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शरद ऋतुचर्या

भाद्रपद एवं आश्विन – ये दो महीने शरद ऋतु के हैं । शरद ऋतु स्वच्छता के बारे में सावधान रहने की ऋतु है अर्थात् इस मौसम में स्वच्छता रखने की खास जरूरत है क्योंकि रोगाणां शारदी माता । अर्थात् शरद ऋतु रोगों की माता है ।

शरद ऋतु में स्वाभाविक रूप से ही पित्तप्रकोप होता है । इससे इन दो महीनों में ऐसा ही आहार एवं औषधि लेनी चाहिए जो पित्त का शमन करे । मध्याह्न के समय पित्त बढ़ता है । तीखे, नमकीन, खट्टे, गरम एवं दाह उत्पन्न करनेवाले द्रव्यों का सेवन, मद्यपान, क्रोध अथवा भय, धूप में घूमना, रात्रि-जागरण एवं अधिक उपवास – इनसे पित्त बढ़ता है । दही, खट्टी छाछ, इमली, टमाटर, नींबू, कच्चा आम, मिर्ची, लहसुन, राई, खमीर लाकर बनाये गये व्यंजन एवं उड़द जैसी चीजें भी पित्त की वृद्धि करती हैं ।

इस ऋतु में पित्तदोष की शांति के लिए ही शास्त्रकारों द्वारा खीर खाने, घी का हलवा खाने तथा श्राद्धकर्म करने का संकेत दिया गया है । इसी उद्देश्य से चन्द्रविहार, गरबा नृत्य तथा शरद पूर्णिमा के उत्सव के आयोजन का विधान है । गुड़ एवं घूघरी (उबाली हुई ज्वार-बाजरा आदि) के सेवन से तथा निर्मल, स्वच्छ वस्त्र पहनकर फूल, कपूर, चंदन द्वारा पूजन करने से मन प्रफुल्लित एवं शांत होता है और पित्तदोष के शमन में सहायता मिलती है ।

सावधानियाँ :

श्राद्ध के दिनों में 16 दिन तक दूध, चावल, खीर का सेवन पित्तशामक है । परवल, मूँग, पका पीला पेठा (कद्दू) आदि का भी सेवन कर सकते हैं ।

दूध के विरुद्ध पड़नेवाले आहार जैसे कि सभी प्रकार की खटाई, अदरक, नमक, मांसाहार आदि का त्याग करें । दही, छाछ, भिंडी, ककड़ी आदि अम्लविपाकी (पचने पर खटास उत्पन्न करनेवाली) चीजों का सेवन न करें ।

कड़वा रस पित्तशामक एवं ज्वर-प्रतिरोधी है । अतः कटुकी, चिरायता, नीम की अंतरछाल, गुड़ूची (गिलोय), करेले, सुदर्शन चूर्ण, इन्द्रजौ (कुटज) आदि का सेवन हितावह है ।

धूप में न घूमें । नवरात्रि में एवं श्राद्ध के दिनों में पितृपूजन हेतु संयमी रहना चाहिए । ब्रह्मचर्य का कठोरता से पालन करना चाहिए ।

इन दिनों में रात्रि-जागरण, रात्रि-भ्रमण अच्छा होता है, इसीलिए नवरात्रों में रात को गरबा नृत्य, भजन-कीर्तन (जागरण) आदि का आयोजन किया जाता है । रात्रि-जागरण 12 बजे तक का ही माना जाता है । अधिक जागरण से तथा सुबह और दोपहर को सोने से त्रिदोष प्रकुपित होते हैं, जिससे स्वास्थ्य बिगड़ता है ।

हमारे दूरदर्शी ऋषि-मुनियों ने शरद पूनम जैसा त्यौहार भी इस ऋतु में विशेषकर स्वास्थ्य की दृष्टि से ही आयोजित किया है । शरद पूनम के दिन रात्रि-जागरण, रात्रि-भ्रमण, मनोरंजन आदि को उत्तम पित्तनाशक विहार के रूप में आयुर्वेद ने स्वीकार किया है ।

शरद पूनम की शीतल रात्रि में छत पर चन्द्रमा की किरणों में रखी हुई दूध-चावल की खीर सर्वप्रिय, पित्तशामक, शीतल एवं सात्त्विक आहार है । इस रात्रि में ध्यान, भजन, सत्संग, कीर्तन, चन्द्रदर्शन आदि शारीरिक व मानसिक आरोग्यता के लिए अत्यंत लाभदायक हैं ।

इस ऋतु में भरपेट भोजन, दिन की निद्रा, बर्फ, ओस, तेल व तले हुए पदार्थों का सेवन न करें ।

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