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।🌺 भगवद चिंतन🌺।
मनुष्य योनि सर्वश्रेष्ठ मानी गयी है।प्रकृति द्वारा प्रदत्त यह योनि परमात्मा की धरोहर हैं।हमें इसे परमात्मा के कार्यो में लगाना चाहिए।केवल धन दौलत कमाकर एकत्रित करने और दुनिया दारी निभाने में ही जीवन व्यर्थ नही करना चाहिए।यह मानव तन एक अच्छा इंसान बनने के लिए है।हमे अपने को इस योग्य बनाना चाहिए,कि हम से जो भी मिले हमारी मधुर स्मृतियों में ही डूबा रहे।जिस प्रकार किसी फूल की महक से भंवरा सीधे उसी की ओर आता हैं, जिस प्रकार चंदन के साथ रहने वाले पेड़ भी चंदन की खुशबू वाले हो जाते हैं।हमे भी इस मानव शरीर को प्रेम,करुणा,दया, सहनशीलता,एवं नम्रता जैसे दिव्य गुणों से युक्त करना चाहिए। हमें धर्म के मार्ग पर चलते रहने का सदैव पर्यास करते रहना चाहिए,।काम,क्रोध,लोभ, मोह,और अहंकार से फिर मनुष्य कोसों दूर रहता है।अपने पराए का भेद मिट जाता है।भक्ति और धर्म प्रत्येक मनुष्य की भूख होनी चाहिए।हम अपने जीवन का प्रत्येक क्षण धर्ममय बनाये।जिस मनुष्य के जीवन मे धर्म नही है, उस मनुष्य का जीवन, जीवन नही,अपितू म्रत्यु है।धर्म का अर्थ शुद्ध मानव है।धर्म ही मनुष्य को सदमार्ग पर ले जाने का कार्य करता है।धर्म युक्त मनुष्य सम भाव मे रहना सीख जाता है फिर वह सुख और दुख में भी सदैव प्रसन्न रहता है। उसके जीवन के प्रत्येक पल दुसरो की सहायता करने में बीतता है।हम कहते हैं भगवान को नही देखा किन्तु धर्म युक्त मनुष्य हर छण हर कार्य को भगवान को समर्पित करता है, और साथ ही अंतर्मन से भगवान के दर्शन करता है..!!
🙏🙏🏿🙏🏼जय जय श्री राधे🙏🏾🙏🏽🙏🏻

!! एकाग्रचित्त बनें !!
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एक आदमी को किसी ने सुझाव दिया कि दूर से पानी लाते हो, क्यों नहीं अपने घर के पास एक कुआं खोद लेते? हमेशा के लिए पानी की समस्या से छुटकारा मिल जाएगा। सलाह मानकर उस आदमी ने कुआं खोदना शुरू किया। लेकिन सात-आठ फीट खोदने के बाद उसे पानी तो क्या, गीली मिट्टी का भी चिह्न नहीं मिला। उसने वह जगह छोड़कर दूसरी जगह खुदाई शुरू की। लेकिन दस फीट खोदने के बाद भी उसमें पानी नहीं निकला। उसने तीसरी जगह कुआं खोदा, लेकिन निराशा ही हाथ लगी। इस क्रम में उसने आठ-दस फीट के दस कुएं खोद डाले, पानी नहीं मिला। वह निराश होकर उस आदमी के पास गया, जिसने कुआं खोदने की सलाह दी थी।

उसे बताया कि मैंने दस कुएं खोद डाले, पानी एक में भी नहीं निकला। उस व्यक्ति को आश्चर्य हुआ। वह स्वयं चलकर उस स्थान पर आया, जहां उसने दस गड्ढे खोद रखे थे। उनकी गहराई देखकर वह समझ गया। बोला, ‘दस कुआं खोदने की बजाए एक कुएं में ही तुम अपना सारा परिश्रम और पुरूषार्थ लगाते तो पानी कब का मिल गया होता। तुम सब गड्ढों को बंद कर दो, केवल एक को गहरा करते जाओ, पानी निकल आएगा।’

शिक्षा:-
कहने का मतलब यही कि आज की स्थिति यही है। आदमी हर काम फटाफट करना चाहता है। किसी के पास धैर्य नहीं है। इसी तरह पचासों योजनाएं एक साथ चलाता है और पूरी एक भी नहीं हो पाती।
🙏🏻🙏🏽🙏🏾जय जय श्री राधे🙏🏼🙏🏿🙏

🙏!! जीवन का सत्य !!*
जो दूसरों की निंदा करके, कान भरके, चुगली करके घर परिवार की एकता को खंडित करते हैं, अपने ही परिवार के सदस्यों में मनमुटाव पैदा करते हैं, वो खुद अपने ही पैरो में कुल्हाड़ी मारने का कार्य करते हैं।
ऐसे लोग ये क्यों भूल जाते हैं कि परिवार ही है जो आपसी सुख-दुःख में काम आएगा।
उन्हें मन कि आवाज से संकेत भी जाता है कि ऐसा मत करो, अपने कर्मों को नेक रखो परन्तु ऐसे लोग जब नहीं समझते तो उन्हें एक दिन दंडित होना पडता है,
बोया पेड़ बबूल का तो आम की उम्मीदों पर क्यूँ है?? जैसा तेरा कर्म वैसा तेरा कर्मफल होना है इसलिए अगर किसी का भला नही कर सकते तो ना करो। पर किसी का बुरा मत करो, बुरा मत सोचो, बुराई से बुराइयाँ ही उपजेंगी न कि अच्छाईयॉं!
जिंदगी परिवर्तनों से ही बनी है, किसी भी परिवर्तन से घबराएं नहीं, बल्कि उसे स्वीकार करे! कुछ परिवर्तन आपको सफलता दिलाएंगे,
तो कुछ सफल होने के गुण सिखाएंगें!!
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: बोने से पहले बीज अन्न का दाना है-उपजाने के बाद भी अन्न ही रहता है। घास-फूस उसे मध्य में मिलते हैं।। और मध्य में ही विलग हो जाते हैं। इसी प्रकार तुम अविनाशी में ही सम्मिलित हो जाओगे।। यह कुटुम्ब-सम्बन्धी तो तुम्हें उस अन्न के घास-फूस की भांति मार्ग में मिले हैं और मार्ग में ही बिछुड़ जायेंगे। अतः तुम इनके साथ रहते हुए भी न्यारे होकर रहो।। अन्तदृष्टि करके तुम स्वयं से पूछो कि तुम कौन हो, ऐ प्रभु सब सृष्टि की रचना तुम्हारी है, तुम सब में रमे हुए भी निराकार (निरपेक्ष) हो।सुख व शान्ति के लिए कहीं भटकने की आवश्यकता नहीं।। अन्तर्मुखी वृति करके शब्द की कमाई करोगे तो स्वयमेव अपार आनन्द व शान्ति का भण्डार मिल जायेगा। सतगुरु का ध्यान ऐसा करो कि केवल ‘तू ही तू’ रह जाये और ‘मैं’ उनमें विलीन हो जाये।।

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