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*‼जय सियाराम‼*

*सृष्टि निर्माण एक रहस्य*

पिछले कुछ दशको से विज्ञानं इस विषय पर लगातार खोज करता आ रहा है की आखिर ये सृष्टि ये ब्रह्माण्ड उत्पन्न कैसे हुआ ? इस ब्रह्माण्ड के उत्पन्न होने ये पूर्व क्या मौजूद था ?
भिन्न भिन्न वैज्ञानिको ने इस विषय पर भिन्न भिन्न मत दिए | आज भी सृष्टि निर्माण को लेकर वैज्ञानिको के मन में अलग अलग विचार है | आज तक की ज्यादातर सृष्टि निर्माण थ्योरी में मुख्य नाम बिग बैंग का है | जो कुछ हद तक सही भी है लेकिन ये थ्योरी अपने बाद काफी सवाल छोड़ जाती है जिसका जवाब वैज्ञानिको के पास नहीं है | भिन्न भिन्न मजहबो के भी सृष्टि निर्माण को लेकर अपने अपने तर्क है लेकिन कोई भी विज्ञानं की कसौटी पर खरा नहीं उतरता | लेकिन कुछ धार्मिक ग्रन्थ इस विषय पर ऐसी जानकारी देते है जो आज वैज्ञानिक थ्योरी पर भी सही बैठते है | और सही ही नहीं बल्कि आधुनिक विज्ञानं से बढ़कर भी कुछ बताते है जिसे समझना शायद आधुनिक विज्ञानं के बस की बात नहीं है | इस लेख के माध्यम से हम वेदों और मनुसमृति के कुछ प्रमाण प्रस्तुत करेंगे जिनमे सृष्टि निर्माण की ठीक ठीक जानकारी है |

*:: वेदों में सृष्टि निर्माण*

जब यह कार्य सृष्टि उत्पन्न नहीं हुई थी , तब एक सर्वशक्तिमान परमेश्वर और दूसरा जगत का कारण अर्थात जगत बनाने की सामग्री विराजमान थी | उस समय असत शून्य नाम आकाश अर्थात जो नेत्र से नहीं देखा जा सकता है वो भी नहीं था क्योंकि उस समय उसका व्यवहार नहीं था | उस काल में सतोगुण तमोगुण और रजो गुण मिला के जो प्रधान कहाता है वो भी नहीं था | उस समय परमाणु भी नहीं थे तथा जो सब स्थूल जगत के निवास का स्थान है सो भी नहीं था | उस समय क्या पदार्थ चारो ओर से घेर सकता था ? कुछ नहीं , यह सब फिर कहाँ था किसके आश्रय में था | तो फिर क्या गहन अर्थात जिसमे किसी का प्रवेश न हो सके कोई व्यापक भाषमान तत्व विद्यमान था ( ऋग्वेद १०/१२९/१ )
जब जगत नहीं था तब मृत्यु भी नहीं थी , और उस समय न अमृत था अर्थात जीवन की सत्ता और जीवन का लोप दोनों नहीं थे | न रात्री का ज्ञान था और न दिन का ज्ञान था || उस तत्व का स्वरूप प्राण शक्ति रूप था परन्तु वह स्थूल वायु न था | वह एक अपने बल से ही समस्त जगत को धारण करने वाली शक्ति से युक्त था | उस से दूसरा पदार्थ कुछ भी उस से अधिक शुक्ष्म न था | ( ऋग्वेद १०/१२९/२ )
सृष्टि होने से पूर्व तमस था वह सब तमस से व्याप्त था | वह ऐसा था जिसका की उसका कुछ भी विशेष ज्ञान योग्य न था | वह एक व्यापक गतिमत तत्व था जो इस समस्त को व्यापे था | उस समय जो था भी वह सूक्ष्म रूप से चारो और का विद्यमान पदार्थ ढका हुआ था | वह तपस के महान सामर्थ्य से एक प्रकट हुआ | ( ऋग्वेद १०/१२९/३ )
सृष्टि के पूर्व में वह मन से उत्पन्न होने वाली कामना ही सर्वत्र ही विद्यमान थी , जो सबसे प्रथम इस जगत का प्राम्भिक बीजवत था | ( ऋग्वेद १०/१२९/४ )
इन पूर्वोक्त असत , अम्भस , सलिल और काम , रेतस अर्थात रजस और सत इन तीनो का रश्मि बहुत दूर दूर तक व्याप्त हुआ | निचे भी रहा उपर भी था | उस रेतस को धारण करने वाले तत्व भी थे | वे माहन सामर्थ्य वाले थे |( ऋग्वेद १०/१२९/५ )
ऋतरूप सत ज्ञान के द्वारा यह जगत बना है और ऋतो के अनुसार ही अन्तरिक्ष का विस्तार हुआ है | इस से पूर्व यह रात्रिरूप प्रलय को प्राप्त था | उसके बाद सौर्मंद्लो के केंद्र तथा दिन रात आदि के आधार भुत सुर्यादी को बनाया | अपने सामर्थ्य से ईश्वर ने सूर्य चन्द्रमा पृथ्वी तारे नक्षत्र को बनाया |जैसी रचना ईश्वर ने अब की है ऐसी ही रचना पूर्व सृष्टि की की थी | ( ऋग्वेद १०/१९०/१-३ )
यह भूमि सूर्य आदि जगत उत्पन्न होने से पूर्व ईश्वर के गर्भ में विद्यमान था | ( ऋग्वेद १०/१२१/१ )

*:: मनुसमृति में सृष्टि निर्माण*

*मनु स्मृति और सृष्टि उत्पत्ति*

यह सब जगत प्रलयकाल में सब और से अंधकारमय अप्रत्यक्ष लक्षण से रहित तर्क से रहित विशेष ज्ञान के अयोग्य सोये हुए के समान था ( मनु १/५ )
वह परमात्मा जो उत्पत्ति तथा विनाशरहित , इन्द्रियों का अविषय अर्थात इन्द्रियों से न जानने योग्य और अंधकार का नाशक है उसने प्रकृति को प्रेरित करके आकाश वायु अग्नि जल तथा पृथ्वी यह पांच महाभूत और इनके द्वारा जरयुज , अण्डज , स्वेदज तथा उद्भिज्ज यह चार प्रकार की सृष्टि उत्पन्न की , इस तरह अनेक प्रकार की रचना करके पुनः प्राणियों अपना ज्ञान कराया (१/६)
परमात्मा बाह्य इन्द्रियों से ग्रहण नहीं हो सकता , क्योंकि परमसूक्ष्म , नित्य सब संसार में व्यापक तथा चिन्तन से रहित है | वह अपने आप प्रकट हुआ |(१/७)
अपने शरीर ( प्रकृति ) से विविध प्रकार की प्रजाओ के उत्पन्न करने की इच्छा वाला परमात्मा ने निश्चय करके ध्यानमात्र से आदि सृष्टि में वाष्परूप कारण उत्पन्न करके उसमे बिज को आरोपित किया ( मनु १/८ )
वह प्रकृति रूप बिज सुवर्ण सदृश्य तथा सूर्य के समान चमक वाला और अंडे के सदृश गोलाकार हो गया | पुनः उस अंडे से सब लोको को उत्पादन करने वाला परमात्मा प्रकट हुआ (मनु १/९ )
सूक्ष्मवाष्परूप कारण सब से पूर्व उत्पन्न होने से परमात्मा का प्रथम स्थान कहाता है , वह सर्वत्र व्याप्त है वाही इन सम्पूर्ण स्थूल भूतो का उपादान कारण है और वाही सूक्ष्म द्रव्य व्याप्यव्यापक भाव से परमात्मा का निवास स्थान होने के कारण ” नार ” नाम से कहा गया है और उसमे व्यापक होने के कारण परमात्मा को नारायण कहा गया है |(मनु १/१० )
उस अंडे में परिवत्सर संज्ञक कल्प पर्यंत स्तिथ होकर उस परमात्मा ने आप ही अपने ज्ञान से उस अंडे को दो विभाग किये , एक वह जो द्यौ , सूर्य तथा नाना नक्षत्रो के नाम से प्रसिद्ध है और दूसरा वह जो नाना प्रकार के पृथ्वी आदि भूगोलो के नाम से कहा जाता है | ( मनु १/१२ )
उस ब्रह्मा ने उन दोनों भागो से द्युलोक और पृथ्वी के बिच आकाश , पूर्वादी चार दिशा और ऐशानी आदि चार उपदिशा इस प्रकार आठ दिशा धूम सदृश वर्षा के उपादान कारण परमाणु रूप सूक्ष्म जलो का स्थान अन्तरिक्ष नियत किया (मनु १/१३ )
उसके बाद उस परमात्मा ने अपने प्रकृति से संकल्प विकल्प करने वाला महतत्व और उससे अपने कार्य में समर्थ तथा अभिमानी सामर्थ्य वाले अहंकार को उत्पन्न किया | ( मनु १/१४ )
पुनः परमात्मा ने महतत्व और सत , रज ,तम , इन तीन गुणों के साथ विषयों के ग्रहण करने वाली पांच इन्द्रियों को क्रम से उत्पन्न किया ( १/१५ )
प्रलयकाल में सब स्थूल भूत कर्मो के साथ और सूक्ष्म अवयवो के साथ मन में प्रकृति में लय हो जाता है उस समय अव्यव प्रकृति को सब भूतो का कारण कथन करते है |( मनु १/१८)
उन अविनाशी प्रकृति की सूक्ष्म मूर्त मात्राओ से विकारी कार्य जगत उत्पन्न होता है और यह विकारी कार्य्य उन प्रकृति के महातेजस्वी सात पुरुषो ( महतत्व , अहंकार , शब्द , स्पर्श , रूप , रस , गंध ) का है | ( मनु १/१९ )

सृष्टि रचने की इच्छा वाले परमात्मा से प्रेरित किया हुआ महतत्व सृष्टि रचता है जिससे शब्द गुण युक्त आकाश प्रकट होता है | अर्थात प्रकृति से महतत्व और महतत्व से अहंकार आदि उत्पन्न होते है और क्रम से सृष्टि की उत्पत्ति होती है | ( मनु १/२१ )

और उस कार्य रूप आकाश से सब प्रकार की सुगंध को ले जाने वाला पवित्र वेगयुक्त वायु प्रकट हुआ वह वायु स्पर्श गुण वाला है | ( मनु १/२२)

उस कार्य रूप वायु से अंधकार नाशक चमकीला प्रकाशमान अग्नि उत्पन्न होता है जिसका गुण रूप है |( मनु १/२३ )

उस कार्य रूप अग्नि से रसगुण वाला जल और जल से गंध गुण वाली पृथ्वी उत्पन्न हुई इस प्रकार यह जानना चाहिए ( मनु १/२४ )

जैसा सृष्टि निर्माण का स्पष्ट वर्णन इन वैदिक ग्रंथो में मिलता है अन्य किसी मजहबी पुस्तक में नहीं मिलता जो विज्ञानं की कसौटी पर भी उतरता हो |

*‼जय सियाराम‼*

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