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🎈अनेक रोगों की एक प्राकृतिक औषधि-करेला🎈

🎈प्रकृति ने विभिन्न स्वाद एवं भिन्न भिन्न रंग के गुण के फल एवं सब्जियां प्रदान की हैं,, जिनमें करेला कड़वा होने पर भी सब्जी के रूप में उपयोगी है।। करेला भारतवर्ष में सर्वत्र होता है।। एंटी आक्सीडेंट होने के कारण तथा प्राकृतिक रूप से करेले में अनेक फाइटो-केमिकल्स होने से हमारे शारीरिक स्वास्थ्य के लिए बड़ा गुणकारी है।। यह पारे के विषैले दुष्प्रभाव को भी मिटाता है।। इसमें पर्याप्त मात्रा में फास्फोरस होता है। यह कफ दोष को मिटाता है।। मधुमेह से बचाता है तथा रक्तशर्करा को नियंत्रित भी करता है।। जीवनी शक्ति बढ़ाने एवं रक्तशोधन में करेला की बड़ी भूमिका है। विटामिन ए,, सी तथा अनेक खनिज लवणों- लोहा, कैल्सियम,, फास्फोरस आदि का भंडार है।। लीवर को बल देता है।। मस्तिष्क,, हृदय व अस्थियों को स्वस्थ रखता है।। मंद जठराग्नि को जागृत करना,, मोटापा से बचाना,, सूजन दूर करना,, दरद मिटाना इसके प्रमुख गुण हैं।। मूत्रल स्वभाव होने से शारीरिक विषैले तत्वों,, जैव विष द्रवों को बाहर निकालने में उपयोगी है।। नेत्रों की ज्योति बढ़ाता है।। कृमि नाशक,, घाव भरने वाला,, कुष्ठ नाशक,, प्रमेह नाशक,, त्रिदोषनाशक है।। खून की कमी दूर करता है।। ज्वर विनाशक है।। पौष्टिक,, कामोद्दीपक,, स्तंभक होता है।। मूत्र विकार,, पेट की वायु विकृति तथा पथरी को नष्ट करता है।। आमवत एवं सुजाक को नष्ट करता है।। करेले की सब्जी का सेवन करने से चेचक एवं खसरे से बचाव होता है।।

               📍 विभिन्न प्रयोग📍

🎈पथरी में– करेले के पत्तों का रस पथरी को नष्ट करता है।। ४० ग्राम पत्तों के रस को २० ग्राम दही के साथ सेवन करना चाहिए,, तत्पश्चात १०० ग्राम छाछ पीने का क्रम नित्य प्रातः लम्बे समय तक बनाए रखें।। प्रात: उषापान (जल सेवन) में नींबू का रस निचोड़कर पीने का क्रम भी जोड़ देने से लाभ जल्दी होने लगता है।। दिन भर में कम से कम ३-४ लीटर पानी पीना चाहिए।।

🎈 आंत्रकृमि में– करेले के पत्तों का रस आधा कप प्रात:काल निराहार पीना चाहिए।। यह क्रम कुछ दिनों तक बनाए रखने से लाभ होता है।। पथ्य के रूप में छाछ,, दही,, फलों का रस उपयोगी होता है।।

🎈 यकृत के बढ़ने तथा जलोदर में– करेले के पत्तों का रस ३० ग्राम थोड़ा शहद मिलाकर पीने से यकृत बृद्धि तथा जलोदर में लाभ होता है।।

🎈संधिवात में– (१) करेला २०० ग्राम आग पर भून कर भुरता बना कर स्वादानुसार देशी खाँड मिलाकर गरमा गरम सुहाता हुआ रोगी को खिलाना चाहिए।। १५ दिन तक सेवन करने से नर्वस सिस्टम के कारण उत्पन्न संधिवात में लाभ होता है।।

🎈(२) गठिया एवं संधिवात के दरद में– संधियों के दरद स्थल पर करेले का रस निकालकर गरम लेप करने से दर्द से निवृत्ति होती है।।

🎈 त्वचा विकारों में– खाज,, खुजली इत्यादि त्वचागत दोषों में प्राय: रक्त की असुद्धि ही कारण होता है।। रक्त शोधक गुण होने के कारण करेला लाभ पहुंचाता है।। करेले को सुखाकर चूर्ण बनाकर ४ ग्राम चूर्ण शहद के साथ ४० दिन तक प्रात: निराहार चाटने से लाभ होता है।।

🎈 मधुमेह में– (१) करेले में विद्यमान बायोएक्टिव तत्वों द्वारा शर्करा को नियंत्रित करने में बड़ी मदद मिलती है।। इंसुलिन की निर्भरता वाले रोगों को ५ ग्राम करेले का चूर्ण पानी के साथ सेवन करने से लाभ होता है।।

(२) करेले के पत्तों का रस निकालकर ३० ग्राम रस नित्य पीने से लाभ होता है।।

(३) करेले की सब्जी मधुमेह के रोगी के लिए लाभदायक होती है।।

(४) नित्य दो करेले २ टमाटर एक खीरे का रस निकालकर पीने से शर्करा नियंत्रित रहती है,, किडनी को स्वस्थ रखने में मदद मिलती है।।

⭕️ तिल्ली बढ़ने पर– ३० ग्राम करेले का रस थोड़ी सी छाई और नमक मिलाकर नित्य पीने से लाभ होता है।।

⭕️ अम्लपित्त में– थोड़े से करेले के पत्ते एवं फूल घृत में भूनकर खाने से लाभ होता है।।

⭕️ पशुओं के मुख रोग में– गाय,, भैंस आदि के जीभ में कांटे निकल आने पर करेले के पत्तों को पीसकर जीभ पर लेप करने से लाभ होता है।।

⭕️कान दर्द में– करेले के पत्तों का रस या करेले के फलों का रस थोड़ा गरम करके ४-५ बूंद रूई में भिगो कर टपका देने से लाभ होता है।।

⭕️ ज्वर में– रविवार के दिन करेले की जड़ उखाड़ कर साफ पानी से धोकर एक टुकड़ा धागे के सहारे कमर में बांध देने से ज्वर दूर होता है।। नीम के पत्ते,, गिलोय गनवटी,, महासुदर्शन चूर्ण तथा अमृतारिष्ट इत्यादि कड़ुवे स्वाद वाली इन औषधियों का प्रभाव सभी ज्वर में होता है।। कालमेघ,, कुटकी,, चिरायता,, गिलोय चूर्ण को प्रमुखता से सभी ज्वरों में लाभप्रद पाया है।। अपामार्ग की जड़ भी दाहिने हाथ की कलाई पर बांध देने से लाभ होता है।।

⭕️ फोड़ा फुंसियों में– करेले की जड़ का उबटन २-३ बार लगाने से लाभ होता है।।

⭕️पारा के विष में– (१) पारे के विषैले दुष्प्रभाव को मिटाने के लिए करेले की २० ग्राम जड़ पानी में पीसकर कुछ दिन लगातार पिलाने से विष का दुष्प्रभाव निकल जाता है।

(२) पारा शरीर में जाने पर विषैला दुष्प्रभाव शारीरिक अंगों पर पड़ता है।। उस दुष्प्रभाव को नष्ट करने के लिए नित्य करेले का रस २० ग्राम सुबह शाम सेवन करें।।

⭕️बादी बवासीर में– करेले की जड़ पीसकर मस्से पर नियमित लेप करने से लाभ होता है।।

⭕️ खूनी बवासीर में– १० ग्राम करेले का रस ५ ग्राम देशी खाँड मिलाकर ३० दिन तक पीने से खून आना बंद हो जाता है।।

⭕️ मुंह के छालों में– करेले का रस २० ग्राम में थोड़ा शहद मिलाकर पीने से छाले मिट जाते हैं।।

⭕️हाथ पैरों की सूजन में– पत्ते या फल पानी में पीसकर लेप करने से लाभ होता है।। निर्गुंडी के पत्ते उपलब्ध हों तो पीसकर लेप में मिला सकते हैं।।

⭕️वमन में– बच्चों को उल्टी होने पर करेले के २ बीजों की मिंगी निकाल कर २ काली मिर्च पीसकर १ गिलास पानी में घोलकर छान लें,, इस पानी को थोड़ी मात्रा में ४_५ बार पिलाएं।।

⭕️ खसरा में– करेले के पत्तों का रस आधा कप लेकर थोड़ी हल्दी मिलाकर पीने से खसरा तथा अन्य विस्फोटक रोगों में लाभ होता है।।

⭕️ पाचन शक्ति कमजोर होने पर– वर्षा ऋतु में जठराग्नि मंद होने पर करेले की सब्जी खाने से जठराग्नि तेज होती है।।

⭕️ एग्जिमा की अचूक दवा– ५०० ग्राम तिल का तेल और ४५० ग्राम करेले के पत्तों का रस मिलाकर मंद आँच पर पकाएं,, ठंढ़ा होने पर शीशी में भरकर रख लें।। यह सिद्ध तेल लगाने से लाभ होता है।। सफेद नमक का सेवन न करें।।

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