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एकादशी के दिन क्यों नहीं खाते चावल . . . ?🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸
पद्म पुराण के अनुसार एकादशी के दिन भगवान विष्णु के अवतारों की पूजा विधि-विधान से की जाती है। माना जाता है कि इस दिन सच्चे मन से पूजा करने पर मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है। साथ ही इस दिन दान करने हजारों यज्ञों के बराबर पुण्य मिलता है। इस दिन निर्जला व्रत रहा जाता है। जो लोग इस दिन व्रत नही रख पाते। वह लोग सात्विक का पालन करते है यानी कि इस दिन लहसुन, प्याज, मांस, मछली, अंडा नहीं खाएं और झूठ, ठगी आदि का त्याग कर दें। साथ ही इश दिन चावल और इससे बनी कोई भी चीज नहीं खानी चाहिए।

हम पुराने जमाने से यह बात सुनते चले आ रहे कि एकादशी के दिन चावल और इससे बनी कोई भी चीज नही खाई जाती है। लेकिन इसके पीछे सच्चाई क्या है यह नहीं जानते हैं। जब भी हम यह बात सुनते होंगे कि आज एकादशी है और आज चावल नहीं खाए जाते है, तो हमारे दिमाग में एक ही बात है कि ऐसा क्यों है, जानिए इसके पीछे क्या रहस्य है।

शास्त्रों में चावल का संबंध जल से किया गया हैं और जल का संबंध चंद्रमा से है। पांचों ज्ञान इन्द्रियां और पांचों कर्म इन्द्रियों पर मन का ही अधिकार है। मन और श्वेत रंग के स्वामी भी चंद्रमा ही हैं, जो स्वयं जल, रस और भावना के कारक हैं, इसीलिए जलतत्त्व राशि के जातक भावना प्रधान होते हैं, जो अक्सर धोखा खाते हैं।

एकादशी के दिन शरीर में जल की मात्रा जितनी कम रहेगी, व्रत पूर्ण करने में उतनी ही अधिक सात्विकता रहेगी। आदिकाल में देवर्षि नारद ने एक हजार साल तक एकादशी का निर्जल व्रत करके नारायण भक्ति प्राप्त की थी। वैष्णव के लिए यह सर्वश्रेष्ठ व्रत है। चंद्रमा मन को अधिक चलायमान न कर पाएं, इसीलिए व्रती इस दिन चावल खाने से परहेज करते हैं।

शास्त्रों में एक पौराणिक कथा भी है। इसके अनुसार माता शक्ति के क्रोध से भागते-भागते भयभीत महर्षि मेधा ने अपने योग बल से शरीर छोड़ दिया और उनकी मेधा पृथ्वी में समा गई। वही मेधा जौ और चावल के रूप में उत्पन्न हुईं।

ऐसा माना गया है कि जिस दिन यह घटना हुई। उस दिन एकादशी का दिन था। यह जौ और चावल महर्षि की ही मेधा शक्ति है, जो जीव हैं। इस दिन चावल खाना महर्षि मेधा के शरीर के छोटे-छोटे मांस के टुकड़े खाने जैसा माना गया है, इसीलिए इस दिन से जौ और चावल को जीवधारी माना गया है।

एकादशी के दिन चावल न खाने के पीछें वैज्ञानिक तथ्य भी है। इसके अनुसार चावल में जल की मात्रा अधिक होती है। जल पर चन्द्रमा का प्रभाव अधिक पड़ता है। चावल खाने से शरीर में जल की मात्रा बढ़ती है इससे मन विचलित और चंचल होता है। मन के चंचल होने से व्रत के नियमों का पालन करने में बाधा आती है। एकादशी व्रत में मन का निग्रह और सात्विक भाव का पालन अति आवश्यक होता है इसलिए एकादशी के दिन चावल से बनी चीजे खाना वर्जित कहा गया है।


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एकादशी के महत्त्व के बारे में शास्त्र-प्रमाण
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नमो नमस्ते गोविन्द बुधश्रवणसंज्ञक ॥
अघौघसंक्षयं कृत्वा सर्वसौख्यप्रदो भव ।
भुक्तिमुक्तिप्रदश्चैव लोकानां सुखदायकः ॥

मन में भौतिक इच्छा रखने वाले लोगों ने मोक्ष प्राप्त करने के लिए अथवा अपनी उद्देश्य-पूर्ति के लिए प्रत्येक एकादशी को उपवास रखना चाहिए। परंतु एकादशी का सच्चा उद्देश्य हैं भगवान्‌ को आनंद प्रदान करना।

शुक्ल पक्ष हो या कृष्ण पक्ष हो, भरणी नक्षत्र हो या अन्य कोई भी कारण हो, भगवान्‌ श्री हरि का प्रेम और उनके धाम की प्राप्ति करने के लिए प्रत्येक व्यक्ति के लिए एकादशी को उपवास रखना आवश्यक हैं।

हज़ारों अश्वमेध यज्ञ करके और सैकडों वाजपेय यज्ञ करके जो पुण्य प्राप्त होता है, उस पुण्य की तुलना एकादशी के उपवास द्वारा प्राप्त होनेवाले पुण्य के सोलहवे हिस्से के साथ भी नहीं हो सकती।

इस पृथ्वी पर भगवान्‌ पद्मनाभ के दिन के समान (अर्थात्‌ एकादशी के समान) शुद्धि प्रदान करने वाला और पाप दूर कर सकने में समर्थ अन्य कोई भी दिन नहीं हैं।

ग्यारह इन्द्रियों के द्वारा (आँखें, कान, नाक, जीभ और त्वचा यह पाँच ज्ञानेंद्रिय; मुँह, हाथों , पैर, गुदद्वार और जननेंद्रिय यह पाँच कर्मेद्रिय और मन–इन के द्वारा) किये गये सर्व पाप कर्म हर एक पक्ष की ग्यारहवे दिन को (एकादशी को) उपवास करने से नष्ट हो जाते हैं।

अपना पाप नष्ट करने के लिए एकादशी के समान प्रभावी उपाय दूसरा कोई नहीं हैं। यदि कोई व्यक्ति केवल दिखावे के लिए एकादशी करता है, तो भी उस व्यक्ति को मृत्यु के उपरांत यम का दर्शन नहीं होता हैं।

भगवान्‌ श्रीकृष्ण के अवतार महर्षि वेद व्यास ने कहा है–”मेरे दिन (एकादशी को) यदि कोई व्यक्ति मुझे थोड़ा भी अन्न अर्पण करता है, तो वह नरक में जायेगा। तो कोई व्यक्ति स्वयं अन्न खाने से उस की क्या गति होगी, ये कहने की आवश्यकता नहीं हैं।”

ब्राह्मण की हत्या करना, शराब पीना–ये सब पाप एकादशी को अन्न खाने के पापों से क्षुद्र हैं।

जो मनुष्य एकादशी के पवित्र दिन अन्न खाता हैं तो वह सब मनुष्यों में हीन हैं। यदि कोई ऐसे मनुष्यों का अशुभ चेहरा देखता हैं, उसने सूर्य के तरफ़ देखकर अपने आप को पवित्र कर लेना चाहिए।

एकादशी के दिन (श्री हरि के दिन) इस पृथ्वी के उपर की सब बडे बडे पाप जैसे ब्रह्म-हत्या (ब्राह्मण को मारने का पाप) अन्न का आश्रय लेते है आनी वहाँ रहते हैं।

यदि अपने पिता, पुत्र, पत्नी या मित्र भी भगवान्‌ पद्मनाभ के दिन यदि अन्न खायेंगे तो भी वे बडे पापियों में गिने जायेंगे।

दशमी के दिन एक ही बार खाना खायें। एकादशी के दिन पूर्ण उपवास रखना चाहिए। एकादशी के दिन श्राद्ध, तिलोदक, पिंड-प्रदान, जल-तर्पण इत्यादि कार्य नहीं करना चाहिए।

कोई भी महिला मासिक धर्म के समय भी (रजस्वला अवस्था में भी) एकादशी के दिन अन्न न खायें।

विधवा स्त्री यदि एकादशी के दिन अन्न भोजन करती हैं तो वह सब पुण्यों से रहित होती है आनी प्रति दिन एक गर्भपात करने का पाप उसे लगता हैं।

द्वादशी को तुलसी-पत्तों का चयन वर्जित
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न छिन्द्यात्‌ तुलसीं विप्र
द्वादश्यां वैष्णवः क्वचित्।

(हरिभक्तिविलास, 7/354, विष्णु-धर्मोत्तर पुराण)

हे ब्राह्मणों! एक वैष्णव द्वादशी के दिन कभी भी तुलसी पत्तों का चयन नहीं करना।

भानुवारं विना दुर्वां
तुलसीं द्वादशीं विना।
जिवितस्य अविनाशाय न
विचिन्वित धर्मवित्‌॥
(हरिभक्तिविलास, 7/355, गरुड-पुराण)

शास्त्र का भली भाँति अध्ययन किया हुए व्यक्ति यदि अपनी आयु को कम नहीं करना चाहता हो तो उसे रविवार के दिन दुर्वा घास और द्वादशी के दिन तुलसी के पत्तों का चयन नहीं करना चाहिए।

द्वादश्यां तुलसी पत्रं
धात्री पत्रश्च कार्त्तिके।
लुनति स नरो गच्छेत्‌
निरयं अति गर्हितम्‌॥
(हरिभक्तिविलास 7/356, पद्म-पुराण, कृष्ण और सत्यभामा के बीच का संवाद)

यदि कोई मनुष्य द्वादशी के दिन तुलसी-पत्तों का चयन करता है या कार्तिक महीने में आंवले के वृक्ष के पत्तों का चयन करता है तो उसे अत्यंत गर्हित नरक-लोक की प्राप्ति होकर दुःख का अनुभव करना पड़ता है।


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