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आओ शूक्ष्म वैदिक ज्योतिष तंत्र का रहस्य जानें ……
भाग्य, ज्योतिष और कर्म का आपसी सम्बन्धों का लाभ कैसे उठाऐं ..???
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जब ज्योतिष की बात होती है….
तब कोई “कर्मों” पर आधारित द्रष्टिकोण को प्रमाणित करने लगता है… तो कोई सिर्फ “भाग्य” या ईश्वरवाद को ही प्रमाणित करने पर आधारित हो जाता है।
परंतु जैसे:- पतंग, माँझा(धागा), और हवा तीनों के सुमेल से ही ऊँचाई प्राप्त कर सकती है…. वैसे ही मनुष्य भी भाग्य, कर्म और समय(ज्योतिष) तीनों को समझकर ही सरलता से लक्ष्य प्राप्त कर सकता है। इन तीनों के समग्र संतुलन को समझने का प्रयास करते हैं
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बडा ही अदभुत संयोग होता है भाग्य, कर्म और ज्योतिष का ये तीनों ही धागे मिलकर जीवन रूपी गाडी को खीचने के लिऐ मजबूत रस्सी बनकर एक साथ क्रियावान रहते है और मनुष्य को विभिन्न फल प्रदान करते है…. सही मार्गदर्शन इन फलों को भोगने के तरीकों में कितना और कैसे परिवर्तन ला सकता है । इसी पर आधारित कई लेखों का सार है ये आलेख… पूरा लेख अवस्य पढें… समझें, और लाभ उठाऐं।
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अगर यह सिर्फ यह मान लें कि जो भाग्य में लिखा है वही मिलेगा तो जीवन ज्यादा जटिल हो जाएगा। हमारा स्वभाव स्वयं का भाग्य बनाने का होना चाहिए ना कि यह मान लेने का कि जो किस्मत में होगा वह तो मिलेगा ही। कई बार लोग इस विश्वास में कर्म और प्रयासों से मुंह मोड़ लेते हैं। फिर हाथ में आती है सिर्फ असफलता। भाग्य को मानने वालों को कर्म में विश्वास होना चाहिए। भाग्य के दरवाजे का रास्ता कर्म से ही होकर गुजरता है । कोई कितना भी किस्मतवाला क्यों ना हो, कर्म के सहारे की आवश्यकता उसे पड़ती ही है। बिना कर्म के यह संभव ही नहीं है कि हम किस्मत से ही सबकुछ पा जाएं। हां, यह तय है कि अगर कर्म बहुत अच्छे हों तो भाग्य को बदला जा सकता है। बिना कर्म कोई ज्योतिष काम नहीं करेगा। परंतु योग्य ज्योतिषी ही ये बता सकता है कि कब कोंन सा कर्म करना उचित और लाभकारी हो सकता है जैसे…. हम अक्सर सड़कों से गुजरते हुए ट्राफिक सिग्रल देखते हैं। वे हमें रुकने और चलने का सही समय बताते हैं। ज्योतिष या भाग्य भी बस इसी ट्राफिक सिग्रल की तरह होता है।
भाग्यानुसार कर्म तो आपको हर हाल में करना ही पड़ेगा। ज्योतिष आपको यह संकेत कर सकता है कि हमें कब कर्म की गति बढ़ानी है, कब, कैसे और क्या करना है।
सावित्री की कथा देखिए:-
सावित्री राजकुमारी थी, पिता ने कहा अपनी पसंद का वर चुन लो। पूरे भारत में घूमने के बाद उसने जंगल में रहने वाले निर्वासित राजकुमार सत्यवान को जीवनसाथी के रूप में पसंद किया। राजा ने समझाया, नारद भी आए और बताया कि सत्यवान की आयु एक वर्ष ही शेष बची है। उससे विवाह करना, यानी शेष जीवन वैधव्य भेागना तय है। लेकिन सावित्री नहीं मानी। सत्यवान से विवाह किया। उसने एक वर्ष पहले ही तप, पूजा, उपवास शुरू कर दिए।जिस दिन सत्यवान की मौत होनी थी, वो पूरे दिन उसके साथ रही। यमराज उसके प्राण हरने आए। उसने यमराज से अपने पति के प्राणों के बदले में ससुर का स्वास्थ्य, उनका खोया राज और अपने लिए पुत्र मांग लिए। बिना सत्यवान के पुत्र होना संभव नहीं था। भाग्य का लिखा बदल गया। नारद की भविष्यवाणी को सावित्री ने भाग्य का निर्णय ना मानकर उसे भविष्य की प्रेरणा के रूप में समझा और तदानुसार अपना कर्म वेग बढा़या और पति के प्राण बचा लिए।
आवस्यकता होती है नारद जैसे ज्योतिषी और सावित्री जैसे यजमान की फिर निश्चित ही भाग्य को बदला जा सकता है।
ज्योतिष विज्ञान की आधार शैली :-
आकाश मंडल में ग्रहों की चाल और गति का मानव जीवन पर सूक्ष्म प्रभाव पड़ता है। इस प्रभाव का अध्ययन जिस विधि से किया जाता है उसे ज्योतिष कहते हैं। भारतीय ज्योतिष वेद का एक भाग है। वेद के छ अंगों में इसे आंख यानी नेत्र कहा गया है जो भूत, भविष्य और वर्तमान को देखने की क्षमता रखता है। वेदों में ज्योतिष को महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है। वैदिक पद्धति पर आधारित भारतीय ज्योतिष फल प्राप्ति के विषय में जानकारी देता है साथ ही अशुभ फलों और प्रभावो से बचाव का मार्ग भी देता है लेकिन पाश्चात्य ज्योतिष सिर्फ दृष्ट फलों की बात करता है।
आप का भाग्य तभी साथ देगा जब आप का कर्म ठीक होगा , और जब कर्म ठीक होगा तभी ज्योतिष के उपाय भी काम करेगे वो भी तब जब आप उसमे पूर्ण श्रद्धा और विश्वाश के करेंगे तथा ज्योतिष के संकेतों को प्रेरणा मानेंगे, नहीं तो चाहे कितना भी बड़ा ज्योतिषी आ जाये वो कुछ नहीं कर सकता है (ऐसे मानें कि ज्योतिष आपकी पतंग को ऊपर उडाने का समय और हवा की गती का वेग ही बता सकता है बाकी सब आपको करना हैं।)
कर्म की विवेचना:-
क्योंकि कर्म भी ३ प्रकार के होते है। 1.अदृढ़ कर्म 2. दृढ़ कर्म 3. दृढ़ अदृढ़ कर्म
दृढ़ कर्म:-
कर्म की इस श्रेणी में उन कर्मों को रखा गया है जिनको प्रकृति के नियमानुसार माफ नहीं किया जासकता ! जैसे:- क़त्ल, गरीबों को उनकी मजदूरी न देना, बूढ़े माँ – बाप को खाना न देना आदि ये सब कुछ ऐसे कर्म हैं जिनको माफ नहीं किया जा सकता !ऐसा व्यक्ति अपने जीवन में चाहे रोज शांति के उपाय करे लेकिन उसका कोई भी प्रत्युत्तर उन्हें देख नहीं पड़ता है। इनको प्रवल प्राश्चित विधानों से थोडा परिवर्तित किया जा सकता है।
दृढ़ अदृढ़ कर्म:-
कर्म की इस श्रेणी में जो कर्म आते है उनकी शांति उपायों के द्वारा की जा सकती है अर्थात ये माफ किये जाने योग्य कर्म होते हैं । इनको सहज उपायों से बदला जा सकता है।
अदृढ़ कर्म:-(नगण्य अपराध)
ये वे कर्म होते हैं जो एक बुरे विचार के रूप में शुरू होते हैं और कार्य रूप में परिणत होने से पूर्व ही विचार के रूप में स्वतः खत्म हो जाते हैं !अतः ये नगण्य अपराध की श्रेणी में आते हैं और थोड़े बहुत साधारण शांति – कर्मों के द्वारा इनकी शांति हो जाती है ! ऐसे व्यक्ति ज्योतिष के विरोध में तो नहीं दिखते लेकिन ज्यादा पक्षधर भी नहीं होते !
सभी को अपनी दिनचर्या में साधारण पूजन कार्य और मंदिर तीर्थ आदि जाने को अवश्य शामिल करना चाहिए क्योंकि ये आदत पता नहीं कितने ही अदृढ़ कर्मों से जाने – अनजाने में छुटकारा दिला देती है ! आप सभी जानते हें और वेदों में भी लिखा है।
भाग्य को समझें:-
—-“भाग्यं फलति सर्वत्र न विधा न च पौरूषमशुराग कृ्त विद्याश्च:,वने तिष्ठंति मे सुता: । “पांडवों की माता कुन्ती श्रीकृ्ष्ण से कहती है कि मेरा पुत्र महापराक्रमी एवं विद्वान है किन्तु हम लोग फिर भी वनों में भटकते हुए जीवन गुजार रहे हैं, क्यों कि भाग्य सर्वत्र फल देता है ।
भाग्यहीन व्यक्ति की विद्या और उसका पुरूषार्थ निरर्थक है ।वैसे देखा जाए तो भाग्य एवं पुरूषार्थ दोनों का ही अपना-अपना महत्व है, लेकिन इतिहास पर दृ्ष्टि डाली जाए तो सामने आएगा कि जीवन में पुरूषार्थ की भूमिका भाग्य से कहीं अधिक महत्व पूर्ण है। भाग्य की कुंजी सदैव हमारे कर्म के हाथ में होती है, अर्थात कर्म करेंगे तो ही भाग्योदय होगा। जब कि पुरूषार्थ इस विषय में पूर्णत: स्वतंत्र है । माना कि पुरूषार्थ सर्वोपरी है किन्तु इतना कहने मात्र से भाग्य की महता तो कम नहीं हो जाती ।आप देख सकते हैं कि दुनिया में ऎसे मनुष्यों की कोई कमी नहीं है जो कि दिन रात मेहनत करते हैं, लेकिन फिर भी उनका सारा जीवन अभावों में ही व्यतीत हो जाता है । अब इसे आप क्या कहेंगें ? उन लोगों नें पुरूषार्थ करने में तो कोई कमी नहीं की फिर उन लोगों को वो सब सुख सुविधाएं क्यों नहीं मिल पाई जो कि आप और हम भोग रहे हैं । एक इन्सान इन्जीनियरिंग/डाक्टरी/मैनेजमेन्ट की पढाई करके भी नौकरी के लिए मारा मारा फिर रहा है, लेकिन उसे कोई चपरासी रखने को भी तैयार नहीं, वहीं दूसरी ओर एक कम पढा लिखा इन्सान किसी काम धन्धे में लगकर बडे मजे से अपने परिवार का पेट पाल रहा है । अब इसे आप क्या कहेंगें ?एक मजदूर जो दिन भर भरी दुपहर में पत्थर तोडने का काम करता है–क्या वो कम पुरूषार्थ कर रहा है ?अब कुछ लोग कहेंगें कि उसका वातावरण, उसके हालात, उसकी समझबूझ इसके लिए दोषी है ओर या कि उसमें इस तरह की कोई प्रतिभा नहीं है कि वो अपने जीवन स्तर को सुधार सके अथवा उसे जीवन में ऎसा कोई उचित अवसर नहीं मिल पाया कि वो जीवन में आगे बढ सके या फिर उसमें शिक्षा की कमी है आदि आदि…ऎसे सैकंडों प्रकार के तर्क हो सकते हैं । मैं मानता हूँ कि इस के पीछे जरूर उसके हालात, वातावरण,शिक्षा दीक्षा, उसकी प्रतिभा इत्यादि कोई भी कारण हो सकता है लेकिन ये सवाल फिर भी अनुतरित रह जाता है कि क्या ये सब उसके अपने हाथ में था ? यदि नहीं तो फिर कौन सा ऎसा कारण है कि उसने किसी अम्बानी, टाटा-बिरला के घर जन्म न लेकर एक गरीब के घर में जन्म लिया । है किसी तर्कवादी के पास इस बात का उत्तर ? ये निर्भर करता है इन्सान के भाग्य पर— यह ठीक है कि इन्सान द्वारा किए गए कर्मों से ही उसके भाग्य का निर्माण होता है ।
लेकिन कौन सा कर्म, कैसा कर्म और किस दिशा में कर्म करने से मनुष्य अपने भाग्य का सही निर्माण कर सकता है— में एक सूत्र सुनता आया हूँ कि परिश्रम ही सफलता की कुंजी है। ये सिर्फ कर्म वाद है….
अब इस सूत्र में ज्योतिष का समावेष करता हूँ तब ये सूत्र होगा… सही समय और दिशा में किया गया.. “परिश्रम ही सफलता की कुंजी है।” और गलत समय या दिशा में किया गया पुर्सार्थ (कर्म) असफलता की गारंटी है। यहीं ज्योतिष की आवस्यता सुरू हो जाती है।
कैसे:-
सही दिशा और समय जानने का जो माध्यम है, उसी का नाम ज्योतिष है ।
जेसा की श्रीमद भागवत में भी लिखा हें—–भाग्य को बदला नहीं जा सकता। हाँ कर्म बदले जा सकते हैं । कर्म बदलने से भाग्य भी बदल जाता है । इसीलिये कहा जाता है कि भाग्य मनुष्य की मुट्ठी में होता है । चूँकि कर्मों का कर्त्ता मनुष्य ही हैं और कर्म ही परिस्थितियों से मिल कर भाग्य बनाते हैं अतः भाग्य का कर्त्ता भी मनुष्य ही है । कोई मनुष्य सीधे भाग्य को नहीं बदल सकता, उसे पहले कर्म बदलने पडेगें। और इसी बदलाव की गती दे सकता है ज्योतिष।
परिस्थितियाँ प्रायः मनुष्य के वश में नहीं हैं क्योंकि भले ही वे किसी भी कारण से बनी हों, बनने के बाद बदली नहीं जा सकतीं और न नष्ट ही की जा सकती हैं । अतः कह सकते हैं कि मनुष्य का अधिकार केवल कर्मों में ही है, परिस्थिति या फल में नहीं ।इसीलिये गीता में भगवान कृष्ण ने कहाहै…. कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन । तेरा अधिकार कर्मों में ही हैं; फलों में तो कभी नहीं।….. गीता के दूसरे अध्याय के (47 ) श्लोक में श्री कृष्ण कहते हैं, कि हे मनुष्य! तेरा केवल कर्म करने में ही अधिकार है कर्म के फलों में तेरा कोई हस्तक्षेप नहीं है!
होइहि सोई जो राम रचि राखा,
को करि तरक बडावहि साखा ।।
ये रामचरितमानस में तुलसी दास भी कहते है, कि होता वही है, जो राम अर्थात ईश्वर ने निर्धारित कर दिया है,इसलिए हमें व्यर्थ ही तर्क नहीं करना चाहिए !
महर्षि वेदव्यास और तुलसीदास के इन दोनों कथनों कि तुलना करे तो यही प्रतीत होता है , कि मनुष्य के जीवन पर भाग्य का ही प्रभाव होता है ! तो क्या ये सही है मनुष्य के द्वारा किये गए कर्मो का कोई औचित्य नहीं है और यदि है तो फिर इन दो महापुरुषों के कथनों में केवल भाग्यवादिता का ही उल्लेख क्यों हुआ है । इसी परिप्रेक्ष्य में यदि बात करे तो रामचरितमानस में ही तुलसीदास जी ने ही कहा है कि कर्म कि भी जीवन में उतनी ही उपयोगिता है जितनी भाग्य की !
कर्म प्रधान विश्वकरि राखा !
जो जस करिय सो तस फल चाखा!
अर्थात जो जैसा कर्म करेगा उसे वैसा ही फल प्राप्त होगा! अब यदि जीवन के साथ अध्यात्म कि तुलना कि जाये तो प्रतीत होता है कि, जब ये दो महापुरुष भी इन दोनों विचारों कि तुलना नहीं कर सके तो हमारी औकात ही क्या है ! परन्तु क्या ये सही है …,कि वेद व्यास और तुलसीदास जैसे महानुभाव भी कर्म और भाग्य कि गुत्थी कों सुलझा नहीं पाए थे !सोचने पर विश्वास तो नहीं होता लेकिन क्या करे कही इन दो विषयों का कोई स्पष्ट उल्लेख नहीं मिलता !फिर क्या करे कि इन दोनों विषयों का कोई स्पष्ट ज्ञान प्राप्त हो जाये !
बहुत बार ऐसा होता है कि जीवन की दूर की घटनाओं को देखना संभव नहीं हो पाता है और बहुत कुशल ज्योतिषी भी भविष्य की घटनाओं को पढने में सक्षम नहीं हो पाते किन्तु इसका अर्थ यह नहीं होता की ज्योतिषी के ज्ञान में कमी है. कई बार प्रश्नकर्ता के पाप कर्मों का भार इतना अधिक होता है की वह अच्छे से अच्छे ज्ञानी के विवेक और अंतर्दृष्टि के आगे एक दीवार बना देता है जिससे की ग्रहों को समझ पाना और अन्य गणनाएं करना मुश्किल हो जाता है. ज्योतिषी अगर साधना के उच्च स्तर पर है, जो वह कुछ हद तक उस सीमा को पार कर समस्या का समाधान ढूंढने में सक्षम हो जाता है. इसका तात्पर्य यह है की प्रश्नकर्ता को यह भी समझना चाहिए की ज्योतिष को एक विज्ञान की तरह लें. ।
उदाहरण के लिए चिकित्सा क्षेत्र में बहुत उन्नति होने के बाद भी कहीं न कहीं कुछ सीमा होती है और चिकित्सक को सारी जांच के परिणामों को अपनी बुद्धि के साथ रोग की पहचान करनी पड़ती है….. ज्योतिष में भी ग्रह स्थिति और अन्य योगों के द्वारा समस्याओं का कारण ढूंढा जाता है किन्तु ज्योतिष विज्ञान की भी अपनी सीमाएं हैं. ये सीमायें है : ज्योतिषी के ज्ञान में कमी, साधना के क्षेत्र में लगन का ना होना , प्रश्नकर्ता का अविश्वास और उसके बुरे कर्मों की तीव्रता. इस समस्या का समाधान करने के लिए आप जब भी किसी ज्योतिषी के पास जाएँ तो उसके बारे में पहले से पूरी तरह पता कर लें. जातक को स्वयं की ओर से न ही बार बार अविश्वास करना चाहिए और धैर्य रखना चाहिए.।
और ज्योतिषी उपायों के द्वारा अपने कर्मों का अँधेरा कम करना चाहिए. जैसे जैसे हमारे पिछले कर्मों का भार कम होता जाता है, भविष्य की चीज़ें स्पष्ट दिखने लगती हैं. इसी कारण सर्वप्रथम प्राथमिक उपाय करते रहें और समय समय पर मार्ग दर्शन अवश्य लेकर आगे के दिव्य उपायों की ओर कदम बढायें. भाग्य कौन बदल सकता है ? अत्यंत गुणी, आत्म साधक ज्योतिष ही भविष्य की सही दिशा जानकर उसमें बदलाव के उपाय कर सकता हैं. समय को सही तरीके से सिर्फ साधना की उच्चतम स्थिति में ही देखा जा सकता है. कई अल्प ज्योतिष वेक्ता एकाग्रता के कारण समय को सही तरीके से नहीं देख पाते है। साधना की उच्चता और ध्यान की गहनता में ही भाग्य (कर्मफल) को मनोवांछित दिशा देने का प्रायोजन हो सकता है, और नवीन भाग्य का निर्माण संभव है ।
क्योंकि भाग्य-परिवर्तन के लिऐ “त्रिकाल मंथन” (यानि :-भूत, वर्तमान और भविष्य को एक ही समय में विलोपित करके एक नवीन पुरुसार्थ का उपक्रम “उपाय” निश्चित करना होता है, जो अथाह ज्योतिषीय ज्ञान, पूर्ण एकाग्रता और प्रवल इष्टवल के कदापि संभव नहीं है।) ज्योतिषीय सूत्र तो पुस्तकों, नेट, वर्ग शिक्षण या अन्य साधनों के द्वारा भी सीखी जा सकती है, परन्तु भविष्य का सही ज्ञान, और भाग्य-परिवर्तन करने की क्षमता सिर्फ “दीर्धकालीन” इष्ट-साधना, और एकाग्रचित्त काल-साधना में ही संभव है।
क्योंकि फलित के लिए नियम :- हमारी कुंडली में केवल ग्रह हैं जो बदलते रहते हैं और उनका प्रभाव हमारे जीवन पर पड़ता है. और ज्योतिष में यही ऐसे कारक हैं जिन तक पहुंचना और कुछ हद तक समझ पाना हमारे लिए संभव है एवं इन्ही की योगादि तथा भोगादि दशानुसार … भाग्य-परिवर्तन हेतु कर्म का उचित काल और कर्म की श्रेणी(उपायों) का निर्धारण किया जाता है, जो सहज कार्य नहीं है।।
इसी को सरल भाषा मे ये कह सकते हैं कि….. ग्रहों के शुभ-अशुभ काल का निर्धारण करके हमारे वैदिक महिर्षियों ने अपने शूक्ष्मज्ञान से ज्योतिष, तंत्रादि, एवं कर्मकांड जैसी अतिशूक्ष्म वैदिक विज्ञान के उपायों के माध्यम से अपने प्रारब्ध कर्मों (ग्रह-फल) को बदलने की अतभुत चमत्कारी शैली प्रदान की है।
परंतु इन उपायों के सफल होने के लिये आवश्यक अंग हैं ज्योतिष पर पूर्ण श्रद्धा, विस्वास, समर्पण भाव और प्रारब्ध को बदले की प्रवल इच्छाशक्ति ।।
नए भविष्य निर्माण के लिए पहला कदम है अपनी कमियों को समझकर उन्हें दूर करने का पूर्ण प्रयास करना। जो भी उपाय करें..उसके लिए हमें शान्तचित्त, संयमित, और समर्पित होना चाहिए। साथ ही अपने कर्मों का सजग रह कर विश्लेषण और संषोधन भी करना चाहिए। यदि कमियों को स्वार्थ व अहंम के वशीभूत होकर हमेशा सही ही साबित करेंगे। तो कभी भी उन्नति नहीं कर पायेंगे और न ही भविष्य को बदल पायेंगे । ये निश्चित है कि…हमारे पूर्व के बुरे कर्मों ने ही वर्तमान को विषम परिस्थितियों में डाला है और हमारे अन्दर नकारात्मक कर्मों की प्रवृत्ति भी पैदा की है। यदि हम लोभी, स्वार्थी और सब कुछ सहज पाने की नीच प्रवृत्ति में ही लिप्त रह जायेंगे तो भविष्य बिगड़ता ही जाएगा । अतः सबसे महत्त्वपूर्ण है अपनी कमियों को समझना और दूर करना ।।
एक बात और किसी भी प्रारब्ध पाप कर्म के प्रभाव को निष्क्रिय करने के लिए वर्तमान में हमें उसके परिमाण, तीव्रता और गुणात्मकता से अधिक पुण्यकर्म या प्रायश्चित कर्म करने पड़ते है , तब कहीं एक साधारण परिवर्तन प्राप्त किया सकता है ।
*यही कर्म का अटल सिद्धांत है . अतः यह हमेशा ध्यान रखें कि समस्या जितनी बड़ी होगी उसी के अनुसार मंत्र जाप , दान, अनुष्ठान , और वैदिक तंत्रादि अन्य बडे उपायों की जरुरत पड़ती है. यह समझना एक भूल होती है कि बड़ी बड़ी समस्याएँ केवल एक छोटे से ही उपाय से शीघ्र संभव हो जायेगी , हाँ उस समस्या का वेग व तीव्रता कुछ सीमा तक कम नजर आ सकती है परन्तु परिस्थितियों में बदलाव नहीं ला सकते. पूर्व जन्म के कर्मों को निष्फल करने के लिए बहुत सघन प्रयासों की ज़रूरत होती है. कई बार इसमें पूरा जन्म भी लग जाता है.कर्मों की प्रबलता और उपायों में लगने वाला समय -कर्म फल की तीव्रता को 3 भागों में विभाजित किया गया है:१- दृधा २- दृधा – अदृधा ३- अदृधा जो दृधा कर्म होते हैं उनको किसी भी उपाय से आसानी से नहीं बदला नहीं जा सकता और ऐसे कर्मो के फल बहुत हद तक भोगने ही पड़ते है या विसाल पुण्य कर्मों से कुछ कम किऐ जा सकते हैं । कुंडली में जब एक ही परिस्थिति के होने के लिए कई ग्रह उत्तरदायी हो तो वह कठिन दृधा कर्मों को बताते हैं. ऐसी परिस्थिति में परिवर्तन लाना बहुत कठिन होता है . यह परिस्थिति और भी विकट हो जाती है जब लगन , चन्द्र लगन और सूर्य लगन में भी वही परिस्थितियाँ घटित हो रही हो. यह कर्म केवल इश्वर और गुरु की कृपा से ही बदलना संभव है।।
दृधा-अदृधा कर्म :- कर्मों की एक मिश्रित परिस्थिति होती है जिसमे कर्मों को निष्प्रभावी को किया जा सकताहै किन्तु अति कठोर प्रयासों की जरुरत होती है . इसमे समय भी अधिक लगता है और अदम्य इच्छा शक्ति व योग्य मार्गदर्शक की भी आवश्यकता होती है ।
अदृधा कर्म :- इन कर्मों के प्रभावों को छोटे-छोटे ज्योतिषीय उपायों से सहज व कम समय में परिवर्तित किये जा सकता है।।
इसलिऐ यह याद रखें की जो कर्म जितना अधिक प्रबल होगा उसको सही करने में समस्याए भी उतनी ही आती है. समय कठिन परीक्षा लेता है और कई बार ऐसी परिस्थितिया उत्पन्न होंगी कि उपाय करने का मन ही बदल जाये।।
भाग्य कैसे बदलता है -हम जो भी मानसिक, शारीरिक व भौतिक कर्म करते हैं, वह हमारे मानस पर संस्कार के रूप में अंकित हो जाते हैं और भविष्य में फलित होते हैं। उदाहरण – यदि हम जिस फलदार वृक्ष का बीज बोते हैं, तो हमें वही फल प्राप्त होता हैं. उस वृक्ष से हम अन्य फल नहीं पा सकते. किन्तु वह वृक्ष का बीज ऊचित मात्रा- रूप से फल दे इसके लिए बाह्य परिस्थितियाँ भी उत्तरदायी होती हैं, जैसे की ज़मीन, खाद, ऋतू और पानी ।
उदाहरण में बीज “कारण” हैं बदला नहीं जा सकता….. और और अन्य सभी “कारक” हैं जिनकी मात्रा-समय आदि परिवर्तित किये जा सकते हैं । इससे यह सिद्ध हो गया कि किसी भी कारण (बीज) को फलित होने के लिए उपयुक्त कारक (परिस्थितियाँ) चाहिए होती हैं । अब हम मान लें कि हमने अच्छा बीज, अच्छी ज़मीन और उचित समय पर बो दिया और समय पर खाद-पानी भी दिया….. फिर भी फल पाने के लिए हमें पौधे के वृक्ष बनने और फल पकने के लिए निश्चित ऋतु तक प्रतीक्षा करनी पड़ती है, इसी तरह, जब हम कर्म रुपी बीज बोते हैं या उपाय करते हैं, तो उसके फल के लिए हमेंधैर्य रखना चाहिए और समय की प्रतीक्षा करनी चाहिए ।। इसी बात को अब हम बुरे कर्मों के लिए समझते हैं. अगर हमने पिछले जनम में कोई बुरा कर्म रुपी बीज बो रखा है, अगर हम उसे सही परिस्थितियाँ उपलब्ध न कराएं तो उसका फल हमें नहीं मिलेगा. *यही भविष्य बदलने की कुंजी है।।*
और ज्योतिष विज्ञान -हमारे कर्मो का ढांचा बताता है, यही हमारे भूत वर्तमान और भविष्य में एक कड़ी बनता है।
इसी आधार भूत सिद्धांत पर विद्वान, ज्योतिषी, तत्व-ज्ञानी और तंत्रज्ञ भाग्य परिवर्तन के वैदिक उपायों जैसे तंत्र-मंत्र-यंत्र, कर्मकांड, व्रत, दान आदि अनुष्ठान निर्धारित करते हैं।।
ज्योतिष विज्ञानं हमारे कर्मो का ढांचा बताता है . यह हमारे भूत वर्तमान और भविष्य में एक कड़ी बनता है. कर्म चार प्रकार के होते है:१- संचित २- प्रारब्ध ३- क्रियमाण ४- आगम संचित –
1- संचित कर्म :-समस्त पूर्व जनम के कर्मो का संगृहीत रूप है । जो भी कर्म पिछले सारे जन्मों में जानकर या अनजान रूप से किये होते है वह सभी हमारे कर्म खाते में संचित हो जाते है.
वो जैसे-२ परिपक्व होते जाते है हम उसे हर जन्म में भोगते है. जैसे किसी भी वृक्ष के फल एक साथ नहीं पकते, बल्कि फल प्राप्ति के महीने में अलग – अलग दिनों में ही पकते है।
2-प्रारब्ध :– प्रारब्ध कर्म , संचित कर्म का वह भाग होता है जिसका भोग वर्तमान जनम में करने वाले है . इसी को भाग्य भी कहते है. समस्त संचित कर्मों को एक साथ नहीं भोगा जा सकता। वह कर्म जो परिपाक हो गया है यही समय दशा अन्तर्दशा के अनुसार जाना जाता है ।।
3-क्रियमाण:- क्रियमाण कर्म वह कर्म है जो हम वर्तमान में करते है किन्तु इसकी स्वतंत्रता हमारे पिछले जन्म के कर्मो पर निर्भर करती है ये कर्म इश्वर प्रदत्त वह संकल्प शक्ति है, जो हमारे कई पूर्व जन्म के कर्मो के दुष्प्रभावों को समाप्त करने में सहायता करती है. उदाहरण के लिए वर्तमान जन्म में माना कि क्रोध अधिक आता है. यह क्रोध कि प्रवृत्ति पिछले कई जन्मों के कर्मों के कारण बन गयी है. यह तो सर्व विदित है कि क्रोध में कितने गलत कार्य हो जाते है. अगर कोई ध्यान और अन्य उपायों के द्वारा क्रोध को सजग रहकर नियंत्रित करे तो शनै-शनै प्रयासों के द्वारा क्रोध पर संयम पाया जा सकता है और भविष्य में कई बुरे कर्मों और समस्याओ जैसे कि रिश्तों में तनाव इत्यादि को दूर किया जा सकता है.
4-आगम :– आगम करम वह नए करम है जो की हम भविष्य में करने वाले हैं. यह कर्म केवल ईश्वर व गुरू कृपा से ही संभव है.जैसे की भविष्य में होने वाली घटनाओं का पूर्वाभास और उस समस्या के समाधान के लिए विद्वानौं के द्वारा दिशा निर्देश. जैसे- जैसे हमारे पाप कर्मों का क्षरण होता जाता है, उच्च शक्तियों की सत्संग मिलने लगता है और हम पुण्य कर्म करके अपना भविष्य अपने विचारों, शब्दों और कर्मो के द्वारा बनाते है. कर्म दो प्रकार के होते है – शुभ और अशुभ. दूषित कर्म जीवन में दुःख लाते है . हमारे पूर्व जनम के कर्म मन को प्रभावित करते है . अगर हम नकारात्मक विचारों को, जो मन को निर्वल बनाते है, ध्यान और उपायों के द्वारा दूर करें तो यही मन सकारात्मक विचारों की उर्जा से हमारे कर्मो को शुद्ध कर देता है जिससे एक नए भविष्य का निर्माण संभव हो जाता है ।
वैदिक उपायों से पुराने कर्मो को संतुलित कर देते है तो मन के ऊपर से उनकी बाधा हट जाती है. भविष्य उसी तरह से परिवर्तित होता है जब चेतना अथवा मन परिवर्तित होता है . किसी भी समस्या से मुक्ति मिल सकती है केवल सहज रूप से सही दिशा जानकर उस दिशा में प्रयास करने की आवस्यकता होती है।।
ग्रह हैं कर्म-निर्धारण का वैदिक विज्ञान….
ग्रह हमारे कर्मों का प्रतिनिधित्व करते हैं. उनकी गति यह निर्धारित करती है की कब किस समय की उर्जा हमारे लिए शुभ या अशुभ है।काल की एक निश्चित्त प्रवृति होंने के कारण एक साधक ज्योतिषी उसकी लय-ताल को जानकर भूत, वर्तमान और भविष्य में होने वाली घटनाओं का विश्लेषण कर सकता है.एक ही ग्रह अपने चार स्वरूपों को प्रदर्शित करता है. अपने निम्नतम स्वरुप में अपने अशुभ स्वभाव/राक्षस प्रवृत्ति को दर्शाते हैं।। अपने निम्न स्वरुप में अस्थिर और स्वेच्छाचारी स्वभाव को बताते हैं।। अपने अच्छे स्वरुप में अच्छी प्रवृत्तियों, ज्ञान, बुद्धि और अच्छी रुचियों के विषय में बताते हैं।। अपनीउच्च स्थिति में दिव्य गुणों को प्रदर्शित करते हैं, और उच्चतम स्थिति में चेतना को परम सत्य से अवगत कराते हैं।।
उदहारण के लिए मंगल ग्रह साधारण रूप में लाल रंग की ऊर्जा का प्रतिनिधित्व करता है. अपनी निम्नतम स्थिति में वह अत्याधिक उपद्रवी बनाता है. निम्न स्थिति में व्यर्थ के झगड़े कराता है. अपनी सही स्थिति में यही मंगल ऐसी शक्ति प्रदान करता है की निर्माण की असंभव संभावनाएं भी संभव बना देता है.ज्योतिष विज्ञान के माध्यम से जब हमें समस्याओं का कारण ग्रहों के माध्यम से पता चलता है, तो उन्ही की उर्जा को नकारात्मकता से हटाकर पूजा, दान, मंत्र, इत्यादि विधानों से सकारात्मक रूप में बदल देते हैं. क्योंकि ऊर्जा का कभी क्षय नहीं होता किन्तु उसका स्वरुप परिवर्तित किया जा सकता है.यही सूक्ष्म परिवर्तन भाग्य को परिवर्तित करने में बड़ा सहायक होता है।।
ग्रह केवल बंधन का कारण ही नहीं वरन उन समस्याओं से मुक्ति का मार्ग भी दिखाते हैं। ज्योतिष को उचित ढंग से प्रयोग किया जाए तो हमें और विश्व चेतना से सामंजस्य स्थापित कराता है और ग्रहों की भौतिक सीमाओं से भी ऊपर निकलने की शक्ति दे सकता है,जो कि परमगती तक जाने के लिए आवश्यक है.।
भाग्य कैसे बनता है –हर व्यक्ति का भाग्य उसके पूर्व जन्म के कर्मों के अनुसार निर्धारित होता है और उन्ही कर्मों की वजह से वर्तमान जन्म में एक विशेष तरीके से व्यवहार करने के लिए बाध्य होता है. सुख-दुःख, धन-गरीबी, क्रोध, अहंकार, आदि गुण जो भी हम जीवन में पाते हैं वह सब पूर्व निर्धारित होता है लेकिन कुछ नवीन कर्मों से प्रारब्ध कर्मफल में परिवर्तन संभव है ।।
साधारण व्यक्ति भाग्य को परिवर्तित नहीं कर सकते हैं और ना ही भाग्य के विषय में आसानी से जाना जा सकता है । ज्योतिष केवल घटनाएं जानने का विज्ञान नहीं है, वह हमें हमारा भूत और भविष्य भी बताता है. किन्तु इसके लिए साधनारत योग्य ज्योतिषी की आवश्यकता होती है .समय क्या है और कैसे बनता है -समय ही एक सबसे बड़ी शक्ति है जो की पूरे ब्रह्माण्ड को नियंत्रित करती है . समय की निश्चित गति होती है. ग्रहों की अलग अलग गति हमारे जीवन में भिन्न भिन्न प्रवर्तिंया लाती है. उदहारण के लिए धरती का अपनी धुरी पर घूमना दिन और रात बनाता है, चन्द्रमा की पृथ्वी के चारों ओर गति महीने, और सूर्य के केंद्र में धरती की परिक्रमा वर्ष निर्धारित करती है. समय के हर पल की गतिमें एक विशेष गुण होता है. जब भी हमारे जीवन में कुछ विशेष समय होता है, वह सृष्टि के समय की तरंगों के समानांतर होता है. उदाहरण के लिए हमारे जीवन में विवाह अथवा व्यवसाय शुरू करने का समय, अन्तरिक्ष के समयचक्र में भी उर्जा की अधिकता से पूर्ण होता हैं।
*जैसे उचित समय पर वोया गया बीज ही पौधा बनकर फल दे सकता है... इसी तरह सही विद्वान ज्योतिषी द्वारा ली गयी कर्म प्रेरणा भी कर्म परिवर्तन में सहायक होकर ...कर्मफल के असर में परिवर्तन ला सकती है ।।*
शाब्दिक त्रटियों के लिऐ क्षमाकरें।
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