कुंठा व्यक्ति की मुस्कुराहट छीन लेती है। इससे भी आगे कहा जाए तो वो ये कि कुंठा किसी व्यक्ति के जीने के जज्बे को ही समाप्त कर देती है।। वर्तमान समय में एकाकी जीवन शैली कुंठा की एक प्रमुख वजह है। जब हमारे आसपास सुख दुख बाँटने के लिए कोई नहीं होता तो वहीं से हमारा मन कुंठित होने लगता है। केवल असफलता ही कुंठा का कारण नहीं होती अपितु वो सफलता भी कुंठा का कारण होती है, जिसमें हमारा कोई अपना प्रशंसा करने वाला नहीं होता है।। कुंठा का कारण केवल इतना ही नहीं है कि हम किसी के पास रो भी नहीं सकते अपितु ये भी है कि हम किसी किसी के साथ हँस भी नहीं सकते। जिस परिवार में लोग एक दूसरे के साथ सुख दुख बाँटना जानते हैं।। एक दूसरे के सुख – दुख में शामिल होना जानते हैं। वह परिवार कुंठा मुक्त, अवसाद मुक्त एवं खुशहाल होता है।। अवसाद से बचना है। तो परिवार के लोगों और मित्रों के साथ समय व्यतीत कीजिए।। मुस्कुराइए, सुख-दुःख बाँटिए, नहीं तो जीवन में केवल धन ही रह जाएगा। सुख-आनंद- प्रसन्नता चली जाएगी।।
[ ज्ञान का उद्देश्य मात्र धन कमाना ही नहीं है। अपितु धर्म कराना भी है।। ज्ञान का उद्देश्य ज्यादा कमाना नहीं अपितु जरूरत का कमाना है। ज्ञान का उद्देश्य केवल धन कहाँ से व कैसे आए ही नहीं है।। अपितु धन को कहाँ और कैसे खर्च करना भी है। ज्ञान संपत्ति का अर्जन ही नहीं सिखाता अपितु आवश्यकता पड़ने पर उसका विसर्जन भी सिखाता है।। ज्ञान घर में कैसे रहे, इतना ही नहीं अपितु बाहर कैसे रहे यह भी सिखाता है। ज्ञान का अर्थ मौन नहीं अपितु सबसे मधुर व्यवहार करना है।। ज्ञान केवल इसलिए नहीं है कि आपकी कृति सुन्दर हो अपितु इसलिए भी है कि आपके कृत्य सुन्दर हों। ज्ञान अच्छा विचारक नहीं अच्छा सुधारक बनाता है।। अत: ज्ञान का सम्पूर्ण उद्देश्य एक सच्चे और अच्छे मानव का निर्माण ही है। जो ज्ञान स्वस्थ मानव का निर्माण नहीं कर सकता फिर वह रुग्ण और त्याज्य है।।
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जीवन मे कैसा भी कष्ट आये परमात्मा का साथ कभी न छोड़ें। क्या कष्ट आने पर आप भोजन करना छोड देते हैं। क्या बीमारी आती है।। तो आप सांस लेना छोड़ देते हैं। नही न फिर जरा सी तकलीफ आने पर आप भजन सिमरन को क्यों छोड़ देते हैं।। कभी भी दो चीजें मत छोड़िये एक परमात्मा का साथ और दूसरा भोजन भोजन छोड देंगे तो जिन्दा नही रहेंगे परमात्मा को छोड देंगे तो कहीं के नही रहेंगे। सही मायने में परमात्मा ही आपकी असली जीवनी शक्ति है।। सब छूट सकता है। पर परमात्मा नहीं।।
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