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जल से सूर्य को अर्घ्य देने का वैज्ञानिक यजुर्वेदाधार रहस्य

आप: स्वराज स्थ राष्ट्रदा राष्ट्रममुष्मै दत्त। | यजु10.4.10

अब मरीची अर्थात्‌ सूर्य की किरणों को अंजलि में ले कर जलों में मिलाता है

अथ मरीचीः । अञ्जलिना संगृह्यापिसृजत्यापः स्वराज स्थ राष्ट्रदा राष्ट्रममुष्मै दत्तेत्येता वा आपः स्वराजो यन्मरीचयस्ता यत्स्यन्दन्त इवान्योऽन्यस्या एवैतच्छ्रिया अतिष्ठमाना उत्तराधरा इव भवन्त्यो यन्ति स्वाराज्यमेवास्मिन्नेतद्दधात्येता वा एका आपस्ता एवैतत्सम्भरति – शतपथ 5.3.4.21

शतपथ:-‘ हे जलों तुम स्वराज अर्थात्‌ स्वयं चमकने वाले’, राष्ट्र को देने वाले हो| राष्ट्र को अमुक पुरुष को दो | ये जो मरीची हैं, वे ‘स्वराज आप:’ अर्थात्‌ स्वयं चमकने वाले जल हैं ; क्योंकि ये एक दूसरे के आश्रित न होते हुये बहते हैं, कभी ऊपर कभी नीचे | वह इस प्रकार इस (यजमान राज्य) में स्वराज स्थापित करता है | इस प्रकार के जल ये भी हैं, जिन को लाता है | शतपथ 5.3.4.21

व्यावहारिक अर्थ:-जल को अञ्जलि में ले कर सूर्योदय के समय अर्घ्य देने की पूजा पद्धति का यहां शतपथ ब्राह्मण में पहली बार विधान मिलता है | वैज्ञानिकों के अनुसार सूर्य की किरणों के जल के अपवर्त्तन(refraction) द्वारा सप्त रश्मियां फैल कर प्रवर्धन द्वारा (Amplification ) द्वाराअपने सातों रंगों के प्रभाव से मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए अत्यंत लाभकारी सिद्ध होती हैं | इसी प्रकार सूर्य की रश्मियों से उपचारित जल भी ओषधीय जल होता है|

RV10.189 सूर्य और पृथ्वी का सृष्टि विज्ञान

1.आयं गौ: पृश्निरक्रमीदसन्मातरं पुर: ।
पितरं च प्रयन्त्स्व: ।।RV 10.189.1,Yaju3.6

महर्षि पदार्थः—(अयम्) यह प्रत्यक्ष (गौः) गोलरूपी पृथिवी (पितरम्) पालने करने वाले (स्वः) सूर्यलोक के (पुरः) आगे-आगे वा (मातरम्) अपनी योनिरूप जलों के साथ वर्त्तमान (प्रयन्) अच्छी प्रकार चलती हुई (पृश्निः) अन्तरिक्ष अर्थात् आकाश में (आक्रमीत्) चारों तरफ घूमती है॥६॥
महर्षि भावार्थः—मनुष्यों को जानना चाहिये कि जिससे यह भूगोल पृथिवी जल और अग्नि के निमित्त से उत्पन्न हुई अन्तरिक्ष वा अपनी कक्षा अर्थात् योनिरूप जल के सहित आकर्षणरूपी गुणों से सब की रक्षा करने वाले सूर्य के चारों तरफ क्षण-क्षण घूमती है, इसी से दिन रात्रि, शुक्ल वा कृष्ण पक्ष, ऋतु और अयन आदि काल-विभाग क्रम से सम्भव होते हैं॥६॥

व्यावहारिक अर्थ :-यह पृथ्वी जो गोलाकार है , इस लोक का पालनकरने वाले अपने इष्ट देव पति स्वरूप सूर्य के आगे आगे एक माता के रूप में अपनी योनि में जलादि पदार्थ विभिन्न प्राणियों वनस्पति इत्यादि को जन्म देने की सामर्थ्य से (प्रयन्‌) अच्छी प्रकार झूमती हुइ घूमर नृत्य करती हुइ अपने आराध्य देव सूर्य के चारों ओर घूमती है |

  1. अन्तरश्चरति रोचना ऽस्य प्राणादपानती ।
    व्यख्यन्महिषो दिवम् ।। RV10.189.2,Yaju3.7

महर्षि पदार्थः—जो (अस्य) इस अग्नि की (प्राणात्) ब्रह्माण्ड और शरीर के बीच में ऊपर जाने वाले वायु से (अपानती) नीचे को जाने वाले वायु को उत्पन्न करती हुई (रोचना) दीप्ति अर्थात् प्रकाशरूपी बिजुली (अन्तः) ब्रह्माण्ड और शरीर के मध्य में (चरति) चलती है, वह (महिषः) अपने गुणों से बड़ा अग्नि (दिवम्) सूर्यलोक को (व्यख्यत्) प्रकट करता है॥७॥

महर्षि भावार्थः—मनुष्यों को जानना चाहिये कि जो विद्युत् नाम से प्रसिद्ध सब मनुष्यों के अन्तःकरण में रहने वाली जो अग्नि की कान्ति है, वह प्राण और अपान वायु के साथ युक्त होकर प्राण, अपान, अग्नि और प्रकाश आदि चेष्टाओं के व्यवहारों को प्रसिद्ध करती है॥७॥

व्यावहारिक अर्थ :- सूर्य का ओज और ऊपर नीचे जाने वाली वायु प्राण अपान के सामर्थ्य से समस्त सूर्य लोक को जीवन से व्याप्त करते हैं

  1. त्रिंशध्दाम वि राजति वाक् पतङ्गाय धीयते ।
    प्रति वस्तोरह द्युभि: ।।RV 10.189.3,Yaju3.8

महर्षि पदार्थः—मनुष्यों को जो अग्नि (द्युभिः) प्रकाश आदि गुणों से (प्रतिवस्तोः) प्रतिदिन (त्रिंशत्) अन्तरिक्ष, आदित्य और अग्नि को छोड़ के पृथिवी आदि को जो तीस (धाम) स्थान हैं, उनको (विराजति) प्रकाशित करता है, उस (पतङ्गाय) चलने-चलाने आदि गुणों से प्रकाशयुक्त अग्नि के लिये (प्रतिवस्तोः) प्रतिदिन विद्वानों को (अह) अच्छे प्रकार (वाक्) वाणी (धीयते) अवश्य धारण करनी चाहिये॥८॥

महर्षि भावार्थः—जो वाणी प्राणयुक्त शरीर में रहने वाले बिजुलीरूप अग्नि से प्रकाशित होती है, उसके गुणों के प्रकाश के लिये विद्वानों को उपदेश वा श्रवण नित्य करना चाहिये॥८॥

व्यावहारिक अर्थ :- पृथ्वी और सूर्य इस प्रक्रिया में तीस घड़ी के एक दिन की और तीस दिन की तिथियों के एक मास के नियम से सब जीव जन्तुओं की व्यवस्था करते हैं | इन गुणों के प्रकाश के लिये विद्वानों को उपदेश वा श्रवण नित्य करना चाहिये॥

सूर्य और हमारी नेत्र शक्ति ऋग्वेद 10.158

ऋषि: – चक्षु सौर्य: । देवता:- सूर्य: । छंद:- गायत्री, 5 स्वराट् ।

1.सूर्यो नो दिवस्पातु वातो अन्तरिक्षात् । अग्निर्न: पार्थिवेभ्य: || RV10.158.1

दिन के समय सूर्य से को देखने से हमारी आंखों को हानि ना पहुंचे | ( सूर्य की ओर देखने से सूर्य या प्रकाश की चोंध आंखों को हानि पहुंच सकती है , आधुनिक समय में धूप में काले चश्मे का प्रयोग ठीक माना जाता है ) | इसी प्रकार आकाश में आंधी तूफान भी आंखों को हानि पहुंचा सकते हैं | इसी प्रकार प्रचण्ड अग्नि का तेज भी आंखों के लिए हानि कारक हो सकता है |
Protect your eyes by directly looking at the sun or the bright daylight. Protect your eyes from dust laden strong winds. Protect your eyes from brazing bright fires also.( Use of Sun glasses and Welder’s goggles for protection of eyes is a common modern practice)

2.जोषा सवितर्यस्य ते हर: शतं सवाँ अर्हति । पाहि नो दिद्युतो पतन्त्या: ।। RV 10.158.2
सूर्य की उत्पादक शक्ति (प्रकाश जैविकी photobiology & Vitamin D विटामिन डी इत्यादि ) और सर्व रोग हरण शक्ति के लिए हम अधिक से अधिक सूर्य की किरणों के सम्पर्क में जीवन बिताने का प्रयत्न करें , जिस में एक सौ यज्ञों के बराबर रोग हरण की शक्ति है | परंतु हम सूर्य की चकाचोन्ध से भी अपनी रक्षा करें |
Solar radiations have tremendous life and energy giving powers. Spend maximum time outdoors. Outdoor living is provider of virtues like performing thousands of agnihotras . But take care to protect your eyes from bright blazing sun light.

3.चक्षुर्नो देव: सविता चक्षुर्न उत पर्वत: । चक्षुर्धाता दधातु नो ।। RV 10.158.3

चक्षुओं को समर्थ करने वाले सूर्य देवता, और हमारे चक्षुओं को ऊंचे पर्वतों मेघों वृक्षों की हरियाली से हमारे नेत्रों को देख पाने की दृष्टि दृढ़ करें |
Sun is the enabler of our vision. Our eyes become stronger by watching the greenery on dense forests on mountains etc:.

4.चक्षुर्नो धेहि चक्षुषे चक्षुर्विख्यै तनूभ्य: । सं चेदं वि च पश्येम ।। RV 10.158.4
चक्षुओं से हम अपने शरीर के सब अङ्गों को ठीक से देख सकें, हमारी समीप की और दूर की दृष्टि ठीक हो |
Our vision should enable us to see all parts of our body. Our eyes should have ability to see close by things close by and things far off.

5.सुसन्दृशं त्वा वयं प्रति पश्येम सूर्य । वि पश्येम नृचक्षसो ।। RV 10.158.5
सूर्य द्वारा निर्मित समस्त संसार के सुंदर दृष्य को हम देख सकें | और जिस दृष्य को समस्त मनुष्य देख सकते हैं हम भी वह देख सकें |
Our eyes should be able to see the beauty of Nature and all that humans can see.

सूर्य की ज्योति के मान स्वास्थ्य पर गुणकारी प्रभाव:
AV1.22
ह्र्दय रोग व हरिमा रक्त की कमी का निदान
1.अनु सूर्यं उदयतां हृद्द्योतो हरिमा च ते ।
गो रोहितस्य वर्णेन तेन त्वा परि दध्मसि । । अथर्व 1.22.1 । ।
(अनु सूर्यं) सूर्य के उदय और अस्त होने के समय (ते) तेरा (हृद्‌-द्योत:) हृदय का रोग (च हरिमा) पीलापन Jaundice ये दोनों रोग उड़ जाएँ।(तेन) उस (रिहितस्य्जो: वर्णेन) उस लाल सूर्य के वरण से (त्वा) तुझे (परिदध्मसि) ढांपते हैं।
{ आधुनिक विज्ञान के अनुसार सूर्योदय और सूर्यास्त के समय सूर्य की किरणों में विशेष परा बेंन्गनी B किरणें Ultraviole B rays अधिक पायी जाती हैं, इन किरणों के मनुष्य के शरीर पर पड़ने से हृदय रोग और पीलिया रोग दूर हो जाता है}

  1. परि त्वा रोहितैर्वर्णैर्दीर्घायुत्वाय दध्मसि ।
    यथायं अरपा असदथो अहरितो भुवत् । । अथर्व 1.22.2 । ।
    (त्वा) तुझे (दीर्घायुत्वाय) दीर्घ आयु के लिए (रोहितै: वर्णै:) सूर्य की लाल रंग की रश्मियों के वरण के लिए (परिदध्मसि) ढांपते हैं। प्रात: सूर्याभिमुख हो कर ध्यान में बैठने से सूर्य रश्मियों द्वारा रोगकृमियों का नाश होता है , रुधिर में रक्तता की वृद्धि से दीर्घायु प्राप्त होती है। (यथा) जिस से (अयं अरपा ) इन पापजन्य रोग से मुक्ति हो और (अहरित: भुवत) पीलिया रोग से भी तुम मुक्त हो ।
    1.अधिकांश नवजात शिशु कुछ पीलिया Jaundiceरोग से प्रभावित होते हैं । जिन शिशुओं में यह रोग इतना अधिक होता है कि कुछ उपचार की अपेक्षा की जाती है तब आधुनिक आयुर्विज्ञान में नवजात शिशु के नग्न शरीर को सूर्य की दोपहर की रश्मियों से उपचारित किया जाता है ।
    2.सूर्य की रश्मियों से कंकरेज प्रजाति की गौएं अपने शरीर के लिए आहार ग्रहण कर लेती हैं जिस के कारण वे मरुस्थल में भी दिन भर घूम कर इतना पोषण प्राप्त कर लेती हैं कि गोपालक को प्रतिदिन कुल मिला कर तीन चार लीटर दूध दे पाती हैं ।
    .
  2. केरल में 1937 में जन्में हीरा रत्न माणेक सूर्योदय और सूर्यास्त के समय सूर्य स्नान करके अपने शरीर के लिए इतना पोषण प्राप्त कर लेते हैं कि लगातार एक वर्ष तक केवल जल और सूर्याहार पर जिवित रहे हैं । इन के इस प्रयोग का भारत वर्ष और अमेरिका के आयुर्विज्ञानिकों द्वारा प्रमाणित भी किया जा चुका है।}

सूर्य की रश्मियों से श्वेत कुष्ठ का उपचार
Leucoderma cured by Infrared radiations

  1. या रोहिणीर्देवत्या गावो या उत रोहिणीः ।
    रूपंरूपं वयोवयस्ताभिष्ट्वा परि दध्मसि । । अथर्व 1.22.3 । ।
    (य:)जो (रोहिणी देवत्या: गावा:) रोहित लाल रंग की दिव्य दूध देने वाली गौएं हैं, इन गौओं के दूध में भी हृदय रोग और त्वचा के रोग Psoriasis लिए स्वास्थ्य दायक तत्व होते हैं –इन्हें आधुनिक आयुर्विज्ञान Allopathy मे होर्मोन Hormones कहते हैं और सुविधानुसार Vitamin D कहते हैं। (य: रोहिणी:) और जो रोहित रंग की सूर्य की किरणें हैं, (ताभि: रूपं रूपं वयोवय: अभिष्ट्‌वा: परि दध्मसि)उन से अपने रूप के अनुसार अर्थात्‌ त्वचा पर श्वेत कुष्ठ जैसे चिन्ह प्रकट होते हैं उनका अपनी आयु के और इच्छा के अनुसार उपचार प्राप्त करते हैं।
  2. शुकेषु ते हरिमाणं रोपणाकासु दध्मसि ।
    अथो हारिद्रवेषु ते हरिमाणं नि दध्मसि । । अथर्व 1.22.4 । ।
    (शुकेषू ते हरिमाणम्‌) जैसे तोते रोगादि से ग्रसित होने पर अपनी स्थिति को अपने आवरण में बदलाव से प्रदर्शित करते हैं , उसी प्रकार मानव शरीर भी रोगादि से व्याकुल उसकी आत्मा में उत्साह और अवसाद का प्रभाव दर्शित करता है। रोपित हरे व¬नस्पतियों कुशा घास हरे चारे इत्यादि पर पोषित गौओं के दुग्ध में रोग हरण क्षमता है। इस लिए ऐसे हरे चारे पर पोषित (गौवों) के दुग्ध का आरोग्य के लिए सेवन करो।

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