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नारद जीं हो, ध्रुव जी हो, प्रह्लाद जी हों या फिर पाण्डव हो जिस पर भी उस प्रभु की कृपा हुई है उसका जीवन वंदनीय अवश्य हुआ है।। जिस प्रकार किसी धातु के बर्तन को सही आकार देने के लिए, उसके मोल और उपयोगिता बढ़ाने के लिए उसे अनेक बार अग्नि में डाला जाता और पीटा जाता है। उसी प्रकार भक्त को भी अनेक दुखों और प्रतिकूलताओं का सामना करना पड़ता है, ताकि वह निखर सके और उसका जीवन भी अनमोल और वंदनीय बन सके।। हमें सतत प्रयास करना चाहिए कि हमारा जीवन प्रभु कृपा का पात्र बन सके। हमारी सरलता, हमारी सहजता, हमारी निष्कपटता और विकट से विकट परिस्थितियों में भी उस प्रभु का सुमिरन और उसके उपर विश्वास ही हमें उनका कृपा पात्र बनाती है।।
जा पर कृपा राम की होई।
ता पर कृपा करे सब कोई।।
प्रभु की कृपा जिसके ऊपर हो जाती है, उसके ऊपर बाकी सब की कृपा भी हो जाती है। फिर एक समय यह भी अवश्य आता है।। जब उसके लिए समस्त सृष्टि अनुकूल हो जाती है। उसके लिए काँटे भी फूल जैसे कोमल और शत्रु भी मित्र हो जाते हैं।। प्रभु की कृपा हो तो एक दासी पुत्र भी देवर्षि नारद बन जाते हैं। कर्म से अच्छे और हृदय से सच्चे बनें! प्रभु कृपा के पात्र अवश्य बन जाओगे।।
[बहुत से घरों में देखा जाता है। कि बहू अपने साथ ससुर को परेशान करती है।। शादी के बाद कुछ ही दिनों में लड़ाई झगड़े शुरु कर देती है। और अपने पति से बार-बार आग्रह करती है, कि हमें इस घर में नहीं रहना है, सास ससुर से अलग होना है। यह तो बहुओं का दोष है।। परंतु बहुत से घर ऐसे भी देखे जाते हैं, जहां घर में आने वाली बहू बड़ी सुशील पढ़ी-लिखी चरित्रवती सब अनुशासन का पालन करने वाली सभ्यता नम्रता से रहने वाली इत्यादि अनेक गुणों से युक्त होती है।। फिर भी उसके सास-ससुर उस सीधी-सादी बहू को परेशान करते हैं। उस पर अनेक प्रकार के अत्याचार करते हैं। उस पर व्यंग्य कसते हैं।। उसे अपनी इच्छा से जीने नहीं देते। प्रत्येक व्यक्ति को अपनी इच्छा से भी कुछ जीने का अधिकार है।। तो वे सास ससुर बहू के अनेक कार्यों में हस्तक्षेप करते हैं। उनके पास सिर्फ एक ही कारण होता है, कि हम बड़े हैं, हमारा अधिकार है, हम जो चाहे सो करें, यह सास ससुर का विचार और व्यवहार अत्यंत अनुचित है। बड़े होने का अर्थ यह नहीं होता, कि वे छोटो पर अत्याचार करें, उनके अधिकार छीनें। बड़ा होने का अर्थ तो रक्षक होता है। जो अपने परिवार का रक्षक नहीं है, वह बड़ा नहीं मूर्ख है। वह परिवार के लिए विनाशकारी है।। आगे चलकर ऐसे परिवार टूट जाते हैं। सास ससुर के अत्याचारों से बहुएं परेशान होकर अपने मायके चली जाती हैं। और इसके साथ साथ वे अज्ञानी दुष्ट सास ससुर अपने बेटे का पूरा जीवन बर्बाद कर देते हैं।। हे भगवान इस मूर्खता को जल्दी से जल्दी दूर करें। मूर्ख सास ससुर को सद्बुद्धि देवें। परिवारों की सुरक्षा करें। परिवार न टूटें।। सब लोग प्रेम से मिलकर न्याय पूर्वक रहें। ऐसी आपसे प्रार्थना है। और सास-ससुर से भी निवेदन है, कि वे अपने बच्चों का जीवन बर्बाद ना करें।। अन्यथा आपको इसका खतरनाक दंड भोगना पड़ेगा। सदा याद रखें। ईश्वर न्यायकारी है।। वह किसी को भी नहीं छोड़ता। संगठन तथा सुख प्राप्ति का सर्वोच्च सूत्र है, परस्पर न्याय से व्यवहार करना।।
****जो भगवान ने रच रखा हैं। भगवान की इच्छा के विरुद्ध एक पत्ता भी नहीं हिल सकता। निमित्त भिन्न भिन्न हो सकते है।। मनुष्य को अपनी बुरी भली भावना के कारण पाप पुण्य की प्राप्ति होती है।अपनी भावना को शुद्ध रखते हुए सबके हित की कामना करनी चाहिए।। भाव अच्छे हो, भावना शुद्ध हो, किसी का भी अहित करने की कामना न हो तो कर्म करने वाला निर्दोष रहेगा। पर यदि नीयत बुरी है मन मे बुराई है।। तो होगा तो वही जो प्रभु ने विधान रच रखा है। पर बुरी भावना के कारण मनुष्य पाप का भागी बन जायेगा।। इंसान का बेहतरीन साथी उसकी सेहत है। अगर उसका साथ छूट जाए तो वह हर रिश्ते के लिए बोझ बन जाता है।।

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