🌸🙏साधना🙏🌸
~~~~~
शरीर के कष्ट से बडा कष्ट मन का है। कहते हैं मन को साधना ही मुश्किल काम है। व्रत, उपवास, चिंतन, ध्यान, दान और प्रार्थना से मन को नियंत्रित करने की कोशिशें चलती रहती हैं। निरंतर आत्म-चिंतन और सदाचरण से चंचल मन पर नियंत्रण किया जा सकता है।
हृदय में ही हमारी आत्मा का निवास है। आत्मा को घेरे हुए एक चिन्मय कोष होता है, जिसे चित्त कहते हैं। चिन्मय कोष के ऊपर मनोमय कोष है। इसी को मन कहते हैं। चित्त चेतन है, मन संकल्प का केंद्र है। मन प्रेरक है। मस्तिष्क एवं इंद्रियां इसी से प्रेरित होती हैं। इसका कार्य आत्मा से प्राप्त संदेशों का क्रियान्वयन करना है। मन से प्रेरणा प्राप्त करके ज्ञानेंद्रियां एवं कर्मेंद्रियां कार्य करती हैं।
मन-शक्ति और प्राण-शक्ति
आत्मा को देखने की दो शक्तियां हैं। एक है, मन-शक्ति, दूसरी प्राण-शक्ति। मन की दो श्रेणियांं हैं-सिद्ध मन और असिद्ध मन। सिद्ध मन से ही चित्त वृत्तियों का निरोध हो सकता है। असिद्ध मन से मन शक्तियों का विकास नहीं कर सकता। मन को सिद्ध करने के लिए एक निश्चित पद्धति अपनानी पडती है।
जीवन में निरंतर प्रेरणा मिलती रहे, व्यक्ति उत्साहित रहे, आधुनिक सुख-सुविधाओं का उपयोग करता रहे, सही मार्ग पर भी चलता रहे, चिंताओं और दुख के दलदल में न फंसे, यह सब तभी संभव हो सकता है, जब वह अपने मन की शक्तियों का प्रयोग अच्छी तरह कर सके। मन की अनेक शक्तियां हैं। संकल्प मन का धर्म है, इच्छा संकल्प की जननी है। संकल्प जहां होगा, वहीं चिंतन प्रारंभ होगा और वहीं से क्रिया आरंभ होगी।
“मन की शक्ति” जिसे हम पूर्वाभास, छठी इंद्री और अंग्रेजी में सिक्स्थ सेंस कहते हैं । सिक्स्थ सेंस को जाग्रत करने के लिए योग में अनेक उपाय बताए गए हैं। इसे परामनोविज्ञान का सर्वोच्च विषय भी माना जाता है । असल में यह संवेदी बोध का मामला है। गहरे ध्यान प्रयोग से यह स्वत: ही जाग्रत हो जाती है । मेस्मेरिज्म या हिप्नोटिज्म जैसी अनेक विद्याएँ इस छठी इंद्री के जाग्रत होने का ही कमाल होता है ।
क्या है छठी इंद्री ?
मस्तिष्क के भीतर कपाल के नीचे एक छिद्र है, उसे ब्रह्मरंध्र कहते हैं, वहीं से सुषुम्ना रीढ़ से होती हुई मूलाधार तक गई है । सुषुम्ना नाड़ी जुड़ी है सहस्रकार से इड़ा नाड़ी शरीर के बायीं तरफ स्थित है तथा पिंगला नाड़ी दायीं तरफ अर्थात इड़ा नाड़ी में चंद्र स्वर और पिंगला नाड़ी में सूर्य स्वर स्थित रहता है। सुषुम्ना मध्य में स्थित है, अतः जब हमारी नाक के दोनों स्वर चलते हैं तो माना जाता है कि सुषम्ना नाड़ी सक्रिय है। इस सक्रियता से ही सिक्स्थ सेंस जाग्रत होता है। इड़ा, पिंगला और सुषुम्ना के अलावा पूरे शरीर में हजारों नाड़ियाँ होती हैं। उक्त सभी नाड़ियों का शुद्धि और सशक्तिकरण सिर्फ प्राणायाम और आसनों से ही होता है। शुद्धि और सशक्तिकरण के बाद ही उक्त नाड़ियों की शक्ति को जाग्रत किया जा सकता है।
कैसे जाग्रत करें छठी इंद्री ?
यह इंद्री सभी में सुप्तावस्था में होती है। भृकुटी के मध्य निरंतर और नियमित ध्यान करते रहने से आज्ञाचक्र जाग्रत होने लगता है जो हमारे सिक्स्थ सेंस को बढ़ाता है। योग में त्राटक और ध्यान की कई विधियाँ बताई गई हैं। उनमें से किसी भी एक को चुनकर आप इसका अभ्यास कर सकते हैं।
अभ्यास का स्थान :
अभ्यास के लिए सर्वप्रथम जरूरी है साफ और स्वच्छ वातावरण, जहाँ फेफड़ों में ताजी हवा भरी जा सके अन्यथा आगे नहीं बढ़ा जा सकता।