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मोह, ममता, अहंकार और महाभारत

जिस भी श्रेष्ठतम कार्य का उद्देश्य
अहंता और ममता होगी तो अन्त में
उसका विनाश अवश्यंभावी है। – महाभारत

महाभारत में एक बहुत बढ़िया सांकेतिक कथा आती है कि एक दिन गांधारी ने निर्णय किया कि मैं अपनी आँख की पट्टी खोलूँगी और कब निर्णय किया जब कौरवों की सेना समाप्त होने लगी, दुर्योधन हार के निकट पहुँच गया तो गांधारी को चिंता हुई कि मेरे पुत्र की मृत्यु ना हो जाए। दुर्योधन है अहंकार। यह परिवार बड़ा विलक्षण है, मोह – धृतराष्ट्र, ममता – गांधारी और अहंकार- दुर्योधन। और तब ममता ने अहंता को बचाने की चेष्टा की। ममता ने अंहता को बचाने के लिए क्या किया ? ममता ने अंहता को बचाने के लिए दुर्योधन को आदेश दिया कि तुम नग्न होकर मेरी सामने आ जाओ। इतने दिनों से मैंने आँख की पट्टी नहीं खोली है। मेरी आँख खुलते ही तुम्हारा शरीर वज्र का हो जाएगा और तुम्हें कोई नहीं हरा सकेगा। तो इसका अभिप्राय क्या हुआ ? सद्गुणों के होते हुए भी उसका उद्देश्य ममता का विस्तार हो और अंहता की रक्षा हो, तो परिणाम क्या हुआ ?
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जब यह समाचार पांडवों की सेना में पहुँचा कि आज तो गांधारी आँख की पट्टी उतारेगी और दुर्योधन का शरीर वज्र का हो जाएगा, तो बेचारे पांडव तो उदास हो गए। बोले – इतनी महान पतिव्रता गांधारी, अपनी इतनी बड़ी शक्ति का इस प्रकार उपयोग करेगी तो दुर्योधन को कोई मार न सकेगा। पर भगवान् श्री कृष्ण ने सुना तो मुस्कुराने लगे। भगवान् कृष्ण से पूछा गया कि महाराज ! आप हँस क्यों रहे हैं ?
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भगवान् कृष्ण बोले कि गांधारी की आंखों पर अभी तक तो कपड़े की पट्टी बंधी थी। अब वह पट्टी को उतार नहीं रही है, ममता की पट्टी को और चढ़ा रही है। क्यों ? बोले अगर उसमें ममता का अतिरेक न होता तो समझ लेती कि संसार में अगर आज तक कोई अमर नहीं हुआ है, तो मेरा बेटा कैसे अमर हो जायेगा। और अमर करने की चेष्टा भी किसकी ? दुष्ट दुर्योधन के द्वारा द्रोपदी को नग्न कराये जाते समय भी तो गांधारी थी। और अगर गंधारी की आँखों में अगर वज्र बनाने की शक्ति थी, तो गांधारी की आँखों में भस्म करने की भी तो शक्ति थी। अगर वह दुर्योधन को यह कह देती कि अगर तुम अन्याय करोगे, तो मैं आँख की पट्टी खोलूंगी और तुम भस्म हो जाओगे, तो सारा अनर्थ रुक जाता।
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पर दुर्योधन के अन्याय को अन्याय समझते हुए भी उन्होंने कभी दुर्योधन के सामने यह प्रस्ताव नहीं किया। और जब दुर्योधन पर संकट आ गया, तो संकट आने पर उसकी रक्षा करने के लिए अपनी पतिव्रत शक्ति का उपयोग करने के लिए प्रस्तुत हो गई। और इसका अभिप्राय यह है कि चाहे हममें कितने भी सदगुण क्यों न हों, कितनी भी विशेषताएँ क्यों न हों, ममता का अतिरेक हो और हम ममता से अंहता की रक्षा का प्रयास करें, तो परिणाम क्या हुआ ? क्या दुर्योधन अमर हो पाया ? भगवान् तो अहम् को मिटाने के लिए ही कृत संकल्प हैं। इसीलिए दुर्योधन जब नग्न होकर जाने लगा तो उन्होंने देवर्षि नारद को प्रेरणा की और वे जिस मार्ग से दुर्योधन जाने लगा उस मार्ग पर सामने आ गये। दुर्योधन लजाकर बैठ गया। नारदजी कहने लगे, ये तुमने क्या किया ?
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उसने कहा कि मैं माँ की आज्ञा का पालन करने जा रहा हूँ। नारद बहुत हँसे। बोले कि हाँ, तुम तो बड़े आज्ञाकारी पुत्र हो ! इसका अर्थ है यह है की इतनी आज्ञाएं दी गई, किसी का पालन नहीं किया, लेकिन जब स्वार्थ की बात आ गई तो आज्ञाकारी पुत्र बन गया — स्वार्थ परायण दुर्योधन। नारद बोले – भले आदमी, जब तुम्हें मेरे सामने इतनी लज्जा आ रही है तो तुम जब नग्न दशा में गांधारी के सामने जाओगे, तो तुम्हारी क्या दशा होगी। भले आदमी, कम से कम कपड़े की एक पट्टी तो कमर पर लगा लो। और दुर्योधन ने इसे मान लिया।
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गांधारी ने जब अपनी आँख की पट्टी हटाई, तो दुर्योधन का सारा शरीर वज्र का हो गया। पर विचित्र बात यह है कि जिस आँख में इतना चमत्कार था कि सारा शरीर वज्र का हो गया तो क्या उस आंँख में इतनी शक्ति न थी कि कपड़े की पट्टी को बेधकर शरीर के उस भाग को भी वज्र का बना देती ? यह कपड़े की पट्टी कौन-सी है ? गांधारी का जो संकल्प है, ये तो त्याग की महिमा है। लेकिन यह कपड़े की पट्टी क्या है ? यह है भगवान की इच्छा भगवान का संकल्प। भगवान् के संकल्प को मिटा करके कोई कितना भी बड़ा तपस्वी, त्यागी कितना भी उत्कृष्ट चरित्र वाला क्यों न हो, अगर भगवान् ही नहीं चाहते हैं, तो संकल्प पूरा नहीं होता। जब भगवान् के सामने यह बात आई तो भगवान् ने हँसकर कहा — गांधारी अपने पुत्र को अमर बनाते-बनाते अन्त में अपने पुत्र के मरने का कारण बन गयी। क्यों ? बोले कि अभी तक तो पता नहीं था कि दुर्योधन कहाँ से मरेगा। पर अब पता चल गया कि कमर पर मारने से मरेगा। तो परिणाम यह हुआ कि दुर्योधन का विनाश हुआ।
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मानों संकेतिक अभिप्राय यह है कि जिस भी श्रेष्ठतम कार्य का उद्देश्य ममता और अहंकार होगा तो अन्त में उसका विनाश अवश्यम्भावी है।

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