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‼ *भगवत्कृपा हि केवलम्* ‼
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*इस समस्त सृष्टि में श्रीराम नाम की व्यापकता कण कण में समायी हुई है | राम कौन हैं ? कोई अयोध्या के राजकुमार श्री राम को भजता है तो कोई निर्गुण निराकार राम को | अयोध्या में श्री राम का अवतरण त्रेतायुग में हुआ था परंतु राम नाम की व्यापकता वेदों में भी दिखाई पड़ती जो कि सृष्टि के आदिकाल से ही हैं | राम नाम वेदों के प्राण के समान है | शास्त्रों का और वर्णमाला का भी प्राण है | प्रणव को वेदों का प्राण माना जाता है | प्रणव तीन मात्रा वाला ॐ कार पहले ही प्रगट हुआ, उससे त्रिपदा गायत्री बनी और उससे वेदत्रय . ऋक , साम और यजुः – ये तीन प्रमुख वेद बने | इस प्रकार ॐ कार [ प्रणव ] वेदों का प्राण है | राम नाम को वेदों का प्राण माना जाता है , क्योंकि राम नाम से प्रणव होता है | जैसे प्रणव से र निकाल दो तो केवल पणव हो जाएगा अर्थात ढोल हो जायेगा | ऐसे ही ॐ में से म निकाल दिया जाए तो वह शोक का वाचक हो जाएगा | प्रणव में र और ॐ में म कहना आवश्यक है | इसलिए राम नाम वेदों का प्राण भी है | त्रेता में श्री राम जन्म के पहले से ही भूतभावन भोलेनाथ श्री राम नाम का जप करते रहे हैं | इससे यह सिद्ध होता है कि राम नाम ही सत्य है | "श्री राम: शरण समस्त जगतां , रामम् बिना का गती" यह सिद्ध करता है कि :- सृष्टि में राम नाम के अतिरिक्त कुछ भी सत्य नहीं है |*
आज के परिवेश में “राम नाम सत्य है” के उच्चारण का अर्थ ही बदलकर रह गया है | यह उच्चारण अब केवल मृतक को श्मशान ले जाते समय ही लोग बोलते हैं | यद्यपि राम नाम सत्य है परंतु विचार कीजिये कि किसी के बेटी की पालकी उठ रही हो , या किसी के नवजात शिशु को गोदी में उठाकर प्रेम से उछालते हुए यदि गल्ती से भी आपके मुंह से निकल जाय कि :- “राम नाम सत्य है” तो उसके घरवाले आपकी क्या दुर्दशा कर सकते हैं इसकी कल्पना नहीं की जा सकती है | मैं देख रहा हूँ कि आज यह उच्चारण सिर्फ अर्थी के पीछे बोलने वाला नारा मात्र बनकर रह गया है | लेकिन इस नारे को बोलने के पीछे का असल उद्देश्य कुछ ही लोगों का पता होगा कि आखिर मृत्क के शव यात्रा के समय एेसा क्यों कहा जाता है | धर्मराज युधिष्ठिर ने एक श्लोक के बारे में बताया है जिससे इस वाक्य को कहने का सही अर्थ पता लगता है—- “अहन्यहनि भूतानि गच्छंति यमममन्दिरम् !शेषा विभूतिमिच्छंति किमाश्चर्य मत: परम् !!” अर्थात— मृतक को जब श्मशान ले जाते हैं तब कहते हैं ‘राम नाम सत्य है’ परंतु जहां घर लौटे तो राम नाम को भूल माया मोह में लिप्त हो जाते हैं | मृतक के घर वाले ही सबसे पहले मृतक के माल को संभालने की चिंता में लगते हैं और माल पर लड़ते-भिड़ते हैं | धर्मराज युधिष्ठिर आगे कहते हैं, “नित्य ही प्राणी मरते हैं, लेकिन शेष परिजन सम्पत्ति को ही चाहते हैं इससे बढ़कर क्या आश्चर्य होगा?” ‘राम नाम सत्य है, सत्य बोलो गत है’ बोलने के पीछे मृतक को सुनाना नहीं होता है बल्कि साथ में चल रहे परिजन, मित्र और वहां से गुजरते लोग इस तथ्य से परिचित हो जाएं कि राम का नाम ही सत्य है। जब राम बोलोगे तब ही गति होगी |
भगवान के सहस्रों नाम में श्री राम नाम सर्वश्रेष्ठ एवं सत्य है | परंतु हम स्वयं इसकी व्यापकता को भूलते जा रहे हैं जिससे कि अन्य लोगों को इस पर प्रश्नचिन्ह लगाने का अवसर मिल रहा है | अत: उठो , जागो एवं विचार करो |
🌺💥🌺 *जय श्री हरि* 🌺💥🌺
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सभी भगवत्प्रेमियों को आज दिवस की “मंगलमय कामना—–🙏🏻🙏🏻🌹
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