क्या गंगा जल की पवित्रता का वैज्ञानिक आधार है?
भारत में लोग गंगा जल को पवित्र मानते हैं और बताते हैं कि इसका पानी सड़ता नही है।भारत में बोतल बंद पानी के दिन बहुत बाद में आए हैं। पहले लोग अपने साथ पानी की बोतल लेकर नहीं चलते थे।लेकिन लगभग हर हिंदू परिवार में पानी का एक कलश या कोई दूसरा बर्तन ज़रुर होता था जिसमें पानी भरा होता था गंगा का पानी।
पीढ़ियाँ गुज़र गईं ये देखते-देखते कि हमारे घरों में गंगा का पानी रखा हुआ है- किसी पूजा के लिए, चरणामृत में मिलाने के लिए, मृत्यु नज़दीक होने पर दो बूंद मुंह में डालने के लिए जिससे कि आत्मा सीधे स्वर्ग में जाए।
मिथक कथाओं में, वेद , पुराण , रामायण महाभारत सब धार्मिक ग्रंथों में गंगा की महिमा का वर्णन है।
कई इतिहासकार बताते हैं कि सम्राट अकबर स्वयं तो गंगा जल का सेवन करते ही थे, मेहमानों को भी गंगा जल पिलाते थे।
इतिहासकार लिखते हैं कि अंग्रेज़ जब कलकत्ता से वापस इंग्लैंड जाते थे, तो पीने के लिए जहाज में गंगा का पानी ले जाते थे, क्योंकि वह सड़ता नहीं था। इसके विपरीत अंग्रेज़ जो पानी अपने देश से लाते थे वह रास्ते में ही सड़ जाता था।
करीब सवा सौ साल पहले आगरा में तैनात ब्रिटिश डाक्टर एमई हॉकिन ने वैज्ञानिक परीक्षण से सिद्ध किया था कि हैजे का बैक्टीरिया गंगा के पानी में डालने पर कुछ ही देर में मर गया।
दिलचस्प यह है कि इस समय भी वैज्ञानिक पाते हैं कि गंगा में बैक्टीरिया को मारने की क्षमता है।
‘कोलाई बैक्टीरिया को मारने की क्षमता’:—–
लखनऊ के नेशनल बोटैनिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट एनबीआरआई के निदेशक डॉक्टर चंद्र शेखर नौटियाल ने एक अनुसंधान में प्रमाणित किया है कि गंगा के पानी में बीमारी पैदा करने वाले ई कोलाई बैक्टीरिया को मारने की क्षमता बरकरार है।
डॉक्टर नौटियाल ने यह परीक्षण ऋषिकेश और गंगोत्री के गंगा जल में किया था, जहाँ प्रदूषण ना के बराबर है। उन्होंने परीक्षण के लिए तीन तरह का गंगा जल लिया था। एक ताज़ा, दूसरा आठ साल पुराना और तीसरा सोलह साल पुराना।
उन्होंने तीनों तरह के गंगा जल में ई-कोलाई बैक्टीरिया डाला. डॉ. नौटियाल ने पाया कि ताजे गंगा पानी में बैक्टीरिया तीन दिन जीवित रहा, आठ दिन पुराने पानी में एक एक हफ़्ते और सोलह साल पुराने पानी में 15 दिन। यानी तीनों तरह के गंगा जल में ई कोलाई बैक्टीरिया जीवित नहीं रह पाया।
डॉ. नौटियाल बताते हैं, “गंगा के पानी में ऐसा कुछ है जो कि बीमारी पैदा करने वाले जीवाणुओं को मार देता है। उसको नियंत्रित करता है।”
हालांकि उन्होंने पाया कि गर्म करने से पानी की प्रतिरोधक क्षमता कुछ कम हो जाती है।
वैज्ञानिक कहते हैं कि गंगा के पानी में बैक्टीरिया को खाने वाले बैक्टीरियोफ़ाज वायरस होते हैं। यह वायरस बैक्टीरिया की तादाद बढ़ते ही सक्रिय होते हैं और बैक्टीरिया को मारने के बाद फिर छिप जाते हैं।
अपने अनुसंधान को और आगे बढ़ाने के लिए डॉक्टर नौटियाल ने गंगा के पानी को बहुत महीन झिल्ली से पास किया। इतनी महीन झिल्ली से गुजारने से वायरस भी अलग हो जाते हैं. लेकिन उसके बाद भी गंगा के पानी में बैक्टीरिया को मारने की क्षमता थी।
डॉक्टर नौटियाल इस प्रयोग से बहुत आशांवित हैं. उन्हें उम्मीद है कि आगे चलकर यदि गंगा के पानी से इस चमत्कारिक तत्व को अलग कर लिया जाए तो बीमारी पैदा करने वाले उन जीवाणुओं को नियंत्रित किया जा सकता है, जिन पर अब एंटी बायोटिक दवाओं का असर नहीं होता।
कहाँ से आती है क्षमता:——-
मगर सबसे महत्वपूर्ण सवाल इस बात की पहचान करना है कि गंगा के पानी में रोगाणुओं को मारने की यह अद्भुत क्षमता कहाँ से आती है?
डॉक्टर नौटियाल का कहना है कि गंगा जल में यह शक्ति गंगोत्री और हिमालय से आती है।
वह बताते हैं, “गंगा जब हिमालय से आती है तो कई तरह की मिट्टी, कई तरह के खनिज, कई तरह की जड़ी बूटियों से मिलती मिलाती है। कुल मिलाकर कुछ ऐसा मिश्रण बनता जिसे हम अभी नहीं समझ पाए हैं।”
वहीं दूसरी ओर एक लंबे अरसे से गंगा पर शोध करने वाले आईआईटी रुड़की में पर्यावरण विज्ञान के रिटायर्ड प्रोफ़ेसर देवेंद्र स्वरुप भार्गव का कहना है कि गंगा को साफ़ रखने वाला यह तत्व गंगा की तलहटी में ही सब जगह मौजूद है।
प्रोफ़ेसर भार्गव का तर्क है, “गंगोत्री से आने वाला अधिकांश जल हरिद्वार से नहरों में डाल दिया जाता है।नरोरा के बाद गंगा में मुख्यतः भूगर्भ से रिचार्ज हुआ और दूसरी नदियों का पानी आता है। इसके बावजूद बनारस तक का गंगा पानी सड़ता नहीं। इसका मतलब कि नदी की तलहटी में ही गंगा को साफ़ करने वाला विलक्षण तत्व मौजूद है।”
डाक्टर भार्गव कहते हैं कि गंगा के पानी में वातावरण से आक्सीजन सोखने की अद्भुत क्षमता है।
डॉ. भार्गव का कहना है कि दूसरी नदियों के मुकाबले गंगा में सड़ने वाली गंदगी को हजम करने की क्षमता 15 से 20 गुना ज्यादा है।
वे कहते हैं कि दूसरी नदी जो गंदगी 15-20 किलोमीटर में साफ़ कर पाती है, उतनी गंदगी गंगा नदी एक किलोमीटर के बहाव में साफ़ कर देती है।
गंगा नदी का पानी औद्योगिक प्रदूषण के साथ साथ गंदगी का शिकार हो रहा है। इसके बचाव के लिए सरकारी तौर पर उपयुक्त प्रयास करने की बहुत आवश्यकता है। बनारस तक तो सब सही है। जैसा मैंने बनारस में देखा है।सारे शहर की गन्दगी अस्सी नदी के रास्ते महानदी गङ्गा में मिलती है। जिसमें हमारे हिन्दू भाई भी कसूरवार तो है ही। साथ में मुस्लिम समुदाय भी बकरीद को तथा अन्य दिनों में भी अनगिनत बकरों का खून और चर्बी गङ्गा नदी में अस्सी नदी के रास्ते गङ्गा नदी में मिलती है। इस और सरकार को ज्यादा ध्यान देने की आवश्यकता है। कहां है गङ्गा-यामुना तहजीव। जब हम किसी अन्य धर्म /समुदाय से सम्बन्धित किसी भी पवित्र स्थान एवं पवित्र सरोवर,कुआं एवं नदी आदि को प्रदूषित नहीं करते बल्कि उसकी मान-मर्यादा को बनाए रखने में पूर्ण सहयोग भी करते हैं तो फिर हमारी पवित्र नदी गङ्गा के साथ ऐसा क्यूं , इस पर भी ध्यान केन्द्रित करने की परम आवश्यकता है। तभी हम गङ्गा मैय्या की पवित्रता के बारे में गर्व से वख्खान कर सकते हैं। सभी भारतवासियों चाहे किसी भी धर्म-सम्प्रदाय से सम्बन्धित क्यों न हों से विनम्र निवेदन है कि वह भी भारतवर्ष ही नहीं बल्कि विश्व में सब से पवित्र इस दिव्य नदी की पवित्रता को बनाए रखने में सहयोग करें।