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बहता पानी और चलते विचार
एक दिन ऋषिवर शिष्य को एक खेत पर लेकर गये जहाँ एक किसान बहती हुई नहर से पानी को रास्ता बनाकर खेत तक ले जा रहा था और ऋषिवर ने वो दृश्य शिष्य को बड़ी गहराई से दिखाया और फिर कहा!
ऋषिवर – हॆ वत्स इस बहते हुये पानी को यदि सही दिशा मिल जायें तो ये पानी खेत तक जाकर वहाँ की फसल को निहाल कर देगी और यदि आप इस पानी को सही दिशा न दोगे तो पानी तो अपना रास्ता स्वयं बनाकर इधरउधर व्यर्थता मे चला जायेगा और खेत की सारी फसल बर्बाद हो जायेगी!
शिष्य – जी गुरुदेव!
आगे ऋषिवर ने कहा – हॆ वत्स जिस तरह से बहते हुये पानी को सही दिशा देना जरूरी है उसी तरह से चलते हुये विचारों को सही दिशा देना बहुत जरूरी है और विचार कभी नही रुक सकते है वो निरन्तर चलते रहेंगे! विचारों को दिशा देना आपके अपने हाथ मे है तुम चाहो तो उन्हे आध्यात्मिक राह दे दो और तुम चाहो तो उन्हे भोगीयो की राह दे दो! विचार और मन का बहुत गहरा सम्बन्ध है मन वही जायेगा जहाँ उसे विचार लेके जायेंगे इसलिये हमेशा पवित्र और आध्यात्मिक विचारों से ओतप्रोत रहो ताकि मन ईष्ट मे लगे इस मन को येनकेन प्रकारेण ईष्ट के श्री चरणों मे लगाओ साधना, सत्संग, भजन, कथा, स्वाध्याय और भी जिस भी तरीके से ये ईष्ट मे रमे उसे ईष्ट मे रमाओ क्योंकि यदि तुमने विचारों को सही दिशा प्रदान न की तो विचार और फिर मन गलत दिशा मे चला जायेगा!
पहले विचार आयेगा फिर कर्म शुरू होगा फ़िर आगे की राह बनेगी और फिर सफलता असफलता मिलेगी! विचारों से ही पराया भी अपना हो जाता है और विचारों से ही अपने भी पराये हो जाते है! हॆ वत्स ये कभी न भुलना की विचार एक महाशक्ति है सकारात्मक विचारधारा एक वरदान है और नकारात्मक विचारधारा एक महाअभिशाप है! समान विचारों से ही रिश्तें युगों युगों तक रहते है और ऐसा कहते है की नही कहते है की भाई मेरे और उसके विचार एक दुसरे से नही मिलते है इसलिये हम दोनो के रास्ते अलगअलग है इसलिये अपने विचारों को अध्यात्मिक राह की और मोड़ देना क्योंकि जब विचारों को सही राह मिल जायेगी तो मन भी सही जगह लग जायेगा और ईष्ट और गुरू चरण के अतिरिक्त इस मन को कही पर भी शान्ति न मिलेगी।
इसलिये हॆ वत्स अपना तन, अपना मन और अपना धन बस अच्छे विचारों मे लगा देना क्योंकि सच्ची सफलता और आत्मशान्ति हमेशा अच्छे विचारों से आती है, और अच्छे विचार के लिये निरन्तर अच्छे लोगों के सम्पर्क मे रहना क्योंकि निरन्तर अच्छे लोगों के सम्पर्क मे रहने से जीवन मे अच्छे विचार ज़रूर आते है!
🌱 वस्त्रों का त्याग तय साधना नहीं हो सकता लेकिन किसी वस्त्रहीन को देखकर अपना वस्त्र देकर उसके तन को ढक देना यह अवश्य साधना है। ऐसे ही भोजन का त्याग भी साधना नहीं है किसी भूखे की भूख मिटाने के लिए भोजन का त्याग यह साधना है।
🌱 साधना का अर्थ है स्वयं के स्वार्थ से ऊपर उठकर समाज के लिए, रास्ट्र के लिए त्याग करना। दूसरों के लिए विष तक पी जाने की भावना के कारण ही तो भगवान शिव महादेव बने। जो स्वयं के लिए जीये वो देव, जो सवके लिए जीये वो महादेव ।
🌱 आज का आदमी धर्म को जीने की वजाय खोजने में लगा है। धर्म ना तो सुनने का विषय है ना वोलने का, सुनते-वोलते धर्ममय हो जाना है। धर्म आवरण नहीं आचरण है। धर्मं चर्चा नहीं चर्याय

राधे राधे 🙏

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