Phone

9140565719

Email

mindfulyogawithmeenu@gmail.com

Opening Hours

Mon - Fri: 7AM - 7PM

सत्य है कि लोहे से ही लोहे को काटा जा सकता है और पत्थर से ही पत्थर को तोडा जा सकता है। मगर ह्रदय चाहे कितना भी कठोर क्यों ना हो उसको पिघलने के लिए कभी भी कठोर वाणी कारगर नहीं हो सकती क्योंकि वह केवल और केवल नरम वाणी से ही पिघल सकता है।

क्रोध को क्रोध से नहीं जीता जा सकता, बोध से जीता जा सकता है। अग्नि अग्नि से नहीं बुझती जल से बुझती है। समझदार व्यक्ति बड़ी से बड़ी बिगड़ती स्थितियों को दो शब्द प्रेम के बोलकर संभाल लेते हैं। हर स्थिति में संयम रखो, संयम ही आपको क्लेशों से बचा सकता है।

आँखों में शर्म रहे और वाणी नरम रहे तो समझ लेना परम सुख आपसे दूर नहीं।

जय श्री कृष्ण🙏🙏

आज का दिन शुभ मंगलमय हो: 🌹🌻🌷💐🌈🌞🌈💐🌷🌻🌹
🙏🏼🙏🏼🙏🏼
❗प्रणाम❗
‼ऋषि चिंतन‼
〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰
🌸किसी परिस्थिति में विचलित न हों🌸
〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰
📕जीवन में कई अवसरों पर बड़ी विकट परिस्थितियाँ आती हैं, उनका आघात असह्य होने के कारण मनुष्य व्याकुल हो जाता है और अपनी विवशता पर रोता चिल्लाता है । “प्रिय और अप्रिय घटनाएँ तो आती हैं और आती ही रहेगी ।”
📕ऐसे अवसरों पर हमें विवेक से काम लेना चाहिए । “ज्ञान के आधार पर ही हम उन अप्रिय घटनाओं के दुःखद परिणाम से बच सकते हैं ।” ईश्वर की दयालुता पर विश्वास रखना, ऐसे अवसरों पर बहुत ही उपयोगी है । हमारा ज्ञान बहुत ही स्वल्प है इसलिए हम प्रभु की कार्यविधि का रहस्य नहीं जान पाते । “जिन घटनाओं को हम आज अप्रिय देख-समझ रहे हैं, वे यथार्थ में हमारे कल्याण के लिए होती हैं ।”
📕हमें समझ लेना चाहिए कि हम अपने मोटे और अधूरे ज्ञान के आधार पर परिस्थितियों का असली कारण नहीं जान पाते है। “कष्टों के समय हमें ईश्वर की न्यायपरायणता और दयालुता पर अधिकाधिक विश्वास करना चाहिए ।”
📕इससे हममें घबराहट नहीं होगी और उस विपत्ति के हटने तक धैर्य धारण किए हुए भी रहेंगे । “संतोष करने का शास्त्रीय उपदेश ऐसे ही समय के लिए है ।” कर्तव्य करने में प्रमाद करना “संतोष नहीं,” वरन् आई हुई परिस्थिति में विचलित न होना, “संतोष है ।” “संतोष के आधार पर कठिन प्रसंगों का आधा भार हल्का हो जाता है ।”✍🏼
🙏🏼🌹🙏🏼” साभार – अखण्ड ज्योति “
: अनेक नास्तिक लोग धर्म की खिल्ली उड़ाते हैं , पुण्य कर्मों की खिल्ली उड़ाते हैं । उनका विचार है कि ना कोई धर्म है ना अधर्म । न कोई पाप है, न कोई पुण्य ।
ऐसे लोग स्वयं भटके हुए हैं और दूसरों को जीवन में भटकाते हैं । स्वयं दिन-रात पापों में लगे रहते हैं और दूसरों को भी पापी बनाते हैं ।
ऊपर से भले ही ये लोग धनवान दिखते हों, लेकिन अंदर से यह ईश्वरीय दंड को भोगते रहते हैं । वह दंड है तनाव आशंका भय आदि। उनकी यह मानसिक स्थिति सबको दिखाई नहीं देती । इसलिये दूसरे साधारण लोग भी उनकी ही नकल करने लगते हैं।

हरी बोलो बन्धन खोलो।

Զเधॆ Զเधॆ🙏🙏
: 🌹🌻🌷💐🌈🌞🌈💐🌷🌻🌹
🙏🏼🙏🏼🙏🏼
❗प्रणाम❗
‼ऋषि चिंतन‼
〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰
🌸क्रोध नहीं करें 🌸
✅क्षमा करें ✅
〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰
📕मित्रों, आग उसे जलाती है, जो उसके पास जाता है, “पर “क्रोध” तो स्वयं को जलाता है ।” यदि हम जमीन पर हाथ मारेंगे , तो पहले हमें ही चोट लगेगी । क्रोधी दूसरे का नुकसान पीछे करता है, “पहले अपने को आहत करता है ।” यदि आपमें बल हो और विरोधी से बदला लेने की योग्यता हो, तो भी उसे माफ करो, “क्योंकि “क्रोध” करना तो बहुत ही बुरा है ।” यदि आप “क्रोध” का परित्याग कर दें और जो कुछ कहना चाहते है, वह शांतिपूर्वक कहें, तो उन समस्याओं का हल तो अपने आप हो जाएगा, जिनके लिए आप बेचैन है।
📕इसमें क्या बड़प्पन है कि आप बुराई करने वाले से बदला ले लो । ऐसा तो चींटी भी कर सकती है । “बड़ा वह है जो अपने शत्रुओं को भी क्षमा कर देता है ।” धरती को देखिये, हम उसे खोदते है और वह बदले में हमारे लिये अन्न उपजाती है । गन्ने को दबाते हैं, तो उसमें से मीठा रस टपकता है ।
📕जिसने आपको हानि पहुँचाई है, वह बेचारा कमजोर है, कायर है, “क्योंकि निर्बल आत्मा वाले ही दूसरों को हानि पहुँचाते हैं ।” माफ कर दो इन गरीबों को, “अंधों पर तलवार चलाना कोई बहादुरी थोड़े ही है ।” बदला लेने पर आपको कुछ घंटों के लिये खुशी मिल सकती है, पर “क्षमा” कर देने पर जो आनंद प्राप्त होगा, वह बहुत काल तक कायम रहेगा ।✍🏼
🙏🏼🌹🙏🏼” साभार – अखण्ड ज्योति “
: कर्म करते समय कर्ता भाव हटाइए, फिर देखिए कैसा चमत्कार होता है

एक पुरानी कहानी है कि एक पण्डित जी ने अपनी पत्नी की आदत बना दी थी कि घर में रोटी खाने से पहले कहना है कि “विष्णु अर्पण”।

अगर पानी पीना हो तो पहले कहना है कि”विष्णु अर्पण”। उस औरत की इतनी आदत पक्की हो गई

की जो भी काम करती पहले मन में यह कहती कि “विष्णु अर्पण” “विष्णुअर्पण”। फिर वह काम करती।

एक दिन उसने घर का कूड़ा इकट्ठा किया और फेंकते हुए कहा कि “विष्णु अर्पण” “विष्णु अर्पण”।
वहीँ पास से नारद मुनि जा रहे थे। नारद मुनि ने जब यह सुना तो उस औरत को थप्पड़ मारा कि विष्णु जी को कूड़ा अर्पण कर रही है।
फेंक कूड़ा रही है और कह रही है कि “विष्णु अर्पण”। वह औरत विष्णु जी के प्रेम में रंगी हुई थी। कहने लगी नारद मुनि तुमने जो थप्पड़ मारा है वो थप्पड़ भी “विष्णु अर्पण”।
अब नारद जी ने दूसरे गाल पर थप्पड़ मारते हुए कहा कि बेवकूफ़ औरत तू थप्पड़ को भी विष्णु अर्पण कह रही है। उस औरत फिर यही कहा आपका मारा यह थप्पड़ भी “विष्णु अर्पण”।

इसके बाद जब नारद मुनि विष्णु पुरी में गए तो क्या देखते है कि विष्णु जी के दोनों गालों पर उँगलियों के निशान बने हुए थे। नारद पूछने लगे कि “भगवन यह क्या हो गया”? आप के चेहरे पर यह निशान कैसे पड़े”?

विष्णु जी कहने लगे कि “नारद मुनि थप्पड़ मारे भी तू और पूछे भी तू” , नारद जी कहने लगे कि “मैं आपको थप्पड़ कैसे मार सकता हूँ”?,

विष्णु जी कहने लगे, “नारद मुनि जिस औरत ने कूड़ा फेंकते हुए यह कहा था कि विष्णु अर्पण और तूने उसको थप्पड़ मारा था तो वह थप्पड़ सीधे मेरे को ही लगा था, क्योकि वह मुझे अर्पण था”।

सीख
जब आप कर्म करते समय कर्ता का भाव निकाल लेते हैं और अपने हर काम में मैं, मेरी, मेरा की भावना हटा कर अपने इष्ट या सतगुरु को आगे रखते हैं तो कर्मों का बोझ भी नहीं बढ़ता और वो काम आप से भी अच्छे तरीके से होता है।
: संसार के सब जीव व्यर्थ ही भटकते फिर रहे हैं..!!
पग पग पर निराशा का, असफलता का मुंह देखना पड़ता है..!! हम धन-संपत्ति व बाल बच्चों के लिए रोते पीटते उम्र बिता देते हैं, तथा इन्हें खोकर दुखी होते हैं..!!
परंतु “यदि हमने प्रभु के प्रेम और विरह में एक रात भी आंसू बहाए होते, तो निश्चय ही हमें ‘प्रभु’ के दर्शन हो जाते..!!
हम उन बेगारियों की तरह सारा जीवन बेकार गवा देते हैं, जो दिन भर परिश्रम करके खून पसीना एक कर देते हैं, परंतु शाम को खाली हाथ घर लौट आते हैं..!!
इस प्रकार हम मनुष्य जीवन का असली उद्देश्य पूरा नहीं कर पाते और लोक और परलोक दोनों ही गंवा बैठते हैं..!!!!

  • गुरु अमरदास जी महाराज-
    पुत्रहीन व्यक्ति का केवल घर सूना होता है। सच्चे मित्र के बिना जीवन सूना होता है। मूर्खों की सारी दिशाएँ सूनी होती हैं और दरिद्रों के लिए सारा संसार सूना होता है।
    भगवान के नाम का दरिद्र होने का तात्पर्य है लख 84 हजार योनियों में पुनः भटकना ,जन्म और मृत्यु के दलदल में अनवरत फंसे रहना। मर्जी अपनी-अपनी है जो पसंद आये वही कर्म रूपी रुपये से खरीद कर भोग कर सकते हैं । अब चयन आपको ही करना है। कर्म भी आपका है भोग भी आपको ही करना है । जिस प्रकार शरीर में दर्द उत्पन्न होने पर स्वतः आपको ही झेलना पड़ता है । परिवार का कोइ भी सदस्य नहीं ले सकता है। यही कर्म का फल है भोग है ,इसी प्रकार सर्वत्र आपको ही अपने कर्मों का फल भोग करना है ।। जय श्री कृष्ण🙏🙏
    : 🌸🙏श्री राधारमण शरणम् 🙏🌸

एक पुजारी और नाईं दोनों मित्र थे। नाईं हमेशा पुजारी से कहता है –

“ईश्वर ऐसा क्यों करता है, वैसा क्यों करता है ? यहाँ बाढ़ आ गई, वहाँ सूखा हो गया, यहाँ दुर्घटना हुई, यहाँ भुखमरी चल रही है, नौकरी नहीं मिल रहीं। हमेशा लोगों को ऐसी बहुत सारी परेशानियां देता रहता है।”

उस पुजारी ने उसे एक आदमी से मिलाया जो भिखारी था, बाल बहुत बड़े थे, दाढ़ी भी बहुत बड़ी थी। उसने नाईं को कहा – “देखो इस इंसान को जिसके बाल बड़े हैं, दाढ़ी भी बहुत बढ़ गयी है। तुम नाईं हो तुम्हारे होते हुए ऐसा क्यों है ?”

नाईं बोला – “अरे उसने मेरे से संपर्क ही नहीं किया।”

पुजारी ने भी बताया यही तो बात है जो लोग ईश्वर से संपर्क करते हैं उनका दुःख खत्म हो जाता है। लोग संपर्क ही नहीं करते और कहते हैं दुःखी हैं ।” जो संपर्क करेगा वो दुःख से मुक्त हो जाएगा।”

ईश्वर से सम्पर्क करने का नम्बर नीचे लिखा है – 👇

हरे कृष्ण हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण हरे हरे ।
हरे राम हरे राम, राम राम हरे हरे ।।

सदा जपते रहिये और प्रसन्न रहिये।😊🌹🙏
: राधे राधे ॥ आज का भगवद चिन्तन ॥

यद्यपि माला जपने की अपेक्षा मन को मथना ज्यादा श्रेष्ठ है तथापि माला फेरने का भी अपना एक प्रभाव है। किसी महापुरुष ने बड़ी ही सुन्दर बात कही है कि यदि आपके एक हाँथ में माला है तो आप दूसरे हाथ से कभी भी पाप नही कर सकते।
जब तक माला हमारे हाथों में रहेगी कम से कम तब वह हमें वह सब कुछ नही करने देगी जो हम चाहते है। वह माला के प्रति हमारी धारणा निष्ठा और विश्वास का ही प्रतिफल है कि वह मौन रहकर भी हमें अनुशासित करती है।
माला फेरने से हमारी वुद्धि तक शुद्ध हो जाती है। प्रेम से माला पर जाप करने वाले के ना केवल ताप कटते है, संताप मिट जाते हैं और पाप करने वाली विचारधारा का नाश हो जाता है। पूरे दिन प्रभु स्मरण चलता रहे पर माला के जप का अपना महत्व है।

*संजीव कृष्ण ठाकुर जी*

: 👉 प्रेम का अमरत्व और उसकी व्यापकता

कोई व्यक्ति जीवनभर प्राइमरी पाठशाला में ही पढ़ते रहने की जिद करे और अगले बड़े स्कूल में जाने के लिए तैयार न हो तो “उसे बाल बुद्धि ही कहा जाएगा।” “प्रेम” का प्रशिक्षण घर-परिवार में हो या किसी वस्तु अथवा व्यक्ति से प्रारम्भ हो, उसकी स्वाभाविकता समझ में आती है, पर जब कोई उतने तक ही सीमाबद्ध होकर रह जाएगा, “आगे न बढ़ेगा तो रुके हुए पानी की तरह सड़न पैदा हुए बिना न रहेगी।’

जो “प्यार” सीमा बद्ध होकर रह जाता है, उसे “मोह” कहते हैं, “मोह” में पक्षपात जुड़ जाता है, औचित्य का ध्यान नहीं रहता। प्रिय पात्र की त्रुटियों का परिमार्जन करने की इच्छा नहीं होती वरन “उन्हें भी प्रिय मानकर समर्थन किया जाने लगता है।” इससे “प्रेम” की महत्ता ही नष्ट हो जाती है।

“प्रेम” गंगाजल है, जिसे जहाँ छिड़का जाए, वहीं पवित्रता पैदा करे,” पर यदि वह गंदे नाले में गिरकर अपनी पवित्रता खो दे तो इसे दुर्भाग्य ही कहा जाएगा।

“प्रेम” लगाव का पात्र नहीं है और न पक्षपात के अथवा हर प्रकार के समर्थन-सहयोग का। “उसमें आदर्शो की अविच्छिन्नता जुड़ी रहती है।” “आदर्श विहीन प्यार को “मोह” कहेंगे।” “मोह” अपने प्रिय पात्र के अनुचित कार्यों का भी समर्थन करने लगता है, तब उसकी ऊँचा उठने की क्षमता नष्ट हो जाती है “मोह” को “प्रेम” की विकृति ही कह सकते हैं,” इसलिए उसकी प्रशंसा नहीं की जा सकती है।

पं.श्रीराम शर्मा आचार्य
*अखण्ड ज्योति जनवरी 1972

Recommended Articles

Leave A Comment