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शकुनि मामा के 7 रहस्य, 3 खतरनाक चालों के साथ

महाभारत की गाथा में कौरवों के मामाश्री शकुनि को अपनी कुटिल बुद्धि के लिए विख्‍यात माना जाता है। छल, कपट और दुष्कृत्यों में माहिर शकुनि ने युद्ध तक पांडवों के विनाश के लिए कई चालें चली। कहते हैं कि इन्हीं चालों के कारण पांडवों के जीवन में उथल पुथल रही और अंतत: युद्ध की नौबत आ गई। आओ जानते हैं शकुनी मामा के 7 रहस्य 3 चालों के साथ।

  1. शकुनि के मात पिता : शकुनि गांधार नरेश राजा सुबाल के पुत्र थे। शकुनि का जन्म गांधार के राजा सुबाल के राजप्रासाद में हुआ था। वह माता गांधारी का छोटा भाई था। वह जन्म से ही विलक्षण बुद्धि का स्वामी था अतः राजा सुबाल को अत्यंत प्रिय था।
  2. जेल में शकुनि : किवदंति अनुसार ऐसा माना जाता है कि गांधारी का विवाह धृतराष्ट्र से करने से पहले ज्योतिषियों ने सलाह दी कि गांधारी के पहले विवाह पर संकट है अत: इसका पहला विवाह किसी ओर से कर दीजिए, फिर धृतराष्ट्र से करें। इसके लिए ज्योतिषियों के कहने पर गांधारी का विवाह एक बकरे से करवाया गया था। बाद में उस बकरे की बलि दे दी गई। कहा जाता है कि गांधारी को किसी प्रकार के प्रकोप से मुक्त करवाने के लिए ही ज्योतिषियों ने यह सुझाव दिया था। इस कारणवश गांधारी प्रतीक रूप में विधवा मान ली गईं और बाद में उनका विवाह धृतराष्ट्र से कर दिया गया।
    गांधारी एक विधवा थीं, यह सच्चाई बहुत समय तक कौरव पक्ष को पता नहीं चली। यह बात जब महाराज धृतराष्ट्र को पता चली तो वे बहुत क्रोधित हो उठे। उन्होंने समझा कि गांधारी का पहले किसी से विवाह हुआ था और वह न मालूम किस कारण मारा गया। धृतराष्ट्र के मन में इसको लेकर दुख उत्पन्न हुआ और उन्होंने इसका दोषी गांधारी के पिता राजा सुबाल को माना। धृतराष्ट्र ने गांधारी के पिता राजा सुबाल को पूरे परिवार सहित कारागार में डाल दिया।
    कारागार में उन्हें खाने के लिए केवल एक व्यक्ति का भोजन दिया जाता था। केवल एक व्यक्ति के भोजन से भला सभी का पेट कैसे भरता? यह पूरे परिवार को भूखे मार देने की साजिश थी। राजा सुबाल ने यह निर्णय लिया कि वह यह भोजन केवल उनके सबसे छोटे पुत्र को ही दिया जाए ताकि उनके परिवार में से कोई तो जीवित बच सके। और वह था शकुनि। यह भी कहा जाता है कि विवाह के समय गांधारी के साथ उनका भाई शकुनि और आयु में बड़ी उनकी एक सखी हस्तिनापुर आई थीं और दोनों ही यहीं रह गए थे।
  3. जेल से मुक्त हुआ शकुनि : एक-एक करके सुबाल के सभी पुत्र मरने लगे। सब लोग अपने हिस्से का चावल शकुनि को देते थे ताकि वह जीवित रहकर कौरवों का नाश कर सके। सुबाल ने अपने सबसे छोटे बेटे शकुनि को प्रतिशोध के लिए तैयार किया। मृत्यु से पहले सुबाल ने धृतराष्ट्र से शकुनि को छोड़ने की विनती की, जो धृतराष्ट्र ने मान ली थी। राजा सुबाल के सबसे छोटे पुत्र कोई और नहीं, बल्कि शकुनि ही थे। शकुनि ने अपनी आंखों के सामने अपने परिवार का अंत होते हुए देखा और अंत में शकुनि जिंदा बच गए।
    जब कौरवों में वरिष्ठ युवराज दुर्योधन ने यह देखा कि केवल शकुनि ही जीवित बचे हैं तो उन्होंने पिता की आज्ञा से उसे क्षमा करते हुए अपने देश वापस लौट जाने या फिर हस्तिनापुर में ही रहकर अपना राज देखने को कहा। शकुनि ने हस्तिनापुर में रुकने का निर्णय लिया।
  4. बदले की भावना : कौरवों को छल व कपट की राह सिखाने वाले शकुनि उन्हें पांडवों का विनाश करने में पग-पग पर मदद करते थे, लेकिन उनके मन में कौरवों के लिए केवल बदले की भावना थी। क्योंकि धृतराष्ट्र ने शकुनी के संपूर्ण परिवार को जेल में डाल दिया था और उनको बस मुठ्ठी भर अनाज ही खाने को दिया जाता था। शकुनी ने अपने पूरे परिवार को जेल में भूख से अपनी आंखों के सामने खत्म होते हुए देखा था। आप सोच सकते हैं कि उसके मन में किस के लिए क्या होगा और वह किसके लिए क्या करेगा? कहते हैं कि शकुनी ने प्रतिशोध लिया था, लेकिन यह कितना सही है यह तो शकुनी ही बता सकते हैं क्योंकि कोई भी व्यक्ति नहीं चाहेगा कि वह अपनी बहन के परिवार को नष्ट करने का षड़यंत्र रचे या हो सकता है कि वह चाहे भी।
  5. शकुनि बना मंत्री : शकुनि ने हस्तिनापुर मैं सबका विश्वास जीत लिया और 100 कौरवों का अभिवावक बन बैठा। अपने विश्‍वासपूर्ण कार्यों के चलते दुर्योधन ने शकुनि को अपना मंत्री नियुक्त कर लिया। सर्वप्रथम उसने गांधारी व धृतराष्ट्र को अपने वश में करके धृतराष्ट्र के भाई पांडु के विरुद्ध षड्‍यंत्र रचने और राजसिंहासन पर धृतराष्ट्र का आधिपत्य जमाने को कहा। फिर धीरे-धीरे शकुनि ने दुर्योधन को अपनी बुद्धि के मोहपाश में बांध लिया। शकुनि ने न केवल दुर्योधन को युधिष्ठिर के खिलाफ भड़काया बल्कि महाभारत के युद्ध की नींव भी रखी।
    शकुनि की जब यह चाल किसी भी कारण से सफल रही हो उसका सम्मान और बढ़ गया। गांधारी अपने भाई की चाल को समझती थी और वह अपने पुत्र को बुराइयों से दूर रहने का कहती थी लेकिन उसकी नहीं चलती थी। पति, भाई और पुत्र के बीच गांधारी विवश थी।
  6. शकुनि के पासे : यह बहुत कम लोगों को मालूम होगा कि शकुनि के पास जुआ खेलने के लिए जो पासे होते थे वह उसके मृत पिता के रीढ़ की हड्डी के थे। अपने पिता की मृत्यु के पश्चात शकुनि ने उनकी कुछ हड्डियां अपने पास रख ली थीं। शकुनि जुआ खेलने में पारंगत था और उसने कौरवों में भी जुए के प्रति मोह जगा दिया था।
  7. शकुनि का वध : कुरुक्षेत्र के युद्ध में शकुनि ने दुर्योधन का साथ दिया था। शकुनि जितनी नफरत कौरवों से करता था उतनी ही पांडवों से, क्योंकि उसे दोनों की ओर से दुख मिला था। पांडवों को शकुनि ने अनेक कष्ट दिए। भीम ने इसे अनेक अवसरों पर परेशान किया। महाभारत युद्ध में सहदेव ने शकुनि का इसके पुत्र सहित वध कर दिया।

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