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खून का दाग खून से नहीं धुलता। वह पानी से ही धुल सकता है। उसी प्रकार वैर से कभी वैर नष्ट नहीं हो सकता। वह शान्ति से – क्षमा से – सहिष्णुता से – प्रेम के प्रयोग से ही नष्ट हो सकता है।परन्तु कुछ लोग ऐसे हैं, जो वैर को वैर से नष्ट करना चाहते हैं। ऐसे लोग आग को घासलेट से बुझाना चाहते हैं, पानी से नहीं। कैसी मूर्खता है?
_इससे भी भयंकर बात यह है कि कुछ व्यक्ति स्वभाव से ही वैरी होते हैं। उन्हें तब तक भोजन ही हजम नहीं होता, जब तक वे पड़ौस में या अन्यत्र जा कर कोई-न-कोई झगड़ा नहीं कर आते। वे भ्रम से यह समझते हैं कि झगड़ने और उसमें जीतने से ही कुटुम्बी और अन्य लोगों में हमारी धाक जमेगी, प्रतिष्ठा बढ़ेगी।

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