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🚩🔱🕉️🔥📿⚛ गायत्री की पंचकोशी साधना, मानव को महामानव बना देती है। उच्चस्तरीय साधना का ज्ञान विज्ञान:


                             पाँच कोश मानवी चेतना के ही पाँच स्तर हैं। मनुष्य के सूक्ष्म शरीर के पाँच कलेवर हैं।

(1) अन्नमय कोश, (2) प्राणमय कोश (3) मनोमय कोश (4) विज्ञानमय कोश (5) आनंदमय कोश।
आत्मा परमात्मा के मध्य अगणित आदान प्रदान इन्हीं पाँच कोशों के द्वारा होते हैं।

जो व्यक्ति जितने कोशों पर अधिकार कर लेता है, वह शक्तिहीनता, तुच्छता से उतना ही ऊपर उठता जाता है। पाँच कोशों पर अधिकार कर लेने वाला व्यक्ति देवपुरुषों की श्रेणी में जा विराजता है।

इसका अर्थ यह नहीं कि वह जो चाहे वह करने लगता है। परंतु यह भी सत्य है कि देवसत्ताओं की तरह वह भी उन कामों को सरलता से सम्पन्न कर सकता है, जिन्हें सामान्य व्यक्ति असंभव ही माने रहता है। पर वह स्वेच्छाचारी नहीं हो जाता।

देवसत्ताएँ भी सार्वभौमिक नियम व्यवस्था के ही अनुसार कार्य करती हैं। उस श्रेणी तक पहुँचे हुए महापुरुष की भी कोई वैयक्तिक इच्छा नहीं रह जाती। वह शास्वत सत्ता की नियम व्यवस्था से एकाकार हो जाता है।

इसीलिए वह सामान्यतः असंभव लगने वाले कार्य कर सकता है तथा अदृश्य प्रतीत होने वाले दृश्य देख सकता है। यह अपनी चेतना के धरातल को उठाकर समष्टि चेतना से तादात्म्य स्थापित कर लेने की स्थिति है।

पाँच कोशों में प्रथम विशुद्ध पदार्थ परक है। दूसरे को पदार्थ का ऊर्जा क्षेत्र कह सकते हैं। प्रथम अन्नमय और दूसरा प्राणमय कोश है।

आगे चेतना का क्षेत्र प्रारम्भ होता है–
व्यक्ति का ज्ञान क्षेत्र दो भागों में विभक्त है
(1) ज्ञात-चेतन( conscious mind) इसे ही मनोमय कोश कहा गया है।
इसका प्रशिक्षण, संवर्धन, उपयोग, विचार विमर्श एवं बौध्दिक आदान प्रदान से संभव हो जाता है। उस क्षमता के विकसित होने पर मनुष्य बुद्धिमान कहा जाता है, और बुद्धि शक्ति के सहारे जो लाभ मिल सकते हैं, उन्हें उठाता है। इसे मनोमय कोश समझा जाना चाहिए।

(2)अविज्ञात-अचेतन मन(sub conscious mind)
इसे ही विज्ञानमय कोश कहा गया है।
चित्त और अहँकार के रूप में इसी की व्याख्या की जाती है। अतीन्द्रिय क्षमता (super natural powers) का क्षेत्र यही है।
सूक्ष्म जगत में प्रवेश कर अपने संसार की कारणभूत स्थिति के साथ संबंध जोड़ सकना, इसी आधार पर संभव होता है। सिद्ध पुरुष इसी प्रक्रिया में प्रवीण होते हैं। रिद्धि सिद्धियां यहीं से उपलब्ध होती हैं।

अन्नमय और प्राणमय कोशों का सम्मिलित स्वरूप, स्थूल शरीर कहलाता है।
मनोमय कोश और सूक्ष्म शरीर पूर्णतया एक ही है।
कारण शरीर को विज्ञानमय कोश समझा जाना चाहिए। भावसंवेदना का मस्तिष्क की अतीन्द्रिय चेतना का समावेश यही है।
आनंदमय कोश, जिसमे जीव सत्ता और परम सत्ता के मिलन की,आत्म साक्षात्कार, ब्रह्म साक्षात्कार जैसी दिव्य अनुभूतियाँ होती हैं।
स्थितप्रज्ञ, अवधूत, ब्रह्मज्ञानी, तत्वदर्शी, जीवन मुक्त इसी स्थिति में परिपक्व होते हैं।

गायत्री के पाँच मुख–पाँच कोशों के प्रतीक हैं। इस साधना को पूरी करते हुए हम पूर्णता के लक्ष्य तक पहुँचते हैं। आत्मिक प्रगति के पथ पर हम जितने जितने आगे बढ़ते हैं, उतने ही उतने, दिव्य विभूतियों से सुसम्पन्न बनते चले जाते हैं। उसे देवशक्तियों का अनुग्रह कहें या देवमाता की साधना का प्रतिफल बात एक ही है।

कुंती ने यही पंचकोशी साधना की थी —


पाँच कोशों के पाँच देवताओं का पृथक वर्णन भी मिलता है —
अन्नमय कोश का देवता सूर्य, प्राणमय–यम, मनोमय-इंद्र
विज्ञानमय–वायु, आनंदमय कोश का देवता वरुण को माना गया है। कुंती ने इन्हीं पाँचों देवताओं की साधना करके, पाँच पांडवों को जन्म दिया था। वे देवपुत्र कहलाते थे।
पाँच कोशों एवं देवताओं की पाँच सिद्धियाँ —– अन्नमय कोश की सिद्धि–
निरोगिता, दीर्घ जीवन, एवं चिरयौवन का लाभ।
प्राणमय कोश की सिद्धि–
साहस, शौर्य,पराक्रम, प्रतिभा जैसी विशेषताएं उभरती हैं।प्राण विद्युत की विशेषता से आकर्षक चुम्बकीय व्यक्तित्व बन जाता है और प्रभाव क्षेत्र पर अधिकार बढ़ता जाता है।
मनोमय कोश की सिद्धि–
विवेकशीलता, दूरदर्शिता, बुद्धिमत्ता बढ़ती है और उतार चढावों में धैर्य, संतुलन बना रहता है।
विज्ञानमय कोश की सिद्धि–
सज्जनता, उदार सहृदयता का विकास होता है और देवत्व की विशेषताएँ उभरती हैं। अतीन्द्रिय ज्ञान, अपरोक्षानुभूति, दिव्य दृष्टि जैसी उपलब्धियाँ विज्ञानमय कोश की हैं।
आनंदमय कोश की सिद्धि–
चिंतन और कर्तृत्व दोनों ही इस स्तर के बन जाते हैं कि हर घड़ी आनंद छाया रहे। संकटों का सामना ही न करना पड़े। ईश्वर दर्शन, आत्म साक्षात्कार, स्वर्ग-मुक्ति जैसी महान उपलब्धियाँ विज्ञानमय कोश की ही हैं।

एक वर्षीय , 5 लाख गायत्री महामंत्र जप की यह साधना, गायत्री की उच्च स्तरीय पंचकोशी साधना का प्रवेश है।
मेरी भक्ति गुरु गोरक्षनाथ जी की शक्ति आदेश जय गिरनारी आदेश 🚩🔱🔥📿🕉️

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