गृहस्थ जीवन की गाड़ी के दो पहिए हैं, पुरुष और स्त्री। व्यवहार में, पुरुष के अनेक रूप हैं। वह भाई है, पिता है, दादा है, पति है, बेटा है इत्यादि। व्यवहार में, स्त्री के भी अनेक रूप हैं। वह बहन है, माता है, दादी है, पत्नी है, बेटी है इत्यादि।
संसार में जब स्त्री और पुरुष दोनों रहते हैं, तो दोनों को एक दूसरे के साथ व्यवहार करना पड़ता है।
ईश्वर ने वेदों में यह संदेश दिया है कि स्त्रियों का सम्मान करें। उनकी सुरक्षा करें। जिस घर में स्त्रियां प्रसन्न रहती हैं, वह घर सब प्रकार से फलता फूलता है। वहां देवता निवास करते हैं। सब प्रकार का सुख मिलता है। और जिस घर में स्त्रियाँ दुखी परेशान चिंतित रहती हैं, अपमानित महसूस करती हैं, उनकी सुरक्षा पर ध्यान नहीं दिया जाता, वह घर वह समाज वह देश सदा दुखी होते हैं, और आगे चलकर नष्ट हो जाते हैं।
इसलिए यदि पुरुषों को अपने घर समाज राष्ट्र की सुरक्षा समृद्धि खुशहाली की चिंता हो, तो उन्हें स्त्रियों का सम्मान और सुरक्षा करनी चाहिए। अपने बच्चों को यह संस्कार बचपन से देवें। माता-पिता भी बच्चों को यह बात सिखाएं कि स्त्रियों का सम्मान करें. और स्कूल कॉलेज गुरुकुल आदि में शिक्षक आचार्य लोग भी अपने विद्यार्थियों को यह संस्कार दें, तब तो आपका घर परिवार समाज राष्ट्र सुखी समृद्ध और उन्नत होगा अन्यथा कुछ समय के पश्चात घर समाज आदि सब कुछ दुखमय होगा तथा अंततः नष्ट हो जाएगा
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: सुख का अर्थ केवल कुछ पा लेना नहीं अपितु जो है उसमे संतोष कर लेना भी है। जीवन में सुख तब नहीं आता जब हम ज्यादा पा लेते हैं बल्कि तब भी आता है जब ज्यादा पाने का भाव हमारे भीतर से चला जाता है।
सोने के महल में भी आदमी दुखी हो सकता है यदि पाने की इच्छा समाप्त नहीं हुई हो और झोपड़ी में भी आदमी परम सुखी हो सकता है यदि ज्यादा पाने की लालसा मिट गई हो तो। असंतोषी को तो कितना भी मिल जाये वह हमेशा अतृप्त ही रहेगा।
सुख बाहर की नहीं, भीतर की संपदा है। यह संपदा धन से नहीं धैर्य से प्राप्त होती है। हमारा सुख इस बात पर निर्भर नहीं करता कि हम कितने धनवान है अपितु इस बात पर निर्भर करता है कि है कि कितने धैर्यवान हैं। सुख और प्रसन्नता आपकी सोच पर निर्भर करती है।
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[मनुष्य शरीर से उतने पाप नहीं करता जितने मन से करता है। इसलिए कहते हैं कि मन को परमात्मा के पास समर्पित कर दो तो कोई गलत काम नहीं हो पाएगा। इसलिए कहते हैं कि अगर मन साफ है तो किसी तीर्थ स्थलों में यात्रा कर नहाने की जरूरत नहीं इस संसार में जितने भी लोग आयेऔर आकर चले गये या जो अभी जिन्दा है उन सभी लोगों से हमारा रिश्ता सिर्फ़ शक्ल और शरीर का है। कभी आपने सोचा है कि जिस दिन ये शरीर और ये शक्ल नहीं रहेगी तो हमे कौन पहचानेगा सिर्फ ” परमात्मा” और कोई नहीं वो भी तब तक जब आप सिमरन की कमाई करके हक हलाल की मेहनत की खाने वाले गुरुमुख बन कर सतगुरु की पनाह में जाओगे तब, नहीं तो बिना कमाई के तो आपको घरवाले भी नहीं पहचानते।
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