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अगर आप आनंदित हैं, और आपको परमात्मा का अनुभव हुआ है, तो आपकी हर प्रेम-पात्र में परमात्मा दिखाई देगा आपका प्रेम भी प्रगाढ़ हो जाएगा प्रेम से बढकर कुछ भी नहीं जो प्रेमपूर्ण है। वह हर किसी से बेशर्ते प्रेम करेगा।। वह यह नहीं देखेगा कि कौन पात्र है। और कौन पात्र नहीं है।। जहाँ शर्तें हो जो शर्तो पर किया जाये, वह प्रेम होता ही नहीं, वह अहंकार का ही रूप हैं। प्रेमपूर्ण होना चित्त की एक भावदशा है।।


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: राधे – राधे ॥

भगवद् चिंतन॥

जिस प्रकार भोर की प्रथम किरणों के साथ कुछ पुराने फूल झड़ जाते हैं, और नयें फूल खिल उठते हैं व प्रकृत्ति को सुवासित करते हैं। कुछ सूखे पत्ते पेड़ से जमीन पर गिर जाते हैं और नयीं कोंपलें फूट पड़ती हैं व प्रकृत्ति को श्रृंगारित करती हैं।। उसी प्रकार एक नया दिन एक एक नईं ऊर्जा और एक नयें विचार के साथ आता है। एक नया दिन आता है तो साथ में नया उल्लास और नईं आश लेकर भी आता है ताकि हम अपने जीवन को नयें विचारों से सुवासित एवं उल्लासित कर सकें।। समय के साथ साथ जो पुराना है, जो ताज्य है, और जो अनावश्यक है, उसका परित्याग करना भी अनिवार्य हो जाता है। जिस प्रकार सफेद मार्बल पर रोज रोज सफाई एवं धुलाई की जरूरत होती है ताकि उसकी चमक बनी रहे। उसी प्रकार मानव मन को भी रोज रोज सद्विचार और सत्संग रूपी साबुन से सफाई की जरूरत होती है। ताकि कुविचारों की कलुषिता को अच्छे से साफ करके जीवन को उज्ज्वलता और धवलता प्रदान की जा सके। विचारों की कलुषिता का मार्जन हो सके।। अगर घड़े का पानी रोज का रोज साफ न किया जाए तो हम पाएंगे कि धीरे-धीरे वो पानी सड़ रहा है और जहर बनता जा रहा है। इसी प्रकार अगर बुद्धि को परिमार्जित करते हुए उसमें भी रोज के रोज साफ करके कुछ श्रेष्ठ विचार, कुछ सद्विचार न भरे जाएं तो हमारे वही कलुषित विचार जीवन के लिए जहर बनकर उसकी आत्मिक उन्नति में बाधक बन जाते हैं। सदा सत्संग के आश्रय में रहो ताकि हृदय की निर्मलता और विचारों की पवित्रता बनी रहे।।

*जय श्री राधेकृष्णा*


व्यक्ति का मन कभी भी खाली नहीं रह सकता । वह शुभ-अशुभ , कुछ ना कुछ जरूर चिंतन करता रहता है। या तो परमात्मा का चिन्तनया फिर विषय चिन्तन करता है। ईश्वर चिन्तन से मन पवित्र होता है। जबकि विषयों के चिंतन से मन में कुविचार विकसित होते है।
ज्यादा विषय भोग के चिन्तन से इन्हें प्राप्त करने की तीव्र इच्छा प्रगट हो जाती है और प्राप्त ना होने पर मन अशान्त और परेशान हो जाता है। विषयोपभोग से बुद्धि जड़ हो जाती है। जड़ बुद्धि में शुभ संकल्प प्रगट, शुभ विचार जन्म ले ही नहीं सकते है।

मनुष्य पहले विचार करता है और अपने विवेकानुसार उसे करने की योजना बनाता है। संकल्पानुसार हाथ पैर सब करने को तैयार होते है। यहाँ से पाप और पुण्य दोनों हो सकते हैं। अत: जीवन को आनंदमय बनाने के लिए जरुरी है कि मन को ज्यादा से ज्यादा सत्कर्मों में या ईश्वर के सिमरन में लगाया जाए ताकि मन को गलत जगह पर जाने के अवसर ही प्राप्त ना हों।
🙏🏻🙏🏽🙏🏿जय जय श्री राधे🙏🏼🙏🏾🙏

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