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सुक्ष्म योग विद्या का प्रतिपादन विज्ञान द्वारा

उपनिषदों , योगविद्या के ग्रंथों , तंत्रशास्त्रों आदि में में कहा गया है कि मनुष्य के शरीर में ऐसे अनेक सूक्ष्म केंद्र हैं , जिनमें प्राणशक्ति और अतींद्रिय क्षमताओं का अपार वैभव प्रसुप्त स्थिति में दबा पड़ा है । इन सूक्ष्म संस्थानों को चक्र या प्लेक्सस या गैग्लियान समूह कहा जा सकता है । इनसे स्वायत्त नाड़ी संस्थान प्रभावित होता है ।

शरीरविज्ञानियों के अनुसार यहाँ ज्ञानतंतु अधिक मात्रा में उलझे रहते हैं । स्थल तथा सुक्ष्मशरीर के मिलन स्थान पर चक्रों की उपस्थिति मानी गई है । यही योगविद्या विशारदों का कथन है ।

अब शरीरविज्ञानियों एवं योगियों के चक्र एवं प्लेक्सस – सूक्ष्म एवं स्थूलशरीर में होने वाली प्रतिक्रियाओं को दृश्यमान करने वाली एक मशीन का आविष्कार किया जा चुका है , जिसे मूर्धन्य विज्ञानवेत्ता #डॉ०मोतोयामा ने “#चक्र_मशीन” नाम दिया है । इसका आविष्कार होने से सूक्ष्मजगत में प्रवेश करने का मानो द्वार ही खुल गया है ।

‘ साइंस एंड इवॉल्यूशन ऑफ कॉन्शियसनेस ‘ नामक अपनी कृति में डॉ . हिरोशी मोतोयामा ने कहा है कि इस संपर्ण सष्टि में तथा उससे परे भी सर्वत्र चेतना – प्रवाह विद्यमान है , जिसकी अनंत परतें हैं प्रत्येक चेतना स्तर अपने ढंग का अनूठा है । सामान्य मनुष्य जिस चेतना धरातल का स्पंदन ग्रहण कर पाने में अक्षम हो , वहाँ चेतना है ही नहीं , ऐसी हठवादिता का अधिकांश वैज्ञानिकों में भी पाया जाना स्वाभाविक है ।

तार्किक दृष्टि से उसको स्वीकार किया जाना रूढ़िवादिता से ग्रस्त मानव मन के धरातल के स्वभाव के अनुसार आसान नहीं है । #आइन्स्टाइन जैसे प्रबुद्ध वैज्ञानिक ही ऐसा कथन कर सकते हैं कि अभी हम जो जानते हैं , वह सब हमारे बोध की परिधि में सिमटे सृष्टि रूपों की झलक मात्र है । यह आभास हमारे लिए ज्ञान चेतना धरातलों की परिधि में आबद्ध है । यदि में किसी प्रकार हमारी . चेतना एक नए आयाम को छु ले सतो अभी का हमारा जो भी बोध है , वह तब पूरी तरह बदल ही जाएगा ।

पदार्थ विज्ञान के अणुभौतिकी – पार्टिकल फिजिक्स | की गहराई में प्रवेश करने पर भौतिकविदों के लिए पदार्थ की सत्ता ही संदिग्ध हो उठी है और अपना संपूर्ण बोध ही एक भ्रम या आभास मात्र प्रतीत होने लगा है ।

पैरासाइकोलॉजी के क्षेत्र में #ई०एस०पी० और #साइकोकाइनेसिस जैसी अतींद्रिय क्षमताओं की जानकारी बड़ी तेजी के साथ बढ़ रही है , लेकिन जब तक इस क्षमता को भौतिक साधनों । द्वारा जाना नहीं जाता , वह केवल कुतूहलप्रद रह जाती है ।

बायोफीडबैकमानसिकक्रिया – प्रतिक्रियाओं से , विशेषकर ओटोनामस स्नायुतंत्र – सिंपथेटिक एवं पैरासिंपथेटिक स्नायुतंत्र से , जिसको योग की भाषा में इड़ा एवं पिंगला नाड़ी कहते हैं , प्रभावित होते हैं । जो विभिन्न प्रकार की इंडोक्राइन ग्रंथियों पर प्रभाव डालते हैं , जिसके फलस्वरूप विभिन्न प्रकार के रसायन सवित होने लगते हैं , जिसके कारण रक्ताभिसरण एवं श्वसन आदि तंत्रों की गतिविधियों में परिवर्तन होते हैं ।

चक्र_मशीन के आविष्कार के साथ ही प्राचीन योग विद्या के भौतिक सत्यापन का मानो एक नया आयाम ही खुल गया है । इसके द्वारा चक्र व प्लेक्सस का संबंध व जाग्रत चक्रों के रिकॉर्ड की जानकारी दी जाती है ।

मूलाधार से लेकर सहस्रार चक्र तक का #फिजियोलॉजिकल संबंध किस – किस प्लेक्सस या गैन्गलिऑन से होता है तथा जाग्रत होने पर इन चक्रों में प्राण प्रवाह किस रूप में होता है , आदि जानकारी इस मशीन से भली भाँति मिल जाती है । मूलाधार एवं सहस्रार के मध्य होने वाले प्राण – प्रवाह एवं चेतनात्मक आदान – प्रदान को इससे भली प्रकार जाना व समझा जा सकता है ।

प्राकृतिक जीवन जीते हुए – सादा , स्वच्छ और सरल जीवनकम अपनाते हुए आसानी से शतायु हुआ जा सकता है तथा स्वस्थ और प्रसन्न रहा जा सकता है l

        

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