Phone

9140565719

Email

mindfulyogawithmeenu@gmail.com

Opening Hours

Mon - Fri: 7AM - 7PM

नाभि खिसकने पर उपचार

नाभि मानव शरीर का केन्द्र है। नाभि ही गर्भस्थ शिशु का जीवन-स्त्रोत तथा माता एवं गर्भ के मध्य सेत का कार्य करती है। कुदरती रूप से हमारे शरीर में “नाभि-चक्र एक निर्घारित स्थान पर स्थित रहता है।” मनुष्य मात्र के स्वास्थ्य के संरक्षण संवर्घन के लिए “नाभि चक्र” का अपने नैसर्गिक स्थान पर स्थित होना अत्यावश्यक है। नाभि-चक्र का अपने मूल-स्थान से लेश मात्र भी हटना कठिनतम बीमारियों को पैदा करता है।

एक्यूप्रेशर चिकित्सा-पद्धति में “नाभि-चक्र” को सूर्य-केन्द्र कहा जाता है। विशेष्ाज्ञों के अनुसार सूर्य केन्द्र उदर के समस्त अवयवों को संचालित करता है।
क्यों पलटती है नाभि?

नाभि -चक्र के अपने मूल स्थान से हटने को नाभि-खिसकना, नाभि पलटना, पिचोटी- खिसकना, धरण जाना इत्यादि नामों से जाना जाता है। आयुर्वेदीय भाष्ाा में इस रोग को “नाभि-भ्रंश” कहा गया है। नाभि-खिसकने के प्रमुख कारण इस प्रकार हैं:

शक्ति से अधिक मात्रा में भार उठाना।
मल-मूत्र के वेगों को रोकना।
निरन्तर भय-पूर्ण स्थितियों में रहना।
चिंता-भय-क्रोध इत्यादि भावनात्मक विकारों से पीडित रहना।
बहुत अधिक उपवास करना।
रात को देरी तक जागना।
अत्यधिक भोग-विलास।
अपान वायु को बढ़ाने वाले आहार-विहारों का अत्यधिक सेवन करना।

नाभि पलटने के लक्षण
भूख नहीं लगना।
पेट में मीठा-मीठा दर्द बना रहना।
जी-मिचलाना, सुस्त रहना
अपान वायु का बनना।
कभी कब्ज तो कभी दस्त लगना।

इन लक्षणों का समय पर उपचार नहीं करने पर विविध ह्वदय रोगों, बवासीर, çस्त्रयों के मासिक धर्म से सम्बन्घित विविध विकार, सफेद पानी ल्यूकोरिया, हर्निया इत्यादि की उत्पत्ति होनी सम्भव है। चिड़चिड़ापन, किसी काम में मन नहीं लगना, निराशा के भावों की उपस्थिति, बिना किसी कारण के ही भय लगना, बेचैनी इत्यादि मनोदैहिक (सायकोसोमेटिक) तकलीफें भी नाभि खिसकने से पैदा होती हैं।

विशेष्ा लक्षण
नाभि-चक्र जब अपने केन्द्र स्थान से कुछ ऊपर की ओर खिसकता है, तो उल्टी, अफरा, कब्ज इत्यादि लक्षण पैदा होते हैं।
नाभि-चक्र जब अपने केन्द्र स्थान से नीचे की ओर खिसकता है तो अपच, पेट दर्द, पेट में गुड़गड़ाहट की आवाजें आने लगती हैं।
जब नाभि-चक्र दाहिनी अथवा बांई ओर खिसकता है,तो पेट में तेज दर्द होता है और यह दर्द औष्ाधीय-उपचारों से ठीक नहीं होता है।

परीक्षण-विधियां
सवेरे मल-मूत्र का त्याग करने के उपरान्त, बिना कुछ सेवन किए भूमि पर पीठ के बल लेट जाएं। दोनों पैरों को बिल्कुल सीधा समानान्तर रखते हुए सूक्ष्म अवलोकन करें। यदि किसी भी पैर का अंगूठा दूसरे पैर से कुछ ऊंचा नजर आए, तो समझ लें कि नाभि-चक्र अपने स्थान से खिसका हुआ है। अच्छा होगा कि परीक्षण करते समय दूसरे व्यक्ति का सहयोग लें।

भूमि पर सीधे लेट जाएं। नाभि पर अपने दाहिने हाथ का अंगूठा रखकर उसे हलका-सा दबाएं। यदि नाभि-चक्र अपने सही स्थान पर हुआ, तो अंगूठे के नीचे नाड़ी के स्पदनों का सुस्पष्ट आभास होगा। यदि इस स्थान पर स्पन्दन नहीं मिलता है तो नाभि के चारों तरफ तीन-चार अंगुल क्षेत्र तक क्रमश: पूर्ववत दबाव देते हुए परीक्षण करें। यदि नाभि-चक्र खिसका हुआ है, तो ऎसी स्थिति में नाभि के ऊपर, नीचे, दाहिने अथवा बांई ओर स्पन्दन अनुभव होगा।

कुछ आसान तरीके
धागे की बत्ती बनाकर नासिका छिद्रों में प्रविष्ट कराएं। इससे छींक आएगी। बार-बार छींक आने से “नाभि-चक्र” अपने स्थान पर आ जाएगा।
बार-बार नाभि खिसकने की शिकायतों को रोकने के लिए पश्चिमोत्तानासन, उत्तान-पादासन, धनुरासन, मत्स्यासन तथा जानु-शीष्ााüसन से उपयोगी हैं।
सीधे खड़े होकर, दोनों पैर मिलाएं। दाहिने हाथ की सबसे छोटी अंगुली “अनामिका” का अग्र भाग “नाभि छिद्र” पर रखते हुए, उसी हाथ का अंगूठा नाक के अग्र भाग से स्पर्श करने का प्रयास करें।

Recommended Articles

Leave A Comment