जिस व्यक्ति को यह याद रहता है कि मै इस दुनिया में यात्री हूँ और एक दिन मुझे जाना है तो वह सबसे मिलकर चलता है और खुश रहता है । जिन्दगी का सफर पूरा होने की स्मृति उसे देह और इन्द्रियों से न्यारा कर देती है । ऐसा व्यक्ति अपने मूल अस्तित्व के करीब आता है अर्थात आत्म स्वरूप को पहचानकर उसमें टिका रहता है । वह अपने में रमण करते हुए , अपने से बातें करता है और अपने आपके साथ ही असीम तृप्ति महसूस करता है । ऐसे व्यक्ति को कहते है आत्मनिर्भर ।
परनिर्भर अपनी ताकत को नही पहचानता और दूसरों से सहयोग की अपेक्षा रखता है परन्तु दूसरे भी तो उसी की तरह खाली है । जब चाहत पूरी नही होती तो खुशी गायब हो जाती है । व्यक्ति अपने भावनाओं में पहले स्व-निर्भर बने । अपने आपसे सब कुछ लेना सिखे , शेअर करना सीखे , इसको कहते है स्वतन्त्रता । नही तो वह परतन्त्र है ।
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