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आशा दुख दायी अवश्य होती है, मगर वो जो सिर्फ दूसरों से रखी जाती है। अथवा वो जो अपनी सामर्थ्य से ज्यादा रखी जाती है।। और इससे भी ज्यादा दुख दायी निराशा होती है। जो कभी कभी स्वयं से हो जाती है।। दूसरों से ज्यादा आश रखोगे तो जीवन पल-पल कष्ट दायी हो जायेगा और अगर स्वयं से ही निराश हो जाओगे तो जीवन जीने का सारा रस चला जायेगा।। याद रखना सीढियाँ तो दूसरों के सहारे भी चढ़ी जा सकती हैं। मगर ऊचाईयाँ तक पहुँचाने वाली सीढियाँ स्वयं ही चढ़नी पड़ेंगी।।
[कई बार प्राप्ति से नहीं अपितु आपके त्याग से आपके जीवन का मूल्यांकन किया जाता है। माना कि जीवन में पाने के लिए बहुत कुछ है मगर इतना ही पर्याप्त नहीं क्योंकि यहाँ खोने को भी बहुत कुछ है। बहुत चीजें जीवन में अवश्य प्राप्त कर लेनी चाहियें मगर बहुत सी चीजें जीवन में त्याग भी देनी चाहियें।। प्राप्ति ही जीवन की चुनौती नहीं, त्याग भी जीवन के लिए एक चुनौती है। अतः जीवन दो शर्तों पर जिया जाना चाहिए। पहली यह कि जीवन में कुछ प्राप्त करना और दूसरी यह कि जीवन में कुछ त्याग करना।। एक जीवन को पूर्ण करने के लिए आपको प्राप्त करना ही नहीं अपितु त्यागना भी है। और एक फूल को सबका प्रिय बनने के लिए खुशबू तो लुटानी ही पड़ती है।।
[जीवन की बहुत सारी समस्याओं का केवल एक हल है और वो है माफी – कर दो या माँग लो।। किसी को उसकी गलती के लिए माफ कर देना भी एक साहसिक एवं दैवीय गुण है।हमारे जीवन की बहुत सारी समस्याएं वहाँ से उत्पन्न होती हैं, जब हमारे भीतर यह अहम का भाव आ जाता है कि मैं उसे माफ क्यों करूँ, हमारी यही अहमता फिर प्रतिद्वंदिता और प्रतिशोध का कारण बनकर रह जाती है। एक और बात किसी महापुरुष ने कहा कि माफ करना तो सरल है।। लेकिन माफी माँगना सरल नहीं है। हमें माफ करना आता है ये अच्छी बात है।। मगर हमें माफी माँगना भी आना चाहिए ये उससे भी अच्छी बात है। पारिवारिक जीवन में , मैत्री जीवन में या सामाजिक जीवन में संबंधों को मजबूत और मधुर बनाने हेतु किसी भी व्यक्ति के अंदर इन दोनों गुणों में से एक गुण की प्रमुखता अवश्य होनी ही चाहिए।। महाभारत की नींव ही इस सूत्र के आधार पर पड़ी कि किसी के द्वारा माफ नहीं किया गया तो किसी के द्वारा माफी नहीं मांगी गई। हमारा जीवन एक नयें महाभारत से बचकर आनंद में व्यतीत हो इसके लिए आज बस एक ही सूत्र काफी है और वो है माफी – कर दो या माँग लो।।
[जीवन में सुख-दुःख का चक्र चलता रहता है। कुछ लोग ऐसे होते हैं जो बड़ी से बड़ी विपदा को भी हँसकर झेल जाते हैं। कुछ लोग ऐसे होते हैं जो एक दुःख से ही इतने टूट जाते हैं कि पूरे जीवन उस दुःख से मुक्त नहीं हो पाते हैं। हमेशा अपने दुःख को सीने से लगाये घूमते रहते हैं। जबकि हकीकत यह है।। कि जो बीत गया सो बीत गया। अब उसमे तो कुछ नहीं किया जा सकता पर इतना जरूर है।। कि उसे भुलाकर अपने भविष्य को एक नई दिशा देने के बारे में तो सोचा ही जा सकता है। हम बच्चों को बहुत सारी बातें सिखाते हैं।। मगर उनसे कुछ भी नहीं सीखते। बच्चों से भूलने की कला हमको सीखनी चाहिए। हम बच्चों पर गुस्सा करते हैं, उन्हें डांटते भी है। लेकिन बच्चे थोड़ी देर बाद उस बुरे अनुभव को भूल जाते हैं।।

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