सुखी और शांति पूर्ण जीवन का रहस्य हर व्यक्ति सुखी एवं शांतिपूर्ण जीवन की चाह रखता है, लेकिन उसके प्रयास अपनी इस इच्छा के अनुरूप नहीं होते। यह एक सत्य है, कि शरीर में जितने रोम होते हैं, उनसे भी अधिक होती हैं- इच्छाएं। ये इच्छाएं सागर की उछलती-मचलती तरंगों के समान होती हैं।।मन-सागर में प्रति क्षण उठने वाली लालसाएं वर्षा में बांस की तरह बढ़ती ही चली जाती हैं। अनियंत्रित कामनाएं आदमी को भयंकर विपदाओं की जाज्वल्यमान भट्टी में फेंक देती हैं।। वह प्रतिक्षण बेचैन, तनावग्रस्त, बड़ी बीमारियों का उत्पादन केंद्र बनता देखा जा सकता है। वह विपुल आकांक्षाओं की सघन झाड़ियों में इस कदर उलझ जाता है।। कि निकलने का मार्ग ही नहीं सूझता वह परिवार से कट जाता है, स्नेहिल रिश्तों के रस को नीरस कर देता है। समाज-राष्ट्र की हरी-भरी बगिया को लील देता है। न सुख से जी सकता है, न मर सकता है।।
जीवन प्रसन्नता और आनन्द से जिया जा सकता है लेकिन देखा जाए तो लोग अकारण अपने स्वभाव और व्यवहार से इसे अशांत और क्लेशमय बना रहे हैं। छोटी – छोटी बातें जिनको प्रेमपूर्ण तरीके से सुलझाया जाया सकता है उन्हें अहम की बजह से लोग और अधिक उलझा देते हैं।
धैर्य का तो लगता है जैसे लोगों में अकाल सा आ गया हो। जबकि जीवन में धैर्य नाम का सदगुण नहीं है तो पल-पल इंसान का स्वयं तो परेशानी में बीतता है अपितु वह सम्पूर्ण वातावरण को भी परेशान सा कर देता है।
आप स्थिति- परिस्थिति को नहीं बदल सकते हो लेकिन अपनी प्रतिक्रिया को जरूर बदल सकते हो। आपकी प्रतिक्रिया गीत के रूप में भी हो सकती है और गाली के रूप में भी, यह तो आपके ऊपर ही निर्भर है। विचार करें, कहीं आप भी तो अज्ञानवश अकारण क्लेशों को तो जन्म नहीं दे रहे हो ?,
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