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: “हमारे सामाजिक जीवन में बल को बुद्धि से परास्त कर सकते हैं, किन्तु बुद्धि को बल से नहीं जीता जा सकता …कदाचित अपने किसी विरोधी को अपने सामने झुकता देखें तो आनन्दित न हों, धनुष की कमान जितना झुकती है उतनी ही कारगर होती है … बुद्धिमान आत्मरक्षा के लिए भी झुकता है और आक्रमण के लिए भी, झुकना बुद्धिशाली का गुण है और ना-झुकना बलशाली का स्वभाव…वैसे भी हम झुक कर, सरलता से लोगों के मनों को विजयी कर सकते है,उलझ के नहीं…तो आइए आज सभी अपनों को नमन करते हुए प्रभु से परस्पर प्रेम के संचार की प्रार्थना के साथ”

Զเधॆ Զเधॆ🙏🙏
: #क्याआत्मविश्वासकाजन्मअहम्सेहोता_हैं?

कुछ करने के लिए आपको आत्मविश्वास की जरूरत नहीं है, आपको बस जरूरत है, समझदारी की। उचित तो यह होगा कि आप पहले उस काम को तौलें। अगर आप कर सकते हैं, तो आप उसे करेंगे, अगर नहीं कर सकते, तो नहीं करेंगे। तो आपको बस अपनी काबिलियत के मुताबिक काम करना चाहिए, न कि आत्मविश्वास की वजह से या उसकी कमी की वजह से।

सिर्फ एक अहं को ही आत्मविश्वास या उसकी कमी महसूस होती है। सबसे पहले गौर करें – आखिर यह अहं है क्या? आपमें अहं इसलिए नहीं आया, क्योंकि आपने कोई काम बहुत शानदार तरीके से किया, या #आपबहुतअच्छीआध्यात्मिकपोस्ट_लिखते है या आप अमीर बन गए, या आप खूबसूरत हो गए, या आपने अपने शरीर को बहुत ताकतवर बना लिया। जब आप पहली बार अपनी मां के पेट में लात चलाने लगे थे, तभी अहं का जन्म हो गया था। #अपने स्थूल शरीर से खुद की पहचान बनाने की सबसे पहली गलती का मतलब है – अहं का जन्म।

अहं एक रक्षात्मक प्रतिक्रिया है। इस नन्हें से शरीर से आपकी पहचान बना दी गई। इस छोटे से प्राणी को अपना वजूद बनाए रखना है, इस विशाल जगत में, जिसकी आपको इतनी भी समझ नहीं है कि यह कहां शुरू होता है और कहां खत्म? खुद को बस सुरक्षित बनाए रखने के लिए आपको खुद को एक बड़े इंसान की तरह दिखाना पड़ता है।

इसलिए अहं पैदा हुआ है। यह एक झूठी हकीकत है। आप जिसे आत्मविश्वास कहते हैं, वह बस एक झूठी पहचान है, जो आपने बनाई है, अपने वजूद को कायम रखने के लिए। अहं आपकी परछाई की तरह है। जैसे ही आपके पास स्थूल शरीर होता है, आपके पास परछाई भी होती है। परछाई खुद में न अच्छी है और न बुरी। अगर सूरज ऊपर आसमान में है, तो आपकी परछाई छोटी है। अगर सूरज नीचे आगया है, तो आपकी मील भर लंबी परछाई होगी। तो बाहरी हालातों के जैसे भी तकाजे हों, आपकी परछाई भी उसी तरह की हो जाती है। आपका अहं भी उसी तरह का होना चाहिए।

अपने जीवन में तरह-तरह के हालातों से निपटने के लिए हमें विभिन्न तरह की पहचान की जरूरत होती है। अगर आप इस मामले में लचीले हैं, तो आप एक पहचान को सुंदरता से दूसरे में बदल सकते हैं। तब आप अपना किरदार भरपूर निभा सकते हैं और आपको कोई दिक्कत नहीं होगी। लेकिन अभी समस्या यह है कि आपने इससे इतनी गहरी पहचान बना ली है कि आप विश्वास करने लगे हैं कि आप बस वही पहचान हैं। एक बार जब आप विश्वास करने लगते हैं कि ‘मैं परछाई हूं’ तो आप क्या करेंगे? तब आप धरती पर बस रेंगेंगे। तब आपकी जिंदगी कैसी होगी? अगर फर्श पर कालीन बिछा हो, यानी बाहरी हालात मुलायम घास जैसे हों, तो आप आराम से रेंगेंगे, लेकिन आनन्द में नहीं। मान लीजिए कि राह में कंकड-पत्थर और कांटे आ जाएं, तो आप रोने लगेंगे। आपकी जिंदगी अभी इसी तरह से चल रही है, क्योकि आप धरती पर रेंग रहे हैं।

अभी आपके जीवन का सारा-का-सारा अनुभव बस भौतिक तक ही सीमित है। वह सब कुछ, जो आप अपनी पांच इंद्रियों के जरिए से जानते हैं, सिर्फ भौतिक है। और भौतिक का खुद का कोई उद्देश्य नहीं होता, क्योंकि यह बस फल के छिलके की तरह है।

फल के सिर्फ एक सुरक्षा-खोल की तरह इसका थोड़ा सा काम है। यह शरीर इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसके भीतर कुछ और भी है। आपने उस ‘कुछ और’ को कभी अनुभव नहीं किया। अगर वह ‘कुछ और’ कल सुबह शरीर से निकल जाए, तो इस शरीर को कोई छूना भी नहीं चाहेगा, जो एक लाश बन गया होगा। तो आज जब वह शरीर में है, हमें उसका ध्यान रखना होता है। वही सब कुछ है।

अगर हम भौतिक की सीमाओं के परे नहीं जाते, अगर हम भौतिक के सीमित वजूद के परे नहीं जाते, तो हम बस एक संघर्ष बनकर रह जाते हैं – कभी आत्मविश्वास और कभी संकोच। अगर हालात अच्छे हो जाते हैं, तो आप आत्मविश्वास से भर जाते हैं, अगर वो बिगड़ जाते हैं, तो आप पीछे हट जाते हैं। आप तो हमेशा से जानते ही हैं, जो भी हालात ठीक चल रहे हों, किसी भी पल, वे बिगड़ सकते हैं। यह सिर्फ हालात बिगड़ने की ही बात नहीं है, जीवन किसी भी क्षण कैसा भी मोड़ ले सकता है। किसी भी क्षण चीजें ऐसी हो सकती हैं, जो आपको पसंद नहीं हो।

अगर दुनिया में सब कुछ आपके खिलाफ चल रहा है, और आप अपने भीतर शांति से, उल्लास से, इस सब से अछूते, बिना प्रभावित हुए जीवन चला पाते हैं, तभी आप जीवन को उसकी पूरी गहराई में जान सकते हैं। वरना तो आप भौतिक के बस एक गुलाम होते हैं।

|| गुरु कृपा केवलम् ||

सनातनम्बग्लार्पणम्गुरूकुलम्

   *मानव जीवन में ना तो समस्याएं कभी खत्म हो सकती हैं और ना ही संघर्ष। समस्या में ही समाधान छिपा होता है। समस्या से भागना उसका सामना ना करना यह सबसे बड़ी समस्या है। छोटी- छोटी परेशानियां ही एक दिन बड़ी बन जाती हैं।*

  *कुछ लोग सुबह से शाम तक परेशानियों का रोना ही रोते रहते हैं साथ ही ईश्वर को भी कोसते रहते हैं। जितना समय वो रोने में लगाते हैं उतना समय यदि बिचार करके कर्म करने में लगा दें तो समस्या ही हल हो जायेगी।*

   *ईश्वर ने हमें बहुत शक्तियाँ दी हैं, बस उनका प्रयोग करने की जरुरत है। सोई हुई शक्तियों को कोई जगाने वाला चाहिए। कृष्ण आकर अर्जुन को ना समझाते तो वह कभी भी ना जीत पाता। सब कुछ उसके पास था पर वह समस्या तुम्हारी तरह से भाग रहा था।* 

जय श्री कृष्ण🙏🙏
🔥 ओ३म् 🔥

मानव उन्नति के सात साधन―व्यर्थ की बकवाद न करना, दुष्टों की संगति न करना, किसी से वैर न करना, क्षमाशील होना और निर्भय रहना इन सातों से मानव उन्नति लाभ करता है।
: #पुरे विश्व में ‘बुद्ध ‘ही ऐसे थे जिन्होने ये कहा कि, मेरी पूजा मत करना ना ही मुझसे कुछ उम्मीद लगा के रखना की मैं कोई चमत्कार करूंगा….
दु:ख पैदा तुमने किया है और उसको दूर तुम्हे ही करना पड़ेँगा, मैँ सिर्फ तुम्हे मार्ग बता सकता हूँ, क्योकि मैँ चला हूँ उस मार्ग पर, लेकिन उस रास्ते पर तुम्हे ही चलना पड़ेँगा..!!!!
: माता पिता और आचार्य ये तीन व्यक्ति विशेष होते हैं , जो सदा अपने बच्चों एवं विद्यार्थियों पर बहुत कृपा करते हैं। उनको समय-समय पर आपत्तियों से बचाते हैं । उनका हित चाहते हैं । हर समय सावधान करते रहते हैं। उनको अच्छे कर्मों को करने के लिए प्रेरित करते हैं । सदा बुराइयों से बचाते हैं । क्योंकि माता पिता और आचार्य ये तीनों अपने बच्चों तथा विद्यार्थियों के परम हितैषी होते हैं । ये तीनो स्वयं कष्ट उठा कर भी अपने बच्चों एवं विद्यार्थियों का कल्याण करते हैं । इसलिए आपको अपने माता-पिता और आचार्य पर पूरी श्रद्धा रखनी चाहिए । उनके निर्देशों, सुझावों तथा आदेशों पर पूरा ध्यान देकर उनका पालन करना चाहिए ।
संसार में जो लोग श्रद्धा पूर्वक अपने माता-पिता तथा आचार्य के निर्देश आदेश का पालन करते हैं , वे कभी जीवन में दुखी नहीं होते । सदा उन्नति को प्राप्त करते हैं तथा सुखी रहते हैं । ऐसे बच्चों तथा विद्यार्थियों का जीवन सफल हो जाता है। –
: यदि कोई व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति के कार्यों की प्रशंसा करे, तो इससे दूसरे व्यक्ति का उत्साह बढ़ता है। और वह अच्छी प्रकार से उन्नति करता है।
ऐसा कौन करता है? जो किसी का हितैषी हो, उससे प्रेम करता हो। इसीलिए समय समय पर समाज के लोग एवं सरकार, अच्छे कर्म करने वालों को पुरस्कार और सम्मान देते हैं ।
इससे दो लाभ होते हैं।
एक- उस अच्छे काम करने वाले का भी उत्साह बढ़ता है। तथा दूसरा- समाज के अन्य लोगों को भी अच्छे कर्म करने की प्रेरणा मिलती है।
आप भी, स्वयं अपनी उन्नति के लिए तथा समाज और देश उन्नति के लिए, इसी प्रकार से अच्छे काम करें ।
जिन लोगों ने आपका उत्साह बढ़ाया , आपकी प्रशंसा की , आपको पुरस्कार और सम्मान दिया, तो आपका भी कर्तव्य हो जाता है , कि आप भी उनका धन्यवाद करें । ऐसा करने से उन प्रोत्साहन देने वाले लोगों का भी उत्साह तथा प्रसन्नता बढ़ती है । तथा यह सभ्यतापूर्ण व्यवहार माना जाता है –
: हम अनेक व्यक्तियों के जीवन में देखते हैं कि वे बचपन में बहुत छोटे और सामान्य स्तर के थे । बड़े हुए 20, 22 वर्ष तक भी वे सामान्य स्तर के कार्य करते थे । परंतु जीवन में अनेक घटनाएं ऐसी हो जाती हैं, जिनके कारण उन व्यक्तियों के पूर्व जन्मों के संस्कार जाग जाते हैं । उन संस्कारों से प्रेरणा लेकर फिर वे अत्यंत पुरुषार्थ करते हैं , और इतनी अधिक उन्नति करते हैं, जोकि अत्यंत आश्चर्यजनक होती है।
फिर वे कहते हैं कि मैंने अपने जीवन में कभी सोचा भी नहीं था, कि मैं यहां तक पहुंच जाऊंगा.
ऐसा बहुत लोगों के जीवन में देखा जाता है। आपके जीवन में भी ऐसा हो सकता है। आप अपने 20, 30, 40 वर्ष पुराने स्तर को देखें और आज के स्तर की उस से तुलना करें, तो शायद आपको भी यह आश्चर्य होगा , कि मैं आज जहां पहुंच गया हूं , ऐसा मैंने कभी पहले सोचा भी नहीं था। तो यह उन महापुरुषों अर्थात माता पिता गुरु आचार्य अथवा अन्य सज्जनों के आशीर्वाद और पुरुषार्थ का परिणाम है , कि आप आज वहां पहुंच गए , जहां आपने कभी अपने लिए सोचा भी नहीं था ।
इसलिए उन सब लोगों का धन्यवाद करें, जिन्होंने आपको कहां से कहां तक पहुंचा दिया –
: जब व्यक्ति संसार में आता है तो खाली हाथ अर्थात कोई संपत्ति हाथ में नहीं लाता । जब संसार से जाता है तब भी सारी संपत्ति यहीं छोड़ जाता है , अपने साथ कोई रुपया पैसा या और कोई संपत्ति अपने साथ नहीं ले जाता।
परंतु जीवन काल में यदि कुछ चीजें मिलती हैं , तब व्यक्ति को बहुत खुशी होती है । जब उनमें से कोई वस्तु खो जाती है , नष्ट हो जाती है , या छिन जाती है तब वह ‘घबरा’ जाता है दुखी हो जाता है , उदास निराश हो जाता है, डिप्रेशन में चला जाता है । ऐसी हानि की घटनाएं सबके साथ होती हैं।
आपके साथ भी होती होंगी। ऐसी स्थिति में घबराए नहीं । चिंता ना करें । जब आप संसार में आए थे , उस दिन आप खाली हाथ थे। धीरे-धीरे लोगों ने आपको पढ़ना लिखना सिखाया , खाना पीना सिखाया , धन कमाना सिखाया और उनके सहयोग परिश्रम से तथा अपने पुरुषार्थ से आपने कुछ धन कमाया , तथा कुछ वस्तुएं प्राप्त की।
यदि उन वस्तुओं में से कोई वस्तु खो जाए, नष्ट हो जाए , या छिन जाए , तो दुखी ना हों। क्योंकि वह केवल आपकी कमाई हुई नहीं है। उसमें अन्य देश भर के भी करोड़ों व्यक्तियों का सहयोग है । इसलिए चिंता न करें ; और कमा लेंगे ।
आपको माता पिता एवं गुरुजनों ने बहुत सुंदर विद्याएँ सिखा रखी हैं। उन्हीं विद्याओं से आपने कुछ धन कमाया । उसमें से यदि कुछ खो गया , तो चिंता ना करें । उसी विद्या से आप और फिर से कमा लेंगे।
हां , अपनी वस्तुओं की सुरक्षा अवश्य रखें। पूरी ईमानदारी बुद्धिमत्ता तथा मेहनत से कमाएं और उनकी सुरक्षा करें । यदि धन संपत्ति आदि अधिक हो जाएं, तो अन्य योग्य पात्रों में बांट दें । तभी आपका जीवन सफल होगा –
: संसार में प्रतियोगिता सभी जगह पर होती है। जैसे विद्यार्थियों में व्यापारियों में खिलाडियों में संगीतकारों में डॉक्टरों में , सबमें होती है । तो इस प्रतियोगिता में सब लोग स्वयं जीतना चाहते हैं और दूसरों को हराना चाहते हैं । कुछ लोग स्वस्थ प्रतियोगिता करते हैं अर्थात दूसरों को बाधा नहीं डालते , तथा स्वयं पुरुषार्थ करके आगे निकलना चाहते हैं । यह प्रतियोगिता तो ठीक है।
परंतु अनेक जगहों पर प्रतियोगिता करते समय स्वयं पुरुषार्थ इस बात में कम करते हैं कि मैं आगे निकल जाऊँ, बल्कि इस काम में पुरुषार्थ अधिक करते हैं कि दूसरे को कैसे गिराया जाए। ऐसी स्थिति को षड्यंत्र कहते हैं।
जब व्यक्ति स्वस्थ प्रतियोगिता करे अर्थात दूसरे को हानि न करे, और अपनी उन्नति के लिए परिश्रम करे, यह तो उत्तम है ।
परंतु यदि वह अपनी उन्नति में कम ध्यान देवे, और दूसरे को गिराने की कोशिश अधिक करे, अथवा अन्य लोगों के साथ मिलकर षड्यंत्र करे , तो यह स्थिति बहुत खराब है ।
ऐसा षड्यंत्र भी अनेक जगह पर देखा जाता है । जो लोग द्वेष के पुराने संस्कारो के कारण ऐसा करते हैं , वे लोग अच्छे नहीं हैं।
जब ऐसी स्थिति हो , तो जिस के विरुद्ध षड्यंत्र किया जा रहा है , तो आप समझ लीजिए , कि उस व्यक्ति की योग्यता सबसे उत्तम है। उसी को प्रोत्साहन देना चाहिए , और दुष्टों के षड्यंत्र को नष्ट कर देना चाहिए –
: प्रत्येक मनुष्य सुख चाहता है , तथा दुख नहीं चाहता । दुख से बचने के लिए और सुख की प्राप्ति के लिए दिन-रात प्रयत्नशील रहता है। परंतु फिर भी उसे अच्छी प्रकार से सुख मिल नहीं पाता । कुछ मात्रा में मिलता भी है , तो फिर इच्छाएं और आगे बढ़ती जाती हैं । उसे पूरा संतोष नहीं मिल पाता।
एक दुख को दूर करता है , तो दो-चार और नए आ जाते हैं । इस प्रकार से जीवन में सदा असंतोष बना ही रहता है ।
जब व्यक्ति सुख प्राप्ति करने तथा दुख से छूटने के लिए प्रयत्न करता है , तो उसके लिए उसको बहुत सारा ज्ञान चाहिए, शुद्ध ज्ञान चाहिए । यदि उसके ज्ञान में गड़बड़ है , मिथ्या ज्ञान है , तो वह अनेक निर्णय गलत लेगा । और जब उसके निर्णय गलत होंगे , तो उसके आचरण भी गलत होंगे । जब आचरण गलत होंगे, तो परिणाम भी दुखदायक होगा।
कोई भी व्यक्ति सर्वज्ञ नहीं है । इसलिए उसे अपने सुख रूप भविष्य के लिए अन्य अनेक बुद्धिमानों से , विद्वानों से सलाह लेनी चाहिए। जो व्यक्ति जिस विषय में कुशल अर्थात एक्सपर्ट हो , उससे उस क्षेत्र में अवश्य सलाह लेकर ही काम करना चाहिए। तब तो मनुष्य दुखों से अधिक से अधिक बच पाएगा और अधिक से अधिक सुखी हो पाएगा –
: हम देखते हैं संसार में लोग भटक रहे हैं ।
बेचारे नहीं जानते कि हमें जीवन को कैसे जीना चाहिए ? हम संसार में क्यों आए थे? हमारे जीवन का लक्ष्य क्या था? क्या हम अपने लक्ष्य की ओर चल रहे हैं ? या लक्ष्य से दूर जा रहे हैं , इन बातों को लोग नहीं जानते। इसलिए इसको भटकना कहते हैं ।
निष्पक्ष दृष्टि से विचार किया जाए तो प्रत्येक आत्मा का लक्ष्य – लंबे समय तक सब दुखों से छूटना और सौ प्रतिशत उत्तम आनंद की प्राप्ति करना है। ये दोनों कार्य संसार में जीवित रहते हुए नहीं हो सकते । मोक्ष में हो सकते हैं । इसलिए मनुष्य जीवन का लक्ष्य मोक्ष प्राप्ति है । इसे केवल मनुष्य ही प्राप्त कर सकता है, और कोई प्राणी नहीं ।
मोक्ष कैसे मिलेगा, इसका मार्ग हमें वेद के विद्वानों से , उत्तम आचरण वाले विद्वानों से जानना होगा ।
तो जो व्यक्ति अपने जीवन में किसी वेदज्ञ चरित्रवान् शरीरधारी मनुष्य को गुरु के रूप में स्वीकार करके चलता है , उसके आदेश निर्देश का पालन करता है, वह नहीं भटकता , और लक्ष्य की और आगे बढ़ता है ।
जो व्यक्ति किसी एक भी मनुष्य को , वेदों के विद्वान बुद्धिमान चरित्रवान ईश्वरभक्त शरीरधारी मनुष्य को अपना गुरु नहीं मानता, उसका भटकना निश्चित है। वह संसार में स्वयं भटकता रहेगा , गलतियाँ करेगा और दूसरों को भी गलत रास्ता दिखाएगा। स्वयं दुखी रहेगा और दूसरों को भी संकटों में डालेगा। इसलिए किसी भी शरीर धारी वेदज्ञ मनुष्य को गुरु के रूप में स्वीकार करें । उसके आदेश निर्देश का पालन करें , लक्ष्य की ओर आगे बढ़ें, तथा आपने जीवन को सफल बनाएं –

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