स्थूलवसूक्ष्म_जगत
यह स्थूल दृश्य जगत जितना हमे दिखाई देता हैa उससे कई गुणा वह सूक्ष्म है जिससे इस स्थूल जगत का निर्माण हुआ है
जिस प्रकार उर्जा ही पदार्थ का कारण है उसी प्रकार यह सूक्ष्म जगत ही स्थूल जगत का कारण है जिस प्रकार समुद्र मे तैरते हिमखण्ड का ९/१० भाग पानी के भीतर रहता हैs उसी प्रकार इस स्थूल जगत का बहुत बडा भाग सूक्ष्मशरीर मे है
जो स्थूल आँखो से दिखाई नही देता है इसके लिए दिव्यदृष्टि आवश्यक है कुछ मनीष्यो ने प्राप्त की है इसलिए उनके वर्णन को प्रमाणिक माना गया है।
इससम्पुर्ण जड़ चेतनात्मक जग ज्ञान ही अध्यात्म का विषय है hजबकि विज्ञान केवल थूल जगत के रहस्यों का उद् घाटन कर सकता है इन दोनो के दो भिन्न क्षेत्र है अध्यात्म का सम्बन्ध चेतना से है तथा विज्ञान का पदार्थ से इसलिए इन दोनो की न कोई समता है oन विरोध अध्यात्म वादी सत्य को प्रकट करताहै एवं वैज्ञानिप परीक्षण द्वारा सत्य की खोज करता है एक ने जाना है व दुसरा जानने की प्रतिक्रिया से गुजर रहा है।
किन्तु अध्यात्म मे अन्धविश्वस की सम्भावनाएँ अधिक है एवं विज्ञान की एक सीमा है जिसके आगे उसकी गति नही है ।
इसलिए जीवन मे श्रेष्ठता लाने के लिए दोनो को ही आवश्यकता है
मृत्यु जीवन का एक शाश्वत सत्य है जिसकी उपेक्षा नही की जा सकती किन तु इसे सुखद बनाया जजा सकता है जिससे भावी जीवन अधिक उन्न्त एवं समृद्ध बन सके यह मनुष्य के हाथ मे है दैवी शक्तियाँ इसे अधिक उन्नत बनाने मे सदा सहयोग करती रहती है किन तु अज्ञानवश मनुष्य स्वमं अपना पतन कर लेता है जिसके लिए यह प्रकृति जिम्मेदार नही है मृत्यु क्या है मृत्यु के बाद जीवन है मृत्यु के बाद जीवात्माएँ किन किन लोको मे भ्रमण करती है वह वहॉ पर रह तर क्या क्या कार्य करती है क्या पुनर्जन्म होता है व क्यों होतो है मृत्यु किसकी होती है हमारे जीवन और परलोक के जीवन मे क्या भिन्नताएँ और समानताएँ है क्या मोक्ष जैसी कोई स्थिति है ऐसी पोस्ट मे कई बार डाल चुका हुँ पर कोई कहता है कि ये ओशो ने लिखा है कोई जोतिषार्चाय कहता है कि ये अन्धविश्वास फैलाने जैसा पर ये मेरा आत्मअनुभव के अंश है जो श्री गरूओ व भगवती की कृपा से सम्भव हो सके है।
भारतीय अध्यात्म क्षेत्र में साँख्य योग योग एवं वेदान्त सर्वाधिक मान्य एवं प्रामाणिक ग्रन्थं है और जिसका आधा वेद और उपनिषद हैं वह भी किसी रजनीश ओशो या किसी की रचना नही है तथा इन्ही पौराणिक ग्रन्थो की व्याख्या पुराणो एवं ब्रह्मसुत्र मे हुई है।