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जाइए और खोजिए परमात्मा की कृपा से शायद आपको यह समझ आ जाये, कि इतने खूबसूरत अस्तित्व में अगर आप कुछ और न खोज कर केवल अपने को खोजते, तब आपको बहुत कुछ उपलब्ध होने की संभावना थी। बहुत से लोग सदियों से बाहर खोज रहे हैं।। बहुत दिन तक बाहर खोजा, लेकिन बाहर की खोज में उन्हें आज तक कुछ उपलब्ध नहीं हुआ। और जब अपने को खोजा, तब वह सब पा लिया है, जिसे पाकर कुछ भी पाने की कामना शेष नहीं रहती।।

          
                 

🙏🌹आज का चिन्तन🌹🙏

🌹सारा दोष मन का है और दण्ड हम शरीर को देते हैं।
इस मन को दण्ड देने का सबसे उत्तम विधान है मन को ईश्वर में लगाया जाय।🌹
विगत दिवस में हमने बात की थी विद्या की प्राप्ति विषय पर और आज हमारा विषय है “ईर्ष्या” जिस पर हम और आप विचार करेंगे । तो क्या आप सज्ज हैं ? जी हाँ, किसी की सफलता या सुख देखकर पहला भाव क्या जागृत होता है हमारे हृदय में ? किसी व्यक्ति को सुन्दर पत्नी या किसी स्त्री को सुन्दर पति प्राप्त होता है बड़ा वाहन या कोई सम्मान प्राप्त होता है तब हम अवश्य आनन्द तो प्रकट करते हैं किन्तु क्या ये व्यक्ति का मन नहीं कहता कि ये सुख सफलता अथवा ये वस्तु दूसरे को नहीं मिलती तो कदाचित हमें सुख होता । उस सुख और सफलता को पाने के लिए हमने कभी प्रयत्न भी नहीं किया । उस वस्तु की ईच्छा तो दूर हमने उस वस्तु का स्वप्न भी नहीं देखा । फिर भी हमारा मन घर। ईर्ष्या से भर जाता है । क्या ये सत्य नहीं ? कदाचित व्यक्ति का स्वभाव हो चुका है दूसरों के दुःख को देखकर आनन्दित होना तथा दूसरों का सुख देखकर दुःखी होना । क्या ये सत्य नहीं ? हम अपना सुख छोड़ ईर्ष्या के कारण व्यर्थ ही दुःख माथे पर उठा लेते हैं । तो ये ईर्ष्या क्या है जो बिना कारण हमारे सुख का भोजन कर जाती है । यदि हम विचार करेंगे तो जान पायेंगे कि यह ईर्ष्या हृदय का एक गुप्त भाव है । हम लाख समझते हों कि ईर्ष्या उचित नहीं फिर भी मन में ईर्ष्या जाग जाती है । उसको अंकुश में रखना भी असम्भव सा है क्योंकि वह निरन्तर हृदय में रहती नहीं है । अब आप सोच रहे हैं कि हम इससे भला कैसे बच सकते हैं ? सत्य कहा ना हमने ? तो सुनिए इस ईर्ष्या से छुटकारा पाने का उपाय केवल एक ही है की हम इसके जड़ से परिचित हो जायँ । इस रोग के लिए समझदारी से उत्तम कोई औषधि ही नहीं है । तो ईर्ष्या क्या है और कहाँ से ये जन्म लेती है और इसकी मूल जड़ क्या है ? हम इस बात पर विचार करेंगे , जब किसी को कोई सुख कोई सफलता अथवा वस्तु प्राप्त हो जाती है तो वास्तव में उसका जीवन बदलता है । समाज में उसका सिर ऊपर उठता है , भले ही वस्तु छोटी सी ही क्यों न हो कम से कम लोग उसका अभिनन्दन अवश्य करते हैं । कुछ समय के लिए वो निकट के समाज, परिवार या मित्रों की मण्डली का केन्द्र दिखाई पड़ता है और ठीक उसी समय समाज परिवार या मित्रों की मण्डली की नजर हम पर नहीं रहती । इसलिए दुःख का कारण यही है कि हमें हमारा महत्व कम होता दिखाई पड़ता है । क्या ये सत्य नहीं ? जब ये सब हमारी तरफ छोड़ दूसरे व्यक्ति को देखना शुरू करते हैं तो यहीं से ईर्ष्या का भाव हमारे हृदय में जागृत हो जाता है । हमारे मन में ऐसी इच्छा क्यों रहती है कि सब हमें ही देखें ? कि अपने समाज के केन्द्र में हम सदा ही बने रहें । समाज के केन्द्र में बने रहने से प्राप्त क्या होता है ? विचार कीजिए जब तक समाज के केन्द्र में हम है कदाचित हमें प्रतीत होता है कि हम महत्वपूर्ण हैं हमारा जीवन व्यर्थ नहीं , निकट के लोगों के लिए सार्थक हैं हम । वास्तव में हमारी सार्थकता हमारा महत्व हम सदा ही दूसरों की दृष्टि से नापते आये हैं किन्तु सत्य तो यह है कि समाज की दृष्टि में तो परिवर्तन होना ही है अर्थात समाज हमारी ओर देखे तो वो समाज का उपकार है न कि हमारा अधिकार । हमारी सार्थकता का प्रमाण जब स्वयं हमारे हृदय से प्राप्त होने लगे अर्थात हम अपने जीवन से रस उठाने लगें , अर्थात जब हमारा हृदय आत्मविश्वास से भर जाय तो ईर्ष्या का भाव अपने आप ही चला जाता है ।
अन्ततोगत्वा ईर्ष्या वास्तव में कुछ भी नहीं बस हृदय में आत्मविश्वास के न होने का प्रमाण भर है । हमारे इस विषय पर विचार चिन्तन और मनन अवश्य कीजियेगा । आशा करते हैं कि हमारा ये विषय हम सबके जीवन में कुछ अर्थ भरेगा ।।
जय जय श्री राधे राधे जी।. 🍁🌹🍁🍁😊🙏

: राधे-राधे ॥आज का भगवद् चिंतन॥

जुनून, हौसला और अनुभव ये जीवन की तरक्की के तीन महत्वपूर्ण सूत्र हैं, जुनून आपसे वो भी करवा लेता है, जो आप नहीं कर सकते थे। अथवा ये मानते थे कि ये काम मेरी क्षमता से बाहर है।। और मुझसे कभी नहीं होगा।असंभव को भी संभव कर के दिखाना ये जुनून का काम है।। एक विश्वविजयी सम्राट ने कभी अगर ये कहा है था कि मेरे शब्दकोष में असंभव जैसा कोई शब्द ही नहीं तो ये उसका जुनून ही था हौसला आपसे वो करवाता है, जो आप करना चाहते हैं। जीवन में कुछ बड़ा करने का अथवा कुछ अलग करने का स्वप्न लगभग हर कोई देखता है मगर हौसले के अभाव में उनका वह महान स्वप्न भी केवल दिवास्वप्न बनकर रह जाता है। जीवन में कुछ बड़ा करने के सपने देखना भी अच्छी बात है मगर उन सपनों को साकार करने के लिए सदा प्रयत्नशील रहना उससे भी अच्छी बात है।जो लोग हौसले की ऊर्जा से भरपूर निरंतर अपने कर्तव्य पथ पर प्रयत्नशील रहते हैं, उनके महान से महान लक्ष्य भी एक दिन अवश्य पूर्ण हो जाया करते हैं।। अनुभव आपसे वो करवाता है, जो आपको करना चाहिए। हमारे लिए क्या सही होगा अथवा क्या गलत या किसमें हमारा हित होगा अथवा किसमें अहित अनुभव ही एक मात्र वो शिक्षक है, जो हमें इन सभी प्रश्नों के सबसे सटीक उत्तर दे सकता है। केवल शक्ति का होना पर्याप्त नहीं अपितु शक्ति का व्यय उचित दिशा में हो ये ज्ञान होना भी आवश्यक है।

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