कर्म
कर्म की गति गहन है।अगर आप सत्य धर्म पर नहीं हैं। असत्य का आचरण करते है, कामनाओं के वशीभूत होकर कर्म कर रहे है जो सत्य और धर्म के विरुद्ध है।छल प्रपंच चोरी बेईमानी में लगे हैं। तो शरीर रहते दुख और आपकी यात्रा नर्क की है ।
यदि आप ऐसे कर्म करते है जो सत्य धर्म के अनुसार है सत्य , संयम , ईमान , सदाचार, सेवा पर चलते हैं और कुकर्म आपको छु कर भी नहीं जा रहा है। शरीर रहते सुख रहेगा, यात्रा स्वर्ग की होगी।
संसार से विरक्त होकर समाधि स्थिति में रहते हैं।शरीर और शरीर सम्बन्धियों में के लिए चिंतित नहीं है।शरीर रहते चिदानंद स्थिति में आत्मामय रहेंगे। समाधि की स्थिति में शरीर छोडतें हैं शिवलोक ब्रह्म लोक जाते हैं।
आप अकर्म में हैं। जिसमे आप कर्ता नहीं है और आपके भाव में किसी प्रकार के कर्म फल की इच्छा नहीं है । परमात्मा की कृपा से और प्रकृति द्वारा होते हुए दिखाई देते हैं , प्रकृति का सब खेल दिखाई दे रहा है।शरीर रहते परमानंद में रहेंगे, उन्मुक्त रहेंगे। परमात्मामय स्थिति में आप रहते हैं और शरीर छोड़ते है तो आप परमधाम को प्राप्त होते है ।
अब आप इन में से किस दिशा की यात्रा करना चाहते हैं। इसका निर्णय आपको करना है जीव को स्वतंत्रता प्राप्त है । जीव जिस गति में चलना शुरू कर देगा प्रकृति उसकी उसी दिशा में चलने में सहायता करेगी । अगर चोरी कोई करेगा तो प्रकृति उसे उसी दिशा में साथ होगी।हाँ बीच बीच झटका अवश्य देगी । कोई हत्यारा होगा तो ऐसा नहीं है कि भगवान उसकी श्वांस रोक देंगे । बल्कि वो जिस दिशा में जायेगा पृकृति उसकी उसी दिशा में जाने के लिए सहायता करेगी । यह सृष्टि का विचित्र खेल है । अब प्रत्येक जीव को अपना निर्णय स्वयं करना होता है कि वो किस दिशा में जाना चाहता है। सत्य ,संयम ,ईमान (सदाचार) सेवा पर चलना होगा ।आप माया के क्षेत्र को छोड़कर भगवद् क्षेत्र में प्रवेश करिए। माया के क्षेत्र में है तो कर्म और भोग के क्षेत्र में है वहां से अपने शरीर को निकालकर धर्म और मोक्ष क्षेत्र में भगवद् विधान में रखिये । भगवद्कृपा से जीव का कल्याण होगा
जय पर्शुराम