारी है। चित्त जिस क्षण भटकन भरी बौद्धिकता को छोड़कर चुप और थिर हो जाता है, उसी क्षण ‘सत्यम् ज्ञानम् अनन्तम् ब्रह्म’ के द्वार खुल जाते हैं। दिशा-शून्य चेतना प्रभु में विलीन हो जाती है। और ज्ञान की प्यास का अन्त केवल प्रभु मिलन में है।

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