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रामप्पा मंदिर तेलंगाना


अद्भुत और आश्चर्यजनक वास्तुकला
इसवी सन 1213 मैं वारंगल आंध्र प्रदेश के काकतीय वंश के महाराजा गणपति देव को एक शिव मंदिर बनाने का विचार आया
उन्होंने अपने शिल्पकार रामप्पा को ऐसा मंदिर बनाने को कहा जो बरसों तक टिका रहे
रामप्पा ने अथक मेहनत और शिल्प कौशल से जो मंदिर तैयार किया जो दिखने में बहुत ही खूबसूरत और अद्भुत था
राजा गणपति देव इस बेहतरीन मंदिर को देखकर इतने प्रभावित हुए कि इस मंदिर का नाम उन्होंने इस मंदिर के शिल्पी रामप्पा के नाम पर ही रख दिया

रामप्पा मंदिर विश्व का पहला ऐसा मंदिर है
जिसका नाम उसके अंदर विराजमान भगवान के नाम पर ना होकर उसके निर्माणकर्ता शिल्पी के नाम पर है

यह मंदिर आज भी उसी तरह शान से खड़ा हुआ है
जबकि इसके बाद के बने काफी मंदिर खंडहरों में तब्दील हो चुके हैं
यह बात जब पुरातत्व विशेषज्ञों को पता चली तो उन्होंने मंदिर में जाकर जांच की जांच में पता चला कि वाकई मंदिर अपनी उम्र के हिसाब से बहुत मजबूत है काफी कोशिशों के बाद भी विशेषज्ञ यह पता नहीं लगा सके कि इसकी मजबूती का राज क्या है
फिर उन्होंने मंदिर के पत्थर के एक टुकड़े को काटा तो पाया पत्थर बजन में बहुत ही हल्का है उन्होंने काटे हुए पत्थर के टुकड़े को पानी में जब डाला तो वह टुकड़ा पानी में तैरने लगा यानी कि यहां आर्कमिडीज का सिद्धांत गलत साबित हो गया तब जाकर मंदिर की मजबूती का रहस्य कुछ हद तक पता लगा कि और मंदिर तो अपने पत्थरों के वजन की वजह से टूट गए पर रामप्पा मंदिर के पत्थरों में वजन बहुत कम है इस वजह से यह मंदिर आज भी सही सलामत है

अब तक वैज्ञानिक और विशेषज्ञ इस मंदिर के पत्थरों का रहस्य पता नहीं कर सके की
रामप्पा यह पत्थर आखिरकार लाए कहां से
क्योंकि इस तरह के पत्थर विश्व में कहीं भी नहीं पाए जाते जो पानी में तैरते हो
तो क्या रामप्पा ने यह पत्थर 800 से 900 साल पहले खुद बनाए थे अगर हां तो कैसे वह कौन सी तकनीक है और अभी किसके पास है

कोई भी जनमानस क्या जवाब दे सकता है
इस मंदिर की बेहतरीन शिल्प कला के बारे में
क्या इसे छेनी हथौड़ी से बनाना सम्भव है
जवाब देते वक्त याद रखना की मैं 800 से 900 साल पहले की बात कर रहा हूँ

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