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मंत्र के विज्ञान

मंत्र का सृजन यह
ध्यान में रखकर किया जाता है कि मंत्र की
ध्वनियों का उच्चारण किस स्तर का शक्ति
कंपन उत्पन्न करता है और उसका जपकर्ता पर,
बाहरी वातावरण पर तथा अभीष्ट प्रयोजन पर
क्या प्रभाव पड़ता है?

वस्तुत: जप से:-

(1) शरीर में स्थित चक्रों, उपत्यकाओं एवं
ग्रंथियों की सामर्थ्य बढ़ती है।

(2) व्यक्ति में भौतिक प्रतिभा और आत्मिक
दिव्यता विकसित होती है।

(3) अलौकिक क्षमताएं प्राप्त होती है।

(4) लगातार जप करने से ध्वनि के प्रभावोत्पदक चेतन तत्व जहां भी टकराते हैं, वहां चेतनात्मक हलचल उत्पन्न करते हैं।

(5) मंत्र जप की दोहरी प्रक्रिया होती है-एक
भीतर और दूसरी बाहर। लगातार जप एक प्रकार का घर्षण उत्पन्न करता है जिससे सूक्ष्म शरीर में उत्तेजना उत्पन्न होते है। चेतना में परिवर्तन होता है।

(6) जप और ध्यान के मेल से मानसिक शक्तियां
सिमटने लगती है। उनका बिखराव बंद हो जाता
है।

(7) कभी-कभी मन, जप करते-करते अचेतन की किसी बात में रमने लगता है। भटक जाता है। तब ऐसे विचार उठने लगते है जिन पर ग्लानि होने लगती है। ऐसी अवस्था में भटकें नहीं निराश न हों, बल्कि मन की इस उछलकूद को नजर अंदाज करें। अपने आत्मतत्व पर विचार करने लगे। मन शांत होता चला जाएगा।

(8) जप से आत्मतेज बढ़ता है। उसकी प्रचंडता के कषाय-कल्मषों का नाश होता है और इसकी
ऊर्जा से दैवीय तत्वों का विकास होता है।

(9) जप से सकारात्मक ऊजा मिलती है।

(10) अनुष्ठान द्वारा ऐसे अज्ञात परिवर्तन होते
हैं जिनके कारण दुख और चिंताओं से ग्रस्त मनुष्य थोड़े ही समय में सुख-शांति का जीवन बिताने की स्थिति में पहुंच जाता है।

(11) संकट के समय में विपदाओं को हल कनरे का रास्ता सूझने लगता है।

(12) साधक का आपा इतना ऊंचा उठ जाता है
कि आत्म साधना अपने आप पूरी होने लगती है।

(13) हम उत्कृष्ट जीवन जीने और अपना आत्म
परिष्कार करने के लिए जप करें।

(14) जप का तत्व दर्शन हमारे जीवन का अंग बन जाए, वह विचाराेंं और कार्यों में झलकने लगे। यही जप की सार्थकता है।

(15) सदाचारी और परोपकारी प्रकृति के मनुष्य
ही साधना में सफल होते हैं।

(16) साधना का आहार सदाचार है।

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