गागर में सागर की भाँति छोटे से मन में सारा संसार समाविष्ट हो जाता है। मानव का अस्तित्व जितना बाहर दिखाई देता है, उससे अनन्त गुना उसके मन में है।। जैसे पृथ्वी के अन्तर में वृक्षों की जड़े बहुत गहरी होती हैं। और ऊपर तो छोटे-छोटे अंकुर ही दिखाई देते हैं, ऐसी ही मन की भी स्थिति है।। यदि मनुष्य मन का राजा बन जाय, तो जीवन की लगाम मनुष्य के हाथ में आ जाय। आज तो हमारा जीवन मन के हाथ में है।। हम पर मन अधिकार जमा कर बैठा है, जबकि महापुरुषों का जीवन उनके अपने ही हाथों में होता है। मन महापुरुषों का सेवक बनकर रहता है और हमारा स्वामी बनकर रहता है।। गोपिकाएँ कहती है, ‘हे श्याम सुन्दर जब आप पधारते हैं तब हमारा हठीला, चंचल तथा सांसारिक वासनाओं में उछला हुआ मन स्थिर हो जाता है। आप चितचोर हैं, आप माखनचोर हैं। आप हमारे मन को चुरा लेते हैं।। आप हमारे मन पर नियंत्रण करते हैं। और हमारे जीवन को सरलता से चलाते हैं।। इसीलिये आपका नाम ‘मनमोहन’ है। मन को भी मोहित हो जाने की इच्छा उत्पन्न हो जाय ऐसे आप ‘मन-मोहन’ है।।
[एक तौलिया से पूरा घर नहाता था।। दूध का नम्बर बारी-बारी आता था। छोटा माँ के पास सो कर इठलाता था।। पिताजी से मार का डर सबको सताता था। बुआ के आने से माहौल शान्त हो जाता था।। पूड़ी खीर से पूरा घर रविवार व् त्यौहार मनाता था। बड़े भाई के कपड़े छोटे होने का इन्तजार रहता था।। स्कूल मे बड़े भाई की ताकत से छोटा रौब जमाता था।। बहन-भाई के प्यार का सबसे बड़ा नाता था। धन का महत्व कभी कोई सोच भी न पाता था। बड़े का बस्ता किताबें साईकिल कपड़े खिलोने पेन्सिल स्लेट स्टाईल चप्पल सब से छोटे का नाता था।। मामा-मामी नाना-नानी पर हक जताता था। एक छोटी सी सन्दुक को अपनी जान से ज्यादा प्यारी तिजोरी बताता था।।अब तौलिया अलग हुआ, दूध अधिक हुआ, माँ तरसने लगी, पिता जी डरने लगे, बुआ से कट गये, खीर की जगह पिज्जा बर्गर मोमो आ गये, कपड़े भी व्यक्ति गत हो गये, भाईयो से दूर हो गये, बहन से प्रेम कम हो गया, धन प्रमुख हो गया, अब सब नया चाहिये, नाना आदि औपचारिक हो गये। बटुऐ में नोट हो गये।। कई भाषायें तो सीखे मगर संस्कार भूल गये। बहुत पाया मगर काफी कुछ खो गये।। रिश्तो के अर्थ बदल गये, हम जीते तो लगते है। पर संवेदनहीन हो गये। कृपया सोचें, कहां थे, कहां पहुँच गए।।
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इस जगत में मानव जीवन से श्रेष्ठ कुछ भी नहीं है। और जिस प्रकार से आप अपना बहुमूल्य जीवन गँवाते है।। उसे देख कर बेहद दुख और आश्चर्य होता है। इतने भाग्य से पायी यह दिव्य सम्पदा आप कौड़ियों के भाव गँवा रहे हैं।। अगर आप इसका सदुपयोग कर लें तो जीवन में आनंद परम प्रकाश सम्भव है। चूके तो फिर पूरा चक्कर है।। फिर दुबारा कब यह मानुष देह सम्भव हो चैतन्य की यह घड़ी फिर आये या न आये असंभव सा लगता है। जिसे इतनी आसानी से गँवा दिया उसे दुबारा कैसे पाएंगे।।
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