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कालभैरव जयंती
7-12-2020
भगवान काल भैरव की उत्पत्ति मार्गशीर्ष मास के कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि हुई । इसलिए इस तिथि को काल भैरवाष्टमी या भैरवाष्टमी के नाम से जाना जाता है। अंग्रेजी तारीख के अनुसार वर्ष 2020 मे काल भैरवाष्टमी 7 दिसम्बर को बहुत धूमधाम से मनाई जाएगी ।

भैरवाष्टमी को कालाष्टमी आदि नामों से भी जाना जाता है । कालाष्टमी का त्यौहार हर माह की कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है ।
सबसे मुख्य कालाष्टमी जिसे कालभैरव जयन्ती के नाम से जाना जाता है, यह उत्तर भारतीय पूर्णीमांत पञ्चाङ्ग के अनुसार मार्गशीर्ष के महीने में पड़ती है जबकि दक्षिणी भारतीय अमावस्यांत पञ्चाङ्ग के अनुसार कार्तिक के महीने पड़ती है। हालाँकि दोनों पञ्चाङ्ग में कालभैरव जयन्ती एक ही दिन देखी जाती है।

कालभैरव भगवान शिव के ही एक अवतार है । भगवान शिव के भैरव रूप के पूजन-अर्चन से सभी प्रकार के पाप और कष्ट दूर हो जाते हैं । भैरवनाथ की पूजा व उपासना से मनोवांछित फल मिलता है।कालभैरव अष्टमी पर भैरव के दर्शन मात्र करने से ही मनुष्यों को अशुभ कर्मों से मुक्ति मिल सकती है।

भारत भर में कई परिवारों में कुलदेवता के रूप में भैरव की पूजा करने का विधान हैं। अत: भैरव जी की पूजा-अर्चना करने व काल भैरवाष्टमी के दिन व्रत एवं षोड्षोपचार पूजन करना अत्यंत शुभ एवं फलदायक माना गया है। शास्त्रों के अनुसार इस दिन प्रात:काल पवित्र नदी या सरोवर में स्नान कर पितरों का श्राद्ध व तर्पण कर भैरव जी की पूजा व व्रत करने से समस्त विघ्न समाप्त हो जाते हैं। कालभैरव का दर्शन, तिल के तेल से दीपदान, पूजन, नारियल व सिंदूर अर्पण मनवांछित फल के साथ-२ परिवार में सुख-शांति, समृद्धि के साथ स्वास्थ्य की रक्षा भी करती है।

भैरव जी की पूजा व भक्ति से भूत, पिशाच एवं काल अर्थात मृत्यु भी दूर रहती हैं। भैरवनाथ के भक्त शुद्ध मन एवं आचरण से जो भी कार्य करते हैं, उनमें इन्हें सफलता मिलती है।

भैरवनाथ :-
शास्त्रों के अनुसार भगवान शिव के दो स्वरूप बताए गए हैं। प्रथम विश्वेश्वर स्वरूप तथा द्वितीय कालभैरव

विश्वेश्वर स्वरूप
एक स्वरूप में महादेव अपने भक्तों को अभय देने वाले विश्वेश्वरस्वरूप हैं । भगवान शिव का विश्वेश्वर स्वरूप अत्यंत ही सौम्य और शांत हैं यह भक्तों को सुख, शांति और समृद्धि प्रदान करता है।

कालभैरव स्वरूप
दूसरे स्वरूप में भगवान शिव दुष्टों को दंड देने वाले कालभैरव स्वरूप में विद्यमान हैं। भैरव स्वरूप रौद्र रूप वाले हैं, इनका रूप भयानक और विकराल होता है। इनकी पूजा करने वाले भक्तों को किसी भी प्रकार डर या भय कभी परेशान नहीं करता। कलयुग में काल के भय से बचने के लिए कालभैरव की आराधना सबसे अच्छा उपाय है। कालभैरव को शिवजी का ही रूप माना गया है। कालभैरव की पूजा करने वाले व्यक्ति को किसी भी प्रकार का डर नहीं सताता है ।

भैरव कलियुग के जागृत देवता हैं। शिव पुराण में भैरव को महादेव शंकर का पूर्ण रूप बताया गया है। इनकी आराधना में कठोर नियमों का विधान भी नहीं है। ऐसे परम कृपालु एवं शीघ्र फल देने वाले भैरवनाथ की शरण में जाने पर जीव का निश्चय ही उद्धार हो जाता है।

भगवान भैरव की महिमा अनेक शास्त्रों में मिलती है। भैरव जहाँ शिव के गण के रूप में जाने जाते हैं, वहीं वे दुर्गा के अनुचारी माने गए हैं। भैरव की सवारी कुत्ता है। चमेली फूल प्रिय होने के कारण भैरव उपासना में इसका विशेष महत्व है। भैरवनाथ रात्रि के देवता माने जाते हैं और इनकी आराधना का खास समय भी मध्य रात्रि में 12 से 3 बजे का माना जाता है।

तंत्रसार में वर्णित आठ भैरव क्रमशः असितांग भैरव, रूरूभैरव, चंडभैरव, क्रोधभैरव, उन्मत्तभैरव, कपालीभैरव, भीषणभैरव, संहारभैरव नाम वाले हैं।

ब्रह्मवैवत पुराण के प्रकृति खंडान्तर्गत दुर्गोपाख्यान में आठ पूज्य निर्दिष्ट हैं- महाभैरव, संहार भैरव, असितांग भैरव, रूरू भैरव, काल भैरव, क्रोध भैरव, ताम्रचूड भैरव, चंद्रचूड भैरव। लेकिन इसी पुराण के गणपति- खंड के 41वें अध्याय में अष्टभैरव के नामों में सात और आठ क्रमांक पर क्रमशः कपालभैरव तथा रूद्र भैरव का नामोल्लेख मिलता है।

शिवपुराण में वर्णित कालभैरव के अवतरण की कथा :-

एक बार मेरु पर्वत के शिखर पर ब्रह्मा विराजमान थे, तब सब देव और ऋषिगण उत्तम तत्व के बारे में जानने के लिए उनके पास गए। तब ब्रह्मा ने कहा वे स्वयं ही उत्तम तत्व हैं यानि कि सर्वश्रेष्ठ और सर्वोच्च हैं। किंतु भगवान विष्णु इस बात से सहमत नहीं थे। उन्होंने कहा कि वे ही समस्त सृष्टि से सर्जक और परमपुरुष परमात्मा हैं।

अभी ये वार्तालाप चल ही रहा था कि तभी उनके बीच एक महान ज्योति प्रकट हुई। उस ज्योति के मंडल में उन्होंने पुरुष का एक आकार देखा। तब तीन नेत्र वाले महान पुरुष शिवस्वरूप में दिखाई दिए। उनके हाथ में त्रिशूल था, सर्प और चंद्र के अलंकार धारण किए हुए थे।

तब ब्रह्मा ने अहंकार से कहा कि आप पहले मेरे ही ललाट से रुद्ररूप में प्रकट हुए हैं। उनके इस अनावश्यक अहंकार को देखकर भगवान शिव अत्यंत क्रोधित हो गए और उस क्रोध से भैरव नामक पुरुष को उत्पन्न किया। यह भैरव बड़े तेज से प्रज्जवलित हो उठा और साक्षात काल की भांति दिखने लगा।

भगवान शंकर प्रलय के रूप में नजर आने लगे और उनका रौद्र रूप देखकर तीनों लोक भयभीत हो गए। भगवान शिव का यह रूप कालराज नाम से प्रसिद्ध हुआ और भयंकर होने के कारण भैरव कहलाने लगा। काल भी उनसे भयभीत होगा इसलिए वह कालभैरव कहलाने लगे। दुष्ट आत्माओं का नाश करने वाला यह आमर्दक भी कहा गया। महादेव के इस स्वरूप को डंडाधिपति और महाकालेश्वर के नाम से भी जाना गया।

शिव जी के रूद्र अंश से उत्पन्न हुए काल भैरव ने महादेव को अपमानित देख ब्रह्मदेव जी पर प्रहार करते हुए उसके पांच मुखों में से एक मुख काट दिया। जिसके चलते काल भैरव पर ब्रह्म-हत्या का पाप लगा। (माना जाता है कि इसी पाप के कारण भैरव जी को एक लम्बे समय तक भिखारी बनकर रहना भी पड़ा था।)

भयभीत ब्रम्हा ने उनकी वंदना की तब वे शांत हुए और पश्चात के लिए काशी प्रस्थान कर गए। यहां उन्हें दंडाधिकारी और नगर कोतवाल की उपाधि प्राप्त है। काशी नगरी का अधिपति भी उन्हें बनाया गया।

इस रूप मे भैरवनाथ श्वान पर सवार थे, उनके हाथ में दंड था। हाथ में दंड होने के कारण वे ‘दंडाधिपति’ कहे गए। भैरव जी का रूप अत्यंत भयंकर था। उनके रूप को देखकर ब्रह्मा जी को अपनी गलती का एहसास हुआ। वह और विष्णु जी तथा भगवान शिव की आराधना करने लगे और गर्वरहित हो गए।

भारतीय ज्योतिष के अनुसार भैरव उपासना से अनिष्ट योग शांति तथा ग्रह दोष शांति :-

वैदिक ज्योतिष अनुसार नवग्रहो मे से एक क्रूर ग्रह “राहु” भगवान शिव को इष्टदेव मानते है, जन्म कुण्डली मे राहु-केतु द्वारा निर्मित कालसर्प योग तथा पितृदोष की शांति के लिए भगवान शिव के भैरव रूप की विधिपूर्वक उपासना करने से न सिर्फ कालसर्प योग तथा पितृदोष की शांति होती है अपितु राहु ग्रह की दशा-अंर्तदशा, इनके द्वारा निर्मित पिशाच योग तथा अन्य बुरे योगो, ऊपरी किया-कराया (जादू-टोना-टोटका), भूत-प्रेत आदि अन्य आधि-व्याधियों से राहत प्राप्त होती है । अतः भैरवाष्टमी के दिन भगवान भैरवनाथ की विधिवत् पूजन का विशेष महत्व माना जाता है ।

लाल किताब ज्योतिष के अनुसार शनि के प्रकोप का शमन भैरव की आराधना से होता है। भैरवनाथ के व्रत एवं दर्शन-पूजन से शनि की पीडा का निवारण होता है। कालभैरव की अनुकम्पा की कामना रखने वाले उनके भक्त तथा शनि की साढेसाती, ढैय्या अथवा शनि की अशुभ दशा से पीडित व्यक्ति को कालभैरवाष्टमी से प्रारम्भ करके वर्षपर्यन्त प्रत्येक कालाष्टमी को व्रत तथा भैरवनाथ की उपासना अवश्य ही करनी चाहिए ।

कालभैरव पूजा विधि -1:-

  1. काल भैरवाष्टमी के दिन प्रात:काल पवित्र नदी या सरोवर में स्नान करने के उपरांत विधिवत भैरव जी की पूजा व व्रत धारण करना चाहिए । पूजा मे तिल के तेल से दीपदान, पूजन, नारियल व सिंदूर अर्पण के साथ-२ भैरव कवच, मंत्र जप तथा स्तोत्र पाठ करना चाहिए ।

महाकाल भैरव का महा मंत्रः-
ॐ हं षं नं गं कं सं खं महाकालभैरवाय नम:।

इस मंत्र का 21हजार बार जप करने से बडी से बडी विपत्ति दूर हो जाती है।

  1. भैरवनाथ जी की पूजा-अर्चना तथा व्रत धारण करने के उपरांत पितरों का श्राद्ध व तर्पण करना चाहिए ।
  2. इस प्रकार दिन भर उपवास रखकर सायं सूर्यास्त के उपरान्त प्रदोषकाल में भैरवनाथ की पूजा करके प्रसाद को भोजन के रूप में ग्रहण किया जाता है।
    परंतु साधक को भैरव जी के वाहन श्वान (कुत्ते) को कुछ खिलाने के बाद ही स्वयं भोजन करना चाहिए ।

काल भैरवाष्टमी व्रत विधि – 2

उपरोक्त लिखित प्रथम विधि के अनुसार भैरवनाथ जी की पूजा तथा अर्चना के बाद नारद पुराण के अनुसार काल भैरवाष्टमी के दिन कालभैरव और मां दुर्गा की पूजा करनी चाहिए । इस रात देवी काली की उपासना करने वालों को अर्ध रात्रि के बाद मां की उसी प्रकार से पूजा करनी चाहिए जिस प्रकार दुर्गा पूजा में सप्तमी तिथि को देवी कालरात्रि की पूजा की जाती है ।
इस दिन शक्ति अनुसार रात को माता पार्वती और भगवान शिव की कथा सुन कर जागरण का आयोजन करना चाहिए । आज के दिन व्रती को फलाहार ही करना चाहिए ।

शिव पुराण के अनुसार आज के दिन इस मंत्र का जाप करना फलदायी होता है :-
अतिक्रूर महाकाय कल्पान्त दहनोपम्
भैरव नमस्तुभ्यं अनुज्ञा दातुमर्हसि।

तंत्र के ये जाने-माने महान देवता काशी के कोतवाल माने जाते हैं। भैरवाष्टकम, भैरव तंत्रोक्त, बटुक भैरव कवच, काल भैरव स्तोत्र, बटुक भैरव ब्रह्म कवच आदि का नियमित पाठ करने से अनेक समस्याओं का निदान होता है। इसमे भी विशेषतः भैरव कवच के पाठ करने से असामायिक मृत्यु से बचा जा सकता है।

कालभैरव की उपासना से कष्ट निवारण हेतु प्रयोग :-

  1. ग्रह बाधाओं के निवारण के लिए प्रयोग :-

1.शाम के समय भैरवनाथ की उपासना करते हुए उन्हें लाल फूल, लाल मिठाई तथा नींबू चढ़ाएं, भगवान को अर्ध्य देने के उपरांत साबुत उड़द को पीस कर उसके आटे के दो बड़े और आठ कचौरियां (आलू भरकर बनाई गई) अर्पित करे। तत्पश्चात काले हकीक की माला से निम्न मंत्र का, कम से कम एक माला का जाप अवश्य करें

ऊं ह्रीं बटुकाय आपदुद्धारणाय कुरु-कुरु बटुकाय ह्रीं ऊं

इस प्रयोग को करने से राहु-केतू तथा शनि जैसें क्रूर ग्रहों द्वारा जनित पीडा तथा करोना, कैंसर तथा गहरे घाव जैसे शारीरिक कष्टों से निवारण होता है ।

यह प्रयोग आप काल भैरवाष्टमी से शुरू करके प्रत्येक कालाष्टमी पर कर सकते हैं। (कालाष्टमी का त्यौहार हर माह की कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है)

रोग निवारण हेतु एक रोटी पर काले तिल तथा सरसों का तेल लगाकर रोगी के ऊपर से उतारकर ऊपर लिखा मंत्र पढ़ते हुए भैरव के वाहन माने जाने वाले कुत्ते को खिलाएं। इससे राहत मिलेगी।

  1. तंत्र बाधा या शत्रु भय से मुक्ति हेतु

किसी प्रकार की तंत्र बाधा या शत्रुओ का भय हो, तो काल भैरव की प्रतिमा या चित्र के सामने बैठकर निम्न मंत्र का 108 बार जाप करें –

ऊं ह्रीं बटुकाय आपदुद्धारणाय रक्षां कुरु ह्रीं ऊं

  1. कार्य मे बंधन तथा कारोबार चलाने हेतू:-

कार्य में अचानक बंधन या घर में अचानक से हानि-क्लेश होने लगे तो काल भैरव की मूर्ति पर सवा सौ ग्राम साबुत उड़द चढ़ाएं।

ॐ हं षं नं गं कं सं खं महाकालभैरवाय नम:।

ऊपर लिखे मंत्र का 108 बार जप करने के बाद प्रसाद स्वरूप 11 उड़द के दाने उठा लें। इन्हें अपने कार्यस्थल पर भैरव जी से मंगलकामना करते हुए बिखेर दें। इससे बंधा कारोबार चल पड़ेगा। लाभ की संभावनाएं और अधिक बढ़ जाएगी।

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